पागल खाना पर पाठकीय प्रतिक्रिया याने समय का एक नपुंसक विद्रोह यशवंत कोठारी राजकमल ने ज्ञान चतुर्वेदी का पागलखाना छापा है.२७१ पन्नों का ५९५रु. का उपन्यास ओन लाइन ५९५ रूपये (५३६+३०+२९)का पड़ा. १४ दिनों में डिलीवरी मिली. मेरा अनुरोध है की पाठक राजकमल का मॉल भी अमेज़न आदि से ले सस्ता व् जल्दी मिलेगा.हिंदी के प्रकाशक इन लोगो से बहुत कुछ सीख सकते है.कवर पर शेर और उसकी परछाई देख कर ही डर लगने लगा.मगर हिम्मत कर के किताब खोल डाली . नरक यात्रा से चले पागल खाना तक पहुचें .बीच के रास्तें में मरीचिका आई ,बारामासी आया और

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पुस्तक समीक्षा - 1

पागल खाना पर पाठकीय प्रतिक्रिया याने समय का एक नपुंसक विद्रोह यशवंत कोठारी राजकमल ने ज्ञान चतुर्वेदी का पागलखाना छापा है.२७१ पन्नों का ५९५रु. का उपन्यास ओन लाइन ५९५ रूपये (५३६+३०+२९)का पड़ा. १४ दिनों में डिलीवरी मिली. मेरा अनुरोध है की पाठक राजकमल का मॉल भी अमेज़न आदि से ले सस्ता व् जल्दी मिलेगा.हिंदी के प्रकाशक इन लोगो से बहुत कुछ सीख सकते है.कवर पर शेर और उसकी परछाई देख कर ही डर लगने लगा.मगर हिम्मत कर के किताब खोल डाली . नरक यात्रा से चले पागल खाना तक पहुचें .बीच के रास्तें में मरीचिका आई ,बारामासी आया और ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा - 2

समीक्षा फिक्शन (रचनात्मक लेखन) में समय लगता है -अरुंधती यशवंत कोठारी अरुंधती रॉय का दूसरा उपन्यास –मिनिस्ट्री ऑफ़अत्मोस्ट हैप्पीनेस(चरम प्रसन्नता का मंत्रालय ) आया है.इस से पहले वे मामूली चीजों का देवता लिख कर बुकर पुरस्कार जीत चुकी हैं .गोड ऑफ़ स्माल थिंग्स अंग्रेजी में ३३८ पन्नो का है लेकिन हिंदी में यह मात्र २९६ पन्नों का बना.अंग्रेजी वाला मोटे फॉण्ट में छितराए अक्षरों में था.व्यावसायिक मज़बूरी . ताज़ा उपन्यास के बारे में गार्जियन ने अरुंधती रॉय का एक साक्षात्कार व् उपन्यास के २ पाठ(चेप्टर )छापे हैं, साथ में कव्वे का एक चित्र भी. देखकर मुझे ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा - 3

समीक्षा पुस्तक :पंच काका के जेबी बच्चे /डा.नीरज दईया /व्यंग्य संग्रह /२०१७ /मूल्य २००रुप्ये,प्रष्ठ ९६ /सूर्य प्रकाशन मंदिर,बीकानेर पुस्तक;आप बस आप ही है /बुलाकी शर्मा /व्यंग्य संग्रह २०१७ /सूर्य प्रका शन मंदिर ,बीकानेर कवि-आलोचक नीरज जी इन दिनों व्यंग्य में सक्रिय है.इस पोथी में उनके ताज़ा व्यंग्य संकलित है जो उन्होंने विभिन्न पत्र पत्रिकाओं हेतु लिखे हैं.इन व्यंग्य रचनाओं के बारे में सुपरिचित व्यंग्य कार –संपादक सुशिल सिद्धार्थ ने एक लम्बा,सचित्र ब्लर्ब लिखा है जो उनके फोटो के साथ अवतरित हुआ है. संकलन में नीरज जी के चालीस व्यंग्य है, भूमिका महेश चन्द्र शर्मा ने लिखी है जो स्वयं ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा - 4

