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गणपति बप्पा!

#MDG नमस्ते। बालकथा प्रतियोगिता के लिए मेरी 'गणपति बप्पा' यह कथा भेज रहा हूँ। प्रतियोगिता मे सम्मिलित किजीए। (नागेश सू. शेवालकर, थेरगाव, पुणे महाराष्ट्र )

*********************************************************** गणपति बप्पा। ***************************************************** **

पुणे! महाराष्ट्र राज्य का एक बडा शहर । इस शहर के लिए मराठी भाषा मे एक कहावत है, 'पुणे तिथे काय उणे!' वास्तव मे यह एक ऐसा शहर है, जहाँ आप को किसी भी चीज कि कमी महसुस नही होती। पुणे शहर को 'पुण्यनगरी' के नाम से जाना जाता है और साथ मे इसे 'विद्यानगरी' भी कहा जाता है। इसी विद्या का दैवत है गणपति... गणपति बप्पा। उन दिनों पुणे नगरी मे बप्पा के आगमन कि तैयारी बडी धुमधामसे चल रही थी। शहर के गली गली, घर घर मे बप्पा के स्वागत कि तैयारी बडे हर्षोल्लास, उत्साह से हो रही थी। छोटे बडे सभी लोगोंं के तन मन मे स्फूर्ती, आनंद कि, लहरे दौड रही थी।
शहर मे बहुत सारी पाठशालाएँ थी। इन मे से कई पाठशालाओं मे छात्रों को मिट्टी से गणपति कि, मूरत बनाने को कहा गया था। वह एक बडी पाठशाला थी। इस पाठशाला के सभी छात्र पाठशाला के बडे मैदान पर इकहट्ठे हुए थे। वे सारे छात्र अपने अपने अध्यापकों के मदद से छोटी-बडी मुर्ती बनाने मे लगे हुए थे। उन का जोश, उत्साह देखने बनता था। वैसे ही बप्पा हर सभी को बहुत प्यारे होते है। जब तक गणपति बप्पा घर मे रहते है, सभी लोग बडे आदर, विनम्रता से उन कि पूजा करते है। कुछ समय बाद उस पाठशाला कि प्रधान अध्यापिका मैदान पर बनाये गए एक स्थाई मंच पर आयी। उन्हे देख कर कुछ बच्चे खामोश हो गए। उन के साथ एक अन्य व्यक्ति भी मंच पर पधारें। उन्हे देख कर सारे छात्र आश्चर्य मे पड गए। क्योंकि वह व्यक्ति कोई साधारण व्यक्ति नही था।वह गणपति बप्पा थे। चौक गए ना? कुछ ऐसी ही स्थिती बच्चों कि हुई थी। सज धज कर बप्पा मंच पर आए। रेशम के वस्त्र, सर पर पगडी पहने हुए बप्पा का चेहरा हाथी के चेहरे जैसा था, जो उन कि खास पहचान थी। गर्दन से नीचे का पूरा शरीर मानवीय था। बच्चे जैसा उन का कद था और बच्चो जैसी मुसकान चेहरे पर लेकर हाथ हिलाकर वे बच्चों को आशीर्वाद दे रह थे। ऐसी ही स्थिति मे बाल गणेश मंच कि चारों ओर परिक्रमा करने के बाद जैसे ही मंच पर एक कोने मे सजे डायस कि ओर बढने लगे वैसे हि बच्चे जोर जोर से जयघोष करने लगे....
