रामायण और महाभारत के काल से शुरू करें तो हमारे पास अमर, सम्रद्ध साहित्य है। हमारा जीवन कहीं न कहीं इन्हीं दोनों महाकाव्यों से जुड़ा है। या यूँ कहें कि जीवन में इन दोनों से अलग कोई कथा हो सकती है क्या? इन दोनों ग्रन्थों ने जीवन के हर रंग को समेटा है। शायद ही जीवन की कोई मिठास या कड़वाहट हो जो इनमें समाने से छूट गई हो। ‘पहले कदम का उजाला’ एक नारी के अपने आप को ऊपर उठाने की दास्तां है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए पहला कदम उठाने के लिए उजाले अपने अंदर ही जगाने पड़ते हैं। उसके लिए बाहर कोई उजाला नहीं मिल सकता है। या यूँ कहें कि बाहर के अंधेरों से लड़ने के लिए पहला उजाला भीतर ही लाना पड़ता है। वक़्त जीवन के कईं रंगों को दिखाता है। सीता हो या गांधारी सबने जीवन में अनन्त उतार चढ़ाव देखे। वक़्त ने सबको अपनी आँच पर तपाया है। वक्त निर्विकार भाव से सिर्फ़ हमारे मन की शक्ति को देखता है।

Full Novel

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पहले कदम का उजाला - 1

पहले कदम का उजाला रामायण और महाभारत के काल से शुरू करें तो हमारे पास अमर, सम्रद्ध साहित्य है। जीवन कहीं न कहीं इन्हीं दोनों महाकाव्यों से जुड़ा है। या यूँ कहें कि जीवन में इन दोनों से अलग कोई कथा हो सकती है क्या? इन दोनों ग्रन्थों ने जीवन के हर रंग को समेटा है। शायद ही जीवन की कोई मिठास या कड़वाहट हो जो इनमें समाने से छूट गई हो। ‘पहले कदम का उजाला’ एक नारी के अपने आप को ऊपर उठाने की दास्तां है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए पहला कदम उठाने के लिए उजाले ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 2

जिंदगी की असलियत*** माइक से पीछे की तरफ़ मुड़ी तो पति ख़ड़े दिख गए। कमल, एक बहुत ग़ुस्से वाला जो अपनी पत्नी से कभी प्रेम से बात कर ही नहीं पाया। जिसे मुझसे बात करते ही ग़ुस्सा आने लगता है। ये भी नसीब ही है कि पति-पत्नी के ग्रह कैसे मिलते हैं! हमारे ग्रह कभी शांति ला ही नहीं सके। एक बार सासू माँ ने बहू की कमी क्या निकाली वह दिन इस श्रवण कुमार के लिये काफ़ी था। उस दिन से आजतक मैं इनके लायक़ बन ही नहीं पाई। आज जो शब्द मुँह से निकले हैं उनका लावा ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 3

हमारा घर*** एक तीन कमरों वाला किराए का छोटा सा घर। जिसमें एक ड्राइंगरूम, अंदर का कमरा वह हमारा और आखिरी वाला छोटा सा किचन है। बाहर का कमरा सासु माँ का कमरा भी है। जिसमें टी.वी. रखा है।, जो लगभग पूरे दिन चलता रहता है। कैसा और क्या प्रोग्राम आ रहे हैं इससे उन्हें कोई मतलब नहीं! रोली की पढ़ाई, बचपन में उसकी नींद ख़राब हो या कोई और परेशानी हो, टीवी/TV को अपने पूरे शोर के साथ ही चलना है। ये मां - बेटे दोनों अपना पूरा ख़ाली समय वहीं बिताते हैं। वहीं टीवी/TV के सामने खाना ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 4

