Uttara devi - Ek sangarsh books and stories free download online pdf in Hindi

उत्तरा देवी : एक संघर्ष

उत्तरा देवी : एक संघर्ष
परिचय
नमस्कार। उत्तरा देवी - यह एक काल्पनिक कथा है। इसका किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर नाम, स्थल, वस्तु या व्यक्ति से समानता पाई जाती है तो यह केवल संयोग मात्र है। हमारा उद्देश कभी भी किसी व्यक्ति या समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। हमारा उद्देश्य केवल अपने विचार आपके समक्ष व्यक्त करना है।
अब बात करते हैं कहानी की। यह परिचय इसलिए लिखना पड़ रहा है क्योंकि कहानी श एपिसोड नोवेल होगी । एपिसोड की संख्या अभी निर्धारित नहीं है परंतु हर एक एपिसोड आपको पूर्ण मनोरंजन और जानकारी देगा ऐसा मेरा मानना है। यह एक साप्ताहिक अंकमाला स्वरुप कहानी होगी जिसका अंक हर मंगलशार को प्रसारित होगा। यह कहानी पश्चिम बंगाल में स्थित एक जमीदार परिवार की है। कहानी का समयकाल अंग्रेजों के जमाने का है जिसमें उस समय की समाज-व्यवस्था, शिक्षण, अंग्रेजी कल्चर और भारतीय संस्कृति की विचारधारा, परिवारों पर असर यह सब दिखाने का प्रयास किया गया है।
अब बात करते हैं कहानी की नायिका उत्तरा देवी की। उत्तरा देवी एक जमीदार परिवार की बहू है। जिनकी गणना बंगाल के श्रीमंत परिवारों में होती है। यह उस समय की बात है जब अंग्रेजी शिक्षण और अंग्रेजी संस्कृति भारतीय संस्कृति पर प्रभाव डालने की शुरुआत हो रही थी। उस समय परिवार में कैसा माहौल था, परिवार की औरतों पर क्या असर थी, उनकी क्या प्रतिक्रिया थी यह सब उत्तरा देवी के माध्यम से दिखाने की कोशिश की गई है। उत्तरा देवी अपने आप में एक अनोखी महिला है जो अपने निर्णय किसी पर थोपती नहीं और अपने परिवार के नियमों का भी सम्मान करती है। लेकिन अपने सामान के साथ। उत्तरा देवी अपने सिद्धांतों की बहुत रुढीचुस्त पालनकर्त्ता है। वह मानती है कि भारतीय संस्कृति यूरोपियन संस्कृति से कहीं ज्यादा अच्छी है और यही साबित करने में लगी रहती है। इसमें उसका परिवार उसकी मदद करता है या फिर उसके खिलाफ होता है, अगर होता है तो वह संघर्ष कैसा होता है और अगर मदद करते हैं तो वह किस तरह से करते हैं यह सब इस कहानी में दिखाया गया है।
अब बात करते हैं अन्य पात्रो के बारे में। जिनमे सबसे मुख्य पात्र है विशेष चंद्र बनर्जी। उनके अपरांत उनकी तीन सुपुत्र, कुछ अंग्रेज अधिकारी एवं कई अन्य पात्र भी इस कहानी में शामिल है। सबका अपना-अपना महत्व है। कहानी में इतिहास के कुछ संदर्भ भी लिए गए हैं। ताकि वाचक को इतिहास की जानकारी मिले। कहानी मे शुद्ध हिंदी का प्रयोग किया गया है। इसका मुख्य उद्देश युवा पीढ़ी को यही बताना है कि हिंदी भाषा उतनी भी कठिन नहीं है जितनी कि आप समझते हैं।
परिचय के अंत में तो बस इतना ही कहना है की यह कहानी सिर्फ कहानी नहीं एक विचारधारा है। और शायद आज के समय में भी यह बहुत जरूरी है। मुझे आशा है कि जब आप इसे पड़ेंगे तब आप उस विचारधारा को महसूस भी कर पाएंगे। बल्कि आज के समय मे एसे विचार एवं संस्कार की कया महत्ता या कहें आवश्यक्ता है ये समझ पाएंगे। आशा करता हूं कि आपको यह कहानी पसंद आएगी। धन्यवाद।
- कुलदीपसिंह वाघेला
उत्तरा देवी : एक संघर्ष
1813