समीक्षा हम सब दीमक हैं यशवंत कोठारी पिछले दिनों मैंने कुछ व्यंग्य उपन्यास पढ़े. तेज़ गर्मी ,लू के थपेड़ो के बीच लिखना संभव नहीं था सो कूलर की ठंडी हवा में पांच व्यंग्य उपन्यास पढ़ डाले. एक दीमक सबसे बाद में पढ़ा गया,लेकिन मुझे इस से बढिया शीर्षक नहीं मिला.जो अन्य उपन्यास पढ़े गए वे हैं-शरद जोशी का –मैं मैं और केवल मैं ,सुरेश कान्त का ब से बैंक ,हरी जोशी का घुसपैठिये ,गिरीश पंकज का माफिया . इसी बीच फे स्बूक पर कवि सम्मेलनों पर एक उपन्यास अंश देखा,अधिकांश कवि सम्मेलन हास्यास्पद रस के होते हैं ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा - 5

सफल और सार्थक व्यंग्य सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार पूरन सरमा का सोलहवां व्यंग्य संकलन घर घर की राम लीला’ आया है। वे राप्टीय स्तर पर चर्चित व्यंग्यकार है। उन्होने व्यंग्य के अलावा उपन्यास एवं नाटक विधा पर भी कलम चलाई है। उनका एक उपन्यास समय का सच काफी चर्चित रहा है। पूरन सरमा व्यंग्य - लेखन के क्षेत्र में अपनी मौलिकता तथा कथात्मक रचनाओं के कारण जाने जाते है। वे साहित्य अकादमी से समाद्रत है। लगभग हर पत्र पत्रिका में उनको स्थान मिलता रहा हैं। व्यंग्य हिन्दी में आधुनिक काल में पुप्पित पल्लवित हुआ है। भारतेन्दु काल से लगाकर हरिशंकर ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा - 6

विनय कुमार सिंघल की कवितायेँ याने हंसती है मेरी कवितायेँ एक माँ की तरह यशवंत कोठारी हिंदी अंग्रेजी,गणित ,ज्योतिष,पत्रकारिता, वकालत आदि विषयों के ज्ञाता विनय कुमार सिंघल जी से फेस बुक पर मित्रता हुईं ,फिर फोन पर चर्चा ,फिर विचारो का आदान प्रदान और एक दिन उन्होंने अपने सुपुत्र के हाथो अपने ताज़ा कविता संकलन भेजे.इन कविताओं से गुजरना एक देविक अनुभव रहा.वे साहित्य से इतर क्षेत्र में काम करते हैं,मगर उनको कविता की गहरी समझ है.इन कविताओं में कला ,पर्यावरण है,पोराणिक कथाओं पर विचार है.गजलों में भी कवि ने नयी जमीन तोड़ी है. कवि का प्रथम संकलन निशिता ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा - 7

अब तक छप्पन लेखकः यशवन्त व्यास प्रकाशकः भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली मूल्यः 190 रु. पृप्ठः 252 युवा और प्रतिप्ठित यशवन्त व्यास के नये पुराने छप्पन व्यंग्यों का यह संकलन पढ़कर लगा कि व्यंग्य की सार्थकता निरन्तर प्रमाणित हो रही है। सम्पादन, पत्रकारिता, इन्टरनेट एवं साहित्य की गहरी समझ के कारण ये व्यंग्य-रचनाए अन्दर तक प्रभावित करती है। इस संग्रह से पूर्व यशवन्त व्यास की ‘जो सहमत हैं सुनें’ तथा व्यंग्य उपन्यास ‘चिन्ताधार’ भी पढ़ा था। उस पुस्तक में ‘जो सहमत है सुनें’ की भी कुछ रचनाए संकलित हैं। वास्तव में व्यंग्य की रचना प्रक्रिया के दौरान अकसर लेखक अपने ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा - 8