मेरा बचपन *** हम तीन भाई – बहनों में बड़ा भाई, जो दादा – दादी का लाडला था। जिसे हमेशा गोदी में लिए घूमती थी। उससे बचपन में दादा – दादी से बहुत प्यार मिला। छोटे वाले को नानी के घर में छुटकू की तरह बहुत प्यार मिलता था। बचपन में जब मैं दोनों जगह जाती तो ऐसा लगता था कि मैं अपनी जगह नहीं बना पा रही हूं। दादी के घर में दादा – दादी के साथ मुझे लगता था मुझे वह प्यार नहीं मिल रहा है जो मेरे बड़े भाई को मिलता है। साथ ही बुआ और ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 5

मैं, रोली की नजर से*** रोली, मेरे जीवन की सबसे बड़ी ताकत है। उसने यह शब्द कई बार मुझसे हैं। कभी छू कर तो कभी बोलकर उसने मेरा मन सुख और शांति से भर दिया है। वह कुछ ऐसा ही कहती आई है... ‘जबसे याद करूँ माँ मुझे तुम्हारी ही छवि दिखाई देती है। स्कूल के लिए तैयार करती, बस तक छोड़ने आती, पेरेंट्स टीचर मीट में अधिकतर अकेली आती, मुझे होमवर्क करवाती, मेरी पसन्द का खाना बनाती, मुझे सस्ता पर अच्छा सामान दिलवाती और भी न जाने कितने काम करती। इन सब कामों को तो आप बड़े आराम ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 6

रोली की बीमारी*** जब रोली बारह साल की थी तब एक बार उसे बुख़ार आया। तब अंकल-आंटी विदेश यात्रा गये हुए थे। मेरे पति ने दो-तीन दिन तक तो मेडिकल वाले से ही दवाई ला कर दी थी। रोली को बहुत तेज़ बुख़ार आता था, जो पानी की पट्टी रखने से भी नहीं उतरता था। अपने बच्चे के लिए कोई पिता कितना लापरवाह हो सकता है। यह देखकर जी करता जोर -जोर से चीख़ कर सबको बताऊँ कि एक पिता या दादी अपने बच्चे के प्रति कितने लापरवाह हैं। ऐसा तो हम अनजान के साथ भी नहीं कर सकते ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 7

देव… एक डॉक्टर देव, अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान है। पिता आर्मी ऑफ़िसर हैं। माँ भी एक डॉक्टर है। दो महीने पहले उसके पिता को अचानक लकवा हो गया था। देव जो आर्मी जॉइन करना चाहता था। पिता के पास रुक गया और अब सरकारी अस्पताल में काम कर रहा है। उसके माता-पिता ने उसे बहुत कहा था। अपनी नौकरी पर वो चला जाये पर वो नहीं गया। माता-पिता से इतना प्रेम करने वाले बच्चों को देखकर खुशी होती है। रोली और मेरे पति भी इसी श्रेणी में आते हैं। फ़र्क तो बस इतना ही है कि हम अपने ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 8

लम्बी बीमारी… घर आकर एक बार फिर रोली को बहुत तेज बुख़ार आया। पूरी रात उसको सहलाते हुए बीती। तीन दिनों तक मैं एक ही दुआ कर रही थी कि रोली का ये बुख़ार कोई बड़ा रूप नहीं ले ले। सब कुछ ठीक रहे। डॉक्टर देव को जिसका अंदेशा था वही हुआ… टी. बी.! मैं रोली को लेकर सीधी अस्पताल भागी। एक लंबा इलाज मेरे हाथ में था। अभी छः महीने बाद में आगे बढ़ाना है या नहीं ये देखा जाएगा। सरकारी अस्पतालों में टी.बी. का इलाज मुफ़्त में दिया जाता है। बाहर से कुछ नहीं लेना पड़ता है। ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 9

