हांटेड एक्सप्रेस

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पालमपुर, हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा जिले का एक छोटा सा रेलवे स्टेशन। दिसम्बर की इस सर्द रात में ढेड़ बजे मेरे लिए पूरी तरह अनजान था यह स्टेशन और फिर ऊपर से कड़कड़ाने वाली ठंड के साथ काले घने अंधेरे के साथ लिपटा वह घनघोर कोहरा। जिस ट्रेन से मैं यहां आया था उसको गुजरे दो घण्टे बीत चुके थे,तब से न तो कोई यात्री गाड़ी यहाँ से गुजरी थी,और न ही मालवाहक ट्रेन। टीनशेड़ के नीचे बने उस छोटे से प्लेटफार्म के चारो ओर से खुले हुए वेटिंग रूम में कम्बल ओढ़ कर दुबका हुआ मैं सुबह होने का इंतजार कर रहा था...क्योकि इस स्टेशन पर उतरने के बाद अपने गंतव्य स्थल पर जाने के लिए इस वक्त तो कोई वाहन मिलने की उम्मीद थी नही। अब तो स्टेशन पर खुली हुई एकमात्र चाय नाश्ते की दुकान पर भी ताला लग चुका था, शायद दूसरी कोई ट्रेन इस स्टेशन से हाल फिलहाल गुजरने वाली नही थी।

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हांटेड एक्सप्रेस - (भाग 01)

पालमपुर, हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा जिले का एक छोटा सा रेलवे स्टेशन। दिसम्बर की इस सर्द रात में ढेड़ मेरे लिए पूरी तरह अनजान था यह स्टेशन और फिर ऊपर से कड़कड़ाने वाली ठंड के साथ काले घने अंधेरे के साथ लिपटा वह घनघोर कोहरा। जिस ट्रेन से मैं यहां आया था उसको गुजरे दो घण्टे बीत चुके थे,तब से न तो कोई यात्री गाड़ी यहाँ से गुजरी थी,और न ही मालवाहक ट्रेन। टीनशेड़ के नीचे बने उस छोटे से प्लेटफार्म के चारो ओर से खुले हुए वेटिंग रूम में कम्बल ओढ़ कर दुबका हुआ मैं सुबह होने का ...और पढ़े

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हांटेड एक्सप्रेस - (भाग 02)

घड़ी पर नजर डाली तो अभी भी रात के ढाई बजे थे, इस सुनसान से स्टेशन पर रात का मन को विचलित करने लगा था। आगे क्या करूँ?, यह सोच ही रहा था कि अचानक अपने कंधे पर पीछे से किसी हाथ का स्पर्श महसूस करके मैं बुरी तरह चौंक गया। पलट कर पीछे देखा तो एक सूट बूट पहने सज्जन से इंसान को खड़ा देख कर जान में जान आई, सामान्य कद काठी,सांवले रंग वाले लगभग 50 वर्ष की उम्र वाले उन महोदय का पहनावा एवं हुलिया कुछ अजीब सा था। उसने काला कोट एवं पेंट पहना हुआ,पैरो ...और पढ़े

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हांटेड एक्सप्रेस - (भाग 03)

मुझे मेरे घरेलू नाम से सम्बोधित करने के बाद वह टीसी उस डिब्बे से उतर कर जा चुके थे...शायद की यात्रा वह इंजन में अपने सहकर्मियों के साथ बैठ कर ही करने वाले थे...मैं हतप्रभ था....मन किया कि उसके पीछे जाकर अपनी शंका का समाधान कर आऊँ,पर तब तक मुझे महसूस हुआ कि ट्रेन आगे बढ़ चली है। तभी मैंने गौर किया कि कुछ देर पहले सामने बैठे जिस वृद्ध व्यक्ति से मैंने कुछ पूंछना चाहा था,वह तब से अभी तक लगातार मुझे घूर रहा है....उसकी नजरें लगातार मेरी ओर ही है,यह बात मुझे कुछ अजीब सी लगी.....मैंने डिब्बे ...और पढ़े

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हांटेड एक्सप्रेस - (भाग 04)

मेरे ठीक बगल में वही अधेड़ महिला बैठी हुई थी,जो कुछ देर पहले विंडो सीट पर मौजूद थी......वह महिला सुबक कर रोते हुए अपने आंसुओ को साड़ी के आँचल से पोंछ रही थी...... मेरी स्थिति काटो तो खून नही वाली थी....क्योंकि इतना सब कुछ होने के बाद इतना तो मेरी समझ में आ ही चुका था कि यहां मौजूद प्रत्येक शख्स सामान्य इंसान न होकर एक छलावा है......और अब, जब वह मेरे ठीक बगल में आ बैठी थी तो ऐसे में मेरी घिग्घी बढ़ जाना लाजिमी था। पर कहते है न कि कोई भी डर एक सीमा तक होता ...और पढ़े

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हांटेड एक्सप्रेस - (भाग 05)

