Azad Katha - 2 - 100 books and stories free download online pdf in Hindi

आजाद-कथा - खंड 2 - 100

आजाद-कथा

(खंड - 2)

रतननाथ सरशार

अनुवाद - प्रेमचंद

प्रकरण - 100

शाहजादा हुमायूँ फर के जी उठने की खबर घर-घर मशहूर हो गई। अखबारों में जिसका जिक्र होने लगा। एक अखबार ने लिखा, जो लोग इस मामले में कुछ शक करते है उन्हें सोचना चाहिए कि खुदा के लिए किसी मुर्दे को जिला देना कोई मुश्किल बात नहीं। जब उनकी माँ और बहनों को पूरा यकीन है तो फिर शक की गुंजाइश नहीं रहती।

दूसरे अखबार ने लिखा... हम देखते हैं कि सारा जमाना दीवाना हो गया है। अगर सरकार हमारा कहना माने तो हम उसको सलाह देंगे कि सबको एक सिरे से पागलखाने भेज दे। गजब खुदा का, अच्छे-अच्छे पढ़े आदमियों को पूरा यकीन है कि हुमायूँ फर जिंदा हो गए। हम इनसे पूछते हैं, यारो, कुछ अक्ल भी रखते हो। कहीं मुर्दे भी जिंदा होते हैं? भला कोई अक्ल रखनेवाला आदमी यह बात मानेगा कि एक फकीर की दुआ से मुर्दा जी उठा। कब्र बनी की बनी ही रही ओर हुमायूँ फर बाहर मौजूद हो गए। जो लोग इस पर यकीन करते हैं उनसे ज्यादा अहमक कोई नहीं। हम चाहते हैं कि सरकार इस मामले में पूरी तहकीकात करे। बहुत मुमकिन है कि कोई आदमी शाहजादी बेगम को बहका कर हुमायूँ फर बन बैठा हो। जिसके मानी यह हैं कि वह शाहजादी बेगम की जायदाद का मालिक हो गया।

जिले के हुक्काम को भी इस मामले में शक पैदा हुआ। कलेक्टर ने पुलिस के कप्तान को बुला कर सलाह की कि हुमायूँ फर से मुलाकात की जाय। यह फैसला करके दोनों घोड़े पर सवार हुए और दन से शाहजादी बेगम के मकान पर जा पहुँचे। हुमायूँ फर के भाई ने सबसे हाथ मिलाया और इज्जत के साथ बैठाया। जनाने में खबर हुई तो शाहजादी बेगम ने कहा - हम शाह साहब के हुक्म के बगैर हुमायूँ फर को बाहर न जाने देंगे।

लेकिन जब शाह साहब से पूछा गया तो उन्होंने साफ कह दिया कि हुमायूँ फर महलसरा से बाहर नहीं निकल सकते। वह बाहर आए और मैंने अपना रास्ता लिया। हाँ, साहब को जो कुछ पूछना हो, लिख कर पूछ सकते हैं। आखिर हुमायूँ फर ने साहब के नाम पर एक रुक्का लिख कर भेजा। साहब ने अपनी जेब से हुमायूँ फर का एक पुराना खत निकाला और दोनों खतों को एक सा पाकर बोले - अब तो मुझे यकीन आ गया कि यह शाहजादा हुमायूँ फर ही हैं, मगर समझ में नहीं आता, वह फकीर क्यों उन्हें हमसे मिलने नहीं देता। आखिर उन्होंने हुमायूँ फर के भाई से पूछा, आपको खूब मालूम है कि हुमायूँ फर यही हैं? लड़का हँस कर बोला - आप को यकीन ही नहीं आता तो क्या किया जाय, आप खुद चल कर देख लीजिए।

शाहजादी बेगम ने जब देखा कि हुक्काम टाले न टलेंगे तो उन्होंने शाहजादा को एक कमरे में बैठा दिया। हुक्काम बरामदे में बैउठाए गए। साहब ने पूछा - वेल शाहजादा हुमायूँ फर, यह सब क्या बात है?

शाहजादा - खुदा के कारखाने में किसी को दखल नहीं।

साहब - आप शाहजादा हुमायूँ फर ही हैं या कोई और?

शाहजादा - क्या खूब, अब तक शक है?

साहब - हमने आपको कुछ दिया था, आपने पाया या नहीं?

शाहजादा - मुझे याद नहीं। आखिर वह कौन चीज थी?

साहब - याद कीजिए।

साहब ने हुमायूँ फर से और कई बातें पूछीं, मगर वह एक का भी जवाब न दे सके। तब तो साहब को यकीन हो गय कि यह हुमायूँ फर नहीं है।

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