सन् ८० का दशक,बुन्देलखण्ड का चम्बल इलाका जो डकैतों के लिए भी मशहूर है , जितने भी लोगों के घर में रेडियो मौजूद हैं तो वें मध्यप्रदेश के बुदेलखंड जिले के छतरपुर जिले की आकाशवाणी से प्रसारित मशहूर लोकगीत गायक देशराज पटैरिया के गीत सुनकर खुश हो जाते हैं, चम्बल के आस पास गाँवों में डाकुओं की बड़ी दहशत रहती है,लोंग शाम से ही अपने घर के दरवाजों के पीछे छिप जाते हैं फिर कोई भी आएं सुबह ही दरवाजा खुलता है घर का,लोंग घर में जमा नगदी जमीन में गड्ढा खोदकर छुपा देते हैं और जेवरातों की पोटलियों बक्सों में डालकर खेतों में दबा आते हैं,चम्बल की घाटी, चम्बल की और भी नदियों के इर्द गिर्द भी है, इसमें यूपी और एमपी के कई ज़िले आते हैं, वहाँ के तकरीबन सभी इलाकें रात को डाकुओं के डर से खामोश रहते हैं, डाकुओं का खैाफ इलाके के लोगों पर सिर चढ़कर बोलता है, एक बड़ी अजीब सी चीज़ जो इन इलाकों में देखने को मिलती है कि जिन्हें पुलिस डाकू, डकैत, दस्यू और अपराधी कहते हैं उन्हें इन इलाकों में लोग डकैत के बजाए बागी कहना ज्यादा पसन्द करते हैं,वें कहते हैं कि अपराधी और बागी में फर्क होता है,चम्बल में हर डाकू, हर दस्यु सुंदरी की अपनी अपनी कहानी है, वहाँ इन सब पर ज़ुल्म हुआ इसलिए बदले की आग में झुलसकर वें डाकू बन गए, डाकू बनने की सबकी अपनी अपनी अलग अलग कहानी है।

Full Novel

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एक थी नचनिया--भाग(१)

सन् ८० का दशक,बुन्देलखण्ड का चम्बल इलाका जो डकैतों के लिए भी मशहूर है , जितने भी लोगों के में रेडियो मौजूद हैं तो वें मध्यप्रदेश के बुदेलखंड जिले के छतरपुर जिले की आकाशवाणी से प्रसारित मशहूर लोकगीत गायक देशराज पटैरिया के गीत सुनकर खुश हो जाते हैं, चम्बल के आस पास गाँवों में डाकुओं की बड़ी दहशत रहती है,लोंग शाम से ही अपने घर के दरवाजों के पीछे छिप जाते हैं फिर कोई भी आएं सुबह ही दरवाजा खुलता है घर का,लोंग घर में जमा नगदी जमीन में गड्ढा खोदकर छुपा देते हैं और जेवरातों की पोटलियों बक्सों ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(२)

उस आदमी के मरते ही उस जगह बिल्कुल सन्नाटा छा गया,तब डाकुओं की सरदार श्यामा बोली.... हमने कही थी कि कोई हल्ला ना मचाएं,अब सबने देख लओ ना कि का हाल भओ इ आदमी को,सो भलाई येई में हैं कि सब जने चुप्पई चाप अपनी अपनी अँगूठी,चेन और नगदी इते धरके चले जाओ... और फिर सबने श्यामा के कहने पर अपनी अपनी अँगूठियाँ और चेन उतारकर अपनी जान के डर से जमीन पर बिछे हुए कपड़े पर रख दीं,कुछ ही देर में वहाँ नगदी और गहनों का ढ़ेर लग गया,फिर उन डाकुओं में से एक आगें आया उसने उस ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(३)

इतना क्यों शरमा रही हो?जवाब दो ना!मोरमुकुट सिंह ने पूछा।। मेरे पास तुम्हारे सवाल का कोई जवाब नहीं है,कस्तूरी ठीक है मत दो मेरे सवाल का जवाब,लेकिन मुझे ये करधनी पहनकर तो दिखाओ,मोरमुकुट सिंह बोला।। नहीं!मुझे नहीं पहननी ये करधनी और मुझे ये चाहिए भी नहीं,अगर तुम्हें मुझे उपहार देने का इतना ही मन है तो जब कभी शहर जाना तो मेरे लिए सलमा सितारों की धानी रंग की चुनरिया ले आना,कस्तूरी बोली।। मेरा मन रखने के लिए ये करधनी रख लों,मैं धानी चूनर भी ला दूँगा,मोरमुकुट सिंह बोला।। नहीं!जिद मत करो,अगर मैनें ये करधनी रख ली और कभी ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(४)

