शांतनु - ८ Siddharth Chhaya द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शांतनु - ८

शांतनु

लेखक: सिद्धार्थ छाया

(मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण)

आठ

“फ़िर?” शांतनु ने बगैर होश में वापस आये पूछा|

“हां, तो आज वो सुबो आठ बजते ही आ गई और हम से पूछने लगी की काका पार्किंग में कौनो सेफ जगह बताओ... ताकी उनकी स्कूटी को कछु ना हो ना इस लिये| और अब तो इ रोज की बात भई!” मातादीन ने अनुश्री के साथ हुए अपने संवाद को प्रगट किया|

“फ़िर?” शांतनु ने फिर से वोही सवाल रिपीट किया|

“फ़िर? आपको तो आने में अभी देर थी तो हमने आपसे पूछे बगैर ही आपके पार्किंगवा के बगलवाली जगह उन्हें दे दी और कहा की आज से यहीं पार्क करियेगा| उनका नाम अनुस्री मैडम है, हमका उन्हों ने सौ रुपया भी दिया| हम भी बोले दिये रहे की अब आपकी स्कूटी की जिम्मेवारी हमार है| सांतनु बाबा आप को तो कोई हर्ज़ा नहीं है ना अगर इ स्कूटी आपकी बाइक के बगल में रहे तो? आप तो पूरा दिन बहार रहते हो, और इनका दिन तो छ बजे ही खत्म हो जाता है, और उ तो पूरा दिन ऑफ़िस में ही रहेगी, अगर आपको कोई तकलीफ़ होगी तो हम हैं ना? अड्जेस्ट कर लेंगे|” मातादीन ने एक ही साँस में बोल दिया|

शांतनु की दिमाग की बत्ती अब जा कर जली| वो खामखा अनुश्री की राह देख रहा था| वो तो आलरेडी आठ बजे अपनी ऑफ़िस में आ गई थी| पर इतनी जल्दी? पर अनुश्री की स्कूटी उसकी बाइक की बगल में ही रहेगी वो बात शांतनु को बहुत भा गई| उधर मातादीन शांतनु की मंज़ूरी की राह देख रहा था|

“अरे, मातादीन भैया इस में क्या बड़ी बात है? किसीके काम आना तो अच्छी बात है ना? और देखिये, आप जैसे मेरी बाइक का ख्याल रखते हैं वैसे ही उनकी स्कूटी का भी ख्याल रखियेगा ठीक है?” शांतनु ने मातादीन के कंधे पर हाथ रख कर मुस्कुरा कर जवाब दिया और लिफ्ट की और दौड़ पड़ा|

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लिफ्ट तो जैसे आज शांतनु की ही रह देख कर खड़ी थी, शांतनु दौड़ कर उसमें घुस गया| पांचवे तल पर पहुँच कर उसी गति से वो अपनी ऑफ़िस की ओर चलने लगा और देखा की पैसेज के एकदम अंत में जहाँ एक बड़ी सी खिड़की थी वहां अनुश्री अपने सैलफोन पर किसीके साथ बात कर रही थी| शांतनु ने पांचसो तीन की और देखा तो ऑफ़िस पर तो ताला पड़ा हुआ था!

“ऑफ़िस तो बंद है, तो फ़िर अभी से ये यहाँ इतनी जल्दी कैसे?” शांतनु सोचने लगा|

शांतनु का ऑफ़िस तो रोज़ की तरह खुल गया था, पर उसकी नजरों के सामने अनुश्री थी इसलिये वो अंदर भी कैसे जा सकता था? थोड़ा सोचविचार करने के बाद शांतनु ने अपना बैग ऑफ़िस के फ्रंट डेस्क पर रख दिया और अनुश्री के कोल के खत्म होने का इंतजार करने लगा|

पांच-सात मिनट बाद अनुश्री की बात खत्म हुई हो ऐसा लगा| वो उल्टी घूमी और अपने सैलफोन में कुछ करने लगी अभी तक उसका ध्यान शांतनु पर नहीं पड़ा था| शांतनु को भी वो उसका ध्यान खींचना चाहता है ऐसा लगने देना नहीं चाहता था| इसलिये वो जैसे अभी अभी ऑफ़िस आया हो और अंदर जा रहा हो उस तरह से अपने ऑफ़िस का दरवाज़ा पकड़ कर खड़ा रहा| आख़िरकार अनुश्री ने अपना फ़ोन लोक किया और अपनी ऑफ़िस की ओर देखा जो अभी भी बंद ही था और बाद में उसका ध्यान शांतनु की ओर गया|

