ज़िन्दा है मन्टो (10 लघु-कथाएँ) SHABD MASIHA द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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ज़िन्दा है मन्टो (10 लघु-कथाएँ)

1 - कूप थर्रा उठा

'ज्योति ! एक बात बताओ मुझे, तुम्हारे पति पर रेप का आरोप लगा तो तुम्हें कोई बचैनी क्यों नहीं हुई ?' तुम तो उसकी पत्नी भी हो और दो बच्चों की माँ भी !'

'वकील साहब ! आप सही कहते हैं मुझे बाकी लोगों की तरह बर्ताव करना चाहिए था. मेरे पति को खोने का डर जब मुझे लगा तो सच बोलना ही पड़ा मुझे. ये बात सिर्फ मैं ही जानती थी कि मेरे पति बच्चे पैदा करने में समर्थ नहीं हैं और इसीलिए मैंने मेडिकल टेस्ट की मांग की थी.'

'तुमने पति को बचा लिया मगर तुमने ख़ुद को और अपने बच्चों को जीते जी मार डाला...ऐसा कर के.'

'वकील साहब ! मर्द सिर्फ औरत को मसलने वाले का नाम नहीं है. उसने हर जिम्मेदारी को निभाया है. ये मेरे बच्चे कोई टेस्ट ट्यूब बेबी नहीं हैं. मेरे पति की रजामंदी का अंजाम हैं.'

वकील के मन का अंधा कुआ अचानक से थर्रा उठा था, जिसने सिर्फ इसलिए पत्नी को छोड़ा हुआ था कि उसके प्रेमी के ख़त उसके पास पाए गए थे.

***

2 - बोझ

'दादा जी ! अपने देश का विकास कैसे होगा ऐसे में, जब किसी की योग्यता इस बात से देखि जाय कि वह कितना बड़ा बाहुबली है. और अपने लीडर मर जाएँ पर उनके मुकद्दमों के फैसले न आयें. इसका विरोध होना चाहिए !'

'तेरे बाप ने भी यही किया था.'

'पर आप तो कहते थे कि माँ-पापा दुर्घटना का शिकार हो गए थे !'

'हाँ बेटे ! कुछ लोगों का विरोध करना, दुर्घटना को दावत देना ही होता है. ये गलती मैं तुम्हें नहीं करने दूंगा. हत्या और बलात्कार का बोझ अभी तक कन्धों पर है मेरे.

***

3 - देश बदल रहा है

'डाक्टर साहब ! ये लीजिये ऑपरेशन के पैसे.' और उसने मेज पर पैसे रख दिए.

'कितने हैं ?'

'जितना आपने कहा था जी ! पूरे तीन लाख हैं.'

'भाई ! वो तो GST आने से पहले का था. तीस हजार और लाओ !'

'पर साहब ! डाक्टर नहीं बदला, मरीज और मर्ज़ नहीं बदला तो फिर बढ़ोत्तरी किसलिए ?'

'भाई ! देश बदल रहा है.'

***

4 - विश्वास का चाँद

विवाह का घर.नई आयी दुल्हन और सुहागरात.बाहर हंसी ठहाकों की आवाज. और नवेली कुम्हलाई सी बैठी थी. क्या कहेगी ? कैसे कहेगी ? कल क्या होगा ? सैकड़ों सवाल...मेकअप के बाबजूद भी उसकी रंगत उड़ा देने पर आमादा थे.

संजय को लगभग धकेलते हुए उसकी भाभी ने हंसते हुए नवेली के कमरे में भेजा. और बाहर से कुण्डी लगा दी. संजय नवेली की तरफ बढ़ा तो नवेली की कजरारी आँखों में आंसू थे.

'क्या हुआ ? तुम रो क्यों रही हो ? क्या तुम खुश नहीं हो इस शादी से ?' संजय बोला.

'वो बात नहीं है जी...बात ये है कि....'

'क्या बात है ? डरो मत मुझसे कहो ! अगर मैं कुछ कर सकता हूँ तो जरुर करूँगा.'

'कल सुबह चादर देखी जायेगी और आपके साथ सब मेरी हँसी उड़ायेंगे.' और वह फिर से रोने लगी.

'ओह ! तो ये बात है....पगली कहीं की.' संजय ने अपनी कमर से कटार निकाली और अपने अंगूठे को काट खून के कुछ कतरे सफ़ेद चादर पर टपका दिए.

