जिंदगी राजनीति प्रेरित है और यह राजनीति सत्ता की राजनीति है, जो चारों तरफ व्याप्त है | परिवार हो या पास-पड़ोस | राज्य हो या समाज | प्रदेश हो या देश | गाँव हो या कस्बा| स्त्री हो या पुरूष| प्रेम हो या विवाह | अपने हों या पराएँ | रिश्ते हो या नाते | साहित्य या कला | थियेटर या फिल्म | पुरस्कार या सम्मान | नियम या कानून हर जगह एक जबर्दस्त राजनीति है | शह और मात की राजनीति, दिल की जगह दिमाग की राजनीति | जीत उसी की जो कूटनीतिज्ञ, दुनियादार, बहुरूपिया, नौटंकीबाज । सफल वही जो राजनीति की नब्ज समझ गया | वरना फ्लाप सारी संवेदना, भावना, अच्छाई, सच्चाई के बावजूद | सबसे बड़ी बात जिंदगी की राजनीति बड़ी ही सूक्ष्म होती है, दिखाई नहीं पड़ती | कुछ लोग तो जीवन के अंतिम क्षणों तक इसे नहीं समझ पाते, कुछ सब कुछ खत्म होने के बाद समझते हैं | कुछ उसी में घुल-मिल जाते हैं, कुछ झींकते -पछताते हैं पर कुछ कर नहीं पाते हैं | कुछ ऐसे भी बदनसीब हैं जो कलम उठाते हैं और फ्लाप लेखक बन जाते हैं |
Full Novel
त्रिखंडिता - 1
त्रिखंडिता भूमिका जिंदगी राजनीति प्रेरित है और यह राजनीति सत्ता की राजनीति है, जो चारों तरफ व्याप्त है | हो या पास-पड़ोस | राज्य हो या समाज | प्रदेश हो या देश | गाँव हो या कस्बा| स्त्री हो या पुरूष| प्रेम हो या विवाह | अपने हों या पराएँ | रिश्ते हो या नाते | साहित्य या कला | थियेटर या फिल्म | पुरस्कार या सम्मान | नियम या कानून हर जगह एक जबर्दस्त राजनीति है | शह और मात की राजनीति, दिल की जगह दिमाग की राजनीति | जीत उसी की जो कूटनीतिज्ञ, दुनियादार, बहुरूपिया, नौटंकीबाज । ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 2
त्रिखंडिता 2 अनामा की डायरी रमा एक अनाम अकेली स्त्री की डायरी के पन्ने पलट रही है।यह डायरी उसे पर बिकने वाली पुस्तकों के ढेर में मिली थी।शीर्षक ने प्रभावित किया तो ले लिया था।डायरी नयी थी।समय-समय पर लिखी डायरी के पन्नों से उस स्त्री के मनोभाव झांक रहे थे।डायरी पढ़ कर रमा को लगने लगा है कि यह हर अकेली स्त्री की व्यथा है, उसकी भी। 5 जनवरी कभी-कभी मेरा क्रोध चरम पर होता है। मुझे सब पर गुस्सा आता है। अपने आप पर भी ! लोगों का स्वार्थी रूप मुझे पीड़ित करता है । अपने आप को ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 3
त्रिखंडिता 3 अधूरी कहानी रमा को याद है हर्ष। जब पहली बार उसने उसे देखा था तो देखता रह था। उसके गाइड ने दोनों का परिचय कराया था। हर्ष को जब पता चला कि वह उसी के क्षेत्र की है और उसी के कॉलेज में पढ़ी है तो खुश हो गया और उसे छोड़ने उसके आवास तक आया। फिर अक्सर उससे मुलाकातें होती रहीं। वह उसके सौन्दर्य का कायल था और हमेशा कहता कि मेरे दोस्तों में आपकी भव्यता की चर्चा होती है। आप भारतीय स्त्री की सुंदरता की प्रतिमान हैं। उसे आश्चर्य होता कि अब तक तो किसी ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 4