सब वहाँ भागकर पहुँचे और फिर रामखिलावन कस्तूरी को समझाते हुए बोला... कस्तूरी!पागल हो गई है क्या?जानती है कि कौन हैं?ये जुझार सिंह जी हैं जिन्होंने हमें नौटंकी करने यहाँ बुलाया है,माँफी माँग इनसे... ये सुनकर कस्तूरी कुछ देर शांत रही फिर उसने रामखिलावन का चेहरा देखा जो उससे माँफी माँग लेने की विनती कर रहा था,इसलिए फिर वो जुझार सिंह से बोली.... माँफ कर दीजिए,गलती हो गई और इतना कहकर वो धर्मशाला के भीतर चली गई... कस्तूरी के जाने के बाद रामखिलावन बात सम्भालते हुए जुझार सिंह से बोला.... नादान है सरकार!आपको पहचानने में उससे भूल हो गई,नासमझ ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(५)

कस्तूरी ने घर के किवाड़ो पर लगी साँकल खटखटाई...पानकुँवर ने दरवाजा खोला तो सामने कस्तूरी को देखकर पूछा.... इत्ती कैसें आ गई बिन्नू? पहले भीतर तो आन दो,फिर सबकुछु पूछ लइओ,कस्तूरी बोली।। चलो....भीतर.... चलो,पानकुँवर बोली।। कस्तूरी घर के भीतर पहुँची और अपनी दादी पानकुँवर से बोली.... कछु बात हो गई ती,ऐई से जल्दी आने पड़ो, ऐसी का बात हो गई,तनिक हमें भी बता दो,पानकुँवर बोली।। नौटंकी में कछु लफंगा घुस आएं ते,ऐई से रामखिलावन भइया ने हमें जल्दी भेज दओ,कस्तूरी ने झूठ बोलते हुए कहा... तब तो रामखिलावन ने बड़ी सूझबूझ दिखाई जो तुम्हें भेज दओ,पानकुँवर बोली... हाँ!और हम ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(६)

जुझार सिंह को सामने देखकर कस्तूरी के होश उड़ गए,वो अपनेआप को छुड़ाने की कोशिश करने लगी... लेकिन वो को छुड़ाने में असफल रही,जुझार सिंह ने कस्तूरी के हाथ पैर बँधे रहने दिए लेकिन उसके मुँह की पट्टी खोल दी फिर उससे बोला..... अपनी मर्जी से हमारी हो जा,वरना तुझ जैसी नचिनियों पर कैसें काबू पाना है वो हमें अच्छी तरह से आता है? तू कुछ भी कर लें,लेकिन तू जो चाहता है मैं कभी नहीं करूँगी,कस्तूरी चीखी।। ज्यादा चीख मत,तेरी जैसी लड़कियांँ रोज हमारे बिस्तर पर पड़ीं रहतीं हैं,जुझार सिंह बोला.... लेकिन मैं उन जैसी बाजारू औरत नहीं ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(७)

इधर श्यामा डकैत जुझार सिंह को मारने की योजना बनाती रही और उधर जुझार सिंह अपने परिवार के साथ कलकत्ता के लिए रवाना हो गया... ये बात जब श्यामा को पता चली तो उसका खून खौल उठा,लेकिन उसने सोचा कोई बात नहीं,कभी ना कभी तो जुझार सिंह पकड़ में आएगा ही क्योंकि उसकी सारी जमीन जायदाद तो अभी यहीं पर है,इधर कस्तूरी अपने जीवन से निराश हो चुकी थी और उसने आत्महत्या करने की कोशिश की,लेकिन ऐन मौके पर श्यामा की माँ ने उसे बचा लिया,अब कस्तूरी के मन में जीने की आस खतम हो चुकी थी और वो ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(८)

जब मोरमुकुट ने रामखिलावन को अपने अस्पताल में देखा तो उससे पूछा... रामखिलावन भइया!आप और यहाँ... तब खिलावन ने उदास मन से कहा... हाँ! कस्तूरी इसी अस्पताल में है ना! लेकिन वो यहाँ क्या कर रही है?मोरमुकुट ने पूछा.... वो तो उस रात के हादसे के बाद अपना दिमागी संतुलन खो बैठी हैं,रामखिलावन बोला... कौन सा हादसा....?मोरमुकुट ने हैरान होकर पूछा.... आपको क्या बताऊँ?मोरमुकुट बाबू कि उस पर क्या क्या बीती है?रामखिलावन बोला.... ऐसा क्या हुआ था उसके साथ?जो मुझे नहीं पता,मोरमुकुट बोला.... तब रामखिलावन बोला.... उस रात तो जैसे तैसे आप उसे जुझार सिंह के चंगुल से निकाल ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(९)

