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डिअर क्रश - दो लम्हे

सबकी परीक्षाएं हो चुकी थी, कॉलेज का आखिरी दिन...आखिरी प्रेक्टिकल खत्म होने के बाद सभी एक दूसरे को याद करने ....मिलते रहने के वादे कर रहे थे।मैं उसके ओर मेरे सुंदर ख्वाब बुनने में लगा हुआ था।दुआ कुबूल हुई और वो सामने से ही आ गई।मुझे लगा आज वो मेरा हाथ थाम कर बैठेगी पर बड़ी घबराई सी आई वो।
"हम हमेशा साथ ही रहेंगे ना.." उसकी आंखें भर आईं थी।
"हाँ ....हमेशा.." मैंने उसका हाथ थामकर पास बैठाते हुए कहा । और पास बैठते ही वो मुझसे लिपट गई ।
होने को तो वो बिल्कुल शान्त थी,,पर उसके आंसू मेरे दिल को भेद रहे थे।
मैंने सोचा अब मिलने का बहाना जो खत्म हो गया है इसलिए थोड़ी भावुक हो गई है।फिर चुप्पी तोड़ते हुए बोली
"हम यहां से कहीं दूर चले जाते हैं... हमेशा साथ रहेंगे..एक साथ" उसकी बात सुनकर आंखे मेरी भी छलक आई और मैने कहा...

"अपनो को छोड़कर...उनसे मुँह मोड़कर..." उसका चेहरा थाम के मेरी तरफ करके बोला "मैं कभी ऐसा कोई काम नहीं करूंगा जिससे मेरे या तुम्हारे घर मे किसी का भी सिर शर्म से झुके.... तुम इतनी जल्दी कैसे टूट सकती हो..एक महीने में मेरा रिजल्ट आ जायेगा।यकीन मानो बहुत जल्द राजस्थान पुलिस जॉइन करने वाला हूं... अपने प्यार और मेहनत पर पूरा भरोसा है मुझे...मुझ पर यकीन रखो..हम साथ रहेंगे और सबके साथ रहेंगे....सबकी मर्जी से..थोड़ा सा सब्र रखना होगा बस।" उसने अपनी आंखें कस के बन्द की और फिर से लिपट गई। लगभग 30 मिनट बाद उसके घर से फोन आया और बहुत समझाबुझा के उसको मैने घर भेजा।उसके बाद मैं भी ट्रेन से घर आ गया।
पूरे दिन उसी की बाते याद आ रही थी। रात को 10 बजे मेरे मोबाइल में बीप की आवाज सुनी...चाहे मेसेज किसी का भी आये...इस बीप से मेरी धड़कने बढ़ जाती थी और लगता था कि ये msg उसी का है।वो मेसेज सच मे उसी का था।
""Ankit me janti hu ki tum mujhe maaf ni kr paoge . Pr sch yhi h ki tumhe mere bin jina sikh lena chahiye.
Tumhari bhut yaad ayegi.
Bye.""

इस मैसेज को पढ़कर हजारों वाल्ट का करंट सा लगा।मैंने तुरन्त फोन किया पर फोन बंद था।उस बेचैनी में मेरे दिल ने यही गाया




बिन तेरे


मत पूछ हमको,
कैसे जियें तेरे बिन,
बिन तेरे हम तो मर जायेंगे।
मर जायेंगे इस जहाँ में लेकिन,
मर जायेंगे इस जहाँ में लेकिन,
उस जहाँ में तुझको अपना बनाएंगे।


बिन तेरे अब तो ,
खाना ना  सोना है,
है सोना अब तो आँसू बिछोना है।
आँसू बिछोना है सूख जाता लेकिन,
आँसू बिछोना है सूख जाता लेकिन,,
इस दिल को अब दर्द बहाना है।

क्या कभी जुदा हुई,
गुलाबों से खुशबू,
खुशबू से गुलाब का होना न होना है।
है होना अगर गुलाब का खुशबू बिन,
है होना अगर गुलाब का खुशबू बिन,
वो गुलाब तो फिर कांटो का गहना है।

मत पूछ हमको,
कैसे जियें तेरे बिन,
बिन तेरे हम तो मर जायेंगे,
मर जायेंगे इस जहाँ में लेकिन,
मर जायेंगे इस जहाँ में लेकिन,
उस जहाँ में तुझको अपना बनाएंगे।

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Ankit Maharshi 


Aaj kya ho gya tumhe... Tum esi bate kyo kr rhi ho ,  मैंने उसे रिप्लाई किआ पर डिलीवरी रिपोर्ट नहीं आयी।बार बार कोशिशें की, हार कर दुबारा फोन भी किया
The number you dial is currently switch off please call again later. ....उसका फेसबुक एकाउंट भी बंद हो चुका था।