कवि परम्परा: तुलसी से त्रिलोचन: श्रेप्ठ परम्परा का संचार लेखक: प्रभाकर श्रोत्रिय प्रकाशक: भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली मूल्य: रु. पृप्ठ: 261 । परिप्ठ आलोचक, सम्पादक प्रभाकर श्रोत्रिय की पुस्तक ‘कवि परम्परा: तुलसी से त्रिलोचन’ में 21 कवियों पर आलोचनात्मक निबंध संकलित हैं। इस कवि परम्परा में तुलसी, कबीर, सूर, मीरां, मैथिलीशरण गुप्त, प्रसाद, निराला, पंत, महादेवी, माखनलाल चतुर्वेदी, मुक्तिबोध, अज्ञेय, नागार्जुन, शिव मंगल सिंह ‘सुमन’, शमशेर, वीरेद्र कुमार जैन, भावानी प्रसाद मिश्र, नरेश मेहता, धर्मवीर भारती, रामविलास शर्मा और त्रिलोचन शामिल हैं। इन सभी कवियों पर समय-समय पर निबंध शोध प्रबंध, आलेख, समीक्षाएं लिखी गई हैं और भविप्य में ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा - 9

मानवीय मंत्रालय लेखक: अरविन्द तिवारी प्रकाशक: विवेक पब्लिशिंग हाउस चौड़ा रास्ता जयपुर-3 177 मुल्यः एक सौ साठ रुपए ^ अरविन्द तिवारी का यह व्यंग्य-सग्रह राजस्थान साहित्य अकादमी के आर्थिक सहयोग से छपा है। इस पुस्तक में 47 व्यंग्य है, लेकिन कई रचनाओं में व्यंग्य के तीखे तेवर दिखाई देते। उदाहरण के लिए, ‘अफसर और ट्यूर’, ‘रचना मांग रही में डाल’, आदि। दूसरी तरफ कुछ रचनाएं ऐसी हैं, जो व्यंग्य के रुप में कथा के ताने-बाने के साथ चलती है। ये रचनाएं प्रभावित करती है, जैसे ‘घोटालों का स्वर्ण पदक’, ‘प्रयोग शाला में व्यंग्य’, ‘साहित्यकार का तकिया’ आदि। होली ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा - 10

वैद्य कुलगुरु काव्य वैभवम् संपादक: वैद्य देवेन्द्र प्रसाद भट्ट प्रकाशक: कीर्ति ष्शेखर भट्ट, चौड़ा रास्ता, जयपुर-3 पृप्ठ: 407 मूल्य: सात सौ पचास रुपए। वैद्य कुलगुरु श्री कृष्ण राम जी भट्ट की स्मृति में यह ग्रंथ राजस्थान संस्कृत अकादमी के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित हुआ है। ग्रंथ के सम्पादक वैद्य देवेन्द्र प्रसाद भट्ट है।जो उनके सुपुत्र है. वैद्य कृप्णराम भट्ट प्रणीत प्रमुख ग्रंथ है- कच्छावंश महाकाव्यम्, जयपुरविलासम्, मुक्लकमुक्तावती, पलाण्डुराजशतकम् तथा सिद्ध भैपजमणिमाला, जिनमें ‘सिद्ध भैपजमणिमाला’ आयुर्वेद का एक अप्रतिम ग्रंथ है। इससे आयुर्वेद के विद्यार्थी, अध्यापक, चिकित्सक लम्बे समय से लाभान्वित हो रहे है। श्रीकृप्णराम भट्ट ...और पढ़े

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संस्थानोपनिषद

देश का हर नागरिक दिल्लीमुखी है,और दुखी है दुखी आत्माएं सशरीर दिल्ली की ओर कूंच करती रहती हैं राजधानी सबसे महत्व पूर्ण इलाके में स्थित इस भवन से देश की महत्व पूर्ण सेवाओं का परिचालन होता है लेकिन यदि भूल से भी आप इस के अंदर के टॉयलेट, बाथरूम्स,में चले जायेंगे तो आप का बीमार होना व् अस्पताल जाना तय है हो सकता है आप को अस्पताल से सीधे निगम बोध घाट जाना पड़े जाना नहिं पड़ेगा क्योंकि आप स्वयम वहां तक चल कर नहीं जा पाएंगे शव वाहन ही आपको गंतव्य तक पंहुचा सकता है खैर ! इसी भवन में मंत्री, राज्य मंत्री, ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा - 11