अब रामखिलावन ने माधुरी से कहा.... माधुरी !अब आगें क्या करना है?कोई तरकीब सूझ रही है.... ना!भइया!मुझे तो कुछ सूझ रहा,तुम ही कुछ सुझाओ,माधुरी बोली... अब हमें जुझार सिंह के बेटे शुभांकर को अपने जाल में फँसाना होगा,तभी काम बन सकता है,रामखिलावन बोला... वो भला कैसें?माधुरी ने पूछा... अपने नाच का जादू चलाना होगा तुम्हें उस पर,रामखिलावन बोला... तो क्या वो रीझ जाएगा मेरे नाच पर?माधुरी ने पूछा... मुझे ये सब नहीं कहना चाहिए,क्योंकि तुम मेरी छोटी बहन हो लेकिन क्या करूँ मजबूरी में कहना पड़ रहा है ,रामखिलावन बोला... क्या कहना पड़ रहा है मजबूरी में?माधुरी ने पूछा... ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(१०)

अब दुर्गेश अपने बाऊजी और माधुरी के व्यवहार से खींझ पड़ा और माधुरी से बोला.... बुआ!तुम इतने दाँत क्यों रही हो आखिर बात क्या है? तब माधुरी बोली..... तूने बहुत बड़ा काम किया है आज,हम कबसे शुभांकर का पता लगाने की कोशिश कर रहे थे,लेकिन आज तू शुभांकर को हमारे सामने ही ले आया.... लेकिन तुम लोंग शुभांकर को क्यों ढूढ़ रहे थें,दुर्गेश ने पूछा.... बहुत लम्बी कहानी है,फिर कभी सुनना,अभी यहाँ से चलते हैं,मोटर भी तो ठीक करवानी है ना!माधुरी बोली... हाँ!नहीं तो वो नकचढ़ी फिर से चिल्लाएगी,दुर्गेश बोला... इधर अरिन्दम चटोपाध्याय को भी कुछ समझ नहीं आ ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(११)

माधुरी ने शुभांकर के कमरें में किसी महिला की तस्वीर देखी तो उसने उससे पूछा.... शुभांकर बाबू!ये कौन हैं? शुभांकर बोला... ये मेरी माँ की तस्वीर है,इनका नाम कनकलता था,लेकिन अब ये इस दुनिया में नहीं हैं... ओह....बड़ा दुःख हुआ ये जानकर,मैं समझ सकती हूँ आपके मन की पीड़ा क्योंकि मेरी भी तो माँ नहीं है,माधुरी बोली.... तो क्या आप भी मेरी तरह माँ की ममता से महरूम हैं?शुभांकर ने पूछा... जी!मेरे तो पिता भी नहीं हैं,माधुरी बोली... ओह...चलिए छोड़िए ये सब बातें,कुछ और बातें करते हैं,वैसें आपको नाचने के अलावा और किस किस चीज का शौक है?शुभांकर ने ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(१२)

माधुरी भीतर चली गई तो शुभांकर भी वापस अपने घर लौट गया,उधर माधुरी होटल पहुँची तो सब उसके अगल डेरा डालकर बैठ गए कि शुभांकर के घर में क्या क्या हुआ? सबसे पहले तो माल्ती ने पूछा.... "माधुरी बिन्नो!कछु बात आगें बढ़ी" "हाँ!भाभी! ऐसा लगता है कि शुभांकर पर मेरा जादू चल गया है,",माधुरी बोलीं... "शाबास!माधुरी! मैं जानता था कि तुम ये काम कर लोगी,",रामखिलावन बोला... " और वो दिखा तुम्हें",माल्ती ने अपनी आँखें बड़ी करके पूछा... "कौन? वो जुझार सिंह",माधुरी बोली... "हाँ! वही पापी",मालती भाभी बोली... "हाँ! भाभी !वो भी दिखा था,पहले मैं उसे देखकर गुस्से में गई ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(१३)

श्यामा कुछ ही देर में उस गाँव पहुँच गई और वो खेत ढूढ़ने लगी जहाँ उसका होने वाला पति की रखवाली करता था लेकिन वो उसका खेत ढूढ़ पाती कि इससे पहले ही वहाँ एक सियार आ पहुँचा और वो श्यामा पर झपट पड़ा,सियार श्यामा पर झपटा तो उसके हाथ से लालटेन छूटकर दूर जा गिरी और फिर वो जोर से चीखी,वो खुद को उससे बचाने की कोशिश कर ही रही थी कि किसी ने अपनी दोनाली बन्दूक से हवाई फायर किया और बन्दूक की आवाज़ से वो सियार वहाँ से भाग खड़ा हुआ,फिर फायर करने वाला व्यक्ति श्यामा ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(१४)