त्रिखंडिता 4 कुछ तो है प्रभा जब भी उनके तेजस्वी, सुंदर, शांत चेहरे को देखती है, अजीब सा सुकून करती है। कॉलेज आते ही वह शीशे वाले उनके केबिन की ओर जरूर देखती है और उन्हें देखते ही ऊर्जा से भर जाती है। जिस दिन वे नहीं होते, पूरे दिन उदासी महसूस करती है। जाने क्यों हमेशा उनका चेहरा उसकी आँखों मे डोलता रहता है। जब से कॉलेज में वे प्रिंसिपल के रूप में आए हैं तभी से उसका यही हाल है। शुरू के दिनों में तो वह डर गयी थी कि क्यों वे उसे इतना याद आते हैं। ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 5
त्रिखंडिता 5 पराकर्षण अपनी बाल.सखी सीमा के दमकते चेहरे को अनामा देखती रह गयी। इतना अपूर्व रूप! सीमा पहले सुंदर दिखती थी, पर इस समय उसके चेहरे पर नवयौवन की ताजगी मधुरिमा व कमनीयता एक साथ उतर आई थी। अनामा जान गयी कि सीमा प्रेम में है। प्रेम ही स्त्री को इतना सुंदर, शांत और आभामय बना सकता है। कुछ दिनों पूर्व तक वह मुरझायी और चिड़चिड़ी-सी थी। कम उम्र में शादी फिर एक-एक कर तीन बच्चे, घर-गृहस्थी की पूरी जिम्मेदारी और ऊपर से ससुराल वालों का अत्याचार। सीमा रात-दिन खपती रहती। अनामा को बड़ी तकलीफ होती। उसकी सबसे ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 6
त्रिखंडिता 6 खूबसूरत गुनाह अनामा को ऐसा लग रहा था जैसे उसके प्राण निकल जायेंगे। जैसे वह चिता पर हुई है या फिर नरक की आग में जल रही है। इतनी जलन- इतनी तड़प- इतनी बेचैनी......उफ, रह-रहकर सीने में ऐसी तकलीफ होती जैसे वहाँ आग का गोला अटक गया हो। वह बार-बार तड़पकर रोने लगती। उसके हाथ दुआ के लिए ऊपर उठ जाते- ’हे ईश्वर, रहम कर....रहम ! मुझे इस तकलीफ से निजात दिला।’ पर दर्द था कि बढ़ता ही जा रहा था। वह सोच रही थी तो क्या यह उसके पापों का दण्ड है ? पाप ! पर ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 7
त्रिखंडिता 7 उसे परेशान देखकर तड़प उठता| उन दिनों आनंद की हरकतों से वह दुखी थी| अपने को असहाय अकेला महसूस करती थी| वह तन से ज्यादा मन का अकेलापन था, जो धीरे धीरे उसे खाने लगा था| फिर अनवर ने उसके अकेलेपन को भर दिया| आनंद के बारे में भी अनवर ने बहुत बातें बताईं थीं, पर तब उसने उसे डांट दिया था| विश्वास ही नहीं था कि प्रगतिशील विचारधारा वाले आनंद ऐसा भी कर सकते हैं पर बाद में उसे खुद सबूत मिलता गया | तब उसे लगा कि अनवर उसे आनंद के खिलाफ भड़का नहीं रहा, ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 8
त्रिखंडिता 8 छूकर मेरे मन को प्रेम का पदार्पण जीवन में कब हो जाएगा कोई नहीं जानता और यह कोई नहीं जानता कि कौन कब और किसके मन को छू लेगा। कभी-कभी बेहद साधारण दिखने वाले की कोई बात मन को भा जाती है और कभी सर्वगुण सम्पन्न भी मन से दूर रह जाता है। मीना की किस बात ने अमन का मन मोहा, पता नहीं ! जलने से बच गई उसकी सुंदर नशीली आँखों और कंचन छड़ी सी सुंदर देह ने कि जले भयानक चेहरे और अपमानजनक निरर्थक जिन्दगी ने पता नहीं। पर बहुत जल्द दोनों एक दूसरे ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 9