पुस्तक समीक्षा काल योर मदर अमेरिकी फ़िल्मकार बेरीसोनेनफ़ेल्ड की आत्मकथा काल युओर मदर के नाम से हार्पर कोलिन मार्च में अमेरिका में छप कर आइ है यह पुस्तक इस मायने में विशेष है की लेखक ने बहुत संघर्ष किया है फ़िल्मी दुनिया में नाम कमाने की इच्छा रखने वाले नए लोगों यह पुस्तक ज़रूर पढ़नी। चाहिए वैसे भीभारत में आत्म कथा कौन लिखता है ओर ऐसी ईमानदारी से तो बिल्कुल भी नहीं बेरी की प्रमुख फ़िल्मों के नाम है BloodsampleRaising ऐरिज़ोनाMen in ब्लेकNetflix परधारावाहिकberi को ज़्यादा मित्र नूरोटिक बताते है साईकिक ओर नूरोटिक़ के बीच ही कहीं जिनीयस होताहैबेरी ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा - 12

प्राइड एंड प्रिजुडिसयह उपन्यास १८१३ में लिखा गया जो सबसे पहले इंगलेंड में छपा jane Austen उस जमाने कीमशहूर थीं उनके लिखे उपन्यास। आज भी क्लासिक माने जा ते हैंयह उपन्यास ऑस्टिन का सबसे ज़्यादा पढ़ा गया उपन्यास हैंलेखिका अपने उपन्यासों शीर्षक नाम पात्रों के स्वभाव को ध्यान में रख कर रखती थी यह नामभी वैसा ही हैउपन्यास की शुरुआत बेनेट परिवार से होती है जो अपने नए पड़ोसी के आने के बारे में जानने कोउत्सुक थे यह नया पड़ोसी एक पैसेवाला घमंडी था जिसका। नाम बिंग्ले था श्रीमती बेनेट केकई बेटियाँ थी वो अपनी सबसे बड़ी बेटी शादी ...और पढ़े

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प्रोस्तोर --एक नया प्रयोग

प्रोस्तोर उपन्यास एक नया प्रयोग यु हिंदी में उपन्यास लेखन की परम्परा बहुत पुराणी नहीं है,मुश्किल से सौ साल पुराणी.कम ही उपन्यास लिखे जाते हैं,फिर आजकल पढने का समय किसके पास है?कुछ बरस पहले पश्चिम में उपन्यास के मरने की घोषणा की गयी थी मगर यह भविष्यवाणी गलत सिद्ध हुई. उपन्यास नहीं मरा बल्कि ज्यादा शिद्दत से लिखा जा रहा है,पढ़ा जा रहा है. इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में तकनीक ने जीवन के सभी क्षेत्रों पर भयंकर हमला किया.तकनीक के नए नए आयाम आये ,साहित्य भी अछूता न रहा.नए नए लेखक तकनीक से लेस होकर मैदान-ए- जंग में ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा 13 - भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता

Hkkjr esa LokLF; & i=dkfjrk ‘पहला सुख निरोगी काया’ और काया को निरोग रखने लिए स्वास्थ्य के नियमों की जानकारी देने की जिम्मेदारी है स्वास्थ्य-पत्रकारिता की । पिछले लगभग 100 वर्षों से भारत में स्वास्थ्य-पत्रकारिता निरन्तर गति से अपना मार्ग तय कर रही है । रास्ते में रुकावटें आयीं, लेकिन स्वास्थ्य-पत्रकारिता का मार्ग अवरुद्ध नहीं हुआ । सच पूछा जाये तो स्वास्थ्य-पत्रकारिता हिन्दी-पत्रकारिता के विकास के साथ-साथ चल रही है । आज शायद ही कोई ऐसा पत्र-पत्रिका है जो स्वास्थ्य-संबंधी सामग्री प्रकाषित नहीं कर रही है । स्वास्थ्य-पत्रकारिता एक रचनात्मक आन्दोलन है, जिससे सभी को लाभ ...और पढ़े