देव… जीवन भी बड़ा अजीब है। शरीर का विज्ञान पढ़ने वाले को मन की भाषा की कितनी समझ हो उसकी सवेंदना पर निर्भर करता है। देव को माता-पिता का भरपूर प्यार मिला। एक अनुशासित जीवन ने उन्हें वो सब दिया जो एक बच्चे की ज़रुरत होती है। पढ़ाई, सफलता सब बड़े आराम से मिलती रही। जीवन में कभी कोई रोड़ा आया ही नहीं। अचानक उनके पापा को लकवा हो गया और उन्होंने सेना की पोस्टिंग छोड़ दी। अपने पापा की इस हालत को देखकर उनका मन बदल गया। वह सोचने लगे – ‘ मैं पापा की सेवा कब कर ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 10

मेरा दिल*** रोली की बीमारी, डॉक्टर देव से मिलना इन सबमें इतनी उलझ गए थी कि मन कुछ अजीब सपने देखने लगा था। बालू के घर, पानी पर लकीर, क्यों सुकून देती हैं? हवा के महल, ताश के घर, क्यों अच्छे लगते हैं? जिंदगी के रास्ते, ज़रूरतों के वास्ते, बहुत तपाते हैं। जो सुन न सके, वो गीतों में, जो देख न सके, वो चित्रों में, जो मिल न सके, वो ख्यालों में, जो चल न सके, साथ-साथ राहों में, उनके बगैर जीते हैं। वो हरदम ख्यालों में रहते हैं। दुआओं के धागे, धड़कनों के आगे, हम साँस तो ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 11

स्वाद टिफिन सेंटर*** दो टिफ़िन से शुरू हुआ मेरा काम धीरे-धीरे बढ़ता गया। काम बढ़ने के साथ घर में आया तो बहुत सारी बुराइयों पर ताले लग गए। मैंने भी हर दिन एक नया सबक सीखा। कोई ग्राहक पैसा समय से दे जाता है। कोई बाद में दे देता पर शांति से सब निबट जाता है। किसी की पैसा देने कि नियत ही न हो तो वो खाने में कमी निकालेगा या कुछ भी ऐसा करेगा जिससे पैसे कम हो जाये या देने ही न पड़े। हर हाल में सब कुछ मुझे ही सम्हालना पड़ता था। मेरी परेशानी मेरे ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 12

एक धन्यवाद*** मुझे आज घर वालों की चिंता बहुत थोथी लग रही थी। उनसे बात करने का मन भी था। अचानक मन बदल गया। सबको माफ़ कर देने का दिल ने कहा। सबके लिए धन्यवाद का भाव आने लगा। सफलता के उजाले कितने अंधेरों को दूर कर सकते है, इसका अहसास आज हुआ। मुझे अपनी माँ, सास सब बहुत अच्छी लगने लगी। उन सबने जो किया वो या तो उनकी बंधी सोच का नतीजा था या फिर उनके दर्द का दोहराव! आज मेरी माँ अपनी अमीर बहू के कारण घर में बेहिसाब अकेलापन, आर्थिक तंगी सह रही है। उनकी ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 13

वो चार दिन*** अगली सुबह सोचा था, कोई नया ही हंगामा देखने को मिलेगा! जिंदगी कब क्या दिखा दे पता ही नहीं? सुबह आँख खुली अभी घर के काम की शुरूआत ही हुई थी। कल जो मैं सारे उपहार मैं छोड़ आई थी वह लेकर कंपनी वाले आ गये। वो आंखें, जिनसे मुझे एक नई कड़वाहट की उम्मीद थी, वो अब सामान के साथ व्यस्त हो गईं। उपहारों से लगभग आधा कमरा भर गया था। जिसमें कपड़े, माइक्रोवेव, न जाने कितनी चीजें पड़ी थीं। मेरी सास और पति वह सब देखने में व्यस्त हो गये। मुझसे बिना पूछे यह ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 14