त्रिखंडिता 9 छह धारा के विपरीत तैरती लड़की पड़ोस की दुकान पर चाय की पत्ती लेने पहुँची रमा तब पड़ी, जब एक लड़की को दुकानदार से अपना नाम-पता पूछते सुना। उसने ध्यान से लड़की को देखा। उम्र यही कोई उन्नीस-बीस के करीब होगी। गोल, गोरा, छोटा-सा चेहरा, नाक नक्श अच्छे, थोड़े घुँघराले बाल, जो उसके गालों को छू रहे थे। कद 5’’3’ के करीब लाल सलवार काली कमीज पहने हुए थी। इसके पहले की दुकानदार उसका परिचय देता, रमा लड़की से बोली-चलो मैं उनका घर दिखाती हूँ..........। लड़की उसके साथ चल पड़ी। पूरे रास्ते वह चटर-पटर बोलती रही और ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 10
त्रिखंडिता 10 सलमा की सनक बढ़ती जा रही थी। वह दिन भर नहीं नहाती। पर रात को नहा-धोकर श्रृंगार और तमाम तरह से उसे लुभाने की कोशिश करती। आदम कद शीशे पर, दरवाजों पर वह उसकी मँहगी लिपिस्टक से ’मैडम आई लव यू’ लिख देती। वह नाराज होती तो हँस देती। उस दिन वह गहरी नींद में थी। अचानक उसे अपनी देह पर सर्प रेंगने सा आभास हुआ। सर्प रेंगता हुआ उसके स्तनों पर बैठ गया था। वह गनगना उठी। भय से उसकी घिग्घी बँध गयी। वह जाग पड़ी थी। जोर से सर्प को उठाकर अपनी छाती से अलग ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 11
त्रिखंडिता 11 अरे, इतना बड़ा षडयंत्र। अलका की इतनी कुत्सित मंशा। एक अकेली स्त्री को स्त्रियाँ भी नहीं समझतीं। खिलाफ षड़यंत्र रचती हैं। उसका सब कुछ छीन लेना चाहती हैं। अलका का उसने क्या बिगाड़ा है। उसने तो उसकी बात की लाज रखने के लिए सलमा को अपने घर में रख लिया...............और यह सलमा इसीलिए उससे प्रेम का दिखावा करती थी......उसके करीब आने की कोशिश करती थी। हे ईश्वर, यह सब क्या है ? सलमा की जगह कोई लड़का होता तो वह सावधान रहती पर लड़की होते हुए भी सलमा...............किस पर विश्वास किया जाए। उसकी अच्छाई का यह इनाम!लगता ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 12
त्रिखंडिता 12 वह रूआँसी हो गई। कितनी उम्मीद थी उसे चमन सर से......... और उन्होंने इस तरह से पल्ला लिया। उनकी पत्नी का व्यवहार तो उसके साथ सहानुभूति पूर्ण था, फिर किस कारण उन्होंने चमन सर से ऐसा कहा। क्या वह इतनी खुदगर्ज दिखती है उन्हें। शायद वह उन लोगों को ’बवाल’ लगी थी। शायद चमन सर नहीं चाहते थे कि वह शोध करे...... पर वे लगातार आश्वासन दे रहे थे कि ’दूर से मदद करना आसान रहेगा......उसे कोई भी परेशानी नहीं होगी।’ उन्होंने उस दिन शाम को उसके साथ एक पार्क की सैर की और अपने प्रेम का ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 13
