कौशलेंद्र प्रपन्न के अनुसार, पढ़ना एक कठिन कार्य है और लोग इसे पसंद नहीं करते। सभी पढ़ाना और लिखना चाहते हैं, लेकिन पढ़ने में रुचि नहीं दिखाते। शिक्षकों की चिंता होती है कि बच्चे पढ़ना और लिखना नहीं जानते, जबकि वे स्वयं भी पढ़ने से दूर हैं। बच्चों को अपने बड़े-बूढ़ों से ही पढ़ाई का उदाहरण मिलता है, जो अक्सर किताबें पढ़ते नहीं दिखते। स्मार्टफोन पर केवल सूचनाएं देखने को पढ़ना माना जाता है, जबकि डिजिटल सामग्री की संख्या बढ़ रही है। युवा लेखक डिजिटल तकनीक के माध्यम से किताबें लिखते हैं, जिससे लेखन का काम आसान हुआ है। हालांकि, पढ़ने की आदत में कमी आई है, और हाल की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 53% बच्चे दूसरी कक्षा के पाठ को पढ़ने में असमर्थ हैं। यह दर्शाता है कि पढ़ाई की गुणवत्ता में गिरावट आई है और पढ़ाई की प्रक्रिया मुख्य शिक्षा से हाशिए पर चली गई है।
पढ़ने का धैर्य
kaushlendra prapanna द्वारा हिंदी पत्रिका
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विवरण
कौशलेंद्र प्रपन्न शायद दुनिया में यदि कोई कठिन और श्रमसाध्य कार्य है तो वह पढ़ना ही है। कोई भी पढ़ना नहीं चाहता। हर कोई पढ़ाना चाहता है। हर कोई लिखना चाहता है। और हर कोई कहना भरपूर चाहता है लेकिन पढ़ना नहीं चाहता। वह चाहे किसी भी पेशे में क्यों न हो। उस पर यदि कोई शिक्षण पेशे से आता है तो उसे भी इस बात की ज्यादा होती है कि वह बच्चों को पढ़ाना सीखा दे। बच्चे लिखना शुरू करें। शिक्षकों की बड़ी गंभीर चिंता यह होती है कि उसके बच्चे लिखना और पढ़ना नहीं जानते और न
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