' गणपति बप्पा ...... मोरया..... '
बप्पा डायस पर पहूँचे। सामने रखे माइक के पास जाकर वह बडे ही मधुर स्वर मे बोले,
"प्यारे बच्चों, आप सभी को ढेर सारा आशीर्वाद। कैसे हो? मजे मे हो ना? कोई तकलिफ तो नहीं? सदा मुस्करातें रहो। यह मुस्कान दिल दिमाग, शरीर सब को स्वस्थ और तरोताजा रखती है। शरीर मे हर्ष कि लहरें उत्पन्न करती है। मुस्कराता हुआ बच्चा हो या बुढा सभी को अच्छा लगता है।कोई बात जो आप के सोच के विरुद्ध हो तो रोना नही। मुस्करातें हुए उसे फिर से प्राप्त करने के लिए प्रयास करेंं। कभी भी प्रयत्न करने से घबराना नही या पिछे हटना नहीं। ऐसा करने से आप को यश निश्चय ही मिलेगा। यह प्रयत्न ही आप को आप के सपनों कि ओर, ध्येय कि ओर ले जाते है। बच्चों आप सब सपने देखते है जैसे मै ये बनूंगा, ओ बनूंगा, मुझे ऐसा करना है, वैसा करना है लेकिन केवल सपने देखने से कुछ हासिल नही होता। उसे पाने के लिए प्रयत्न करना जरुरी होता है। अपनी मंजिल पाने के लिए बहुत कष्ट सहने पडते है। लेकिन जो हिंमत कर के आगे बढता है, वह निश्चय ही कामयाब होता है। कामयाबी उस के पैर चूमती है। पहले अपना ध्येय निश्चित करो। फिर रास्ता अपने आप मिलता है। 'अपयश यश कि पहली सीढी होती है।' यह समझ कर आगे चलो। यह विश्व आप का है।
मित्रों, एक बात आप को मालुम है या नही यह मै नही जानता। मेरा सर मेरे हि पिताजी ने गुस्से मे आकर मेरे बचपन मे ही काट दिया था। आप को मालुम है, मेरे माता पिता कौन है? माता पार्वती मेरी माँ है और शंकर भगवान मेरे पिता है। एक दिन माताजी नहाने जा रही थी। मै बिलकूल छोटा था। पिताश्री ध्यान करने के लिए कही दूर गए हुए थे। माताजी ने मुझे कहा कि, वह नहाने जा रही है। किसी को भी अंदर ना छोडे। माता कि आज्ञा सर आँखों पर। मै व्दार पर खडा रहा। कुछ समय बाद प्रत्यक्ष मेरे पिता, स्वयं शंकरजी वहाँ पधारें। हमने एक दूसरे को उससे पहले कभी देखा नही था। पिता-पुत्र होकर हम हमारे बिच के नातों से अनभिज्ञ थे। जैसे हि पिताजी अंदर जाने लगे। मैने उन्हे रोका। एक नन्हे, अपरिचित बालक के रोके जाने पर पिताजी गुस्से से आगबबूला हो उठे। मै मेरे बात पर अडा था। बातो बातों मे गुस्साए हुए पिताजीने मेरा सर काट दिया।उस समय माता पार्वती वहाँ पहूंच गयी।मेरा अचेतन शरीर देख कर वह रोने लगी। उन का विलाप देख पिताश्रीने उन्हे कारण पुछा। जैसे हि पिताजी को सभी बातें मालुम हुई। उन्होने तुरंत सेवकों कि आज्ञा दी कि, जाओ, ढूंढकर जो भी नवजात बच्चा मिले, उस का सर काट कर ले आओ। सेवक ढूंढते रहें। लेकिन उन्हे कोई नन्हा सा बच्चा नही मिला। रास्ते मे उन्हे एक हाथी ने जन्म दिया बच्चा दिखा। सैनिकोंने उस नन्हे से हाथी के बच्चे का सर काट कर शंकर जी के चरणों मे अर्पन किया। उस सर को मेरे शरीर पर लगा दिया और मुझे नया जन्म दिया। बच्चों, जरा सोचों कितनी तकलिफे मैने इस रुप मे झेली होगी। कितनी यातनाऐं मुझे हुई होगी।