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इस लघु नाट्यका या उसके किसीभी अंशका किसीभी प्रकारके प्रयोग / मंचन के लिए लेखककी अनुमति अनिवार्य है.
बन्दरकी आत्मकथा
पात्र : चार बंदर ( मिकारू, इवाजारू, किकजारु और शिजारू), गांधीजी
स्थल : ह्रदय कुञ्ज, गाँधी आश्रम के बाहर
( गाँधी आश्रमकी पश्चादभू में एक बड़ा सा बर्गदका पेड़ – इसके आसपास बना ओटला )
एक बंदर शिजारू पेड़ परसे बन्द्ररकी तरह उल्टा आता है – मंचके बीचमें लटकता हुआ रुकता है – सब के सामने देखर जोर से हंसता है – हंसी रूकती ही नही
ए ....इ.....इ..... ओ ...इ....इ..... करते हुए उतर कर शरमाते हुए दर्शकोंको देखकर गुप्तांग पर हाथ रख देता है – विंग से मुंह निकालकर छिपकर देखता है और हँसता है
एक और से दौड़ता हुआ मिजारू आता है – वह भी दर्शकोंको देखकर आँख पर हाथ रखकर हँसता हुआ चला जाता है - विंग से मुंह निकालकर छिपकर देखता है और हँसता है
विंग पर से उतरता हुआ किकाजारू आता है, वह भी दर्शकों को देखकर कानों पर हाथ रखकर हँसता हुआ चला जाता है - विंग से मुंह निकालकर छिपकर देखता है और हँसता है
दूसरी तरफकी विंग के उपर से इवाजारू आता है, वह भी दर्शकोंको देख लार आँख पर हाथ रख कर हँसता हुआ चला जाता है - विंग से मुंह निकालकर छिपकर देखता है और हँसता है
शिजारु : ( मंच पर आतें हुए ) ए ..इ... हूप हूप ...भिडू लोग ... आओ तो ... अबे देखो तो सही, यह लोग सच मुच बन्दरकी आत्मकथा सुनने
आयेले है ( हँसता है – बाकी के बंदरभी हँसते हुए आते है )
मिजारु : ( हँसते हुए ) हूप ...ओ....सचमुच बे .... कितने सारे ...इतनी बड़ी संख्यामें आयेले है ...
किकाजारू : ( हँसते हुए ) ... और वह भी टिकिट खरीद कर आयेले है भाई !! ... सच मूच ..!!
इवाजारु : ( दर्शकों को ) अबे ... अपुन बन्दर लोग है, अपुनकी इस्टोरी ..
शिजारू : इस्टोरी बोले तो ..आत्मकथा ..
इवाजारु : हा... अपुनकी आत्मकथा में इतना इंटरेस्ट कायकू है !...
किकाजारू : मेरेकू तो ... बिलीव ज नही हो रहेला है ,,,की इत्ते सारे लोग ... इत्ती दूर दूर से..
मिजारु ; इत्ता टाइम निकालकर
शिजारु : टिकिट खरीदकर ..
सब : हमारी आत्मकथा सुनने आयेले है ..!! ( सब हँसते हुए कुदम्कुद करते है )
किकाजारु : ( गब्बरसिंग की तरह ) क्या सोचकर आये हो .. की बंदर खुश होंगे ? शाबाशी देंगे ?
शिजारु : ओ ..हीरो... अभी इत्ता सब तकलीफ उठाकर सब तेरा एक्टिंग टेलंट देखने नही आयेले है, क्या ..
मिजारु : हाँ ... ज्यादा उछल मत क्या ... चड्डी के अंदर ही च रहेने का.. समजा ना
इवाजारु : यह सब कोई तेरे फेन है, इसलिए नही आयेले है .. अपन सब गाँधीजी के बंदर है न, इसलिए आयेले है...
शिजारु : वेल्यु गांधीजीका ठप्पा लगने की है, भाईलोग ..
किकाजारु : अरे ..गाँधीजी के हो, या किसीके भी, है तो बंदर लोग ही च ना ... ( दर्शकों को ) क्यों भाई लोग ? सही बोला की नही ?
