(यह उपन्यास एक शिक्षिका की डायरी के पन्ने हैं।एक शिक्षिका की डायरी से भी प्याज की तरह गठीले शिक्षा तंत्र की कई परतें खुल सकती हैं और यह पता चल सकता है कि एक स्त्री का मर्दों के क्षेत्र में उतरना सहज नहीं है। )ज़िन्दगी का ये कैसा दौर है !ऐसा लगता है जैसे मैं किसी धुंध में खड़ी हूँ,जहां से कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा।ऐसा लगता है जैसे मैं फिर से उसी मोड़ पर आ खड़ी हुई हूँ ,जिसके चारों तरफ रास्ते ही रास्ते हैं,पर उनमें से कोई मुझे मेरी मंजिल तक नहीं ले जाएगा।पच्चीस वर्ष पहले मैं

Full Novel

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मार खा रोई नहीं - (भाग एक)

(यह उपन्यास एक शिक्षिका की डायरी के पन्ने हैं।एक शिक्षिका की डायरी से भी प्याज की तरह गठीले शिक्षा की कई परतें खुल सकती हैं और यह पता चल सकता है कि एक स्त्री का मर्दों के क्षेत्र में उतरना सहज नहीं है। )ज़िन्दगी का ये कैसा दौर है !ऐसा लगता है जैसे मैं किसी धुंध में खड़ी हूँ,जहां से कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा।ऐसा लगता है जैसे मैं फिर से उसी मोड़ पर आ खड़ी हुई हूँ ,जिसके चारों तरफ रास्ते ही रास्ते हैं,पर उनमें से कोई मुझे मेरी मंजिल तक नहीं ले जाएगा।पच्चीस वर्ष पहले मैं ...और पढ़े

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मार खा रोई नहीं - (भाग दो)

एक तरफ़ कोविड 19 का कहर था।प्रतिदिन किसी न किसी प्रिय व्यक्ति के मरने की खबर आ रही थी,दूसरी नौकरी चली जाने का खतरा सिर पर मंडरा रहा था।स्कूल में मार्च से नया सेशन शुरू होने ही वाला था कि अचानक लॉकडाउन की ख़बर आई।स्कूल बंद हो गया,फिर ऑनलाइन क्लास का प्रस्ताव पास हुआ।ऑनलाइन क्लास लेना पुरानी विधि से शिक्षितों के लिए उतना आसान नहीं था।हमारे समय में कम्प्यूटर नहीं पढ़ाया जाता था और न ही हम तकनीकी ज्ञान से सम्पन्न थे।ऑनलाइन पढ़ाने के लिए महँगे फोन और लैपटॉप की भी जरूरत थी।उस पर नए -नए ऐप की अपनी उलझनें।नई ...और पढ़े

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मार खा रोई नहीं - (भाग तीन)

आखिर मेरी आशंका सच निकली। आर्थिक मंदी के कारण 50 प्लस वालों को नौकरी से रिटायर करने के सरकारी का पालन सरकारी महकमों में अभी शुरू होने वाला था।उसके पहले ही इसे प्राइवेट स्कूलों ने लागू कर दिया ।वैसे भी वहाँ सत्र के बीच में या कभी भी कोई दोष लगाकर अध्यापक को निकाला जा सकता है। स्कूल के 15 वर्षों के कार्यकाल में मुझ पर कोई आरोप नहीं लगा था।अपने विषय हिंदी में मैंने डॉक्टरेट किया था।बच्चे ,अभिभावक और स्कूल मैनेजमेंट भी मेरे उत्तम शिक्षण पद्धति के कायल थे।सांस्कृतिक कार्यक्रम कराने में मेरी मुख्य भूमिका होती थी।सैकड़ों सुपरहिट ...और पढ़े

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मार खा रोई नहीं - (भाग चार)

मैं अब स्कूल पर अधिकार नहीं जता सकती थी क्योंकि हाईस्कूल के प्रमाणपत्र में माता- पिता की असावधानी से जो जन्मतिथि दर्ज थी,और जिसे ठीक कराने की कोशिश भी नहीं की गई ,के अनुसार मैं पचास पार कर गयी थी।कई वर्ष उम्र से ज्यादा दर्ज थे,पर स्कूल तो कागज़ देख रहा था।स्कूल में कई टीचर्स ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी उम्र कम करके लिखाई थी।वे बूढ़े दिखते थे और बीमार रहते थे,पर उन्हें रिटायर नहीं किया जा सकता था।यह कोई सरकारी संस्था भी नहीं थी कि बर्थ-सार्टिफिकेट की वैधता की जांच कराए। मैं रिक्वेस्ट ही कर सकती थी इसलिए मैंने ...और पढ़े