श्यामा अब अपनी माँ के घर में रहने लगी तो पास पड़ोस वाले उसके बारें में तरह तरह की करने लगे,कहने लगे कि " अभागन है जाने कहाँ की,देखो तो बेचारी के पूरे परिवार का नाश हो गया" तो वहीं कुछ औरतें कहती... " अभागन काहें की ,मनहूस और अपशगुनी है पूरे परिवार को लीलकर अब देखो राड़ बनकर अपनी माँ की छाती पर बैठी है,बाप को तो खा गई अब लगता है कि माँ को भी लीलकर दम लेगी..." बेचारी सुखिया, श्यामा की माँ लोगों के बातें सुनकर खून का घूँट पीकर रह जाती,आखिर वो लोगों से कहती ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(१५)

फिर श्यामा अपने ससुराल पहुँची,उसके वहाँ पहुँचने तक सबेरा हो चुका था,इसलिए वो बिना डरे गाँव के बाहर जंगलों छुपी रही,वहाँ दिन भर पोखरों और तालाबों का पानी पीती रही और पेड़ो पर जो फल उसे खाने लायक मिल गए तो उन्हें खाकर अपना पेट भरती और साँझ होते ही जब अँधेरा गहराने लगा तो उसे थोड़ा डर लगा लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और जंगली जानवरों के डर से एक पेड़ पर चढ़कर बैठ गई और जब रात हुई तो वो गाँव के भीतर पहुँची और उस घर के पास पहुँची जहाँ उसके दुश्मन रहते थे, जिन्होंने उसके ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(१६)

सभी डाकू इधर उधर छुपने की जगह बनाने लगें ,कोई पेड़ की ओट में छुप गया तो कोई मंदिर पीछे छुप गया तो कोई वहाँ के खेतों में घुस गया और तभी पुलिस वहाँ आ पहुँची,पुलिस की जीप मंदिर के अहाते में खड़ी हो गई और फिर एक हवलदार ने लाउडस्पीकर निकालकर एनाउंसमेंट किया... "सभी सरेंडर कर दो,तुम्हें पुलिस कोई नुकसान नहीं पहुँचाएगी और अगर सरेंडर नहीं किया तो सभी को गोलियों से भून डाला जाएगा" लेकिन पुलिस के एनाउंसमेंट करने से कोई भी डाकू बाहर ना निकला तो फिर पुलिस ने भी अपना काम शुरू कर दिया और ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(१७)

भवानी सिंह श्यामा को अपनी बेटी की तरह मानता था,उसने उसे कई बार समझाने की कोशिश की कि ये तुम्हारे लिए नहीं बना है,तुम वापस अपने घर लौट जाओ लेकिन श्यामा नहीं मानी और वो उन सभी डाकुओं के साथ वहीं रहने लगी,कुछ साल यूँ ही बीते और भवानी सिंह पुलिस मुठभेड़ में मारा गया,तब सभी डाकुओं ने फैसला किया कि अब से डकैतों की मुखिया श्यामा होगी और फिर क्या था श्यामा डकैतों की मुखिया बनकर चम्बल पर राज करने लगी,वो गरीब असहाय और अबला औरतों की सहायता करती , जो उन सभी पर जुल्म करता तो उन्हें ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(१८)

दो तीन दिनों में ही सभी ने इस योजना के बारें में विचार कर लिया और ये भी सोच कि कब क्या करना है और फिर पता लगाया गया कि जुझार सिंह का आँफिस कहाँ है और उसके साथ कौन कौन काम करता है,इन सबके बीच ये भी पता चला कि जुझार सिंह ने अपनी पर्सनल जवान सेक्रेटरी को अपने चंगुल में ले रखा है,जिसका नाम वीना है और उसके साथ वो कभी कभी घूमने भी जाता है,ये सुनकर रामखिलावन बोला.... "कुछ शरम लिहाज नहीं बचा है जुझार सिंह के,घर में जवान बच्चे हैं लेकिन अभी बुढ़ऊ का रसियापन ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(१९)

खुराना साहब जब वापस सबके पास लौटे तो सभी जुझार सिंह का जवाब सुनने के लिए उत्सुक थे,फिर खुराना सबसे बोले.... "वो तो मालकिन से मिलना चाहता है,अब तो मालती को मेरी मालकिन बनकर जाना ही पड़ेगा" "तो मुझे कब जाना है जुझार सिंह के पास आपकी मालकिन बनकर"?,मालती ने पूछा.... "उसने दो चार दिनों की मोहलत माँगी है,उसने कहा है कि दो चार दिन के बाद मैं उसे फोन करूँ तब वो मुझे अपना फैसला सुनाएगा",खुराना साहब बोले... "तो फिर तब तक क्या करें"?,माधुरी ने पूछा... "तब तक मालती को मालकिन बनने के तरीके सिखाओ,उसे सिखाओ की किसी ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(२०)