शिजारु : अरररे ....एक मिनिट ... अभी च मेरेकु एकदम बत्ती हुई
बाकी के तीन : ( जोर से हँसते हुए ) खी खी खी ... तेरेकु बत्ती हुई ?
शिजारु : हाँ .... सच्ची
मिजारु : अबे शाने ... ज्यादा भाव मत खा ... सीधे सीधे बता देना की क्या बत्ती हुई ?
शिजारु : यह लोग अपुनकी ...इस्टोरी..बोले तो..आतम कथा सुनने इसलिए आयेले है की ...यह लोग के भी दादा के दादा के दादा के दादा के
दादा के दादा ....
किकाजारू : अपन की ही बिरादरी के थे ....!! ...
सब : हाँ .... आ...आ...आ.. ( सब हँसते है - एक दूसरेको ताली देते है - हूपा हूप करते है )
इवाजारु : हम्म्म्म.. तो ये बात है .... अपने पूर्वज की आत्मकथा सुनने आयेले है ...
शिजारु : देखो भाई लोग ... बोले तो बंदर से आदि मानव ( डार्विन के उत्क्रांति चित्र की तरह कम्पोजिशन )
मिजारू : और आदिमानव से मानव बननेमें लाखों साल बीत गयेले है...
सब : हा.... लाखो साल बीत गयेले है
मिजारू : तब जा के सब मनुष्य जातिने अब इनके अपने देश बनायेले है.
किकाजरू : अपने अपने धरम बनायेले है
इवाजारु : और अपने अपने नात-जात भी भाईलोगने बना लिए है ...
शिजारु : और उसीके नाम पर एक-दुसरे से लड़ते है भाई लोग ... छि छि छि छि
मिजारु : ए शाणे लोग ... इनलोंगोको इधर उनकी च आतमकथा सुनाने बुलाएला है क्या ?
किकाजारू : हा...भीडू...सब टाइपका चेंज आयेला है, पर .. इर्षा, क्रोध, लोभ ..यह सब तो दिमागमें ही रहेगा ही च ने ?
इवाजारू : हाँ ... सिर्फ पूंछ घीस गयेला है, इत्ते सालोंमें दिमाग तो उधर ही च है ना ..भाई ..इसमें इन बेचारे भाईलोग का क्या फोल्ट बनता है ?
मिजारु : पर ...वो ..बोले तो.. सभ्यता तो चेंज हुई है ना भाई ... पहिले अपुन जैसा नंगे घूमते थे अब तो ये कपड़े पहेनते है ...की नही ?
शिजारु : हा...पर बदन च ठकने कु ... अंदर से तो ....
सब : सब नंगे च है .... ( एक दूसरेको ताली देते हुए हसते है – हापा हूप करते है )
मिजारु : हां...आ...आ.. छुप छुप कर इंटरनेट पर नंगी नंगी फ़िल्में और वेब सीरिज देखते है ..भाई .. छि छि छि छि (आँखे बंध कर देता है )
इवाजारु : हा..आ..आ... एक दुसरेकू नंगी नगी गालियां देते है ... भाई .. छि ..छि ..छि...छि ( मुंह बंद कर देता है )
किकाजारु : हा..अआ..आ..चमचोंकी बातें और भ्रष्टाचारकी भाषा सुनते है...भाई..छि छि छि छि ( कान पर हाथ रखता है )
शिजारु : व्यसन और ऐयाशीकी लाइफ को स्टेट्स मानते है ...भाई ... छि छि छि छि ... ( गुप्तांग पर हाथ रखता है )
किकाजारु : यानी बुरा सुनते है.
मिजारु : बुरा देखते है
इवाजारू : बुरा बोलते है
शिजारु : और बुरा करते भी है.