'ये क्या किया आपने ?' नवेली ने उसका अंगूठा चूसते हुए कहा.

'पत्नी बनाया है तुम्हेसिन्दूर मांग में भरा है… दिल में उतरने के लिए अगर रास्ता खून से होकर बनता है तो बहुत आसान है. तुम्हारी इज्जतमेरी इज्जत है नवेली.'

और अँधेरी रात में विश्वास का चाँद.... ज़िन्दगी के पहले मिलन को सदैव के लिए संजय को चाँदनी का कर गया.

शब्द मिलन

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5 - यू ओल्ड माइन्डिड पीपुल

'अरे! भावना, तू अभी तक तैयार नहीं हुई यार ! आज तो अपना प्रोग्राम है. हम लोगों को जरुरतमंदों को गिफ्ट देने हैं और वो अपने नेता जी भी तो आ रहे हैं, सेल्फी भी हो जायेगी.'

'नहीं, बहिन मैं आज न जा सकूंगी, मेरे ससुर पापा की तबियत ठीक नहीं है.'

'ओह ! छोड़ यार ! ये बुजुर्गों को तो जब देखो बीमारी की जंजीर हमारे पैरों में डालने की आदत हैं. दो तीन घंटे में कुछ नहीं होता. जब इतने दिन से घिसट रहे हैं तो थोडा और सही. पर ऐसे चेरिटी फंक्शन को छोड़ना बेबकूफी है. फिर तुमने पैसे भी तो दिए हैं चेरिटी के लिए !'

'माफ़ करना बहिन ! चेरिटी घर से ही शुरू होती है. मैं उनकी बहू भी हूँ और बेटी भी. वो सेल्फी किस काम की जिसमें अपनों के आशीर्वाद की जगह आहें हों.'

'ओह! यू ओल्ड माइन्डिड पीपुल.....'

शब्द मसीहा

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  • 6 - खुद्दारी
  • 'ओ ! झल्ली, सुन ये माल वहां गाडी तक छोड़ना है.' माल उठाने वाले कुली से बोला.

    'साहब ! पाँच नाग हैं. ढाई सौ रुपये लगेंगे !' कुली बोला.

    'यार! तुम लोगों ने लूट मचा रखी है. चल दो सौ दूंगा. पर जल्दी कर वो ट्रक जाने वाला है.'

    झल्ली वाला तेजी से भारी गाँठ को सर पे उठाने लगा.

    'भाई साहब ! जरा हाथ तो लगवा दो माल जरा भारी है.' कुली बोला.

    उसने हाथ लगवाया और गाँठ को सिर पे रखवा दिया. ट्रक वाला बहुत जल्दी कर रहा था. किसी तरह दो गाँठ पहुंची थी. जल्दी के चक्कर में उसने भी एक छोटी गाँठ उठाने की कोशिश की और कमर की नस खिंच गयी. भयंकर दर्द शुरू हो गया. झल्ली वाला लगातार दौड़ता रहा और गांठों को ट्रक पर चढ़ा दिया. ट्रक रवाना हुआ तो उसका ध्यान व्यापारी की तरफ गया. चेहरे पर दर्द की रेखाएं साफ़ बता रहीं थीं की दर्द बहुत भयानक है.

    'ओ! बाबूजी, ये आपका काम नहीं है. बेकार पहलवानी करने लगे आप भी. इधर आइये.' और वह उसको एक तरफ ले गया जहाँ कुली बैठते थे.

    'दो मिनिट यहाँ लेट जाइए.' उसने अपने सिर का कपडा बिछाते हुए कहा. फिर वह उसकी टांगों से कमर तक अपने हाथ से दबाब डालता चला गया. टांग को पकड़कर जोर से झटका मारा. फिर अपना हाथ आगे कर उसको उठाया.

    'अब देखिये बाबूजी ! अब दर्द तो नहीं है ?'

    वाकई दर्द अब कम हो गया था. व्यापारी ने अपनी जेब से तीन सौ रुपये दिए.

    'लो भाई ! तुम तीन सौ ले लो.'

    'साहब ! हम मेहनत का ही पैसा लेते हैं. जो तय हुआ उस से ज्यादा नहीं.' और उसने सौ का नोट वापिस कर दिया.

    व्यापारी उस गरीब आदमी की खुद्दारी देख रहा था.

    शब्द मसीहा

    ***

    7 - सपेरा

    'भाई साहब ! आपने अपना परिचय सपेरे के रूप में क्यों दिया ?'