जब सभी का मनपसंद खाना आ गया तो सभी खाने लगें,रुपतारा रायजादा बनी मालती ने खूब मसालों वाला खाना किया था,जैसें की भरवाँ शिमला मिर्च,मिर्च के पकौड़े,चटपटी दाल और तीखी चटनी,जो वो आराम से खा भी रही थी,उसका खाना देखकर जुझार सिंह खूबचन्द निगम बने खुराना साहब से बोला.... "ये उम्र और ऐसा खाना,इन्हें हज़म कैसें हो जाता है?", तब रुपतारा रायजादा बनी मालती बोली... "क्या कहा,मुझे सुनाई नहीं दिया" तब खूबचन्द निगम साहब रुपतारा रायजादा से बोलें.... "मालकिन! ये फरमा रहें हैं कि इस उम्र में आप ऐसा मसालेदार खाना कैसें खा लेतीं हैं"?, "नामुराद! नज़र लगाता है ...और पढ़े

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एक थी नचनिया--भाग(२१)

इधर माधुरी का जादू पूरी तरह से शुभांकर पर चढ़ने लगा था,वो माधुरी से सच में मौहब्बत करने लगा और ये बात माधुरी को मन ही मन खटक रही थी कि शुभांकर उसे सच्चे मन से चाहता है और वो उसके साथ केवल उसके पिता से बदला लेने के लिए झूठे प्यार का नाटक कर रही थी,लेकिन माधुरी आखिर कर भी क्या सकती थी,जुझार सिंह ने अपने अतीत में जो कुकर्म किए थे अब उन सब कुकर्मों के हिसाब चुकाने का वक्त आ गया था,इसलिए माधुरी भावनाओं में ना बहकर अपने दिमाग से काम ले रही थी..... उधर रामखिलावन ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(२२)

जब मोरमुकुट सिंह उनकी मदद के लिए तैयार हो गया तो रामखिलावन बोला... "तो डाक्टर बाबू! आप भी हमारे चल रहे हैं ना!", "मेरा अभी आपलोगों के साथ जाना जरा मुश्किल है भइया!",मोरमुकुट सिंह बोला... "वो क्यों भला"?,रामखिलावन ने पूछा... "वो इसलिए कि अभी मुझे छुट्टी की दरख्वास्त देनी होगी और कस्तूरी को भी तो समझाना पड़ेगा कि मेरे यहाँ से जाने के बाद वो समय पर दवा लें,ठीक से खाएं पिए और किसी को परेशान ना करें",मोरमुकुट सिंह बोला... "तो फिर आप कब तक पहुँचेगें कलकत्ता"?,रामखिलावन ने मोरमुकुट सिंह से पूछा... "जी! आप लोग पहुँचे ,बस आप लोगों ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(२३)

डाक्टर मोरमुकुट सिंह टैक्सी से उस होटल पहुँचे जहाँ सभी रह रहे थे,उनके वहाँ पहुँचते ही सभी के चेहरों मुस्कान खिल उठी,उनके वहाँ पहुँचते ही पहले उन्हें नहाकर आराम करने को कहा गया,जब वें आराम करके जागे तो तब तक रात के खाने का वक्त हो चुका था,इसलिए पहले सभी ने साथ बैठकर रात्रि का भोजन किया और उसके बाद सभी अगली योजना को लेकर बात करने बैठे,पहले माधुरी बोली.... "डाक्टर भइया! आप हम सभी का साथ देने यहाँ आए,इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया", "इसमें शुक्रिया की कोई बात नहीं माधुरी! मैं कस्तूरी के लिए इतना तो कर ही ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(२४)

और उसे झटका सा लगा लेकिन फिर भी वो अपनी बेइज्जती को दरकिनार करते हुए विचित्रवीर से बोला..... "आपको गलतफहमी हुई है रायजादा साहब!मैं ही जुझार सिंह हूँ", "ओह....माँफ कीजिए,आप शक्ल से जमींदार मालूम नहीं होते,लेकिन फिर भी कोई बात नहीं,अब आपको दादी माँ ने सिनेमाहॉल के प्रोजेक्ट में साँझेदार बना ही लिया है तो फिर मैं क्या कर सकता हूँ",विचित्रवीर बना मोरमुकुट बोला.... "ये कैसीं बातें कर रहा है तू! जब मैं तुझसे इतने सालों से कह रही थीं कि विलायत से वापस आकर अपने दादाजी की ख्वाहिश पूरी कर जा,तब तो तू नहीं आया उस कलमुँही गोरी ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(२५)