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मार खा रोई नहीं - (भाग पाँच)

खाली हाथ आई थी इस दुनिया में ले जा रही स्मृतियाँ को साथ मैं मेरे चेहरे पर आहत की रेखाएँ प्रकट हुईं, पर मैंने खुद को दबाए रखा ।जब उन्होंने मन में मेरी एक छवि बना ही ली तो मैं उसे मिटा तो नहीं सकती थी।वैसे भी मैं उनके अधिनस्त काम करने वाली अध्यापिका थी ।प्राइवेट स्कूलों में अध्यापकों का अस्तित्व मायने ही कितना रखता है ।जब चाहे उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।न तो सरकारी वेतन न सरकारी सुविधाएं ।अधिकतम काम और वेतन कम, ऊपर से घोर अनिश्चितता की तलवार हर समय सिर पर लटकती रहती ...और पढ़े

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मार खा रोई नहीं - (भाग छह)

सोचा न था ऐसा भी दिन आएगा मेरा साया भी मुझसे जुदा हो जाएगा। सचमुच उम्र के इस पड़ाव आकर ऐसा ही लगता है।दुनिया की छोड़ो अपनी देह भी तो अपना साथ नहीं देती।कभी सिर दुखता है कभी पैर।कभी सर्दी ,कभी बुखार ।तनाव तो हमेशा बना ही रहता है।कभी नींद नहीं आती, तो कभी सूरज चढ़ने तक सोती ही रहती हूँ।कभी भी खुद को पूर्ण रूप से स्वस्थ महसूस नहीं करती।जब तक नौकरी थी ,एक नियमितता थी।कष्ट होने पर भी काम करते रहने की मजबूरी थी,पर अब तो उससे भी मुक्त हो गयी।अब नए सिरे से नौकरी ढूँढने की ...और पढ़े

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मार खा रोई नहीं - (भाग सात)

मुझे नहीं पता था कि स्कूल जैसी पवित्र जगह पर भी जाति धर्म,क्षेत्र ,लिंग,उम्र ,सोर्स-सिफारिश के आधार पर भी लिए जाते हैं।योग्यता,प्रतिभा,कार्यकुशलता पर ये चीजें भारी पड़ जाती हैं।मुझे विभिन्न स्कूलों में पढ़ाने का अनुभव है।हर स्कूल की अपनी कमियां और खूबियाँ थीं। कहाँ क्या अनुभव मिला,कभी इस पर भी प्रकाश डालूँगी। सबसे पहले इस स्कूल के बारे में बात करूंगी,जहाँ 16 वर्ष काम किया और रिटायर कर दी गयी। वैसे तो अब तक के जितने भी स्कूलों में मैं रही,उसमें यह हर दृष्टि से बेहतर यह स्कूल था।सेलरी सरकारी तो नहीं पर अन्य स्कूलों के मुकाबले बेहतर थी।यहां ...और पढ़े

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मार खा रोई नहीं - (भाग आठ)

प्रधानाचार्य के शांत चेहरे, हँसती हुई आँखों और आकर्षक व्यक्तित्त्व के पीछे एक कुरूप और बदसूरत शख्स था।उनके श्वेत के भीतर एक काला दिल था। उनकी संत जैसी बातों में कोई सच्चाई नहीं थी।कहने को वे संन्यासी थे,पर संन्यासियों के कोई भी लक्षण उनमें नहीं थे। वे मांस का सेवन करते थे।अपनी टीम में वे या तो इस क्षेत्र के ऊर्जा से भरे हुए सुंदर युवा / युवतियों को रखते थे या फिर अपने क्षेत्र के युवा/ युवतियों को,जो सुंदर तो नहीं होते पर उनके अपने लोग होते। उन्हें उम्रदराज लोगों से चिढ़ -सी थी।वे हर जगह और हर ...और पढ़े

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मार खा रोई नहीं - (भाग दस)

