मेरे मगरूर सनम! Pandit Swayam Prakash Mishra द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मेरे मगरूर सनम!

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दोस्तों ! मैं स्वयं प्रकाश मिश्र 
    ग्राम: माल जिला लखनऊ  से हूं ...
मैं आपके समक्ष अपनी पहली पुस्तक लेकर आया हूं जिसका शीर्षक है...." इक जिक्र उनका भी"....इसका प्रसंग मेरे कॉलेज के दिनों का है जब मैं किसी से बेइंतिहा प्यार करता था।
यूँ तो आपको ये सिर्फ कहानी मात्र लगेगी लेकिन इसका असल आप मुझसे पूछे ! ये इक कहानी मात्र नहीं है बल्कि मेरे वो जज्बात है जो आज तक  अवसर तलाश रहे है.कि कैसे उसे..  अपना बनाया जा सके।
यकीनन ये मेरा दर्द हैं जो मैं कलम का सहारा लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।
वैसे मुझे लिखने का सलीका तो नही  पर जो मैंने लिखने की कोशिश की है उसे यदि आप सभी द्वारा सराहा गया तो ....मैं आपका आभारी रहूंगा।

 
            
                    "  धन्यवाद"   स्वयं प्रकाश मिश्र



...



..


..........यूँ तो प्यार बहुतो ने किया होगा।
     पर शायद ही मेरे जैसा प्यार किसी ने किया हो!....
हमें पता है...आपको  अभी मेरी बातें  हवा हवाई लग रही होंगी।
पर आप जैसे -जैसे  मेरी ये दर्द भरी कहानी पढ़ोगे। .... 
........तो यकीनन आपको को भी यह एहसास हो जाएगा कि मिश्र!
दुनियां में सबसे अगल था...और आज भी है।

तो उसका प्यार भी औरों से  कम  बेहतर हो  ये तो मुनकिन नही।
मेरी पसंद तो हर तरह से अच्छी या कहे बहुत ही अच्छी थी और आज भी है।

...क्योंकि  मेरे प्यार में हर वो खास था जो अपने प्यार के लिए ...
हर जवां दिलों के ख्वाब में होता है।

 जो अपने आप में अद्भुत था।
मैंने दुनियां बहुत ज्यादा तो नही देखी लेकिन . फिरभी मैं यह कह सकता हूँ मेरा  प्यार औरों से अलग था!....
     
कही न कही यह सब पढ़कर आपके हृदय में भी बेकरारी सी हो रही होगी.....
 कि आख़िर वो कौन है जिसे मैं  कभी बेइंतहा प्यार करता था..
और  यकीनन उससे भी बेहतर आज करता हूँ।
अरे ठहरिये दोस्तों !
      जिक्र हर उस पहलू  का होगा जिनका ताल्लुक कभी न कभी मेरे और उसके बीच रहा है।
   .....
एक दो वजह हो अपने प्यार को लेकर  तो हम सरलता से गिना भी दे ।
......पर मेरा प्यार तो शुरू से आखिरी तक  अनूठा है उसका हर एक अंदाज मिश्र! दुनियां से अलग है और निराला है।
आमतौर पर.. तो मोहब्बत का सिलसिला आँखों से आँखे चार होने पर शुरू होता है..मतलब ये है एक दूसरे से  नजर से  नजर मिलाकर   हम अपना हाल-ऐ-दिल बयां करते है।
पर मेरी प्रेम कहानी में ऐसा बिल्कुल नही हुआ ! ...
क्योंकि जब मैंने उसे पहली बार देखा तो सिर्फ उसकी कमर ही मुझे दिखाई पड़ी..!       दरासल इसके पीछे भी एक रोचक कारण था ...
वह यह कि  जिस क्लास में  वो कॉमर्स पढ़ने आती थी वह ठीक मेरे क्लास के पीछे था।
और इत्तफाक से उस रोज खिड़की बन्द थी लेकिन उसके दरख्तों के बीच इतनी गुंजाइश थी कि मैं उसकी कयामत जवानी को निहार सकूँ। हकीकत में उसकी कमर मेरे दिल मे घर कर गयी।
      वैसे भी किसी ने कहा ही बहुत खूब है ---"कि लड़की वही बेहतर है इसकी कमर पतली सी हो ।

   ....हमे पता है आपको विश्वास न होगा पर ये सच है.. क्योंकि मुझे वो खुशनुमा पल  आज भी हूबहू याद है .... 
 जब मैं उसे  देखने के बाद  स्वयं को भूल सा गया था।।
  शायद वो एक एहसास था जो मुझे प्यार सिखाने आया था ,

 सबसे अलग उसकी मदहोश कर देने वाली कटीली आँखे थी। 
जिसे मैंने देर से  देखा...  पर जब देखा तो उनमें..खो  सा गया और ऐसा खोया मिश्र! कि आज कई वर्ष बाद भी ...खुद की  खोज खबर तक न मिली...
इसके बाद ....मैं अक्सर उसे देखने के लिए पहले से पीछे वाले दरवाजे पर खड़ा हो जाता  और जब वो आती तो उसे कुछ पल निखरता....
ऐसे ही हर रोज होने लगा । फिर पूरे कॉलेज में उसके और मेरे प्यार के चर्चे होने लगे। मैं उसके प्यार में इतना मशहूर या कहे बदनाम हुआ कि हर एक टीचर्स को खबर हो गयी कि मैं उसे चाहता हूं। कई बार तो मुझे अपने टीचर्स से उसको लेकर डॉट भी खानी पड़ी। मुझे आज भी याद है कि एक रोज जब मैं बार -बार पीछे पलटकर उसे देख रहा था तो ...
तो मेरे  इंग्लिश टीचर जिनका नाम अरुण सिंह था उन्होंने .. मुझे कहा मिश्रा जी . ब्लैक बोर्ड इधर है आप अभी पढ़ लो फिर उधर देख भी लेना ।।
     ऐसा उनके मुख से सुनने के बाद मुझे भी पूरा एहसास हुआ कि कही न कही मैं जरूरत से ज्यादा फोकस उस पर कर रहा हूँ।
लेकिन कुछ भी हो मेरा दिल  
 तो बैचैन उन दिनों  इसलिए था कि काश! वह भी मेरी मोहब्बत समझ पाती।
अरे मैं भी न कितनी अजीब सी बातें कर रहा हूँ दोस्तो!....
 कमी मुझमें है 
जब आज तक मैंने उससे अपनी मोहब्बत का इजहार ही नही किया तो वह कैसे जानेगी कि मैं उसे बहुत सारा प्यार करता हूँ।
पर मेरा उसे अक्सर निहारना और उसका मुझे देख अपनी सहेलियों से बातें करना ऐसे कई इशारे थे मिश्र !
.....जो यह कह रहे थे कि उसे भी अब धीरे- धीरे समझ आने लगा है।
की सामने की क्लास का लड़का उसे पसंद करता है... 

अब वह भी  पूरी तरह समझ चुकी थी  कि ...
मैं उसे चाहता हूं!
लेकिन इजहार नही कर पा रहा हूँ . मैं भी चाहकर ऐसा नही कर पा रहा था ....वह इसलिए कि ...मेरा अंदाज बचपन से शर्मिला था! 
....पता नहीं क्यों?लड़कियों से बात करने में मुझे शर्म सी आती थीं।

पर मैं  उसे चाहता था रब! इसमें कोई शक नही था! करता भी क्या...
हाय मिश्र! वो थी ही इनती खूबसूरत  ...कि उसे जो देखे बस उसी में वशीभूत हो जाए।
मैंने उसे पहली बार  देखा तो  दिल ने कुछ .... यूँ कहाँ की अगर जन्नत की परी भी  होगी !....तो इससे कम बेहतर ही  होगी। इसके बाद मैं हर वो कोशिश में रहता जो मुझे उसके पास ले सके।
पर अफसोस!
हम चाहकर  तो सिर्फ ख्वाब देख सकते है  पर उन्हें हकीकत में ढाल नही सकते ।

शायद ये इंसानों के बस में नही रब!
 कि वो जिसे चाहे उसे अपना बना सके।
कुछ भी हो दिल तो नदान है भला उसे कसूर- वार  कैसे ठहराया जाएं।
.
सच मे उसकी तराशी जवानी का कोई जवाब नहीं!.......दिल उसे जब भी याद करता है अब दोस्तो तो बस यही कहता है कि हाय रोम! हाय रोम!
काश तुम मेरी किस्मत में होती तो जिंदगी और भी हसीं होती।
 क्या  ?मिश्र सच में वह   इतनी खूबसूरत थी...  कि.... आज-तक उसकी यादें तेरे दिल मे बसी है...
हाँ! हाँ! बिल्कुल !
 
 किसी ने कहा ही बहुत  खूब है ...बचपन की यादें धुधली जरूर होती है पर  विलुप्त नही!  
रब मुझे उसका चेहरा  खुद से बेहतर याद है ...भले ही उसे देखे कई वर्ष हो गए हो। पर कमबख्त!  दिल ने उसकी तस्वीर आज भी संभाल कर रखी है।...
शायद !इसलिए कि!
 उम्मीदें आज भी है कायम उन्हें अपना बनाने की....



       ........ स्वयं प्रकाश मिश्र
                  15/11/2018