फिर जुझार सिंह की बात से सबका मन खट्टा हो गया फिर वें सभी रेस्तराँ में थोड़ी देर रुककर आ गए और जुझार सिंह से ये कहकर आए कि वें आपस में सलाह मशविरा करके बताऐगें कि आपके साथ कौन जाएगा,इसके बाद जब वें होटल लौटे और सबसे बताया कि जुझार सिंह रुपतारा रायजादा या विचित्रवीर रायजादा में से किसी एक को अपने साथ ले जाने की बात कह रहा है..... तब रामखिलावन बोला.... "इसमें इतना घबराने की कौन सी बात है,डाक्टर बाबू तो वैसे भी उसी इलाके के हैं,उनके लिए तो ये आसान हो गया,वें वहाँ जाकर अपने ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(२६)

जुझार सिंह अपने गाँव पहुँच गया और इधर रामखिलावन,मालती,दुर्गेश और माधुरी भी अपने इलाके पहुँचें,वें अपने गाँव नहीं गए, सभी नहीं चाहते थे कि जुझार सिंह को उनके बारें में कुछ भी पता चले क्योंकि जुझार सिंह रामखिलावन को तो पहचानता ही था ,वें लोग वहाँ पहुँचे जहाँ खुराना साहब का थियेटर था और वें लोग खुराना साहब के बंगले में बने सर्वेंट क्वार्टर में ही रहते थे, वापस लौटने से पहले माधुरी शुभांकर को बताकर आई थी कि वो कलकत्ता छोड़कर जा रही है,वो तो कुछ ही दिनों के लिए कलकत्ता आई थी,थियेटर में काम करने के लिए,तब ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(२७)

तब डाक्टर मोरमुकुट ने कस्तूरी से कहा..... "कस्तूरी! मैं जिनका इलाज करने कलकत्ता गया था ना तो उनका नाम जुझार सिंह है,मैंने उस समय तुम्हें उनके बारें में बताते हुए उनका नाम लिया होगा इसलिए शायद तुम्हें ये नाम सुना सुना सा लग रहा है" "हाँ! तब ऐसा ही होगा",कस्तूरी बोली... "मुझे थोड़ा काम है तो मैं अब जाऊँ",डाक्टर मोरमुकुट सिंह ने कस्तूरी से पूछा... "हाँ! डाक्टर बाबू! अब तुम जाकर अपना करो",कस्तूरी बोली... "ठीक है तो मैं जाता हूँ, तुमने दवा खा ली है तो अब तुम भी आराम करना और अपनी हरी चूनर और चूड़ियों को सम्भालकर ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(२८)

महिला हवलदार वहाँ पहुँची तो उसने श्यामा और रागिनी की गुत्थमगुत्थी सुलझाने की कोशिश की,लेकिन दोनों ही बेकाबू होकर बैलों की तरह लड़ रही थीं,इसलिए महिला हवलदार ने दोनों पर डण्डे बरसाने शुरू कर दिए,तब जाकर दोनों ने एकदूसरे को छोड़ा और जाते जाते रागिनी परिहार ने श्यामा को धमकी देते हुए कहा.... "याद रखना तूने रागिनी परिहार से पंग लिया है और इसका हिसाब तुझे एक ना एक दिन चुकाना ही होगा" "अरे...जा..जा,बहुत देखें हैं तेरे जैसे,जो करना है सो कर लेना",श्यामा बोली... "अरे! अब तुम दोनों चुप होती हो या मैं तुम दोनों को और डण्डे लगाऊँ",महिला ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(२९)

जब श्यामा रागिनी को अपनी कहानी सुना चुकी तो फिर श्यामा ने कहा.... "मेरी कहानी तो तुमने सुन ली,लेकिन कहानी भी तो सुनाओ कि आखिर तुम्हें डकैत बनने की जरूरत क्यों पड़ गई"? तब रागिनी बोली.... "मेरी कहानी सुनकर क्या करोगी श्यामा बहन! कुछ दर्द ऐसे होते हैं जो खुद तक सीमित रखने में ही भलाई होती है,अगर उन्हें बाँटने का सोचो तो दर्द बढ़ जाता है और फिर इतनी पीड़ा होती है कि सहन करना मुश्किल हो जाता है" "लेकिन रागिनी! मैं अब तुम्हारे लिए गैर तो नहीं,मुझसे अपना दुख बाँटने में भी क्या तुम्हारी पीड़ा नहीं जाएगी", ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(३०)