लेकिन मैने हार नही मानी। मै चलता रहा, भागता रहा, खेलता - कुदता रहा। इतना हि नही, कई युद्धों मे भी मैने अपना सर्वस्व दिया। बच्चों, हर एक व्यक्ति के जीवन मे ऐसी मुसिबतें, तकलिफे, यातनाऐं हर पल आती रहती है। उन कि ढाल बना कर हाथ पर हाथ रख कर खामोश बैठने से कोई हल नही निकल सकता। हर एक समस्या मेरे लिए परीक्षा है, मेरे सपनों को साकार करने कि संधी है, ये मुसिबत ही मुझे मेरी लक्ष्य तक आसानी से पहूंचायेगी ऐसी सकारात्मक सोच रख कर जो जिंदगी मे आगे बढता है, वह कुछ पाता है। राह चलते सामने आए काँटों कि चिंता न करते हुए जो खुद रास्ता निकाल कर आगे बढता है, वह इन्सान हि जीवन मे तरक्की कर सकता है।
एक बात कहता हूं, हर साल आप मे से कोई एक दिन, कोई डेढ दिन, कोई तीन दिन, कोई दस - ग्यारह दिन या कोई इक्किस दिन मेरी पूजा, प्रार्थना, आराधना करते है, उससे मुझे बडा आनंद मिलता है। आप जो मुझे भेट स्वरूप देते है, वह मुझे खुब अच्छा लगता है।मेरा सबसे पसंदिदा खाना लड्डू (मोदक) आप मुझे देते, वह मुझे बहुत अच्छा लगता है। जो रुपये, गहने या अन्य कोई चीज आप उपहार के रूप मे देते है वह मुझे बहुत हि भाँता है लेकिन असली बात ये है कि जब मै यहाँ से प्रस्थान करता हूं तो साथ मे कुछ भी नही ले जाता हूँ। यहाँ के वास्तव्य मे जो प्यार मुझे आप लोगों से मिलता है, वह प्यार ही मै मेरे साथ ले जाता हूं। हाँ, मेरे सामने जो धनराशी जमा होती है, उस से आप लोग समाज के हित के लिए जो कार्यक्रम चलाते है, उस से मै प्रसन्न होता हूं। साथही आप कि कोई बात मुझे सबसे ज्यादा खुशी देती है तो वह है, आप कि भक्ती, आप कि निष्ठा। बच्चों, इस के साथ कई मेरे भक्त मेरे आगमन से लेकर मेरी विदाई तक नंगे पाँव चलने कि जो सौगंध लेते है और कितने भी कष्ट क्यों न हो, उसे निभाते है यह बात ठिक है। लेकिन मै नही इसे पसंद करता। मेरे भक्तों को कोई तकलिफ ना हो यह सोच मै हमेशा सामने रखता हूँ। बार बार आप के मूँह से मेरे गीत, मेरी स्तुति सुनने पर मै बडा प्रसन्न होता हूँ। प्रुथ्वीपर आने से मुझे ऐसे लगता है, जैसे मै मेरे मैके आया हूँ। आप का लाड प्यार मुझे मोहित करता है।
मेरे प्यारे बच्चों, लेकिन आज कल आप कि भक्ती का आप के हि शब्दों मे कहू तो एक इवेंट का रुप धारन कर रही है। बडे बडे मंडप, एक से एक बढ कर सजोए गए मंच, पुष्प और पुष्पमालाओंकि रचना यह सब कुछ देखने मे मुझे भी अच्छा लगता है। लेकिन इस के लिए आप जो चंदा जमा करते हो , यह बात मुझे पसंद नही । हर कोई जो चंदा देता है, वह खुशी से चंदा नही देता। मजबूरन दिया गया चंदा मुझे काफि दुख पहूंचाता है। कई लोग ऐसे होते है कि, जिन से जबरन चंदा लेने के बाद उन को कुछ आर्थिक कठिनाईयों का सामना करना पडता है। एक बात और, चंदे के रुप मे जो बडी रकम जमा होती है, उसे देख कर कई लोगों कि नियत बदलती है।