तीन करोड़ का चूहा !
अशोक मिश्र
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तीन करोड़ का चूहा
कुछ दिन पहले दैनिक चंपू एक्सप्रेस में एक बड़ी धमाकेदार खबर छपी। खबर छपते ही राजनीतिक गलियारे में तहलका मच गया। खबर थी कि तीन करोड़ रुपये के मूल्य का गेहूं सरकारी गोदाम से रातोंरात गायब हो गया। राजधानी के प्रमुख अखबारों में शुमार किए जाने वाले दैनिक चंपू एक्सप्रेस की प्रतियां लेकर विपक्षी दल सरकार को घेरने निकल पड़े। पहले तो सरकार ऐसी किसी बात से इनकार ही करती रही। विरोधी पार्टी के नेताओं ने गेहूं चोरी के मामले की सीबीआई जांच की मांग करते हुए विधानसभा के सामने धरना दिया और जबरदस्त प्रदर्शन किया। विरोधियों और मीडिया के थू—थू करने पर सरकार चेती। उसने सीबीआई जांच की मांग अस्वीकार करते हुए विभागीय जांच के आदेश जारी किए। काफी खोजबीन के बाद खाद्य विभाग के ईमानदार अधिकारी मुसद्दीलाल को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया।
मिस्टर मुसद्दी लाल जांच अधिकारी नियुक्त किए जाने के तीन दिन बाद मौके पर जाकर छानबीन शुरू की। मुसद्दी लाल ने पहुंचते ही सबसे पहले चौकीदार कल्लन मियां को तलब किया। उन्होंने कल्लन मियां से पूछा, तीन करोड़ का गेहूं गायब हो गया और तुम्हें पता नहीं चला? तुम सबने मिलकर बेच लिया होगा। मैं जानता हूं, पिछले कई दशकों से यही हो रहा है। मैं भी इसी विभाग का हूं, राई—रत्ती जानता हूं विभाग में होने वाले भ्रष्टाचार के बारे में।
कल्लन मियां ने पान की पीक गेहूं की बोरियों पर थूकते हुए कहा, साहब! आप क्या—क्या खोजेंगे। यह देश महान है। इस देश की महिमा अपरंपार है। इस देश के लोग पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल हैं। इस देश से पिछली आधी सदी से बहुत कुछ गायब हो रहा है। किसी को कुछ पता चला आज तक? किसी को कोई फिक्र है क्या? फिर तीन करोड़ रुपये के गेहूं की क्या बिसात है!
क्या मतलब? मुसद्दी लाल चौंक पड़े। उनकी भृकुटि पर बल पड़ गए, तुम्हारे कहने का मतलब क्या है? साफ—साफ बताओ। ज्यादा मसखरी मत करो। रिपोर्ट में लिख दूंगा, तो नाचते—फिरोगे यहां—वहां। कल्लन मियां ने दांतों के बीच फंसी मोटी सुपाड़ी को चबाने की कोशिश करते हुए कहा, सर! आप अधिकारी हैं। आप फूड कारपोरेशन के भाग्य विधाता हैं। मेरी नौकरी आपकी कलम की मोहताज है। आप चाहें, तो मेरी नौकरी ले सकते हैं और चाहें, तो बचा सकते हैं। लेकिन सर! एक बात पूछूं? इस देश के नेताओं की नैतिकता, सेवा और लोककल्याण की भावना कब गायब हो गई या इस देश के चूहे कुतर गए, आपको पता चला? अधिकारियों के बीच से कर्तव्य पारायणता नामक चिडिया कब फुर्र हो गई, किसी को पता चला? भ्रष्टाचार रूपी बाज ने देखते ही देखते सांसदों, विधायकों, मंत्रियों, अधिकारियों से लेकर हम चपरासियों—चौकीदारों की ईमानदारी को कब निगल लिया? आपको या देश के किसी नागरिक को पता चला? दूर क्यों जाते हैं? मेरे पड़ोसी जुम्मन मियां की बेटी को कल भरे चौराहे से कुछ अमीरजादे उठा ले गए। जिन पर हम सबकी सुरक्षा का भार था, उन्हें इसका पता चला? नहीं न! ठीक उसी तरह इस गोदाम से कब तीन करोड़ रुपये के गेहूं गायब हो गए, हमें पता नहीं चला। हम अपनी इस गलती को स्वीकार करते हैं, लेकिन हमने न यह गेहूं खाया है और न ही बेचा है।
पूछताछ के दौरान गोदाम के अफसर और अन्य कर्मचारी हाथ बांधे मुसद्दी लाल के आगे पीछे डोल रहे थे। गोदाम के अधिकारी और कर्मचारी चाहते थे कि मुसद्दी लाल कुछ ले—देकर मामले को रफा—दफा कर दें। मुसद्दी लाल थे कि पूरे मामले को बेपर्दा करने पर ही उतारू थे। जैसे उन्हें कोई बहुत बड़ा पुरस्कार मिलने वाला हो या ईमानदारी का कोई भारत रत्न मिलने की संभावना हो। उन्होंने कल्लन को घूरते हुए कहा, मियां! कुछ भी हो। तुम्हें तो यह बताना ही पड़ेगा कि तीन करोड़ के गेहूं आखिरकार गए कहां? यह गेहूं तुम लोगों ने या तो किसी ब्लैकमार्केटिए को बेचा है या बिस्कुट कंपनी को। संभव है, तुम सब मिलकर उसे खा गए हो। तुम सबकी तोंद देखकर ही पता चलता है कि खाने के मामले में उस्ताद हो। मुसद्दीलाल ने शब्द खाने पर जोर दिया।
वहां मौजूद गोदाम के एक अधिकारी ने विरोध प्रकट किया, सर..गायब हुआ गेहूं सड़ भी तो सकता है।
अधिकारी की बात सुनकर मुसद्दीलाल मुस्कुराए, चलो, मान लिया। तुम लोगों की लापरवाही से तीन करोड़ रुपये की कीमत का गेहूं सड़ गया। तो तुम लोग वह सड़ा हुआ गेहूं ही क्यों नहीं दिखा देते। मैं अपनी रिपोर्ट में लिख दूंगा। तुम लोग भी बच जाओगे और मेरी जांच भी पूरी हो जाएगी। वह अधिकारी मुसद्दीलाल की बात सुनकर खिसियाकर अलग हट गया। कल्लन मियां को ऐसी जांचों का अच्छा खासा तजुर्बा था। अपनी तीस साल की नौकरी में उन्होंने ऐसी कई जांचों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया था। वह समझ रहे थे कि मुसद्दीलाल नए—नए जांच अधिकारी बने हैं। या तो प्याज ज्यादा खाएंगे या कथरी में साबुन ज्यादा लगाएंगे। थोड़ी बहुत फूं—फां करेंगे और चुप हो जाएंगे। वहीं, बगल में खड़े बड़े बाबू से लेकर आफिस ब्वाय तक घबराहट में बार—बार जीभ फिराकर होठों को तर कर रहे थे। चौकीदार के बाद पूछताछ उनसे भी होने वाली थी। मन ही मन कल्पित सवालों को अपने से पूछते और खुद ही जवाब देते। मानो वह किसी युद्धाभ्यास में संलग्न हों।
कल्लन के मुंह की सुपारी शायद अब तक छोटे—छोटे टुकड़ों में तब्दील हो चुकी थी। उन्होंने पिच्च से एक बार फिर बोरियों पर थूकते हुए कहा, साहब! सच बताऊं। जितना भी गेहूं गायब है, वह सारा का सारा चूहे खा गए हैं। अगर बाकी बचे गेहूं की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं होती है, तो इसे भी चूहे खा जाएंगे। हम आप बस हाथ मलते रह जाएंगे। फिर कोई फूं—फां टाइप का रिपोर्टर आएगा और लिख मारेगा, सत्तर करोड़ रुपये की कीमत के गेहूं गोदाम से गायब। फिर एक कमेटी बनेगी, जांच अधिकारी नियुक्त होगा और जांच होगी। जांच रिपोर्ट विभाग को पेश की जाएगी, विभाग सरकार को भेज देगा। कुछ दिन का हो—हल्ला होगा और जांच रिपोर्ट ठंडे बस्ते में चली जाएगी।
मुसद्दी लाल यह सुनकर उछल पड़े, क्या चूहे खा गए? यह कैसे हो सकता है। कोई दो—चार किलो गेहूं तो था नहीं कि उसे चूहे खा जाएं। और किसी को पता भी नहीं चले। यह पूरे तीन—चार सौ मीट्रिक टन गेहूं का मामला है। इतना गेहूं चूहे कैसे खा सकते हैं। कितने चूहों ने खाया होगा इतना सारा गेहूं? जांच अधिकारी के माथे पर कल्लन मियां की बात सुनकर पसीना आ गया। अगर ऐसी बात है, तो वे अपनी जांच रिपोर्ट में क्या लिखेंगे कि चार मीट्रिक टन गेहूं चूहे खा गए। विभाग मानेगा इस रिपोर्ट को। सरकार मानेगी इस रिपोर्ट को। कतई नहीं। उल्टा सरकार एक और जांच कमेटी बिठा देगी कि कहीं मुसद्दीलाल ने रिश्वत खाकर तो रिपोर्ट तैयार नहीं की है। मुसद्दीलाल को अपने पड़ोसी प्रपंची राम धोखाधड़ी का वाकया याद आ गया। काफी सीधे सादे धोखाधड़ी जी बस नाम के ही धोखाधड़ी हैं। हास्य कविताएं लिखते हैं। नगर महापालिका में बड़े क्लर्क के रूप में काम करने वाले धोखाधड़ी जी को किसी ने धोखाधड़ी करके एक ठेकेदार के खिलाफ होने वाली जांच का जांच अधिकारी नियुक्त करवा दिया। बेचारे..ठेकेदार द्वारा बनाई गई सड़क की जांच करने गए, उन्होंने काफी गहनता से जांच भी की। ठेकेदार ने उन्हें देखते ही फूल—मालाओं से लाद दिया। उन्हें मिठाई का डिब्बा भी दिया और पास खड़ा एक फोटोग्राफर उनकी इस आवभगत की तस्वीर भी खींचता रहा। बाद में जांच अधिकारी बनाए गए धोखाधड़ी जी रिश्वत लेने के आरोप में निलंबित कर दिए गए। उनके निलंबन का आधार बनीं वे तस्वीरें जिनमें वे फूल—मालाओं से लदे हाथ में मिठाई का डिब्बा लिए नजर आ रहे थे। ठेकेदार ने कहा कि तस्वीर में दिख रहे डिब्बे में मिठाई नहीं, नोटों की गड्डियां हैं। वह भी हजार—हजार के नोटों की।
मुसद्दी लाल की बात सुनकर कल्लन मियां हंस पड़े, साहब! इस देश में जिधर निगाह दौड़ाइए, चूहे ही चूहे नजर आएंगे। मुझे तो हर जगह चूहे नजर आते हैं। अरे साहब! चूहों ने तो देश को कुतर कर रख दिया है। वास्तविक चूहे तो सिर्फ कागज—पत्तर, कपड़ा—लत्ता कुतर कर संतोष कर लेते हैं। ये चूहे खाएंगे भी तो कितना, किलो—दो किलो। लेकिन कायांतरित चूहे..बाप रे बाप! पूरा देश डकार जाएं और पानी भी न पियें। आप किसी भी महकमे की कार्य प्रणाली देख लें। ऊपर से नीचे तक चूहे ही चूहे भरे हुए हैं। कोई कागज कुतर रहा है, तो कोई देश की पूरी अर्थव्यवस्था। कोई सरकारी योजनाओं को कुतर रहा है, तो कोई जनता की जेब। कुछ कायांतरित चूहे तो बाकायदा ट्रेनिंग लेने विदेश जाते हैं। विदेश से लौटने के बाद जिस प्रवीणता से देश की अर्थव्यवस्था कुतरते हैं कि ताज्जुब होता है उनकी प्रतिभा पर। एक तरफ सरकार या उसके नुमाइंदों ने सहायता के नाम पर काफी हाय—तौबा मचाने पर अगर कुछ दिया भी, तो सारा कुछ चूहों से कुतरी गई जेब में डालते ही गिर जाता है।
कल्लन मियां थोड़ी देर सांस लेने के लिए रुके, मानो लंबी दौड़ लगाकर आए हों, छत्तीसगढ़ में तो डॉक्टरों को कुछ नहीं मिला, तो वे औरतों की बच्चेदानी ही कुतर गए। अब आप कहां—कहां तक चूहेदानी लगाकर इन डॉक्टर रूपी चूहों को पकड़ते फिरेंगे। मान लिया, वास्तविक चूहों को आप चूहेमार दवा खिलाकर मार भी देंगे, लेकिन कायांतरित चूहों का क्या करेंगे? ये जिंदा रहेंगे तो गंधाएंगे, मर जाएंगे तो और गंधाएंगे। इनको अगर जांच की चूहेदानी लगाकर पड़ भी लेंगे, तो रखेंगे कहां? आप सोचते क्या हैं? इनकी संख्या कोई दस—बीस है। करोड़ों में है, साहब! करोड़ों में। आपकी जेलें भर जाएंगी, लेकिन इनकी संख्या कम नहीं होगी। इसलिए बेहतर यही है कि आप अपनी रिपोर्ट में लिख दें, गेहूं गायब नहीं हुआ है, बल्कि चूहे खा गए हैं। अगर सुबूत के लिए चाहिए, तो एकाध मोटा—ताजा चूहा पकड़कर दे देता हूं।
इतना कहकर कल्लन मियां बगल वाले स्टोर में गए। उनको जाता देख सभी लोग इधर उधर खिसक गए। मुसद्दीलाल अपनी कुर्सी पर हवन्नकों की तरह मुंह बाए बैठे रहे। इस बीच एक चपरासी चाय—बिस्कुट के साथ पानी रख गया। मुसद्दीलाल काफी देर तक दुविधा में रहे कि चाय—पानी पियें या न पियें। कहीं ऐसा तो नहीं कोई जाल रचा गया हो, उन्हें फंसाने के लिए। फिर जी कड़ा करके उन्होंने पानी का गिलास उठाया और गटागट पी गए। हां, चाय और बिस्कुट को उन्होंने हाथ तक नहीं लगाया। चपरासी और कुछ कर्मचारी उनसे बार—बार चाय पीने का अनुरोध करते रहे, लेकिन वे हर बार मनाकर देते थे। चार घंटे बाद कल्लन मियां एक चूहादानी लेकर लौटे। उसमें एक भारी भरकम चूहा कैद था।
उसने जांच अधिकारी मुसद्दी लाल को चूहेदानी थमाते हुए कहा, साहब! इस चूहे को ले जाइए। इसे चाहे सरकारी खजाने में जमाकर दीजिए, चाहे फाइल के साथ नत्थी कर दीजिए। बस..अपनी जांच रिपोर्ट में लिख दीजिए कि यही वह चूहा है जो तीन करोड़ रुपये के गेहूं खा गया है। इतना कहकर कल्लन मियां एक तरफ खड़े होकर पान चबाने लगे और मुसद्दी लाल कभी कल्लन को, तो कभी चूहे को निहारते रहे।