जब हम सबने हवाई फायर सुना तो दंग रह गए और सबको अन्देशा हो गया था कि डकैत गाँव आ चुके हैं और ये शादी का घर है तो शायद यहीं चोरी करने आएँ हैं और तभी काँधे पर बंदूक टाँगें,काले कुरते,सफेद धोती में,कमर में गोलियों की बेल्ट लगाएँ,सिर पर बड़ा साफा और माथे पर लाल तिलक लगाएँ हुए एक डाकू ने हमारे घर के आँगन में प्रवेश किया,जिसे देखकर सब भौचक्के रह गए और उसने कहा.... "कहाँ गए गजेन्द्र परिहार! कौन से बिल में घुसा बैठा है?", गजेन्द्र परिहार मतलब वो मेरे बाबूजी को पुकार रहा था,लेकिन उस ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(३१)

अब रागिनी और श्यामा अच्छी सहेलियाँ बन गए थे और रागिनी को अब श्यामा के बारें में सब पता और वो भी श्यामा की मदद करने के लिए तैयार हो गई थी,श्यामा ने बताया कि वो जेल से भागना चाहती है लेकिन अभी नहीं दो चार महीनों के बाद क्योंकि उसका दुश्मन जुझार सिंह कलकत्ता से आ गया है और अब वो उससे अपना बदला लेगी,लेकिन उसे पहले ये भरोसा हो जाएँ कि उसे अब वहाँ किसी डाकू से कोई खतरा नहीं है और जब उसे पूरी तरह यकीन हो जाएगा,तब हम दोनों जेल से भागेंगे, और उसी दौरान ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(३२)

और उन्होंने इस विषय पर डाक्टर मोरमुकुट सिंह से सलाह मशविरा किया तो वे बोले.... "उपाय तो अच्छा है एक खतरा है इसमें," "वो भला क्या",माधुरी ने पूछा.... "वो ये कि कभी किसी अखबार के किसी इश्तिहार में जुझार सिंह ने रागिनी की तस्वीर देख ली हो तो वो तब इन्हें फौरन ही पहचान लेगा"डाक्टर मोरमुकुट सिंह बोले.... "हम रागिनी को गाँव की लड़कियों की तरह तैयार करेगे,इसलिए वो कभी भी इसे पहचान ही नहीं पाएगा,उस पर से ज्यादातर ये घूँघट में रहेगी तो पहचानने का सवाल ही नहीं उठता"माधुरी बोली... "तब ठीक है,मुझे कोई दिक्कत नहीं",मोरमुकुट सिंह बोला.... ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(३३)

और उधर जेल में रागिनी के भागने के बाद जेलर साहब एकदम सुस्त पड़ गए थे,उन्होंने ना तो रागिनी भागने पर अखबार में कोई इश्तिहार छपवाया और ना ही उसकी खोज में पुलिस वालों को भेजा,वे कहीं ना कहीं खुद को रागिनी का गुनाहगार समझते थे,उन्हें पता था कि अगर उनके पिता रागिनी से उनकी शादी ना तोड़ते तो नौबत यहाँ तक ना आती,शायद रागिनी डकैत ना बनती और उन्हें रागिनी के सामने इस तरह से शर्मिन्दा ना होना पड़ता.... और उन्होंने इस मसले पर एक दिन श्यामा को बात करने के लिए अपने पास बुलाया,चूँकि श्यामा भी जेल ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(३४)

श्यामा के साथी उससे बोले कि सरदार कोई भी हो लेकिन अब भी वो उनकी टोली की डकैत है उनके साथ ही बीहड़ो में रहकर उन सभी का मार्गदर्शन करे क्योंकि उसका तजुर्बा उन लोगों से कहीं ज्यादा है,इसलिए श्यामा ने अभी बीहड़ में रहने का फैसला किया,वैसे भी अभी उसे रामखिलावन ने ऐसा कोई भी संदेश नहीं दिया था,शायद अभी जुझार सिंह को खतम करने का वक्त नहीं आया था,लेकिन तब भी श्यामा ने अपने साथी डकैत को रामखिलावन के पास स्थिति का जायजा लेने के लिए भेजा और रामखिलावन ने श्यामा के साथी से कहा कि श्यामा ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(३५)

और अब इस विषय में डाक्टर मोरमुकुट सिंह से बात की गई तो वे बोले.... "क्या शुभांकर के मन माधुरी के प्रति गलतफहमी पैदा करना ठीक रहेगा? अगर उसने इस बात को दिल से लगा लिया तो फिर तो उसका बुरा हाल हो जाएगा", "यही तो हम सब चाहते हैं कि शुभांकर का बुरा हाल हो तब तो उस जुझार सिंह की अकल ठिकाने आऐगी,उसे भी तो पता चले कि अपनों को जब कष्ट पहुँचता है तो कैसा लगता है",रामखिलावन बोला..... "हाँ! जिस तरह से जुझार सिंह ने कस्तूरी जीजी को दर्द दिया है उसी तरह का दर्द उसे ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(३६)