जान बचाकर आखिर कौन नही भागना चाहता.....मैं कुछ देर पहले मौत के जिस मायाजाल से बच कर निकला था,आखिर दोबारा उस के आसपास भी जाने का दुस्साहस करूंगा?......पर जब मैं ट्रेन में बैठ कर वापस जाने का फैसला कर चुका था,तो ऐसा लगा जैसे कोई अदृश्य शक्ति मुझे जाने से रोक रही हो......वो अदृश्य शक्ति मेरे द्वारा दादा जी के अंतिम समय में दिया हुआ वचन था या फिर कुछ और.....पर जो कुछ भी था उसने मेरे मस्तिष्क को झकझोर कर मुझे ट्रेन से उतार ही लिया था....... 'क्या दादाजी को यहाँ मौजूद खतरों के बारे में पता था? ...और पढ़े

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हांटेड एक्सप्रेस - (भाग 06)

मैं और मालती सूर्योदय के कमरे की ओर भागे....सूर्योदय फर्श पर बैठा हुआ था....उसके हावभाव देख कर हम दोनों सन्न रह गए.....सूर्योदय की आंखे खुली हुई थी,और वह बुत सा बना हुआ खिड़की की ओर निहार रहा था.....उसकी खुली आँखों से लगातार आंसू बहे जा रहे थे.....उसका चेहरे पर भय का समंदर छाया हुआ था....ऐसा लग रहा था कि मानो अभी अभी उसने कोई डरावनी भयंकर चीज देखी हो...जिसके सदमें से वह एकदम पत्थर हो गया हो......सूर्योदय को मैंने गोद मे उठा कर सामान्य करने की बहुत कोशिश की पर वह कुछ बताने की स्थिति में ही नही था, ...और पढ़े

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हांटेड एक्सप्रेस - (भाग 07)

उस दिन सारी रात धनीराम के विकृत शरीर और रास्ते में उस साये का दिखना मेरी आँखों के सामने छाया रहा, फिर जब सुबह हुई तो सबसे पहले मैंने सूर्योदय को अपने पास बुलाया,और उस से रात की उस घटना के बारे में पूंछा,जिसे देखकर वह इतना डर गया था.....सूर्योदय ने बताया कि वह लैम्प की रोशनी में अपने मिट्टी के खिलौनों के साथ खेल रहा था,तभी पास में रखे हुए कपड़े के एक पुतले में हरकत हुई....वह पुतला जोर से हिलने के बाद हवा में उड़ता हुआ बिना किसी सहायता के ही ऊंचाई पर लटकने लगा और उसकी ...और पढ़े

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हांटेड एक्सप्रेस - (भाग 08)

'मां' को तो वैसे भी भगवान का दर्जा प्राप्त है,और जब आज अंतिम समय मे माँ ने मेरे प्राणो रक्षा की तो ऐसा लगा कि साक्षात भगवान ने ही आकर हमारी जान बचा ली हो...पर आखिर माँ ने ऐसा किया कैसे.....जब मैंने उनसे यह पूंछा तो उन्होंने बताया कि उनका परिवार पीढ़ियों से धार्मिक एवं तांत्रिक क्रियाकलापों से जुड़ा रहा है, उनके पिता जी अर्थात मेरे नाना वाराणसी के एक प्रसिद्ध धर्मशास्त्री रहे है, उनके पास तन्त्र,मन्त्र,साधना के ज्ञान का अपार भंडार था.....वाराणसी तन्त्र मन्त्र से भरपूर तमाम अद्भुत एवं रहस्यमयी शक्तियों का केंद्र माना जाता है, भारत का ...और पढ़े

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हांटेड एक्सप्रेस - (भाग 09)

 अगले दिन मैं एक लंबे सफर के बाद देर रात तक काशी पहुंच चुका था, काशी रेलवे स्टेशन विश्राम गृह में कुछ घण्टो की नींद लेने के बाद सुबह तड़के सबसे पहले काशी के प्रसिद्ध अस्सी घाट पर स्नान करने के बाद सीधा स्वामी बटुकनाथ जी के आश्रम पहुंचा, चूंकि उनका नाम काशी की प्रख्यात हस्तियों में शामिल था इसलिए आश्रम तक पहुंचने में कठिनाई नही हुई......आश्रम में पहुंचते ही एक अलग किस्म की धनात्मक ऊर्जा ने मन को प्रफुल्लित कर दिया था.....स्वामी जी कितने पहुंचे हुए संत है,इस बात का अहसास आश्रम में उमड़ी हुई भीड़ को ...और पढ़े

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हांटेड एक्सप्रेस - (भाग 10)

यह संकट बहुत बड़ा था,स्थिति की गम्भीरता को स्वामी जी भांप चुके थे....उन्होंने मुझे महाभारत काल की पवित्र भस्म भरा हुआ एक अभिमन्त्रित ताबीज़ दिया...वह भस्म उस लाक्षागृह से प्राप्त हूई थी,जिसमें पांडवो ने एक लंबा समय बिताया था.....पांडवो के तपोबल की शक्ति के कारण उस भवन के कण कण में विद्यमान पवित्रता उसके जलने के बाद भी नष्ट नही हुई थी .....साथ ही स्वामी बटुकनाथ जी ने शीघ्र ही स्वयं भी देवगढ़ आने का आश्वासन देकर मुझे काशी से विदा किया। अब देवगढ़ जाते वक्त मेरे पास उस शैतान अर्थात वैट वुल्फा के इतिहास से जुड़े सारे राज ...और पढ़े

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