सफलता के बाद*** मैंने घर में रखे उपहारों में से एक सुंदर सी साड़ी उठाई और मन्दिर गई। ईश्वर आज कुछ न कह पाई। वो तो सब जानते हैं। अब उनसे मैं क्या कहती? प्रभु, मोती कैसा चाहते हो? सागर से लाऊँ या आंखों से दे जाऊँ? दोनों ही तुम्हारे हैं! एक दर्द में, एक गहराई में, एक हम सब के लिए अनमोल, एक का किसी के लिए कुछ मोल! दुनिया को बनाने वाले, मुझे और सीप को रचने वाले, तुम क्या देने पर पिघलते हो? यह तो सब जानते हैं! तुम को पाने के लिए सीपियों को ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 15

माँ....(रोली की नजर से) नाना-नानी के साथ बाहर निकलते हुए मन बहुत ख़ुश था। हम माँ को एयरपोर्ट से बाहर निकल रहे थे। मन अभी भी उसी के पास था। माँ की आँखों का डर, जैसे कोई बच्चा अपनी माँ से अलग हो रहा हो। माँ मुझे कहती भी थी ‘रोली, तू तो मेरी माँ है! उसका मासूम चेहरा याद करके आँखों में आँसू आ गए। एक औरत अपनी ज़िंदगी में कितना दर्द सहती है? उसके बाद भी उसके पास कुछ पल सम्मान के, अपनी ख़ुशी के हों यह ज़रूरी नहीं। थोड़ी देर बाद माँ का फोन आया “रोली, ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 16

पहली यात्रा*** एयरपोर्ट में अंदर जाते ही कुछ पूछते, कुछ पढ़ते हुए मैं अपनी एयर सर्विस के विंडो तक ही गई। मैंने अपना बोर्डिंग पास लिया। “क्या मैं खिड़की वाली सीट लेना चाहूँगी?” इस सवाल का मैंने खुशी से जवाब दिया –“जी जरूर!” रोली से बात करके आगे बढ़ ही रही थी कि डॉ. देव दिख गये। एक आश्चर्य मिश्रित खुशी…! आज वक़्त ने वो दिखा जो मेरे मन में कहीं दबा पड़ा था। जिसके लिए मेरी धड़कन तेज़ हो जाती थी। मेरा मन कुछ माँगने लगता था। उसे देखकर बात करूं या नहीं यह सोच ही रही थी ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 17

लद्दाख*** पहले चट्टानों के विविध रंगों से सजे पर्वत दिख रहे थे। फ़िर बर्फ के पहाड़… अब इस नैसर्गिक का कैसे बखान करूँ? बर्फ के पर्वत तो ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने इन पर आइसिंग शूगर लगा कर इन्हें सजा दिया हो। अब तो शहर के मकान, मोनेस्ट्रिस और संगम दिखाई दे रहे थे। इतनी ऊपर से नदी एक महीन लकीर जैसी ही दिख रही थी। जिसका रंग हरे काँच जैसा था। उस बालू की जमीन पर वह ऐसी लग रही थी जैसे किसी ने हाथ से एक सुंदर घुमाव दे कर उस जमीन पर नदी बना ...और पढ़े

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पहले कदम का उजाला - 18 - अंतिम भाग

मैं अपने ख्यालों में खोई ख़ुद से बातें कर रही थी। मेरे सामने दो युवतियाँ आईं। मुझसे मुस्कुराकर ‘हैलो’ मैंने भी जवाब में ‘हैलो’ कहा। उन्होंने मुझे बताया कि वो मेरे ही होटल में ठहरी हुई हैं। मेरे पास वाले कमरे में। वो दोनों वियतनाम से यहाँ आईं हैं। कल का उनका घूमने का प्रोग्राम उन्होंने मुझे बताया। साथ ही यदि मैं चाहूँ तो उनके साथ घूमने जा सकती हूँ। हम तीनों ने मिलकर कल के लिए टैक्सी बुक की। लौटते समय हम तीनों साथ थे। भाषा के थोड़े से सहारे से भी रिश्ते बन जाते हैं। जिनमें कम ...और पढ़े

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