    'भाई ! लेखकों को आजकल सही रूप में लेता भी कौन है ? अगर मैं कहता कि मैं लेखक हूँ तो अवश्य प्रश्न करता कि किस पार्टी के लिए या कौन से अखबार में ?'

    'पर ये तो आपने झूठ ही बोला न.......जबकि आप कहते हैं मैं सत्य साधक हूँ !"

    'हाँ, मैं सत्य साधक हूँ और सपेरा भी, क्योंकि मैं आदमियों के मन में बैठे जहरीले विचार रुपी साँपों का विष निकालता हूँ."

    शब्द मसीहा

    ***

  • 8 - चमरा गाँव
  • उनके बाप-दादा मरे हुए पशुओं की खाल उतारते थे. ये ठप्पा उनके माथे पर लगा हुआ था सदियों से. लोग सीधे मुँह बात भी नहीं करते थे. जैसे वे लोग किसी और दुनिया के आदमी थे.

    एक बार एक आदमी वहाँ से गुजर रहा था. जिसके पास अपना कहने को एक डंडा था और एक झोला. जब वह गाँव के बगल से गुजर रहा था तो एक बेलगिरी का बड़ा सा कांटा उसके पैर में घुस गया. पास ही खड़े बच्चे ने उसे निकाला और अपने घर की तरफ ले गया.

    'भाई तुम कौन जात हो ? हम चमरा हैं. अगर तुम हमारे यहाँ रुकोगे तो तुम्हारा धर्म खराब हो जायेगा.' एक अधेड़ बोला

    'तुम चमरा नहीं बकरा हो. लोग सदियों से तुम्हें हलाल कर रहे हैं और तुम्हें इसका ज्ञान नहीं है. किसने कह दिया कि धर्म अपवित्र हो जाता है. अगर धर्म इतना नाजुक है तो उसे मानने से क्या फायदा ? तुम्हें तो मानसिक गुलाम बनाया है जबरन...वरना तुम में और मुझ में क्या फ़र्क है ?'

    तब तक वह लड़का अपनी माँ को भी ले आया था जिसके हताह में चिलम की तम्बाकू और गुड़ का मिश्रण था जिसे वह उस व्यक्ति के पाँव पर बाँधने को लाई थी. वह संकोच से दूर खड़ी थी अपना बड़ा सा घूंघट किये.

    'ओ! दादा, मेरी माँ तेरे काजे दवाई लाई है. तू कहै तो बाँध देगी.' वह लड़का बोला.

    'लाओ बहिन ! बहुत दर्द है पैर में. बाँध दो.' और उसने चारपाई से बैठे हुए अपना पैर ऊपर की तरफ उठा दिया.

    वह औरत उसके पैर पर तम्बाकू और गुड़ बाँधने लगी. उसकी आँखों से गिरे आँसू से उसे बहुत पीड़ा हुई. और उसने पूछा -

    'बहिन ! रो क्यों रही हो तुम ? मैंने कोई गलत काम किया है क्या ?'

    'हमें आज तक काऊ ने बहिन कहकर नाहीं बुलाया, सब चमरा ही कहत हैं. तुम कौन-सी दुनिया के हो भैया ?'

    उसने उस महिला के सर पर हाथ रखा और जेब से पाँच रुपये निकाल कर उसके हाथ पर रख दिये.

    'तुमने मुझे भाई कहा है. एक भाई अगर बहन के घर आये तो उसे अपनी बहिन को स्नेह तो देना ही चाहिए. लो बहिन !'

    गाँव के और भी लोग उस आदमी को देख रहे थे. वह उत्सुकता से उस से कुछ पूछना चाहते थे.पहली बार कोई ऐसा आया था जिसने अपनी बातों से उनके घावों पर मरहम रखा था.

    'तुम लोग इन लोगों के आसपास सफाई करते हो, इनको बीमारियों से बचाते हो. इनको बदबू से बचाते हो. तुम लोग छोटे जात के कैसे हो गये ? तुम्हारी सेवा तो बहुत बड़ी है. इंसान होकर इंसान की सेवा करना कितना बड़ा काम है. और इंसान होकर इंसान को जानवर सा समझना कितना बड़ा गुनाह है...ये वे लोग नहीं जानते. तुम सब को चाहिए कि अपने बच्चों को पढाओ और एक मन्त्र देता हूँ तुम्हारे उत्थान के लिए. '

    'वो क्या है भैया जी !' एक व्यक्ति बोला.

    'वो ये है कि एक साल के लिए तुम अपने चूल्हे तोड़ दो और सब लोग मिलकर एक जगह खाना बनाओ और एक साथ रहो. कभी किसी का अपमान हो तो चुप मत बैठो कि उसका अपमान हुआ है न कि मेरा. अगर संगठित रहोगे और शिक्षा का सहारा लोगे तो तुम्हें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकेगा.'

    लौटकर आये उस युगपुरुष को गाँव के लोग उत्सुकता से देख रहे थे.पूरे पांच साल बाद लौटा था वह उस गाँव में. चमरा गाँव में हरियाली थी. खुशहाली थी और सफाई भी.

    वह लड़का जिसने उसके पैर से काँटा निकाला था उसे मुस्कुराते हुए कह रहा था.

    'मामा! माँ आई है.'

    आज उसकी माँ ने घूंघट नहीं निकाल रखा था. अपने आँचल से ढंकी खाने की थाली निकाल कर उसने उसके सामने रख दी और बोली -

    'भैया ! खाना ठंडा है क्योंकि हमने सुबह बनाया था सबके लिए. पांच साल से यहाँ एक ही चूल्हा जलता है और हम सब तुम्हारी कही बातें मानते हैं. वो देखो ! हमारे खेतों में भी अब कोई बाढ़ नहीं है.सब मिल बांटकर काम करते हैं और अब ये चमरा गाँव अपनी सफाई और अपने भाई चारे की मिसाल है.'

    आज उसने जैसे अपने पैर का काँटा नहीं समाज के मन से विद्वेष का काँटा दूर कर दिया था. उसके चेहरे पर असीम संतुष्टि की मुस्कान थी.

    शब्द मसीहा

    ***

  • 9 - सो कुछ नहीं !
  • 'मुन्नी के पापा ! आज शाम आप जरा देर से आ सकते हैं ?' रत्ना ने अपने पति से पूछा.

    'क्या बाहियात सी बात कर रही हो ! रोज तो कहती हो कि जल्दी घर आया करो, आज उलटी गंगा क्यों बह रही है ?'

    'बात ये है कि मैंने अपने घर कुछ दोस्तों को बुलाया है उनमें औरतें भी और आदमी भी !'

    'आदमी भी हैं ? कैसी अजीब बात करती हो ! कोई पराया मर्द मेरी गैर मौजूदगी में कैसे आ सकता है. माना कि अब हम राजबाड़े नहीं रहे पर शान में गुस्ताखी बर्दाश्त नहीं करेंगे !'

    'हाँ, तब शान बढती है तुम्हारी जब तुम्हारे यार यहाँ आकर दारू पीते हैं और और मेरे खाना परोसते हुए ढलके पल्लू पर उनकी निगाह चिपक जाती है. सो कुछ नहीं !'

    शब्द मसीहा

    ***

  • 10 - प्यार में कोई अपशकुन नहीं होता
  • 'सुनो! जी, मैंने तो करवा-चौथ का व्रत रख लिया है. माँ जी यहाँ हैं नहीं. मेरे मन में एक बात आ रही है.' मीना बोली.

    तभी फ़ोन की घंटी बजी.

    'हेल्लो ! मैं केसर बोल रही हूँ बेटा ! अखंड सौभाग्यवती रहो !'

    'राम राम माँ जी. बस मैं फ़ोन करने ही वाली थी माँ जी आपको !'

    'क्या हुआ बेटा ? सब कुशल तो है ? आज करवा-चौथ है, उस उल्लू से कुछ हो जाय तो माफ़ कर देना. मैं कल आ जाउंगी शाम तक.'

    'माँ जी ! बात ये है कि बड़ी दीदी को मैं इस बार शगुन की थाली देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहती हूँ अगर आप बुरा न मानें तो !'

    'मेरी बच्ची ! बहुत अच्छा सोचा है तूने. मैं ख़ुद यही बात तुझे कहना चाहती थी. तू उसका मान करेगी तो मुझे ख़ुशी होगी. जब से नीरज ने दुनिया छोड़ी है अकेली पड़ गयी है और हाँ, प्यार में कोई अपशकुन नहीं होता. प्यार और सम्मान सब से बड़ी दुआ है.'

    शब्द मसीहा

    ***