“हेय! शांतनु!” शांतनु को देख कर अनुश्री ज़ोर से बोल पड़ी| शांतनु को तो बस यही चाहिये था|

“ओह हाई!” शांतनु भी जैसे की वो ऑफ़िस में घुस रहा हो और अचानक ही उसका ध्यान अनुश्री की ओर गया हो ऐसी एक्टिंग करने लगा|

दो दिन में शांतनु ऐसी अदाकारी में माहिर हो गया था| अनुश्री उसकी ओर बढ़ी, शांतनु को भी अपने ऑफ़िस के मजनुओं की नजरों से अनुश्री को बचाना था इस लिये उसने भी अनुश्री की ओर चलना शुरू किया|

“केम छो?” अनुश्री को शांतनु ने बगैर नर्वस हुए पूछा|

“मजामा!” अनुश्री ने अपनी उँगलियों से अपनी लट को कान के पीछे लगाते हुए जवाब दिया|

“आपका ऑफ़िस तो अभी तक बंद है!” शांतनु ने ऐसे ही कह दिया, उसको अनुश्री को पता लगने नहीं देना था की उसको खबर थी को वो आठ बजे ही यहाँ आ गई है|”

“हाँ, साढ़े नौ बजे खुलेगा, आई नो, पर मै थोड़ी जल्दी आ गयी आज ऑफिशियली पहला दिन है न? इस लिये सोचा रिस्क न लूं| अनुश्री ने जवाब दिया|

शांतनु को अनुश्री का ‘थोड़ी जल्दी’ कहना थोडा सा अजीब लगा पर सोचा की उसकी पर्सनल मेटर है, उसको क्या?

“सोरी, ऑल मेल्स प्लेस, वरना आपको हमारी ऑफ़िस में ज़रूर बिठाता|” शांतनु ने विवेक किया|

“ओह, इट्स ओके, कल से तो मैं भी साढ़े नौ के आसपास ही आउंगी|” कह कर अनुश्रीने अपना पावरहाउस स्माइल दिया और उसे देख शांतनु फ़िर से आधा आधा होने लगा|

शांतनु को अब बात कैसे आगे बढ़ाये वो पता नहीं चल रहा था, शांतनु की इस तकलीफ़ को अक्षय ने दूर की|

“कैसे हो आप मेडम? गुड मोर्निंग शांतनु’दा!” अक्षय ने अपनी स्टाइल में एंट्री की|

“हेय, हाई... अक्षय राईट? गुड मोर्निंग|” अनुश्री ने हंस कर जवाब दिया|

“हां जी अनु मेम|” अक्षय ने भी मुस्कुरा कर जवाब दिया|

“अरे थेंक्स अक्षय... आई मीन सिरु के लिये, कल शाम को उसका कोल था|” कह कर अनुश्रीने अक्षय की ओर अपना हाथ बढ़ाया|

“थेंक्स क्यूँ? वो तो मेरा फर्ज़ था|” अक्षयने मार्मिक मुस्कुराहट शांतनु को दी और अनुश्री का हाथ कस के पकड़ा और बहुत देर तक उसे हिलाता रहा|

शांतनु को अक्षय के सारे फंडे पता थे, उसको खबर थी की अक्षय उसकी टांग खिंच रहा था|

“वो तो ठीक है, पर उसको इस जॉब की खास ज़रूरत थी, उसके फादर छ महीने पहेले ही एक एक्सीडेंट में गुज़र गये हैं और उसका एक छोटा भाई है इसलिये सारे घर की जिम्मेदारी अब उस पर है|” अनुश्री ने सिरतदीप की कहानी कही|

“ओह धेट्स सेड, अनु मेम अगर मुझे पता होता तो मैं और भी मेहनत करता, जयेशभाई मेरे खास मित्र हैं, वो मेरे कहने पर कुछ भी करते|” अक्षय ने जवाब दिया|

