लघुकथा. मलाल
'गांव वाले लड़ने आ सकते हैं. लड़की को क्यों मारा ? क्या, तुम्हें मारने का अधिकार है. पिताजी पुलिस में रिपोर्ट कर सकते हैं. शर्म नहीं आती. एक छोटी लड़की का मारते हुए.'
यही सोच कर मोहनलाल का सिर फटा जा रहा था.
' क्या करे, गलती तो हो गई. जो होगा देखा जाएगा,' उन्हों ने दिमाग को एक झटका दिया. मगर, दिल कहां मानता है. वह अपनी तरह सोच रहा था.
' उस मासूम को नहीं मारना चाहिए था. हां, मगर मैं क्या करता ? मैं ने कक्षा में अनुशासन बनाए रखने के लिए उसे कई बार डांटा—फटकारा था. वह मान हीं नहीं रही थी. उस के देखादेख दूसरे छात्र भी धमाल कर रहे थे. इसलिए मुझे ऐसा कदम उठाना पड़ा.'
' क्या मारना जरूरी था. तूझे नहीं मालुम कि मारना दण्डनीय अपराध है. इस के लिए तेरी नौकरी भी जा सकती है. तूझे सजा हो सकती है.'
' तो क्या करता ? उसे धमाल करने देता. कक्षा में शांति बनाए रख कर पढ़ाना जरूरी है. वह पढ़ नहीं रही थी. दूसरे को भी पढ़ने नहीं दे रही थी. उसे पांच बार समझाया. मत कर. मत कर. नहीं मानी तो गुस्सा आ गया. बस गुस्से में एक धोल जमा दिया.'
' मगर, गुस्सा करना अच्छी बात है.' दिमाग ने कहा तो दिल बोला, ' गुस्सा नहीं कर रहा था, दूसरे बच्चे को पढ़ा रहा था. उस कई बार चुप रहने की कहा. मगर, नहीं मानी. दूसरे बच्चे पढ़ नहीं पा रहे थे. इसलिए अचानक गुस्सा आ गया. और एक धोल लगा दिया.'
'उसे बाद में पुचकार लेना चाहिए थे.' दिल ने कहा तो दिमाग बोला, ' कैसे पुचकार लेता. वह मार खाते ही घर भाग गई थी. '
' तब तो भुगतना पड़ेगा.' यह सोचते हुए वह विद्यालय पहुंच गया. मगर, जैसा उस ने सोचा था वैसा कुछ नहीं था. विद्यालय को ताला बंद करने के लिए ग्रामीण नहीं आए हुए थे. लड़की के पिताजी कहीं नजर नहीं आ रहे थे. उन्हों ने पुलिस रिपोर्ट की होती तो गांव में खबर हो जाती. ऐसी कोई खबर नहीं थी.
तभी लड़की दूर से आती दिखाई दी. उस की धड़कन बढ़ गई. लड़की ने पास आते ही मोहनलाल के चरणस्पर्श करते हुए कहा, '' सर ! आज तो मैं सभी काम कर के लाई हूं. अब तो नहीं मारोगे ना ?'' कहते हुए उस ने मोहन सर को हाँ में गर्दन हिलाते देखा और कक्षा में चली गई.
मगर, मोहनलाल की निगाहें कुछ खोजते हुए खिड़की के बाहर चली गई. जहाँ कौवे से मार खाने के बाद पेड़ पर चहचहाती और उछलकूद करती चिड़िया अपना नीड़ बना रही थी .
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19/07/2018
ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
पोस्ट ऑफिस के पास
रतनगढ़ – ४५८२२६ (मप्र)
जिला- नीमच (भारत)
लघुकथा. मलाल
'गांव वाले लड़ने आ सकते हैं. लड़की को क्यों मारा ? क्या, तुम्हें मारने का अधिकार है. पिताजी पुलिस में रिपोर्ट कर सकते हैं. शर्म नहीं आती. एक छोटी लड़की का मारते हुए.'
यही सोच कर मोहनलाल का सिर फटा जा रहा था.
' क्या करे, गलती तो हो गई. जो होगा देखा जाएगा,' उन्हों ने दिमाग को एक झटका दिया. मगर, दिल कहां मानता है. वह अपनी तरह सोच रहा था.
' उस मासूम को नहीं मारना चाहिए था. हां, मगर मैं क्या करता ? मैं ने कक्षा में अनुशासन बनाए रखने के लिए उसे कई बार डांटा—फटकारा था. वह मान हीं नहीं रही थी. उस के देखादेख दूसरे छात्र भी धमाल कर रहे थे. इसलिए मुझे ऐसा कदम उठाना पड़ा.'
' क्या मारना जरूरी था. तूझे नहीं मालुम कि मारना दण्डनीय अपराध है. इस के लिए तेरी नौकरी भी जा सकती है. तूझे सजा हो सकती है.'
' तो क्या करता ? उसे धमाल करने देता. कक्षा में शांति बनाए रख कर पढ़ाना जरूरी है. वह पढ़ नहीं रही थी. दूसरे को भी पढ़ने नहीं दे रही थी. उसे पांच बार समझाया. मत कर. मत कर. नहीं मानी तो गुस्सा आ गया. बस गुस्से में एक धोल जमा दिया.'
' मगर, गुस्सा करना अच्छी बात है.' दिमाग ने कहा तो दिल बोला, ' गुस्सा नहीं कर रहा था, दूसरे बच्चे को पढ़ा रहा था. उस कई बार चुप रहने की कहा. मगर, नहीं मानी. दूसरे बच्चे पढ़ नहीं पा रहे थे. इसलिए अचानक गुस्सा आ गया. और एक धोल लगा दिया.'
'उसे बाद में पुचकार लेना चाहिए थे.' दिल ने कहा तो दिमाग बोला, ' कैसे पुचकार लेता. वह मार खाते ही घर भाग गई थी. '
' तब तो भुगतना पड़ेगा.' यह सोचते हुए वह विद्यालय पहुंच गया. मगर, जैसा उस ने सोचा था वैसा कुछ नहीं था. विद्यालय को ताला बंद करने के लिए ग्रामीण नहीं आए हुए थे. लड़की के पिताजी कहीं नजर नहीं आ रहे थे. उन्हों ने पुलिस रिपोर्ट की होती तो गांव में खबर हो जाती. ऐसी कोई खबर नहीं थी.
तभी लड़की दूर से आती दिखाई दी. उस की धड़कन बढ़ गई. लड़की ने पास आते ही मोहनलाल के चरणस्पर्श करते हुए कहा, '' सर ! आज तो मैं सभी काम कर के लाई हूं. अब तो नहीं मारोगे ना ?'' कहते हुए उस ने मोहन सर को हाँ में गर्दन हिलाते देखा और कक्षा में चली गई.
मगर, मोहनलाल की निगाहें कुछ खोजते हुए खिड़की के बाहर चली गई. जहाँ कौवे से मार खाने के बाद पेड़ पर चहचहाती और उछलकूद करती चिड़िया अपना नीड़ बना रही थी .
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19/07/2018
ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
पोस्ट ऑफिस के पास
रतनगढ़ – ४५८२२६ (मप्र)
जिला- नीमच (भारत)