प्रधानाचार्य के असल रूप की बानगी कई बार देखने को मिली थी पर कहते हैं न कि जब तक पैर बिवाई नहीं फटती तब तक बिवाई वाले पैरों के दर्द का अहसास नहीं होता। मैं सोचती थी कि वे संन्यासी हैं और जाति, धर्म ,क्षेत्रवाद, व्यक्तिगत सम्बन्धों और हर तरह के भेदभाव से बहुत ऊपर हैं पर बार -बार वे ऐसा कुछ कर जाते कि मन खिन्न हो जाता।फिर भी मैं कभी और कहीं भी उनकी बुराई नहीं करती।हमेशा उनके सकारात्मक पक्ष का ही जिक्र करती।इतने मुग्ध भाव से उनका जिक्र करती कि इधर के सहकर्मी कभी -कभी मुझसे ...और पढ़े

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मार खा रोई नहीं - (भाग ग्यारह)

उन्होंने मुझसे पूछा ---क्या हुआ था उस दिन? मैं समझ नहीँ पाई कि वे किस संदर्भ में पूछ रहे -किस दिन? "एक सप्ताह पहले....." वे गुस्से में दिख रहे थे।गुस्से में उनकी आंखें लाल हो जाती थीं और होंठ टेढ़े ।वे दाँत पीसकर बोलने लगते थे।आवाज भी सख्त हो जाती थी।ऐसा मैंने अब तक सुना था,आज सामने देख रही थी। मैंने सहजता से बताया कि बच्चे क्लास डिस्टर्ब कर रहे थे किताब/ कॉपी भी नहीं लाए थे इसलिए मैंने उनके सरगना को एक चांटा जड़ दिया था। वे गुस्से से बोले--"किताब कॉपी नहीं लाएंगे तो मारेगा।किसने आपको ये पावर ...और पढ़े

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मार खा रोई नहीं - (भाग बारह)

उस वर्ष स्कूल का सिल्वर जुबली था।भव्य कार्यक्रम का आयोजन होना था।नृत्य,गायन और अन्य रंगारंग कार्यक्रम के साथ नाटक होना था।हमेशा की तरह नाटक कराने की जिम्मेदारी मुझ पर थी।नृत्य तो इंटरनेट की मदद से सिखा देना आसान था।गायन के लिए संगीत टीचर थे पर नाटक के लिए अकेली मैं।स्क्रिप्ट लिखने से लेकर ड्रेस डिजाइन करने,नाट्य सामग्रियाँ जुटाने,स्टेज मैनेजमेंट करने के अलावा बच्चों को अभिनय सिखाने की जिम्मेदारी मुझ पर होती थी।सहयोग के लिए जो टीचर दिए जाते उनसे सहयोग से ज्यादा अड़चन ही मिलती।नाटक कराने में मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ती थी क्योंकि परफेक्शन मेरी कमजोरी है।किसी भी ...और पढ़े

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मार खा रोई नहीं - (भाग तेरह)

स्कूल में छोटी -छोटी ऐसी कई बातें होती थीं ,जिनके निहितार्थ बड़े थे ।अक्सर आर्थिक लाभ मिलने वाला कार्य नहीं कराया जाता था।जैसे बोर्ड परीक्षाओं में मेरी ड्यूटी नहीं लगाई जाती थी और बोर्ड की उत्तर पुस्तिकाएं जांचने के लिए मुझे नहीं भेजा जाता था।इसके अलावा स्कूल के किसी भी कार्यक्रम का संचालक मुझे नहीं बनाया जाता था पर पढ़ाने के अलावा अन्य बेगार खूब लिया जाता था।मैं सब कुछ देखती- समझती थी पर चुप ही रहती थी।कुछ कहने का कोई मतलब नहीं था।हिंदी टीचर्स चयन बोर्ड में मेरा नाम था ।उसके लिए स्कूल टाइम के बाद घण्टों रूकना ...और पढ़े

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मार खा रोई नहीं - (भाग चौदह)

हर स्कूल के अपने प्लस माईनस होते हैं ।मेरे इस स्कूल के भी रहे।विशाल ,भव्य और खूबसूरत यह स्कूल अब तक के स्कूलों में सर्वोत्तम था।ज़िन्दगी के सोलह वर्ष इसमें कैसे गुज़र गए पता ही नहीं चला।इससे अलग हुए अभी एक माह भी नहीं गुजरा कि ऐसा लग रहा है कि जिन्दगी थम -सी गयी है,सरकती ही नहीं।लोग दूसरा स्कूल ज्वाइन करने की सलाह दे रहे हैं,पर मन नहीं मानता।फिर नए सिरे से नए स्कूल को झेलना कठिन लग रहा है। दूसरा कोई काम कर भी नहीं सकती।व्यापारिक बुद्धि है नहीं कि कोई व्यापार करूँ।लिखना- पढ़ना आता है।साहित्य से जुड़ी ...और पढ़े

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