( चारोंका लाईनमें गांधीजी के बंदर की तरह कम्पोजिशन – हलकी सी लाईट सिर्फ चारों बन्दर पर )
उद्घोषणा : ..... बंदरकी आत्मकथा
कलाकार : संगीत : सेट : लाईट : कोस्च्युम्स :
तो प्रस्तुत है – दीपक अंताणी लिखित और दिग्दर्शित “ बंदर की आत्मकथा”
( कुछ देर शांति – सुबह की अम्बर लाईट और हलके से धुंए के साथ – वैष्णव जन की धुन )
मिजारु : ( खड़ा होता है ) अपुन का नाम मिजारु ..क्या .. मी..जा..रु... ( सलाम करता है – आँख पर हाथ रखकर खड़ा रहेता है )
किकाजारु : ( खड़ा होता है ) अपुन ..किकाजारू ...क्या ... की..का..जा..रु.. ( हाथ जोड़ता है – कान पर हाथ रखकर खड़ा रहेता है )
इवाजारू ; ( खड़ा होता है ) अपुन .. इवाजारू .. इ..वा...जा..रु .. ( जुककर ‘हाय’ जैसे हाथ कर ,, मुंह पर हाथ करके खड़ा रहेता है )
शिजारु : ( खड़ा होता है ) अपुनका एन्ट्री इसतरह फर्स्टटाइम हो रहेला है ... अपना इंट्रोडक्शनमें अपुन इन तीनोंका चौथा भाई है ... शिजारू
..शि..जा..रु... पर वो क्या है ... ( गुप्तांग पर हाथ रखते हुए ) अपुनका डिपार्टमेन्ट सेन्सरमें कट हो गयेला है. यह हम भाइयोंकी
ओरिजिनल फोटू भी है, देखो ... ( स्क्रीन पर फोटो ) इन्टरनेट पर भी ए ही च फोटू देखनेकू मिलता है..बावा ...(स्टाइलमें) सो.. आई
केन से आई एम विक्टिम ऑफ़ मोरल पुलिसिंग.... !! ( चारों का लाईनमें कम्पोजीशन )
किकाजारू : इन शोर्ट ... हम वो है, जिसे आप गांधीजीके बन्दरके नामसे जानते है.
इवाजारु : गांधीजी बोले तो ...महात्मा गाँधी ...बापू ... मोहनदास करमचंद गांधी
मिजारु : हम सबको बाप्पूको दिल से थेंक्यु बोलनेका है ...
शिजारु : हाँ भीडू, थेंक्यु तो बोलना ही च पड़ेंगा ... बाप्पुने ही हमको इतना पोपुलर कर दियेला है, आज यह सब पढ़े-लीखे लोग अपुन जैसे की
आत्मकथा सुननेकू आयेले है ..
इवाजारु : ए शाणे ...तेरेकू नही, हम तीनों को पोप्युलर कियेला है..तेरेकू कोई नही जानता... क्यों भाईलोग ..यह चौथे शिजारुको कोई जनता था
क्या ?
शिजारु : अबे घोचु ... पर आजसे तो मैं पोप्युलर हो गया ना ? समजा कर भीडू ... और समजमें ना ये तो मुंह पर हाथ रखकर बैठा रहे ...
किकाजारु : ए..बन्दर की औलादें ! अब फालतू बकवास बंध करो और चलो...बापूको थेंक्यु बोलते है.
सब : चलो ! ....हूप ..हूप ...
इवाजारू : पर ...कैसे और क्या बोलने का ?
किकाजारु : अबे सिम्पल है ... बापू को पसंद थी वो प्रार्थना करनेकी ... चलो ..इस्टार्ट ..!
मिजारु : एक मिनिट ...ओ भाईलोग ( दर्शकों को ) ... अगर तुमकोभी लगता है, की बापूको थेंक्यु बोलना है, तो अपुन भिडू लोग के साथ
प्रार्थनामें जुड़ जाने का ...
शिजारु : ऐसे एकदम हाथ जोड़ कर ..
मिजारु : आँखे बंध करके
इवाजारु : सच्चे दिल से ...
किकाजारु : चलो ..इस्टार्ट ( वैष्णव जन – या – रघुपति राघव राजाराम – सब गाते है )
इवाजारू : बोलो ...महात्मा गांधी ...की ...
