चस्का किटी पार्टी का सुनीता शानू द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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चस्का किटी पार्टी का

चस्का किटी पार्टी का

चस्का कोई भी हो जब लग जाये तो समझो, आधा दिमाग तो गया। कुछ ऎसा ही हाल हुआ हमारे साथ भी। हुआ यूँ कि संपादक महोदय ने बुलाया और कहा, आजकल किटी पार्टी का चस्का महिलाओं में तेज़ी से बढ़ रहा है, आप ऎसा कीजिये कि इस विषय पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिये। और कल के अखबार में हैडिंग रहेगी “चस्का किटी पार्टी का”। अब भला ये भी कोई चस्के वाली बात है। दिल में तो आया कि कह दूं, सर आजकल तो सबको मोबाइल का चस्का है जिधर देखिये मोबाइल ही मोबाइल, वो चाहे कम्पनी का मालिक हो या कबाड़ी वाला। एक से एक महंगा फोन खरीद कर हाथ में पकड़ना शान बन गई है।और एक नहीं कई-कई फोन होते हैं सबके हाथों में। और ज्यादा ही है तो लड़कियों और महिलाओं में फैशन के प्रति उठती जागरुकता पर लिख डालूं या आप कहें तो लिखा जाये कि सबको विश्व सुंदरी दिखने का चस्का है। सुंदर दिखने के चक्कर में समय और जेब दोनों ही खाली होती जा रही है। खैर अब उन्हें क्या समझाती सम्पादक ठहरे। देखती ही रहती हूँ सासू माँ को टी वी सीरीयल का चस्का है, ससुरजी को अखबार का, बच्चों को गेम का और श्रीमान को चाय का चस्का है। यहाँ तक की कामवाली बाई को भी दूसरों की बात सुनने का ऎसा चस्का है कि पूछिये मत जब तक आयात-निर्यात न हो जाये बातों का उसे उल्टियां आने लगती है पेट में अफ़ारा और खट्टी डकारे आने लगती है। इसी लिये तो कहती हूँ चस्का आधा दिमाग तो खाली कर ही देता है। बहरहाल विषय पर केंद्रित होती हूँ, सबसे पहले मुझे किटी पार्टी का पता लगाना है। तभी चस्केबाज़ों का पता लग पायेगा। मुझे टेंशन में देख घर के सभी सदस्य किटी पार्टी की खोज खबर में लग गये। सबसे पहले अम्माजी का व्याख्यान सुनने को मिला, उनका मानना है कि आम आदमी पार्टी की तरह कोई पार्टी होगी। चुनाव के दिन हैं कुछ न कुछ तो होगा ही न। हमारे ससुर जी हर बात पर ऎनक के नीचे से झाँकते है और बात खत्म हुई नहीं की ऎनक के नीचे ही दुबक जाते हैं। बच्चों से भी मम्मी की परेशानी देखी नहीं गई, झट-पट अटकलें लगाने लगे...टिंकू बोला-.मम्मा किटी तो बिल्ली को कहते हैं, चुन्नू ने भी हाँ में हाँ मिलाई- हाँ मम्मा मैने देखा था, एक बार बहुत सारी बिल्लियाँ मिलकर चूहा खा रही थी। ये लो बच्चों ने तो अच्छा अर्थ निकाल दिया था। हाँ मासूम बच्चे इतना तो समझ ही गये थे कि किटी पार्टी कुछ लोगों के इकठ्ठे होकर कुछ खाने-पीने को बोलते होंगें। अभी बात खत्म भी नही हुई थी कि कामवाली बाई चहक कर आई। बाबा रे बाबा आप केटी पार्टी करेगा क्या मेमसाहब? केटी में न बहुत मज़ा आता है मेमसाब सब बड़ा-बड़ा लोग मिलकर खूब ऎश उड़ाता है मैने देखा था उ गुप्ता मेमसाहब के यहाँ। कमला बाई की बात पूरी हुई ही नहीं थी कि श्रीमान जी टपक पड़े। अरे क्या सुन रहा हूँ मै? तुम किटी पार्टी की ही बात कर रही हो न! क्या सचमुच तुम किटी ज्वाईन करोगी। उंह बस इन्ही की कसर थी। जबसे ऑफ़िस में मिसेज़ बत्रा आई हैं ये तो चाहते हैं मै भी उन सरीखी बन जाऊँ और साधारण लिबास छोड़ कुछ स्टाईलिश नजर आऊँ। चलिये चलते हैं मैने कहा और वो बिना कुछ पूछे ऎसे चल दिये जैसे समझ ही गये कि श्रीमति जी कहाँ चलने को बोल रही है। ऎसा होता है चस्का कि आदमी बिना-सवाल जवाब के अपनी ही रौ में चलता चला जाता है। हमे देखते ही मिसेज़ बत्रा उछल पड़ी अरे मिसेज़ शर्मा आप। मैने मुस्कुराने की बहुत कोशिश की लेकिन वो कोशिश भी हवा हो गई जब उन्होने स्टाइल से शर्मा जी की पीठ पर धम से हाथ मारा और कहा ऎ नॉटी आखिर आज तुम पकड़ में आ ही गया। मै समझ नहीं पाई कि ये कैसी पकड़ थी खैर सोचने को बहुत कुछ बाकि था। मैने शुरुआत की मुझे किटी पार्टी के विषय में जानना है। जानना नहीं है मिसेज़ बत्रा आप मेरी मिसेज़ को आपके साथ शामिल ही कर लो। मैने बहुत नानुकुर की कि जरुरत क्या है मुझे जो लिखना है इन्हीं से पूछ कर लिख डालूंगी। लेकिन श्रीमान लगे भाषण देने। एक सच्चा पत्रकार आँखों देखी लिखता है। सुनी-सुनाई नहीं। मुझे भी लगा कि जब तक मै सभी लोगों के साथ शामिल होकर नही देखूंगी अच्छे से लिख नहीं पाऊंगी।