फिर वह रकम कुछ दुष्कर्मों को जनम देती है। मेरे सामने जो नाच गाने होते है, शोर शराबा होता है, पिने पिलाने कि बात होती है, जुआ खेला जाता है वह मुझे कतई अच्छा नही लगता, बडा दुख होता है। आप जितने साधे और सीधे तरिकों से मेरी पुजा करोगे मै उतना ही खुश और प्रसन्न होता हूँ। जो भक्ती एक दिया जलाने मे होती है, वह भक्ती लाइट कि सैकडो मालाएँ लगाने मे नही होती। इसे भक्ती नही प्रदर्शन माना जाता है जो कि अनावश्यक होता है। वह लाइट मालाएँ, उन कि रोशनी आप को अच्छी लगती हो, लेकिन उस से मुझे घबराहट होती है। उस कि गरमी से मै परेशान होता हूँ। ना सो पाता हूँ, ना जाग पाता हूँ। आधी आधी रात तक आप के जो गाने बजते है ना, उस का आवाज मुझे तो परेशान करता हि है लेकिन उस गली के घरों मे जो बुढे लोग रहते है, छोटे बच्चे रहते है, साथ ही मे कुछ बीमार लोग रहते है, उन सब कि नींद उड जाती है। मेरे आने से होनेवाले शोरशराबे के कारण अगर किसी को कोई दुख होता है तो बच्चों, उस कि सब से बडी चोट मुझे पहूंचाती है। मै खुद को ही अपराधी मानता हूँ।
कई गाँवों मे, शहरों मे गणपति मंडल मे स्पर्धा आयोजित कि जाती है। बच्चों, आप कितने भी मंडल निर्माण किजीए, कितनी भी मूर्तियाँ लगवायें मै सब जगह होने के बावजूद एक ही हूँ। मुझे अलग अलग रुप देकर, सज धज कर पेश करा के मुझ मे ही स्पर्धा लगाने से आपको आनंद मिलता है। स्वयं कि स्पर्धा स्वयं से होना यह एक अलग बात है। लेकिन कोई भी स्पर्धा जब विक्रुत रुप धारन कर लेती है, स्पर्धा मे जब झगडे होते है, खुन खराबा होता है यह बातें मुझे बिलकुल पसंद नही है। ये सभी प्रकारों से मै सख्त नाराज होता हूँ। आप सभी के मूंह से मेरे गीत सुन कर मुझे खुब प्रसन्नता मिलती है। आप सभी मेरे भक्त है, जो छह साल से पंद्रह साल के हो। कल के आप नागरिक हो। इस देश का भविष्य हो। देश का भाग्य आप बनवाने वाले हो, इसलिए आप से ये कुछ बाते कह रहा हूँ। प्यारे बच्चों, मुरत मिट्टी से बनी हो, पत्थर से बनी हो, धातु से बनी हो या प्लँस्टर पँरीस से बनी हो सभी मुर्तियाँ मेरा ही रुप है।जो मुर्तियाँ कुछ दिन बाद विसर्जित करना हो वह पानी मे गिरते ही पिघलना शुरु होना चाहिए। मिट्टी से बनी कितनी भी बडी मूरत क्यों न हो पानी के संपर्क मे आते ही कुछ ही पलों मे भंग होना शुरु हो जाती है। इस से एक फायदा यह होता है कि, मेरा जो अस्थायी रुप है, वह नष्ट हो जाता है। लेकिन जो मुर्तियाँ प्लँस्टर ऑफ पँरीस कि या अन्य कोई चीज से बनाई जाती है, वह ना तो भंग होती है और ना ही जल को शुद्ध बनाती है।मुर्तियों के साथ कई लोग मुझे पहनाई गयी मालाएँ, वस्त्र भी पानी मे डाल देते है जो नष्ट नही हो सकते। जिस वजहसे पानी काफी मात्रा मे अशुद्ध हो जाता है। जिसे पिने से मानव ही नही बल्कि जानवर भी बीमार हो जाते है। इसलिए कुछ सालों से मिट्टी से बनी मुर्तियाँ बनाने कि फिर से शुरूआत हो
चुकी है। लेकिन यह बात बहुत कम देखने को मिलती है।
मै आप के अध्यापक-अध्यापिका इन सब का स्वागत करता हूं, अभिनंदन करते हुए उन्हे आशीर्वाद भी देता हूं कि उन्होने 'मिट्टी से बनाओ मुरत' का केवल नारा ही नही दिया, बल्कि इसे घर घर पहूंचाने के लिए इस कार्यशाला का आयोजन किया। बच्चों, आप सभी ने जो अपने हाथों से यह मुर्तियाँ बनाई है, यह बात मुझे बहुत पसंद आयी। मुर्ती बनाने के समय आप के चेहरों पर जो आनंद, जो समाधान मुझे दिखाई दे रहा है, यह मेरे लिए बडा अच्छा प्रसाद है। आप ने अपने हाथों से बनाई यह मुर्तियाँ अपने अपने घर ले जाकर उस कि पुजा किजीए। बाजार से बडी बडी मुर्तियाँ नही लानी है ऐसी बात अपने घरवालों से कहो और देखो वे कितने खुश होते है। आप ने स्वयं बनाई मुर्तीयाँ उन कि दिल को छू जायेगी। आप के घरवाले बडे आनंद से इन्ही मुर्तियों कि पुजा करेंगे।
