Ek-Apreshit-Patra - 2 book and story is written by Mahendra Bhishma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Ek-Apreshit-Patra - 2 is also popular in Letter in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
एक अप्रेषित-पत्र - 2
Mahendra Bhishma
द्वारा
हिंदी पत्र
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विवरण
एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म विरह गति प्रिय रेवा, मेरे जीवन का पल—पल तुम्हें न्योछावर! तुम्हें रूठकर यहाँ से गये, आज पूरा एक माह होने जा रहा है। कल शाम पापा जी का पत्र मिला था कि तुम अभी कुछ और दिन अपने मम्मी—पापा के पास देहली में ही रहना चाहती हो। रेवा! तुम क्यों नहीं आयीं ? मैं जब तुम्हें लेने गया था, तब भी मेरे साथ आना तो दूर तुम मुझ से मिली भी नहीं थीं। अभी तो हमारे विवाह को हुए एक वर्ष भी नहीं बीता है......। आगे लम्बी जिन्दगी पड़ी है। ऐसे कैसे चलेगा... भाई! मैं मानता
मैं एक नन्हा—सा वृक्ष हूँ। इस सुन्दर संसार में आए मुझे कुछेक वर्ष ही हुए हैं। नीले आकाश के नीचे, पर्वतमालाओं की तलहटी में विस्तृत सुरम्य वन के ठीक मध्...
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