खैर किटी पार्टी ज्वाइन हो गई। महिने की पंद्रह तारीख को मिसेज़ बत्रा के घर में होगी किटी पार्टी फिर शर्मा के और उसके बाद मेरे यहाँ। तब तक मुझे सब कुछ समझ लेना है।

आखिर किटी पार्टी में जाने का दिन आ भी गया। सुबह से ही शर्मा जी लगे हुए थे कभी चाय बनाये कभी पूछें तुम कब तैयार हो जाओगी। अरे भई किटी पार्टी में ही तो जाना है किसी की बरात में नहीं। अच्छा देखो तुम्हे बहुत अच्छा लगेगा वहाँ जाकर। मेरे लिये अपने पसंद की साड़ी अलमिरा से निकालने के बाद ही उनको तसल्ली हुई। खैर घर के काम निबटा मै झटपट तैयार हुई और मिसेज़ बत्रा के यहाँ पहुंची। एक से बढ़कर एक खूबसूरत महिलायें थी वहाँ। ऎसा नही था कि पैसे वाले घरों से थी, मिडिल क्लास की औरते भी इस तरह तैयार हुई थी कि यह समझना मुश्किल था कि किस वर्ग विशेष से हैं। मिसेज़ बत्रा भी स्लीव लेस टॉप और शार्ट्स में बहुत स्मार्ट लग रही थी। सभी की एक से एक बढ़कर ड्रेस थी। देखकर लग रहा था जैसे फैशन शो मे आई हैं। पार्टी में प्रफ़्यूम की भरमार थी । लगता था मै किसी इत्र की दुकान पर आ गई हूँ। खैर मै सिमटी सिमटाई एक कौने में दुबक गई। मिसेज़ बत्रा ने आवाज उठाई, सखियों हम लोग सारा-सारा दिन मशीन की तरह काम करते हैं। क्या थोड़ा समय भी खुद के लिये नही निकाल सकते? हमारे पति और बच्चे यहाँ तक की सास और ननद भी आराम और छुट्टी का दिन मना लेती हैं तो क्यों नही हम भी एक दिन खुद के लिये जियें? सुबह आंख खुलने से लेकर नींद से पलके बोझिल होने तक सिर्फ और सिर्फ काम ही काम..।कब मिलेगा आराम?

बात में दम था मुझे लगा सचमुच घर में सभी को अवकाश मिलता है आराम मिलता है। मेरे आराम का दिन तो कोई भी नही होता। छुट्टी के दिन पतिदेव चाय की फरमाईश करते दिखेंगे तो बच्चे कहेंगें मम्मी आज कुछ अच्छा सा बना दो। जैसे कि रोज खराब सा खाया जा रहा था। और कुछ नहीं तो संडे देखते ही ननदें टपक आती हैं क्या बतायें भाभी आराम तो मिलता ही नहीं सोचा एक दिन तो मायके में जाकर आराम कर लें। ये भी कोई बात हुई सबको अपने आराम कि पड़ी है। अच्छा सोचा श्रीमान जी ने पत्नी हूँ न उन्हें ही फ़िक्र होगी कि मेरी पत्नी भी थोड़ा इंजाय कर ले।

कुछ देर में खाने-पीने का दौर शुरू हुआ। खानें में मूंग की दाल का हलवा, मूंग की दाल की बर्फ़ी, मूंग की दाल का चिल्ला और मूंग दाल के पापड़, मूंग के आटे ही रोटी। सबकुछ मूंगमय होना रौचक लग रहा था। मुझसे रहा नही गया आखिर पूछ ही लिया मिसेज़ बत्रा क्या आपके यहाँ मूंग के खेत लगे हुए हैं? या आपकी राशन की दुकान है जो इतने महंगे भाव की मूंग को पूरे मीनू में ठूस दिया? उन्होने कहा कि ऎसा करके वो बाकी सबकी छाती पर मूंग दलती है।

धीरे-धीरे चुगलियों का दौर शुरु हुआ, सबसे पहले सास-ननद की बातें शुरू हुई... होते-होते मौहले की औरतें जो किटी पार्टी में नही आती उनकी बाते हुई। पुरुषों के घूरने की बातें भी शामिल थी चुगलियों में। बात यहाँ तक बढ़ गई कि वे एक दूसरे के पतियों को भी घूरा घूरी के मैदान में घसीट लाई। कुछ महिलायें किटी में आई महिलाओं पर छींटा कशी करने से भी बाज़ नही आई। मेरा तो पहला ही दिन था सो सबकी हमदर्दी थी कि मुझे सीखने में समय लगेगा।एक ने कहा शायद गाँव की है। अच्छा। ओह। बेचारी जाने कितने ही शब्द ऎसे मिल रहे थे जैसे पुरस्कार बट रहे हो। पहले दिन कुछ चस्के सा मुझ में नही जागा। हाँ एक बात तो अच्छी थी किटी पार्टी में कि सब मिलजुल कर सास-ननद, घर-परिवार सब पर भंड़ास निकाल लेती हैं। और फ़्री माइंड होकर घर जा पाती हैं।

घर आकर शर्मा जी को सब कुछ बताया। बहुत सोचविचार किया गया, कि उन लोगों के साथ रहना है तो खुद को बदलना तो पडेगा ही

सो मिसेज़ बत्रा के साथ पार्लर गई और बाल कटवा आई। घर में सब हँस रहे थे। बच्चे तो ताली बजाने से भी नहीं चूके,... हाहाहा मम्मी देखो क्या बन गई।जल्दी-जल्दी जींस, टी-शर्ट पहना। महंगा परफ़्यूम लगाया। इस बार हँसने की बारी कमला बाई की थी। अरे वाह मेमसाब आप तो बिल्कुल ऎ हिरोइन की माफ़िक लग रहा है। सादा सलवार सूट कोने में पड़ा रो रहा था लेकिन कमला बाई की गोद में गिरकर शान्त हो गया। कम से कम शर्मा जी को घूरा-घूरी कांड से तो निकाल ही पाऊंगी। अभी पर्स उठा निकलने ही वाली थी कि टिंकू की आवाज़ आई मम्मी कुछ अच्छा सा। और शर्मा जी ने उसे अपने पास खींच लिया।

मिसेज़ गुप्ता के यहाँ जैसे ही धमाकेदार एंट्री कि सबके दिमाग के फ़्यूज उड़ गये। देख कर हाय-हल्लो करने लगी। इतनी प्रशंसा तो कभी सुनी ही नहीं थी, पागलों की तरह घर का बाहर का काम करती रही कभी किसी ने ध्यान ही नही दिया मेरी सुंदरता पर। खैर दिल गर्व से फूला नही समा रहा था। बार-बार टेलिफ़ोन की घंटी बज रही थी आज सबको उसकी याद आ रही थी। कितना बदल गया है सब दो ही महीने में। खान-पान से लेकर उसके व्यवहार और सोसायटी में कितना परिवर्तन आ गया था। नये दोस्त बन गये हैं। जब-तब घर में होटलों में पार्टियां होने लगी। किटी पार्टी के चस्के ने घर में खाना छुड़वाकर होटलों पर निर्भर कर दिया। सुबह जिम तो शाम को क्लबों के चक्कर लगने लगे। नई ड्रेसेज़ नई ज्वैलरी सब कुछ नया-नया। सचमुच फ़ुर्सत ही नहीं है कुछ सोचने की। घर आते-आते इतनी थकान हो जाती कि एक गिलास पानी का उठाना मुश्किल हो गया। सास-ससुर को इंतजार है कि कब बहू घर लौट कर आये तो उसे बतायें आजकल उनकी बेटियों ने घर आना बंद कर दिया है। क्योंकि यहाँ आकर भी काम ही करना पड़ रहा है। बच्चे भी कुछ अच्छा सा बनने के इंतजार में हैं।

लेकिन हाँ स्टेटस बदला देखकर रिश्तेदारों के चेहरे भी मुस्कुराहट, हँसी और अपनेपन के मेक अप में नजर आने लगे। शायद इसी लिये मशहूर शायर निदा फ़ाजली साहब ने कहा होगा कि,... हर आदमी में बसते हैं दस बीस आदमी... जब भी किसी को देखना कई बार देखना।

शर्मा जी की शकल देख कर लग रहा था कि अब वे किटी पार्टी का नाम तक भूल गये हैं। जब से उनकी जेब पर डाका पड़ा है वे गुमसुम से नजर आते हैं। आखिर एक दिन जेब कराह उठी सब्र का इम्तिहान पूरा हुआ, वो चिल्लाए “कब पूरी होगी तुम्हारी स्क्रिप्ट हद हो गई है”।