बच्चों, मुझे इस बात कि बडी प्रसन्नता है कि, आप कि पाठशाला कि छात्राऐं भी छात्रों के साथ यह काम कर रही है। बेटियों, हमे आप पर नाज है। आप हर क्षेत्र मे लडकों के कंधों से कंधा मिला कर काम कर रही है। ऐसा कोई क्षेत्र शायद ही बचा हो जिस क्षेत्र मे लडकियों ने काम ना किया हो। जब मेरे आगमन कि और बिदाई कि रैलियाँ निकलती उन मे लडकियाँ भी शामिल होती है। बडे जोर शोर के साथ कई वाद्य भी बजाती है। ढोल बजाना इतना आसान नही है। इसे बजाने के लिए बहुत शारीरिक शक्ती लगती है। लेकिन लडकियाँ यह कार्य भी बखुबी करती है। एक बात आप से कहना चाहता हूं, मुझे लडकियों से बहुत उम्मिदें हैं। कहते है, एक बेटी पढेगी तो वो दो घरों को आगे ले जाएगी। एक मैका और दूसरा उस का ससूराल। जब लडकियाँ खूब पढने लगेगी तो देश का विकास उँचाई को छुएगा। बच्चों, आप के पूर्व प्रधानमंत्री शास्त्रीजी का एक नारा था, 'जय जवान, जय किसान।' आप के अन्य एक प्रधानमंत्री अटलजी ने इस नारे को आगे बढाया। उन्होने कहा, 'जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान।' जवान, किसान और विज्ञान जहाँ एक साथ काम करते है, उस देश कि तरक्की आसमान को छूती है। जवान देश कि सीमाऐं और देशवासियों कि रक्षा करता है। इसलिए किसान खेत मे निर्भयता के साथ अनाज का उत्पाद करता है। जिस अनाज को खाने से आप कि शारीरिक क्षमता तो बढता ही है साथही आप कि मानसिक अवस्था भी सुदृढ होती है।आप का मनोबल उँचा होता है। जब आप कि मानसिक अवस्था अच्छी होती है तो फिर विज्ञान का सहारा लेकर आप हर क्षेत्र मे कामयाबी पाते है। आज आप का देश 'जवान, किसान और विज्ञान' इन सभी क्षेत्रों मे बहुत आगे निकल गया है।
आप के पाठशाला का सारा व्यवहार, व्यवस्थापन और आप बच्चों कि होशियारी, लगन देख कर मै बहुत ही खुश हूं। मै आप के अध्यापकों से एक बात कहता हूं कि, आप सभी मिलकर सारे बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दे। जिस के कारण ये सारे बच्चे देश के सब से अच्छे नागरिक बने। आप का तिरंगा सारे विश्व मे बडी उंचाई पर और बडी शान के साथ डौलता हूआ नजर आए।...." कहते हुए गणपति बप्पा डायस छोड कर सभी छात्रों को हाथ हिलाते हुए, आशीर्वाद देते हुए जैसे हि निकले छात्रों ने तालियाँ बजाने शुरु कि। जिस कि गुंंज बहुत दूर तक और बहुत देर तक सुनाई दे रही थी।
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नागेश सू. शेवालकर,
११०, वर्धमान वाटिका फेज १,
क्रांतिवीरनगर, लेन ०२,
संचेती पाठशाला परिसर,
थेरगाव, पुणे (महाराष्ट्र)411033
9423139071.

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