" प्रकाश - जो धीरे धीरे जिंदगी मेको अंधेरों से रोशनी की ओर ले जाए वह प्रकाश । कभी-कभी प्रश्न भी होता है कि क्या यह प्रकाश है या फिर हमारा एक आभास मात्र है पर इस प्रश्न का उत्तर शायद ही किसी व्यक्ति को मिले। फिर कोई उत्कृष्ट भक्त हो या कोई सामान्य मानवी। इस प्रश्न का उत्तर तो किसी भी भेदभाव के बिना मिल सकता है परंतु इसे ढूंढना बहुत मुश्किल है श। उससे भी मुश्किल है इस को पहचानना। कई बार हमारे समक्ष ऐसी परिस्थितियां आ जाती है जब हमें सत्य का ज्ञान होते हुए भी हम असत्य की तरफ चले जाते हैं। शायद हमारे मन का आभास है या हमारी मनोस्थिति है जो हमें उस ओर ले जाती है। तो हमें सिर्फ इतना ही ध्यान रखना है कि हम अपने मन पर काबू रखें और अपना जीवन सुख रूप व्यतीत करें । "
यह शब्द थे उस इंसान के इसने अपनी जिंदगी कई संघर्ष और सुख के साथ बिताई है। हालांकि यह दोनों शायद ही किसी के जीवन में एक साथ मिल पाए परंतु यह इंसान शायद प्रभु के अपवादरुप व्यक्तियों में आता था। आवाज में लगता हुआ अनुभव, चेहरे पे अजीब सी सादगी के साथ उम्र का एहसास कराती हुई झूर्रीयां और शरीर में एक अजब सा तेज - यह इंसान थे बंगाल की नामी संविधान में से एक विशेष चंद्र बेनर्जी ।
ऐसी प्रार्थना करने के पश्चात जमीदार साहब अपने आसन पर से उठे और भोजन के लिए चल दिए। यह खानदान का रिवाज था या कहिए की आदत थी कि घर का कोई एक व्यक्ति भोजन से पूर्व ऐसी प्रार्थना करके समग्र परिवार को एक संदेश देता। यह आदत अच्छी भी थी क्योंकि जब परिवार से दूर होने की भावना प्रबल होने लगे तब ऐसे मिलकर बेठने से-बातें करने से परिवार संगठित और एकरूप बनता है। और यह तो वैसे भी बंगाल के अमीर खानदानों में से एक है। इनकी गणना अंग्रेज भी बहुत अच्छे और सुदृढ़ मनोबल वाले व्यक्तियों में करते हैं। बंगाल में जो कुछ गिने-चुने(स्वतंत्र) अमीर या जमीदार है उनमें से यह उच्च कोटि के माने जाते हैं। इसका कारण भी शायद यह प्रार्थना और उनके परिवार की एकता ही है वरना इस समय तो हिंदू संस्कृति और यूरोपीय संस्कृति के बीच में टकराव की थोड़ी-थोड़ी मगर शुरुआत तो हो ही चुकी है। ऐसे में परिवार को एकत्र रखना शायद थोड़ा सा कठिन हो चला है। वैसे भी जब दो विभिन्न विचारधाराओं की लड़ाई होती है तब थोड़ी सी आग तो लगती ही है। यही कारण है कि शायद इस समय ऐसी प्रार्थना का महत्व बढ़ गया है।
इस खानदान का इतिहास भी कुछ कम नहीं है। जब मुर्शिद अली खान दिल्ली से यहां बंगाल में आए तब उनके साथ कुछ दीवान और कुछ जमीदार बंगाल में आए थे। उनमें इस खानदान के पूर्वज भी थे। इन्होंने यहां अपनी समझदारी और व्यवहार कुशलता से अपना व्यापार बढ़ाना शुरू किया। सिराजुद्दौला के समय मे जब कई लोग अंग्रेज के साथ मिल गए थे तब भी यह लोग नवाब के साथ खड़े थे। हालांकि प्रत्यक्ष रुप से यह कभी जाहिर नज्ञी हुए पर परोक्ष रूप से हमेशा यह हिंदुस्तान और नवाबों के साथ खड़े रहे। फिर भी अंग्रेजों के साथ दुश्मनी नहीं हुई जिसका मुख्य कारण है उनकी व्यवहार कुशलता और उनके नियम क्योंकि यह किसी के रास्ते में आते नहीं केवल अपना कार्य करते हैं और अपनी संस्कृति को बचाए रखते हैं। लेकिन अब समय बदल रहा है, पीढ़ियां बदल रही है। सिराजुद्दौला के समय के केवल एक बुझुर्ग है इस परिवार मे। नई पीढ़ी नई सोच वाली है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि वह बदल गई है परंतु वक्त के साथ जितने प्रमाण में परिवर्तन आते हैं उतने तै आ गए है। परिवार में सबसे बुजुर्ग व्यक्ति है विशेष चंद्र बेनर्जी। उनके तीन बेटे हैं जयंत राम, दिवाकर राय, और शंकर राय।
..... to be continued

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