शांतनु को ये जो कुछ भी हो रहा था वो देखते रेहना अच्छा लग रहा था|

“सो नाईस ऑफ़ यु अक्षय| देखो कल तक हम सब एक दुसरे को पहचानते भी नहीं थे और अचानक आप दोनों कैफ़े में आये जहाँ लकीली मैं और सिरु बैठे थे और देखो उसका काम भी हो गया| कैसी अजीब बात है ना?” अनुश्रीने फ़िर से अपनी लट सीधी की|

‘अचानक आप दोनों कैफ़े में आये’ सुन कर शांतनु आने अक्षय दोनों को हंसी आ गई पर जैसेतैसे दोनों ने कंट्रोल किया|

“लाइफ इज़ लाइक धेट अनुश्री, जिसे आप सालों से पहचानते हो वो कभी आपकी मदद नहीं करते और जिसे आप पिछले पल तक नहीं जानते वो अचानक आपकी मदद कर देते हैं|” शांतनु को किसी ना किसी तरह इस चर्चा में भाग लेना था इसलिये उसने जैसी आये वैसी फिलोसोफी झाड़ दी|

पर अनुश्री के चेहरे से लगा की उसको ये फिलोसोफी काफी पसंद आयी है|

“एक्ज़ेक्टली शांतनु, मैं भी ऐसा ही मानती हूं|” अनुश्री का ध्यान शांतनु की ओर गया और उसने शांतनु की ओर देखा| शांतनु ने शायद पहलीबार अनुश्री की आँखों में अपनी आँखें डाल कर उसे एक मुस्कान दी|

“चलिये अब फिलोसोफी साइड पर रखिये शांतनु सर और अनुश्री मेम, सिरतदीप को कहियेगा की मुझे तो पार्टी चाहिये जब उसकी फ़र्स्ट सेलरी आये तब|” अक्षय ने डिमांड की|

“श्योर व्हाय नोट? और सेलरी डे तक वेइट करने की क्या ज़रूरत है? कल ही रखते हैं ना? सेटर डे भी है तो कहीं डिनर पर चलते हैं?” अनुश्री ने तो इन्विटेशन भी दे दिया|

“एक मिनीट... एक मिनीट... हर बात में लेडीज़ फ़र्स्ट ठीक है पर कल की डिनर पार्टी मैं और बड़े भैया ही देंगे ओके?” अक्षय ने अपने अनुभव को काम में लगाया|

“आई अग्री, इस बार तो हमारी ही बारी|” शांतनु भी अक्षय की बात से सहमत हुआ|

“ना, ना सिरु को जॉब मिली है ना? इसलिये इस बार पार्टी तो हम ही देंगे|” अनुश्री का आग्रह मज़बूत था|

“नो...नो...नो... कल भाई का बर्थडे है इसलिये पार्टी सिर्फ़ बड़े भाई ही देंगे|” अक्षय के बोलने से अचानक ही शांतनु को भी याद आया की कल आठ मई को उसका जन्मदिन है|

“ओह वाओ| धेट्स ग्रेट...अम्म्म... ठीक है इस बार तो मैं जाने देती हूँ, पर सिरु की फ़र्स्ट सेलरी जब आयेगी तब तो हम ही पार्टी देंगे| चलिये, मेरा ऑफ़िस खुल गया... सी या|” इतना कहते ही अनुश्री शांतनु और अक्षय की और हाथ हिलाते अपनी ऑफ़िस में चली गई|

शांतनु और अक्षय एक दुसरे की और देखते रहे| क्या शांतनु की कहानी ज़रूरत से कुछ ज़्यादा ही तेज भाग रही थी? क्या शांतनु जैसे शर्मीले लड़के की भी प्रेम कहानी संभव है? और वो भी अनुश्री से जो शांतनु को पहली नज़र में ही अच्छी लगने लगी थी?