नींद तो रातभर आंखों से नदारद थी, पर आंसू उसकी कमी को पूरा कर रहे थे।सुबह की पहली ट्रैन पकड़ कर उसके शहर,,,,उसके घर पहुंचा।आज धड़कन उछल उछल कर उसके होने की गवाही नहीं दे रही थी,,,मानो थम सी गई हो।घर पे ताला लगा था और सन्नाटा पसरा था।सामने वाली चाय दुकान पर पूछा,"अंकल जी ...कहाँ गए ये सब??"
चाय बनाते हुए उन अंकल ने कहा
"अरे इन्होंने तो एक महीने पहले ही मकान बेच दिया था, बस बच्चों की परीक्षा होने के चलते रुके हुए थे।कल परीक्षा खत्म हुई और अब पूरा परिवार नेपाल चला गया।वहां कोई बिजनेस शुरू किया है।"
मुझे याद नहीं कब तक मैं गलियों में आँसू पोंछता भटकता रहा।घर से बार बार फोन आ रहे थे, ओर खुद को सम्भालता हुआ शाम की ट्रेन पकड़ घर रवाना हो गया।ट्रैन में सज्जन थे एक...मुझे अपने पास बिठाया...एक किताब पढ़ रहे थे..."प्रेम पंथ एसो कठिन" पता नही कैसे उसपे नजर गई,,,अब सबकुछ भूलकर उसको पढ़ने में लग गया,,, उन्होंने वो किताब मुझे थमाई ओर कहा "एक प्रवचन पूरा पढ़ना" उस किताब को पढ़कर एक अलग ही शांति, भावशून्यता मिली थी,,,सुकून भर गया था मुझमे।घर आकर खाना खा के चूपचाप सो गया।
इसके बाद कुछ दिन ओशो साहित्य पढ़कर ...उनके प्रवचन सुनकर बिताए।फिर तय किया,,,उसका पीछा कभी नहीं करूंगा,,पर अगर कभी मिली तो एक सवाल जरूर करूँगा "ऐसा क्या था कि तुम बिना कुछ बताए मुझे अकेला छोड़ गई??"

Chemistry बेहद पसंद थी उसे, और मुझे उतनी ही नापसंद।पर अब chemistry पढ़कर ऐसा लगता है,, मानो उसी की आंखे पढ़ रहा हूं।पर समझ में न तो वो आयी और ना ही chemistry.
सरकारी नोकरियों से कोफ़्त हो चुकी थी मुझे.. पर chemistry ओर उसके लिए  महोब्बत बढ़ती गई।

5 साल बाद।
अप्रैल 29 - 2018 
सांवलिया सेठ मन्दिर।
भादसोड़ा, चित्तौड़गढ़।

"कमीनो ...!!इतनी देर कहाँ मर गए थे सब के सब" मैने अपने चारों दोस्तो से पूछा जिनके साथ बिना किसी प्लान के ही सुबह 3 बजे उठकर 7 घण्टे के सफर के बाद यहां आया था।
"भाई सुसु करने के लिये भी तेरी परमिशन लें??" एक ने जवाब दिया।
 "मुझे भी लगी है,, कहाँ कर के आये??" उन चारों भक्तो ने इशारे से बाथरूम दिखाया और मैं चुपचाप उधर खिसक लिया।बाथरूम से बाहर निकलते ही सामने चबूतरे पर बड़ा सा वाटर कूलर लगा था।कुछ श्रद्धालु पानी पी रहे थे। तपती दुपहरी में खुद को रोक न पाया और मैं भी वहीं चला गया।जैसे ही नल खोलकर हाथों में आये ठंडे पानी की पहली घूंट ली

"अंकित...अंकित ...!!! कहाँ जा रहे हो रुको...रुको भी ना...कितनी धूप है "

वो पहली घूंट मानो अमृत की थी,, तपती धूप में आने वाली ठंडी हवा के झोंको से कंपकपी सी छूट रही थी,,जैसे आज पूरा सावन बरस गया हो मुझपे...ये आवाज उसी की थी,,, रोज सपनो में जिसे सुनता हूँ,,, ये आवाज वही थी। होश जैसे छीन से रहे थे...धड़कन आज फिर वेसे ही उछल रही थी...होठ फड़फड़ा से रहे थे,,मुस्कुरा रहे थे या कुछ और,, मैं नहीं जानता,,मालूम न था 5 साल बाद वक्त फिर यूँ थमेगा। मैं  तो मानो बह रहा था,,,मैंने जैसे तैसे खुद को समेटा पीछे मुड़ा और उसे देखा जिसकी एक झलक को तरस गया था।
"हां ये वो ही थी... उतनी ही खूबसूरत और प्यारी जितनी आज से 5-6 साल पहले हुआ करती थी।उतनी ही पगली जितनी पहले थी, जब मैं उसकी किताबें उठाकर भाग जाया करता था और वो मेरे पीछे स्लो मोशन में  भागती थी,, नजारा आज भी कुछ वैसा ही था। पर उस नजारे में आज मैं नही था...वो शायद एक 2 या 3 साल का बच्चा था।"