त्रिखंडिता 13 वह अक्सर सोचती कि वे उसके लिए कुछ करना क्यों नहीं चाहते ! क्या इसलिए कि वह रूप से उनसे नहीं जुड़ पाई ! उन्होंने अपनी तरफ से कोशिश तो पूरी की, पर उसने उनसे स्पष्ट कर दिया था कि वह कभी किसी विवाहित पुरूष से नहीं जुड़ सकती। जाने क्यों उसकी आत्मा को यह कभी गँवारा नहीं हुआ कि वह किसी स्त्री का हक छीने। उसकी इस आदर्शवादिता ने उसका बड़ा नुकसान किया। उसकी झोली में अनगिनत सफलताएँ आसानी से गिर सकती थीं, अगर वह अपने इस हठ को छोड़ देती। उसने देखा था कि कई ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 14
त्रिखंडिता 14 कभी-कभी वह सोचती है कि क्यों किसी स्त्री की सफलता के पीछे उसका स्त्री होना कारण मान जाता है। क्यों नहीं पुरूष की सफलता के कारणों की छानबीन होती है उसे विश्वास है कि इस जाँच से ऐसे-ऐसे चमकदार चेहरे बेनकाब होंगे जिनकी सफलता उनका पुरूषार्थ माना जाता है। साहित्य-संस्कृति कला फिल्म राजनीति धर्म-दर्शन कहाँ नहीं हैं ऐसे चेहरे। और ऐसे लोग और बढ़-चढ़कर स्त्री के लिए सीमाएँ निर्धारित करते हैं। उनको देह मात्र समझते हैं। उनके बड़बोले बयानों को सुनकर कोफ्त होती है। कुछ ऐसे भी चेहरे हैं जो स्त्री-पुरूष किसी को नहीं बख्शते। दैहिक शोषण ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 15
त्रिखंडिता 15 श्यामा से आगे नहीं लिखा जाता ।हाथ में कलम लिए ही वह अतीत में खो जाती है अभी कुछ दिन पहले ही उसकी बहन गुड़िया ने बताया था कि उसका छोटा बेटा राम उसके पास आना तो चाहता है, पर पिता सम्राट ने उसे डरा रखा है कि शाप दे दूँगा।राम अभी तक यही मानता है कि श्यामा ने शैशवावस्था में ही उसे छोड़ दिया था। महज साल-डेढ़ साल की उम्र में । और उस समय सम्राट ने ही उसे संभाला। अकेले नहीं संभाल पाया तो दूसरी शादी की। अब राम पिता के एहसान तले खुद को ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 16
त्रिखंडिता 16 मामा-मामी दूसरे दिन चले गए, पर उनका किशोर बेटा राम की बीमारी को देखकर रूक गया। उसे सहानुभूति थी। पर सहानुभूति से ज्यादा आकर्षण था। वह एक सुंदर स्त्री को इस तरह बदहाल नहीं देख पा रहा था। श्यामा ने पहली बार अपनी स्त्री बुद्धि का इस्तेमाल किया। किशोर से प्रार्थना की कि उसे उसकी माँ के घर पहुँचा दे। किशोरों का मस्तिष्क बड़ा उर्वर होता है। उसने सम्राट के आने के पहले ही सारा इंतजाम कर दिया और वह दूसरे दिन माँ के घर आ गई। माँ के दरवाजे पर पहुँचते ही मारे खौफ, थकान और ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 17
त्रिखंडिता 17 उफ, ये माँ का दिल भी कैसा होता है ? अपने बच्चे उसे हमेशा छोटे, भोले और लगते हैं। हमेशा उसे लगता है कि दुनिया के लोग उसके बच्चे को ठग लेंगे। उसका वश चले तो उन्हें सदा अपने आँचल तले महफूज रखे। जबकि बड़े होते ही बच्चों को माँ का अपनी जिन्दगी में हस्तक्षेप खलने लगता है। वे उसकी ममता को नहीं समझ पाते। उसकी चिन्ता उन्हें अपनी आजादी में बाधक लगती है। अक्सर देखने में आता है कि वे अपनी माँ की नसीहत नहीं मानते, जबकि दूसरी औरतों द्वारा दी गई सलाह वे मान लेते ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 18