सब : जय
इवाजारू : भारत माताकी ..
सब : जय ( बोलते हुए सब पेड़ पर और इधर उधर बिखर जाते है )
आवाज़ : ( नेपथ्य से ) अबे कहाँ चले गये सब ?! ... तुम्हारी त्मकथा सुनने यह लोग कितनी दूर दूर से और टिकिट खरीदकर आये है ...
( सब बरी बारी बारी धीरे धीरे आते है ... कोई केला खाता हुआ..कोई उपरसे लटक कर .. कोई गुलांट मरता हुआ
कोई खुजलता हुआ – सब पेड़के नीचे बैठते है – अंदर अंदर घुस पूस करते है ...फिर एकदम से हँसते है )
शिजारू : सोरी ...भाईलोग ...बन्द्रर कोई आत्मकथा नहि होती...
मिजारु : नही नही ऐसा नही है, ..पर .. अभी हमारा आत्मकथा बोलनेका मुड नही है ,,क्या ..!
इवाजारु : नही ..नही ...ऐसा नही है, .. अप एक्च्युली ...अभी डिसाइड नही हो रहेला है, की कौन शुरुआत करेगा ?
किकाजारु : नही, नही ..ऐसा नही है... यह लोग फ़ालतूमें भाव खा रहेले है... बंदर है, तो अपनी औकात तो दिखायेंगे ही न ...हूप ..
शिजारू : हूप.. क्या बोला बे ? औकात ? हूप .. ( मारता है – किकाजारु उसे सामने मारता है – फिर से चारों अंदर अंदर मारा मारी और
मस्ती करते है –उपर निचे – इधर उधर भागते है )
अंदर से आवाज : महात्मा गाँधी की जय ... महात्मा गाँधी की ...जय ..
( “हूप..बापू आ रहेले है” बोलते हुए सब बंदर आ कर अपनी अपनी मुद्रामें बैठ जाते है...
वैष्णव जन का म्युज़िक .... थोड़ी देर बाद )
शिजारु : अबे बापू तो उपर गए डेढ़सो साल हो गयेले है ... निचु कैसे आयेंगे ?
मिजारु : हाँ..आं ...आं..... किसीने अपुनलोग को शेंडी लगाया ...
इवाजारू : हम सब .. को याद दिलाया की अपुन गांधीजी के शाणे बंदर है न ...
गांधीजी : ( अंदर से आवाज ) ध वाइस मंकीज़ ... बुध्धिमान बन्दर
( थोड़ी देर शांति ...गांधीजी के डंडे की आवाज़... – वैष्णव जन की धुन के साथ गांधीजीका प्रवेश )
गांधीजी : तो फिर .. अब शुरू करें आत्मकथा ? वाइस मंकीज़ की तरह ?
तीनो : यस...
गांधीजी : ओके...एक मिनिट ... हाँ ( एक रिमोट निकालता है ... ओंन करता है – स्क्रीन पर निचिदात्सू फिजीकी फोटो - Nichidatsu
Fujii August 6, 1885 – January 9, 1985 लिखा हुआ – स्लाइड/एलिडी स्क्रीन की जगह
सिम्पल फ्लेक्सकी फ्रेम्सका उपयोग भी हो सकता है )
मिकारू : ये कौन है ?
गांधीजी : यह निचिदात्सू फिजी है, बौध्ध साधू थे जिन्हीने 1917 “निपोन्जन म्योहोजी दाइसंगा”
मिकारु : क्या ?
गांधीजी : मतलब की “जापान बुध्ध संघ” की स्थापना की थी. ( बुध्धिजम के प्रतिककी स्लाइड ) दुसरे विश्व युध्ध के दौरान जब युध्ध विरोधिको
जेलमें डाल दिया जाता था ..तब... पुरे जापानमें यात्रा कर के युध्ध विरोध और शंतिका सन्देश और प्रार्थनायें की थी. और 1947 से
विश्वशांति के सन्देशके प्रतिक रूप “पिस-पेगोडा” विश्वभरमें बनाना शुरू किया.