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मुट्ठी भर रोशनी

मुट्ठी भर रोशनी लेखक: दीप्ति कुलश्रेप्ठ प्रकाशक: भूमिका प्रकाशन, दिल्ली पृप्ठ: 579 मूल्य: 400 रु. हिन्दी साहित्य में प्रेमपरक की बहुत अधिक रचना नहीं हुई है। सामाजिक सरोकारों को लेकर भी लेखन कम ही हुआ है। ऐसे समय में दीप्ति कुलश्रेप्ठ का उपन्यास ‘मुट्ठी भर रोशनी’ एक ताजा हवा के झौंके की तरह आया है, जो पठनीयता के साथ-साथ मन को कहीं गहरे तक कुरेदता है और हमें हमारे सामाजिक दायित्वों के प्रति जागरुक करता है। नारी मन को समझना आसान नहीं है, प्रम के लिए एक अविरल याचना रही है नारी मन में, इसी प्रेम की याचना की ...और पढ़े

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अब फाइलें नहीं रुकती

अब फाइलें नहीं रुकती लेखक: निशिकान्त प्रकाशक: सुनील साहित्य सदन, ए-101, उत्तरी घोण्डा, दिल्ली, पृप्ठ: 128 मूल्य: 40 रु. पुस्तक में निशिकान्त के छोटे-बड़े 34 व्यंग्य लेख संकलित हैं। अधिकांश लेखों का तेवर राजनीति से ओत-प्रोत है, कुछ लालफीताशाही से सम्बन्धित हैं और कुछ हल्के-फुलके लेख हैं। निशिकान्त के पास वह मुहावरा है जो व्यंग्य को धारदार हथियार बनाता है। उनमें मारक क्षमता भी है मगर शैलीगत वैशिप्ट्य का अभाव है। यदा-कदा जब वे राजनीति के दोगलेपन पर प्रहार करते हैं तो वे सफल भी होते है। जैसे- ‘‘ मुझसे अभागा नेता कौन होगा ? सिर्फ मेरा चुनाव ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा - 14

यशवंत कोठारी की पुस्तकों की समीक्षाएं दफ्तर में लंच लेखक: यश वन्त कोठारी प्रकाषक: हिन्दी बुक आसफ अली रोड, दिल्ली-2 पृप्ठ: 83 मूल्य: 60 रु. । राप्टदूत साप्ताहिक के पाठक व्यंग्यकार यषवन्त कोठारी से भलीभांति परिचित हैं। राजस्थान के जिन व्यंग्यकारों को प्रदेष के बाहर भी तीख ेलेखन के लिए जाना जाता है। जयपुर के यषवन्त कोठारी उनमें से एक नाम है। ‘कुर्सी सूत्र’, ‘हिन्दी की आखिरी किताब’, ‘यष का षिंकजा’, ‘राजधानी और राजनीति’, ‘मास्टर का मकान’, के बाद लेखक की यह ताजा व्यंग्य कृति ‘दफ्तर में लंच’ आई है। इस पुस्तक में व्यंग्य के तीखे तेवर है। ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा - 15 - मास्टर का मकान

0 0 0 पुस्तक: मास्टर का मकान लेखक: यशवन्त कोठारी प्रकाषक: रचना प्रकाशन, चांदपोल बाजार, जयपुर मूल्य: 125 रु. पृप्ठ 162 । मध्यवर्गीय सोच और उसकी सीमाओं की अभिव्यक्ति आज हिन्दी में व्यंग्य लेखन अभिभावक विहीन है। एक समय जब ष्षरद जोषी और हरिषंकर परसाई जैसे व्यंग्यकार मौजूद थे और श्रीलाल ष्षुक्ल, रवीन्द्र नाथ त्यागी, ज्ञान चतुर्वेदी जैसे व्यंग्य लेखक सक्रिय थे, तब हिन्दी में व्यंग्य की असीम संभावनाएं दिखती थीं। लेकिन जोषी और परसाई के निधन के बाद ष्षेप व्यंग्यकारों की लेखनी भी पहले मंद पड़ी और धीरे-धीरे ष्षान्त होती गयी। अभिभावकों के इस टोली के लापता ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा - 16 - यशका शिकंजा