"पर बदल चुकी थी वो... आज जीन्स टॉपर में नहीं,, साड़ी में थी वो,, पहले वो कहा करती थी उसे फंक्शन अटेंड करना पसंद नहीं है क्योंकि मेकअप में लदी हुई लड़कियां उसका कॉन्फिडेंस कम कर देती है .... ओर जब मैं कहता कि तू भी उनके बराबर हो लिया कर तब वो आंखे बड़ी बड़ी कर बोलती,,,,ये सब मेरे बस की बात नहीं.....

..
.पर आज वो किसी का भी कॉन्फिडेंस कम करने वाली सी बन के आयी थी वो। हाथों में चाइनीज डिजीटल घड़ी की जगह चूड़ियां ओर कंगन थे।चश्मे की फ्रेम ओर भी बड़ी ओर गोल हो गई थी।आंखों में शरारतें नही,  शिकायतें थी।

"पकड़ लिया...." मेरे सामने ही उसने उस बच्चे को पकड़ा।तब देखा मैंने उसके गले मे बंधा मंगलसूत्र.. सिर में हेयर बैंड नही मांग सजी थी।

"मम्मा मैं खेलूंगा...."

"इतनी धूप में थोड़ी न खेलते हैं।"

ये सब सुनते ही पूरा सम्भल चुका था मैं।मैं तुरन्त पीछे मुड़ गया और चलने लगा।किसी आदमी की आवाज आई "खेलने भी दो ,,बच्चा ही तो है"

"अंकित मेरी आँखों से एक पल भी दूर हो जाये तो मुझसे बर्दाश्त नहीं होता है"

उसकी ये बात दिल को भेद गई।
5 साल बाद मेरे बंजर नैनों से नीर निकला था।मैं चलता जा रहा था....

एक्सक्यूज़ मी प्लीज...
रुकिए...
मैं आपसे कह रही हूं,,

अंकित....अंकित..


मैं नही जानता वो मुझे कह रही थी या किसी औऱ से ...पर मैं आज किसी कीमत पर पीछे नहीं मुड़ने वाला था।अपने गीले हाथों को चेहरे पर मल के मंदिर के बाहर निकल आया।दोस्त कार में इंतज़ार कर रहे थे।
"साले सुसु कर के आया है या कुछ और...मुँह लटका क्यों है तेरा"

"बहुत भूख लगी है कमीनों,,, अगर टाइम पे खाना नही मिला तो चारों को खा जाऊंगा।" गाड़ी स्टार्ट हुई और एक बार फिर वो हो गई मुझसे दूर।मैंने अपने पुराना वाला फोन निकाला जिसमे आज भी उसका पहला msg पड़ा था ओर आखिरी भी...उसके 5 साल पुराने जो नम्बर थे जिनपे मैं अब भी कम से कम दो बार रोज फोन किया करता था, उसके हर bday पर wish किआ करता था.....उसके तीनो सालो के रोल नम्बर भी ...मैं अपना रिजल्ट देखने से पहले उसका देखा करता था...सबको हटा दिया...ओर हल्का सा हो गया।

तुम बदल गई थी मैं नहीं।अगर तुम बात करना चाहती तो मैंने तो कुछ नहीं बदला,,, मेरा फोन नम्बर, e mail , फ़ेसबुक सब के सब वही है।तुम्हे तो मेरे नम्बर भी अच्छे से याद थे।पर अगर तुम मुझ से दूर रहकर खुश हो तो यकीन मानो मेरी जिंदगी में खुशी की कोई वजह इससे बढ़कर नहीं है।मुझे तुमसे कोई शिकायत न थी और न ही कभी होगी।बस तुम्हारा इंतज़ार जरूर रहेगा।

यही क्या कम हम पर तुमने अहसान किया है,
एक पत्थर को छूकर तुमने भगवान किया है। 

प्रिय पाठकों,

   " दो लम्हे " मेरे द्वारा लिखी गई पहली प्रेम कहानी है।केसी लगी समीक्षा जरूर दे।इस कहानी में इस्तेमाल किआ गया गीत "बिन तेरे" मेरे पसनिन्दा गीतों में से है।आप मेल ,व्हाट्सएप , फेसबुक या अन्य साधन द्वारा आप उसे मेरी *(बेसुरी) आवाज में गाया हुआ मंगवा सकते हैं।पसन्द आयी तो शेयर करें।और पसन्द नहीं आयी तो सुझाव दे।
आपका 
अंकित महर्षि

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