त्रिखंडिता 18 सम्राट सारी जिंदगी उसे, उसके हर काम और बात को, उसके सोचने और उसके हर व्यवहार को ही तो सिद्ध करता रहा है | वह बहुत स्वतंत्र है, बहुत डामिनेटिंग है, यह है, वह है | पता नहीं गलत कौन है वह या सम्राट | जो भी हो, इतने वर्षों तक गलत होने के अपराध बोध को उसने किसी न किसी स्तर पर हर दिन ही झेला है और अब उसके बेटे पिता की ही तरह उसी को गलत और अपराधी सिद्ध करने पर तुले हुए हैं और शायद सारी जिंदगी उसे ही गलत सिद्ध करते रहेंगे ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 19
त्रिखंडिता 19 मीठा बनाने व खाने के कारण पिताजी शुगर की चपेट में आ गए पर गम्भीर स्वभाव के माँ तक को अपनी तकलीफ न बता सके। वो तो माँ ने एक दिन उनकी पेशाब की जगह पर चींटियों को जमा देखकर डॉक्टर को दिखाया और इलाज शुरू करवाया, पर सब कुछ[छोटा-सा मकान व किराए की दुकान ] बेचकर उनका इलाज कैसे करवाती? बच्चे छोटे थे और आय का अन्य कोई साधन नहीं था। मकर संक्रान्ति की सुबह पिताजी का देहांत हो गया। जब उन्हें चादर में लपेट कर लोग सीढ़ियों से नीचे ला रहे थे, तो श्यामा ने ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 20
त्रिखंडिता 20 दुष्चक्र उस दिन सुबह से ही विधायक रामरतन चौधरी के घर के सामने वाली सड़क पर हंगामा हुआ था | विधायक की मृत्यु हुए अभी बमुश्किल एक सप्ताह हुए थे | सड़क पर कालोनी के लोग जमा थे | चिक-चिक हो रही थी | विधायक की तथाकथित पत्नी मालती देवी अपने पाँच बच्चों के साथ सड़क के एक किनारे खड़ी रो रही थीं | मकान के दरवाजे पर अपनी कमर पर हाथ धरे विधायक के छोटे भाई डाक्टर कामता प्रसाद खड़े थे| पता चला उन्होंने ही उन्हें घर से निकाला है | उनके अनुसार मालती देवी उनके ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 21
त्रिखंडिता 21 पर शेखर को यही तक नहीं रूकना था, पर वे पूनम पर एकदम से आक्रमण नहीं करना थे | उन्हें डर था कि इससे बात बिगड़ सकती है | बात खुलने पर वे खतरे में पड़ जाएंगे, इसलिए वे पूनम को उसकी सहमति से हासिल करना चाहते थे, ताकि वह अपनी तरफ से शिकायत करने लायक न रहे| एक दिन शेखर ने पूनम की तरफ दूसरा कदम बढ़ाया | उसको आलिंगन करते समय उसकी देह में खिले बिजली के फूलों पर आक्रमण कर दिया | उन्हें पूरी तरह अपने वश में कर लिया | बिजली के फूल ...और पढ़े
त्रिखंडिता - 22 - अंतिम भाग
त्रिखंडिता 22 'मैं आपकी पत्नी नहीं हूँ | ' -पर मैं तो मानता हूँ | 'मान लेने से कोई की पत्नी नहीं हो जाती | ' -तो इधर आओ| उन्होंने उसे बांह से पकड़ा और घर के उस कोने में ले गए, जहां छोटा सा एक मंदिर बना था | मंदिर में माँ दुर्गा की प्रतिमा थी | उन्होंने माँ के सामने थाल में रखे सिंदूर को उठाया और उसकी मांग भर दी | वह अवाक खड़ी रही, तो बोले -मैं ईश्वर को साक्षी मानकर तुम्हें अपनी पत्नी स्वीकार करता हूँ | पूनम संज्ञा शून्य थी | उसने अपनी ...और पढ़े