( पिस पेगोडा के स्लाइड ) ( इस दौरान “बुध्धम शतं गच्छामि” का संगीत )
उन्नीस सो पैसठमें जब निचिदात्सू फिर से भारत आये तब उन्होंने बिहारके नालंदा जिल्लेके राजगीरमें वर्ल्ड पिज़ पेगोडा बनाया, जो आज
भी बौध्ध श्रध्धालुओंका पवित्र स्थानक है.
किकाजारू : सोरी बापू, पर..यह जापानी साधूका हमारी आत्मकथा से क्या लेना देना ?
गांधीजी : ये ...वही जापानीज़ साधू है, जो तुम तीनोंको ठे...ठ... जापानसे भारतमें लाये... नाइनटिन थर्टी थ्री में चार अक्तूबरको इस फिजी
और ओकित्सू नामक बौध्ध साधू जब ( वर्धा आश्रम की स्लाइड ) महाराष्ट्रके नागपुरके पास मेरे वर्धा आश्रममें मुजे मिले तब तुम
तीनोंको मुजे गिफ्ट दिया. मेरे साबरमती आश्रम अहमदाबादमें आज भी यह सफेद आरसकी प्रतिकृति मौजूद है.
( तीन बन्दर की गिफ्ट की हुई प्रतिकृति की स्लाइड )
शिजारु : सिर्फ यह तीन .. तीन बंदर
गांधीजी : हाँ और साथमें बौध्ध प्रार्थनाके साथ एक छोटा सा नगाड़ा भी दिया. तब से मैंने आश्रमकी नित्य सर्वधर्म प्रार्थनामें नगाड़ाके ताल के साथ
बौध्ध प्रार्थना “दैमोकू” या ने कमल–स्तुति को भी सामिल किया. और बुध्धिजम के “अहिंसा” के विचारका भी मुजे परिचय मिला.
मिकारू : इन शोर्ट, ..तब से तुम सब लोग अपुनलोगको गांधीजीके तीन बंदर के नामसे जानते है, .. बस हो गया भाईलोग ..आत्मकथा
पूरी...खेल खतम पैसा हजम ..
सब : ( हसते है )
गांधीजी : तुम लोगको कौन बुध्धिमान बंदर बोलेंगा ?! हाँ ..? अभी बहुत कुछ बाकी है ...
इवाजारू : अबे बीचमें क्यों बोलता है.. भीडू..?...चुप.. बंदर कहीं के...
किकाजारु : ओय... ( सामने खड़ा हो जाता है )
गांधीजी : ( उसको इग्नोर करता है ) अब यह कथाका फ्लेशबैक ... की तुमलोग यह जापानी साधूके पास कैसे आये ? .. तो यह है ...
( स्लाइड चेंज करता है ) जापानमें सत्रहवीं सदीमें बना ‘तोषो-गु’ मन्दिर. जिसके दरवाजे पर क्या दिखाई दे रहा है ?
मिकारु : अबे यह तो अपुन तीन बन्दरकी च प्रतिमा है... पर थोड़े अलग टाइपके बंदर दीखते है.
गांधीजी : ( स्मित ) वैसे तो बन्दरकी कई प्रजातिमें से ‘लंगूर’ प्रजाति के हो तुमलोग... पर ये मूर्ति जो है, वो जापानमें बनी होने के कारण लाल
मुंह वाले मकाक बन्दरकी है. ठंडे प्रदेशमें भी रहे सकते होने के कारण “स्नो मंकी” भी कहेते है. ये वौध्ध धर्मका अत्यंत प्राचीन प्रतिक
है. जो वाइस मंकीज – बुध्दिमान बंदर या मिस्टीक एप्स – रहस्यमय बन्दर के नाम से भी जाने जाते है.
मिकारु : ( हँसता है ) ... ही..ही....इ.ई... तू तो ..इधर भी नही है बे ....इधर भी हम तीन ही है ...
इवाजारू : अबे चुप... सोरी बापू ...अब अपुन बंदरलोग है, तो ऐसा रहेगा ही च...