शांतनु ये सब सोचते हुए ऑफ़िस में घुस ही रहा था की पीछे से अनुश्री की आवाज़ आयी|

“अरे शांतनु, अपना फ़ोन नंबर तो दीजिये? आज आप फ़ील्ड पर चले जायेंगे तो कल डिनर के लिये कहाँ मिलना है वो तो फ़ोन पर ही डिस्कस करेंगे न?” अनुश्री का फ़ोन नंबर उसको इतनी जल्दी मिलनेवाला था, शांतनु को एक और सरप्राइज मिला, जबकि अक्षय ये सब देख कर मंदमंद मुस्कुरा रहा था|

“श्योर, प्लीज़ लिखिए... नाइन थ्री डबल...” शांतनु ने अपना सैलफोन नंबर अनुश्री को दिया|

“थेंक्स, में अब आपको मिस्ड कोल देती हूं, आप मेरा नंबर सेव कर लीजिये|” कहते ही अनुश्री ने अपने सैलफोन से शांतनु का नंबर डायल किया|

शांतनु के रिंगटोन में किशोर कुमार का गाया हुआ “फिर वोही रात है...” वाला गाना बजा और उसको अनुश्री का नंबर अपने स्क्रिन पर दिखा| शांतनु को लगा की अनुश्री अभी उसका कोल कट करेगी, पर अनुश्री शायद इस रिंगटोन को सुन कर मंत्रमुग्ध हो गई हो ऐसा लगा| यह गाना शांतनु के सबसे पसंदीदा गानों में से एक था और इसीलिए उसने इस रिंगटोन को महीनो से बदला नहीं था|

“हमम.. घर...वाओ! मुझे उसके सारे गाने पसंद है! वे टू गो शांतनु|” अनुश्री ने अपना हाथ शांतनु की ओर बढ़ाया|

शांतनु ने एक पल की भी देर किये बगैर अनुश्री का हाथ पकड़ लिया|

“हो...रातभर ख्वाब में देखा करेंगे तुम्हें...” लाइन के साथ अनुश्री का कोल अपनेआप कट हो गया|

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“व्होट नेक्स्ट अक्षु?” शांतनु ने अक्षय से पूछा|

शांतनु और अक्षय आज पूरा दिन फ़ील्ड पर रहे थे और शाम को साढ़े सात बजे वो जब ऑफ़िस वापस आये तो शांतनु ने अनुश्री का स्कूटी उसकी बाइक की बगल में नहीं देखा तो उसने सोच लिया की अनुश्री अपने घर जा चुकी है| शांतनु और अक्षय ने मुंबई से आये टेम्परेरी बोस कुरुष दाबु को रिपोर्ट किया और जब वे सीढ़िया उतर रहे थे तब शांतनु ने अक्षय से यह सवाल किया|

“जस्ट वेइट एन्ड वोच ब्रो, भाभी ने आपका नंबर लिया है न? और कल के डिनर का तो सिरतदीप ने भी कन्फर्म किया है सो जस्ट चिल्ल|” अक्षय ने जवाब दिया|

“अरे मेरा मतलब वो नहीं था, मैं सोच रहा था की कल करेंगे क्या?” शांतनु ने एक और सवाल किया|

“बस हमें नोर्मल रहना है, वैसे आप तो सदा नोर्मल ही रहते हो| बस थोडा ये गभराना बंद करेंगे न भैया तो अच्छा रहेगा| बी कोंफिड़ेंट! कल आपका बर्थडे है न? भाभी से अब पहचान भी हो गई है, कल से थोडा आत्मविश्वास के साथ उनसे बात करियेगा| आज सुबह भी भाभी ने जब आपसे आपका मोबाइल नंबर माँगा तब भी आप एकदम नर्वस हो गये थे| देखिये, अगर लड़की को अच्छा लड़का पसंद है तो उसको उसमे भरपूर आत्मविश्वास हो वो भी पसंद होता है|” अक्षय की बात खत्म होते होते ग्राउंड फ्लोर आ गया|

“हमम... शायद तू ठीक ही कह रहा है, मैं कल वैसे ही करूंगा और भविष्य में भी वैसे ही रहूँगा| ज़्यादा से ज़्यादा मना करेगी ना? पर सच कहूँ? उसको देख कर ही मुझे कुछ कुछ होने लगता है, और जो मैं बोलना चाहता हूं उससे कुछ अलग ही बोल पड़ता हूं, और फ़िर डरता हूं की कहीं उसको मेरी किसी बात का बुरा तो नहीं लगा ना?” शांतनु ने अपनी तकलीफ़ बताई|