पुस्तक: यश का शिकंजा लेखक: यश वन्त कोठारी प्रकाषक: सत्साहित्य प्रकाषन, प्रभात प्रकाशन 205 बी. चावड़ी मूल्य: 30 रु. पृप्ठ 171 । यशवंत कोठारी का तीसरा व्यंग्य संकलन आया है इस से पहले वे कुर्सी सूत्र व् हिंदी की आखरी किताब लिख कर चर्चित हो चुके हैं.उनकी रचनाएँ धर्मयुग,सारिका नव भारत टाइम्स ,माधुरी समेत सभी राष्ट्रीय पात्र पत्रिकाओं में स्थान पा चुकी है. यश का शिकंजा यश वन्त कोठारी का राजनीतिक पक्ष पर कटाक्ष करता उपन्यास है, जो कि सफेदपोष नेताओं पर तीखे और मीठे प्रहार करता हुआ फलागम की और बढ़ता है।किस तरह सरकारें बनाई और गिराई जाती ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा -17 - कुर्सी सूत्र

कुर्सी सूत्र की समीक्षा ‘कुर्सी-सूत्र’ श्री कोठारी की उन्नीस व्यंग्य रचनाओं का प्रथम संकलन है। इसके दो हैं। प्रथम खं डमें चार व्यंग्य एकांकी और द्वितीय खं डमें पन्द्रह व्यंग्य निबन्ध है। संग्रह की अनेक रचनाएं देष की प्रतिप्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाषित हो चुकी है। एकांकी खं डमें प्रथम रचना ‘एक जौर अंधा युग’ में राजनैतिक विद्रपताएं तथा ष्षेप तीन में षैक्षणिक संस्थाओं में व्याप्त विसंगतियां चित्रित की गयी हैं। द्वितीय खंड की तुलना में इम्पेक्ट की दृप्टि से यह खंड कमजोर पड़ता है। आषा है लेखक भविप्य में एकांकी रचनाओं में मंच के अनुरुप पात्रों की भापा वैदग्ध्यपूर्ण ...और पढ़े

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पुस्तक समीक्षा -18 - कुछ तो कहो गांधारी

कुछ तो कहो गांधारी -लोकेन्द्र सिंह कोट प्रकाशक-कलमकार ,जयपुर - मूल्य-१५० रु ,पृष्ठ ९४ डॉक्टर लोकेन्द्र कालेज रतलाम में काम करते हैं,वित्त मंत्रालय ,पंचायती राज विभाग भारत सरकार से पुरस्कृत है भील संस्कृति का गहरा अध्ययन किया है महिलाओं पर भी काफी लिखा है याने काफी काम किया है और लगातार कर रहे हैं ,उनका पहला उपन्यास आया है –कुछ तो कहो गांधारी नाम ये यह लगता है की यह रचना शायद पौराणिक कथानक है लेकिन ऐसा नहीं है है. लेखक ने कहा है—समाज की दो प्रमुख जीवन रेखाओं में नदी और स्त्री को रखा जाना चाहिए.लेकिन ऐसा होता ...और पढ़े

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बहेलिया

बहेलिया –मानवीयता का दस्तावेज़ यशवंत कोठारी संवाद-हीनता व संवेदन शून्यता के इस संक्रमण काल में मानवीयता की चर्चा या मानवीयता को आधार बना कर कुछ लिखना आसान काम नहीं है.रोबो व कृत्रिम बुद्धिमत्ता के कारण सब कुछ गड्ड-मड्ड हो गया है .ऐसे कलिकाल में प्रभाशंकर उपाध्याय का उपन्यास बहेलिया एक ताज़ा हवा के झोंके की तरह है जिसे महसूस किया जाना चाहिए. कहानी सौरभ नाम के एक युवा की है जो बैंक में नौकरी शुरू करता है ,उसके साथ कई प्रकार की घटनाएँ घटित होती है .बीच बीच में व्यंग्य व हास्य के छीटें भी हैं. एक यूनियन ...और पढ़े

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कोविड रामायण

कोविड रामायण –माधव जोशी –एक पाठकीय प्रतिक्रिया प्रभात प्रकाशन ,दिल्ली से सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट ,व्यंग्यकार ,समकालीन कलाकार माधव जोशी की महा मारी से पीड़ित वर्तमान भारत की राम कथा छप कर आई है.इस महामारी से पूरी दुनिया में मानवता प्रभावित हुई है .देश दुनिया इस महामारी के दुष्प्रभावों से वर्षों परेशान रहीं है और आगे भी दुःख व चिंता के क्षणों में राम कथा एक संबल के रूप में मदद को तैयार मिलेगी ,माधव जोशी का यह प्रयास स्तुत्य है. उन दिनों की करुण यादें हर एक के जेहन में है. कटु यादों को भुलाना संभव नहीं है,लेकिन उन को ...और पढ़े

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सुखना के दुःख हम सबके दुःख है

पाठकीय प्रतिक्रिया सुखना के दुःख हम सब के दुःख है . शशि कान्त सिंह का तीसरा व्यंग्य उपन्यास सुखना नाम से आया है .इस से पहले उनके दो उपन्यास प्रजातंत्र के प्रेत व दीमक आये थे ,दोने पढ़े गए और सराहे गए .उनके व्यंग्य संकलन भी आये .वे भूगोल के अध्यापक हैं. परसा नामक गाँव में ,किसान नामक प्रजाति पाई जाती थी. इस वाक्य से यह रचना शुरू होती है . यह अकेला वाक्य ही बहुत कुछ कह देता है.ग्रामीण जनजीवन ,राजनिती ,हत्या बलात्कार ,पुलिस ,प्रशासन ,नेता ,और सबसे उपर आत्म हत्या .इस ताने बने के साथ यह रचना ...और पढ़े

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मूर्धन्य साहित्य सर्जक – गागर में सागर - समीक्षा

समीक्षा मूर्धन्य साहित्य सर्जक – गागर में सागर श्री कृष्ण शर्मा की ताज़ा पुस्तक मूर्धन्य साहित्य सर्जक आई है का विमोचन महामहिम राज्यपाल महोदय ने किया. इस पुस्तक में वरिष्ठ लेखक ने प्रसिद्द साहित्यकारों के बारे में विस्तार से लिखा है जो पठनीय है. पुस्तक में बाल स्वरूप राही, उदयभानु हंस, तारा प्रकाश जोशी, गुलज़ार, कन्हैया लाल सेठिया, रामनाथ कमलाकर, नरेंद्र शर्मा कुसुम, इकराम राजस्थानी, गार्गीशरण मिश्र मराल, वीर सक्सेना, गोपालप्रसाद मुद्गल, मूलचंद्र पाठक तथा फ़राज़ हामीदी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर अनुपम आलेख है.लेखक ने इन प्रसिद्द लेखकों की पुस्तकों व व्यक्तित्व का गंभीर अनुशीलन किया है फिर ...और पढ़े

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काल के कपाल पर हस्ताक्षर –धुंधले है. -समीक्षा

पाठकीय प्रतिक्रिया यशवन्त कोठारी काल के कपाल पर हस्ताक्षर –धुंधले है. हरिशंकर परसाई की जीवनी पर राजेन्द्र चंद्रकांत राय उपन्यास आया है. पुस्तक प्रकाशक से लेना चाहता था मगर ओनलाइन खरीदी की. 663 पन्नों की किताब को पढने में काफी समय लगा. परसाई के जीवन पर उनका खुद का लिखा भी काफी पढ़ा था कांति कुमार जैन का लिखा भी पढ़ा था. लाडनूं के एक समारोह में स्व. शरद कोठारी से भी मुक्तिबोध –परसाई के बारें में बहुत कुछ सुना उन्होंने एक किताब भी दी थी. सारिका में छपा गर्दिश के दिन भी याद आया, परसाई. रचनावली अक्सर टटोल ...और पढ़े

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