गांधीजी : जापानीज़ भाषामें “जारू” शब्दका अर्थ “मत करो” ऐसा होता है. इसलिये तुम लोगोंके प्या...रे से नाम हैं ...
मिजारू : मायसेल्फ मिजारु ( दोनों हाथों से आंखें बंद करता है ) यानी जो उचित नही, बुरा है, उसे मत देखो
किकाजारू : मायसेल्फ किकाजारू ( दोनों हाथों से कान बंद करता है ), यानी जो उचित नही, बुरा है, उसे मत सुनो
इवाजारू : मायसेल्फ इवाजारू (दोनों हाथों स मुंह बंद करता है ) यानी जो उचित नही, बुरा है, ऐसा मत बोलो.
शिजारु : और मायसेल्फ शिजारु ( दोनों हाथो से गुप्तांग ठनकता है ) यानी जो उचित नही, बुरा है, ऐसे काम मत करो.
मिजारु : आखिर तू ने घुस मार ही दी ...क्यों बे ?! ..
गांधीजी : यही तीनों बंदर 1617 में जापान के निक्को स्थित तोगोशु की समाधि पर भी बने हुए हैं। माना जाता है कि ये बंदर चीनी दार्शनिक
कन्फ्यूशियस के थे और आठवीं शताब्दी में ये चीन से जापान पहुंचे।
( स्लाइड चेंज करता है – चाइनीज़ तीन बंदर की प्रतिकृति )
शिजारु : मेईड इन चाइना ?? !!! ओ त्तेरी ...!!
गांधीजी : ऐसा कहेते है की कन्फ्यूशियस धर्मके साथ जुड़े यह बंदर तेंडाइ साधुओंके द्वारा जापान पहुंचे थे. चीन और जापान के तेंडाइ और शिंटो
धर्ममें वानरको धर्मका सन्देश वाहक मानते है.
इवाजारू : अरे ..तेरिकी ..ऐसा क्या ? ... अपन धर्मके सन्देश वाहक ?!
गांधीजी : जापानके इन 'बुद्धिमान बंदर'को यूनेस्कोने अपनी वर्ल्ड हेरिटेज लिस्टमें शामिल किया है। उस वक्त जापानमें शिंटो संप्रदायका बोलबाला
था। शिंटो संप्रदायमें बंदरों को काफी सम्मान दिया जाता है।
किकजारु : तो शिंटो सम्प्रदाय के साथ ही च रहेनेका था ...इधर फाल्तुमें आ के फंस गयेला है ...
बाकी के दो : हाँ ..आं ..आं ...
गांधीजी : तो तुम जहाँ से आये ..वह चीनी साहित्यमें चौथे बंदरका उल्लेख मिला है ..चौथा बंदर ...कुछ जापानी धर्म स्थानों पर भी मौजूद है....
( स्लाइड चेंज करता है – चार बन्दरकी प्रतिकृति )
मिकारु : अबे..तो फिर ,.. तू इधर इंडियामें कायकू घुस मारेला है, हम तीन के साथ ?
गांधीजी : ( स्मित ) तुम तीन भी तीन नही हो .. एक ही हो ...
तीनों : मतलब ?!!
गांधीजी : ( दोनों हाथ दिखाता है ) ये क्या है ?
तीनों : हाथ ..!
गांधीजी : कितने है ?
तीनों : दो ..
गांधीजी: पर हाथ तो दो ही है, एक ही बन्दरके दो हाथ से एक ही अंग दिखाया जा सकता है, इसलिए तीन बन्दर ..आई मीन ..चार बंदर बनाये
एक ही उपदेशके लिए.
तीनो : हम्म ...मम...
मिजारू : भिडू, अपन के तो दिमाग की बत्ती ज बंध हो गयेली है.
इवाजारु : क्यों बे ? क्या हुआ ?
मिजारु : अबे ... उपदेश देने कू अपन च मिले थे ? मतलब बंदर ? ऐसा क्यों ?
इवाजारू : हा ..आ आ ... अपन च क्यों ? और वो भी जापान से ?