इधर जुझार सिंह ने शुभांकर को कलकत्ता से बुलवा लिया और खुद वो कलकत्ता चला गया,क्योंकि कलकत्ते का कारोबार तो देखने वाला कोई ना कोई चाहिए था,अभी शुभांकर को आए दो ही दिन हुए थे,वो वैसे भी कलकत्ता छोड़कर यहाँ आना चाहता था क्योंकि उसे माधुरी से मिलने का बहाना चाहिए था और योजना के तहत शुभांकर को एक दिन माधुरी ने थियेटर बुलवा भेजा,शुभांकर वहाँ पहुँचा तो उसने वहाँ मौजूद लोगों से माधुरी के बारें में पूछा तो लोगों ने कहा कि माधुरी जी शायद मेकअप रुप में होगीं,वो वहाँ अपना मेकअप करवा रहीं होगीं,शुभांकर खुशी खुशी मेकअप ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(३७)

जैसे ही विचित्रवीर ने जुझार सिंह का हाथ पकड़ा तो जुझार सिंह गुस्से से लाल पीला होकर विचित्रवीर से "आपकी इतनी जुर्रत कि आप दो टके की लड़की के लिए मेरा हाथ पकड़ते हैं" "हाँ! पकड़ा मैंने आपका हाथ,लेकिन ये तो बताइए कि इनका कूसूर क्या है?", विचित्रवीर बने मोरमुकुट सिंह ने पूछा... "इसने बहुत बड़ा गुनाह किया है,इस लड़की की वजह से मेरे बेटे की जिन्दगी बर्बाद हो गई है,इसका फरेब वो बरदाश्त ना कर सका और अब वो धीरे धीरे मौत के मुँह में जा रहा है,मेरे बेटे की बरबादी का कारण यही लड़की है",जुझार सिंह बोला... ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(३८)

कस्तूरी को देखकर जुझार सिंह को एक ही पल में सब समझ आ गया कि हो ना हो,मोरमुकुट और मुझसे बदला लेना चाह रहे हैं,लेकिन ये समझ नहीं आया कि मोरमुकुट सिंह इस कस्तूरी का क्या लगता है,वो इसी उधेडबुन में लगा हुआ था और तब तक कस्तूरी भी वहाँ से जा चुकी थी,तभी ललिता नर्स ने देखा कि वो बूढ़ा अभी तक वहाँ खड़ा हुआ है और उसने उसके पास जाकर पूछा.... "आप! अभी तक गए नहीं,लगता है आपका इरादा बदल गया" "नहीं! मैं बस जा ही रहा था कि तभी मैंने उस लड़की को देखा ,क्या वो ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - भाग(३९)

इधर ये सब रामखिलावन और मोरमुकुट सिंह ने नहीं सोचा था कि जुझार सिंह ऐसा कुछ करेगा,इसलिए ऐसी बात सभी के दिमाग़ में नहीं आई और तीसरी रात को ही पानकुँवर कस्तूरी को अस्पताल के बगीचे में घुमाने ले आई और रुमाल में कुछ ऐसी दवा डालकर उसे सुँघा दी जिससे कि कस्तूरी बेहोश हो गई , बगीचे में ही जुझार सिंह के दो गुण्डे छुपे हुए बैठे थे और मौका देखकर वे गुण्डे कस्तूरी को एक बोरे में डालकर अस्पताल से बाहर ले गए ,साथ साथ पानकुँवर भी उनके साथ अस्पताल से बाहर चली गई और उधर खण्डहर ...और पढ़े

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एक थी नचनिया - (अन्तिम भाग)

कुछ ही देर में मोरमुकुट सिंह उस अँधेरी रात में खण्डहर मिल में पहुँच गया,उसकी मोटर कार अब उस जगह पर मिल के सामने खड़ी थी,उस मिल में से कुछ रोशनी आ रही थी,ऐसा लग रहा था कि जैसे जुझार सिंह अपने गुण्डों के साथ मोरमुकुट सिंह का इन्तज़ार कर रहा था,वे चारो कार से उतरे और उन्होंने सबसे आगे शुभांकर को किया,जिसके हाथ बँधे थे और मुँह पर भी पट्टी बँधी थी और फिर मोरमुकुट सिंह ने शुभांकर की गर्दन पर चाकू भी रखा,ये उन लोगों की योजना थी,वे धीर धीरे आगे बढ़ने लगे,तभी जुझार सिंह अपने दो ...और पढ़े

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