यह कहानी बचपन की मासूमियत और ननिहाल की यादों के इर्द-गिर्द घूमती है। नायिका अपने बचपन के carefree दिनों को याद करती है जब वह अपनी माँ और बहन के साथ आसमान में उड़ने का ख्वाब देखती थी। उनका ननिहाल एक पहाड़ी पर था, जहां वे बाघों की डरावनी आवाज़ों के बीच रहते थे। माँ की चिंता और ननिहाल की कठिनाइयाँ नायिका की मासूमियत को प्रभावित करती हैं। नायिका अपनी माँ की आँखों में पानी देखकर पूछती है कि वे कब तक इस डर में जीते रहेंगे। माँ चुपचाप रोटी पाथती रहती है, जैसे वह अपने दुखों को छुपा रही हो। कहानी में बचपन की सरलता, डर, और ननिहाल की यादों का गहरा भावनात्मक चित्रण किया गया है।
हिटलर की प्रेमकथा - 1
Kusum Bhatt
द्वारा
हिंदी लघुकथा
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विवरण
बचपन के दिन थे- चिंता से मुक्त और कौतूहल से भरे पाँवों के नीचे आसमान बिछ जाता। पंख उग आए..., पंखों को फैलाए हम नाना के आसमान में जाने को बेताब..., हम यानि मैं, माँ और छोटी, वैसे हम तीन जोड़ी पंखों को लेकर ही अपने जहाँ से उड़ते लेकिन माँ के पंख छोटे होकर सिकुड़ने लगते। आसमान धरती पर गिरता और पलक झपकते ही बिला जाता, धरती पर पथरीली चट्टानें उग आती। माँ कठपुतली में तब्दील हो जाती।
बचपन के दिन थे- चिंता से मुक्त और कौतूहल से भरे पाँवों के नीचे आसमान बिछ जाता। पंख उग आए..., पंखों को फैलाए हम नाना के आसमान में जाने को बेताब..., हम...
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