गांधीजी : ऐसा नही है, भारतमें भी धर्म प्रचारमें बन्दर है, बताओ कौन ?
किकाजारू : अरे हाँ ...! बोले तो .. हनुमानजी ..बजरंग बलि ...
शिजारू : यस... भगवान रामचन्द्रजीको लंका पहुँचानेकु समंदरमें रामनामके पथ्थर फेंकने वाली वानर सेना तो ही थी.
मिकारु : बापू ...तुम तो सॉलिड बात लाये ...
इवाजारू : मतलब...भाई ,.. अपना भी इतना इम्पोर्टन्स है, वो तो आज मालूम पड़ा.
गांधीजी : यह सब प्रतिकात्मक होता है...
किकाजारु : मतलब ?
गांधीजी : अपने दिमागके रावण जैसे दुष्ट विचार, बुध्धि रूपी सीताका हरण कर लेते है, जिस पर विजय पाना महासागर पार करने जैसा कठिन
है... रामनामकी मददसे ही यह संभव है. वानरसेनाका हरएक वानर एक एक विचार है, जिसे इस रामनाम के सेतु बनानेमें जुड़ना
पड़ता है. तब जाकर इस सागरको पार करना भी होता है...
मिकारु : ऐसा क्या ?! पर हनुमान तो अकेले लंका जलाकर आये थे.
तीनों : हाँ...आ...आ...
गांधीजी : हनुमान संकल्प शक्तिका प्रतिक है. जिसका स्थान मर्यादा पुरुषोत्तमके परम भक्तके तौर पर राम जैसे धार्मिक / आध्यात्मिक विचारोंकी
सेवामें उनके चरणोंमें ही है.
किकाजारू : समजमें आया कुछ ? भेजेमें उतरा ?
इवाजारू : धीरे धीरे उतारनेकी कोशिश कर रहा हु ...
गांधीजी : तुम्हारा दूसरा प्रश्न था की “बंदर ही क्यूं ?”
मिजारु : हाँ ..
गांधीजी : एक तो बंदरका शारीरिक रूप, मनुष्य के शारीरिक रूपसे करीब करीब है.
किकाजारू : पूर्वज भी तो हैं हम ...
गांधीजी : और दूसरा...बन्दर चंचल होते है, एक पेड़ से दुसरे पेड़ कूदते रहेते है, गुलांट मरते रहेते है, मस्तीखोर है... बिलकुल मनुष्यके मन की
तरह....मन को मर्कट ही कहेते है.
सब : ओ....ओ....ऐसा क्या ..
शिजारू : मतलब ... चंचल मनके प्रतिक है हम ... फिर वो हनुमान हो या “वाइस मंकीज़”
मिजारु : इसलिए धर्म से जुड़े है ...
गांधीजी : ह्म्म्म.....
किकाजारू : मतलब ये हमारी आत्मकथा तो इन सबके लिए है...क्या बात की है, आपने..! प्रणाम ...
( सब प्रणाम करते है – और अपनी अपनी मुद्रामें बैठ जाते है. )
गांधीजी : मेरा काम पूरा हुआ.. चलता हु ...
इवाजारू : ( मुंह पर के हाथ खोलते हुए ) ऐसे कैसे जायेंगे आप ? अभी आयेले च है तो ..फिर..आपके एकसो पचासवें जनम वर्षका सेलिब्रेशन तो
करना तो बनता ही है...क्यू भाई लोग ?!
तीनो : हाँ ....हाँ ...
मिजारु : अरे पर कैसे ? ... केक ?
शिजारु : पागल है क्या ..!
किकाजारू : तो फिर ?
इवाजारू : ऐसा तो सोचा ही च नही था अपन ..
मिजारु : बापू आप ही बताओ ना ... क्या करना चाहिए ...
गांधीजी : मै खुश हूँ (२)
की मेरी 150 वी जन्मजयंति मनाई जा रही है,
भूल जाने से बहेतर है, इसतरह याद तो बनाई जा रही है .
मै खुश हूँ
की मेरी हंसती फोटो, नोट पर दिखाई दे रही है,
गलत कामोंमें ही सही, पर कहीं चलायी तो जा रही है
मै खुश हूँ
की मेरे नामकी सड़कें बनाई जा रही है
रुक जाने से बहेतर है, कही न कही तो जा रही है
मै खुश हूँ
की कई चौराहोंके बीच, मेरी मूर्तियाँ खड़ी की गई है
पथ्थरसी जडवत ही सही, बीच सडक पर, मेरी पहेचान तो बनी रही है.
मै खुश हूँ
की सरकारी दफ्तरों व न्यायालयमें मेरी तसवीर टंगी है
तसवीरमें ही सही, निर्जीव, गुमसुम न्यायकी उपस्थिति तो दिख रही है
मैं खुश हूँ
की, आश्रम और स्मारक भवनमें, कई प्रकारकी प्रदर्शनी रखी गई है
देशवासियोंके दिलमें ना ही सही, कांचकी बंध अलमारियोंमें दर्शन तो दे रही है
मै खुश हूँ
की तरह तरह के मिडियामें, मेरे मूल्यों और प्रदानकी चर्चायें करी जा रही है
आचरणमें ना ही सही, मेरे जीवन और संदेशकी पुष्टिकी औपचारिकता तो की जा रही है.
मै खुश हूँ
की “वैष्णव जन तो तेने रे कहिये’ की प्रार्थनाएँ गाई जा रही है
समजमें और पालनमें ना ही सही, मेरे व्रतोंको पुकार तो दी जा रही है
मेरा जीवन ही मेरा संदेश है
बस यही खोज रहा हु एकसो पचास सालों से,
पर यह कहीं कुछ गलती से आचरणमें क्यों नही है ?
पर सचमुच मैं कहाँ जीवित हु ? मैं तो मर चूका हु ..
मेरी तो हत्या हो चुकी है ... हत्या ...
( तीन गोली और 'हे राम" की आवाज ...या शेडो प्ले )
तीन ही गोली थी वह ...जो देह का नाश कर गयी ..
हत्या तो अब हो रही है मेरी,
भ्रष्टाचार, जात-पांत, हिंसा जैसी कई गोलियों से
हररोज ...
फिर भी ... मै खुश हूं
की मेरी 150 वी जन्मजयंति मनाई जा रही है,
भूल जाने से बहेतर है ... इसतरह याद तो बनाई जा रही है.
सभी : ( तालियाँ बजाते है )
शिजारु : महात्मा गाँधी ...की ....
सभी : जय ....
किकाजारु : सुना भाईलोग ? तो अब बापू की एकसो पचासवीं जनमजयंति कैसे मनानेका ?
मिजारु : अब मर्कट मनको कंट्रोलमें रखने का और ?...
इवाजारू : राष्ट्रके हितमें निडरतासे सत्यबोलनेका – चुप नही रहेनेका – बोले तो सिनेमा देखने जाते हो, तब ऊँची आवाजमें राष्ट्रगीत गर्व से गाने
का ..बिंन्दास ..
किकाजारु : अपने आत्माकी, अंदरकी आवाज़ सुननेका
मिजारू : राष्ट्रका हित देखनेका, पुस्तक पढनेका और समजनेका
शिजारू : जो भी काम कर रहे हो, जहाँ भी काम कर रहे हो ... राष्ट्रकी सरहद पर हो, ऐसा मान कर राष्ट्रके हितमें ही आचरण करनेका.... ऐस
तो बनताता है न भाईलोग ? क्या बोलते हो ? सही है न ? तो मेरे साथ बोलो ....... जयहिंद ..
भारतमाता की जय
( चारों अपने अपने पोस्चरमें आ जाते है – “वैष्णव जन” की धुन - हल्का सा स्मोक – धरे धीरे ब्लेक आउट )
> > > समाप्त < < <
सुचना :
प्रोजेक्टर / स्लाइड की जगह – फ्लेक्स या पेंटिंग्सका प्रयोग भी किया जा सकता है, जिसे पेड़ से लटका कर या बंदरों को हाथमें पकड़ा सकते है ...