“आई केन अंडरस्टेंड भाई, कोई बात नहीं, इमोशन्स को कंट्रोल करना भी आप को आ जायेगा| और दादा, आज तो अभी दूसरा ही दिन है, हां आपका रनरेट मस्त है, पर अभी आपको बहुत सी मंज़िले पार करनी है, और कल आपने ही मुझे यह कहा था याद है?” अक्षय ने शांतनु को याद दिलाया|

“येस, पर ये तो बता की अगर वो मुझे पूछे की कल डिनर पर कहाँ जाना है तो? और अगर उसके दिल में कोई एक रेस्तरां पहेले से ही हो तो वो मैं कैसे जानूँ? शांतनु बिलकुल अक्षय का विद्यार्थी बन चुका था|

“एक काम करिये, अगर भाभी का कोल आये तो पहेले उनकी चोइस पूछ लीजियेगा, अगर वो नहीं बता पाती तो फिर आप अपनी चोइस का कोई रेस्तरां बता दीजियेगा, ओके?” अक्षय ने उपाय बताया|

“हमम.. गुड आइडिया, मैं वैसा ही करूँगा, चल अब निकलें?” शांतनु और अक्षय अब पार्किंग में आ गये थे|

बात खत्म कर दोनों ने एक दुसरे को ‘आवजो’ कह कर अपनी अपनी बाइक्स पर अपने घर की ओर चल पड़े|

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घर पहुँचते ही शांतनु ने ज्वलंतभाई से थोड़ी बहुत बातें की और नहाने चला गया| फ्रेश होने के बाद दोनों बाप बेटे खाना खाने बेठे| महाराज ने आज सेव-उसल बनाया था जो शांतनु का सबसे प्रिय भोजन था| ज्वंलतभाई को भी ये बात पता थी इस लिये वो हर दस-पन्द्रह दिनों में एक बार महाराज के पास सेव-उसल ज़रूर बनवाते|

“पप्पा, महाराज को मेरी ओर से कल एक डेयरी मिल्क दे दीजियेगा प्लीज़....एक दम मस्स्स्त बने हैं|” शांतनु की ख़ुशी उसके लब्जों में बिलकुल सही बयाँ हो रही थी|

अचानक ही शांतनु के मोबाईल पर एस एम एस की टोन बजी| कभी कभी मुखोपाध्याय किसी बड़ी सेल्स लीड शांतनु को घर आने के बाद भी एस एम एस पर फोरवर्ड करता और उसको परेशान करता|

“पर वो तो कोलकाता है, वहां से सेल्स लीड भेजी होगी क्या? बड़ा वर्कोहोलिक है यार?” सोचते सोचते शांतनु अपनी उँगलियाँ चाटते हुए खड़ा हुआ और सामने सोफ़े के पास पड़े टेबल पर रखा अपना सैलफोन उठाया और अपनी जगह वापिस आया और बैठ गया|

मेसेज कोई अनजान नंबर से था| शांतनु ने मेसेज ओपन किया जिस पर सिर्फ ‘हाई’ लिखा था| शांतनु को आश्चर्य हुआ की रात को नौ बजे हाई हेल्लो करने के लिये कौन उतावला हो रहा है और वो भी ऐसा कोई जिसका नंबर भी उसके लिये अनजान था?

“हाई, बट मे आई नो व्हू इज़ दिस?” शांतनु ने मेसेज का जवाब दिया और फ़िर से खाने लगा|

फ़िर से मोबाइल पर मेसेज ब्लिंक हुआ, इस बार शांतनु ने तुरंत ही फ़ोन उठाया और मेसेज ओपन किया|

“बस चंद घंटो में ही मुझे भूल गये? नंबर सेव नहीं किया ना? दिस इज़ अनु|” मेसेज पढ़ते ही शांतनु की आंखे खुली की खुली रह गई, उसने ख़ुद को ही दो चार गालियाँ दे दी की पूरे दिन में उसने अनुश्री का नंबर सेव क्यूँ नहीं किया??

क्रमश: