"अर्धांगिनी"----- कहने को अर्धांगिनी कहा जाता है परंतु आधा हिस्सा दिया किसने, आधा हक दिया किसने, और आधा अधिकार/मान-सम्मान दिया किसने, आधा तो क्या उसे हर मोड़ पर छला जाता है, तोड़ा जाता है, मोड़ा जाता है और लज्जित किया जाता है और मौका मिलते ही पुरुष उसे सताने लगते हैं, रुलाने लगते हैं, उसकी हर भावनाओं का कत्ल करते लगते हैं| वह यह जरा सा भी नहीं सोचते कि नारी पर क्या गुजरेगी? झगड़े के बाद, घटना होने के बाद तब देखते हैं कि नारी अब उससे ज्यादा ही रूठ गई है और वह न बोलेगी
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आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा)
----- अध्याय १."अर्धांगिनी"----- कहने को अर्धांगिनी कहा जाता है परंतु आधा हिस्सा दिया किसने, आधा हक दिया और आधा अधिकार/मान-सम्मान दिया किसने, आधा तो क्या उसे हर मोड़ पर छला जाता है, तोड़ा जाता है, मोड़ा जाता है और लज्जित किया जाता है और मौका मिलते ही पुरुष उसे सताने लगते हैं, रुलाने लगते हैं, उसकी हर भावनाओं का कत्ल करते लगते हैं| वह यह जरा सा भी नहीं सोचते कि नारी पर क्या गुजरेगी? झगड़े के बाद, घटना होने के बाद तब देखते हैं कि नारी अब उससे ज्यादा ही रूठ गई है और वह न बोलेगी ...और पढ़े
आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय २
-----अध्याय २."जीवनदायिनी"----- सच्चे अर्थों में क्या है नारी? ----- "नारी को जानना है तो अपनी मां को जानिए, को समझिये, माँ के प्यार को, अहसास को, कर्मठता को , सच्चाई को,अच्छाई को, सब्र को, लगाव को, धीरज को, सहनशीलता को, खुश रहने की कला को, परिवार जोड़ने की कला को, हर माहौल में ढ़लने की कला को, हर मुसीबत को डटकर सामना करने की कला को ,ऐसी हजारों बातें हैं जिनका हमें विश्लेषण करना ही होगा, उन्हें खुद के अंदर समाना ही होगा, उन्हें मानना ही होगा, जिन्हें हमें हर समय ध्यान रखना ही होगा, तभी हम नारी के ...और पढ़े
आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ३
-----अध्याय ३. दोगलापन ----- हमेशा पूरा ज्ञान नारी को ही क्यों दिया जाता है? को पूरा ज्ञान क्यों नहीं दिया जाता? ये करो, वो करो यह सब स्त्रियों को ही बोला जाता है, आखिर क्यों? क्या वह प्राणी नहीं है? क्या उसमें जी नहीं है? क्या उसमें मन नहीं है और ये कहीं और बाहर शुरू नहीं होता यह अपने खुद के घर से ही शुरू होता है और तो और अधिकतर यह जन्म के पूर्व से ही शुरू हो जाता है, घर के अधिकतर लोग चाहते हैं कि आने वाला बच्चा लड़का हो आखिर क्यों? ------ यही ...और पढ़े
आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ४
-----अध्याय ४."कल्पनाओं के सपने |"----- सपनों की बात की जाए तो पुरुष के सपने-सपने होते हैं, वहीँ के सपने-सपने क्यों नहीं होते? नारियां ही अपने सपनों का गला क्यों घोटती है? क्या सपने नारीलिंगी और पुरुषलिंगी होते हैं, कि पुरुषों के सपने ज्यादा मायने रखते हैं और स्त्रियों के सपनों की कम कीमत होती है? लड़की के केस में यह निर्णय कौन लेगा मां-बाप लेंगे ,भाई लेगा ,पति लेगा या खुद चुनने का अधिकार मिलेगा, जिस तरह लड़कों को अपने सपने चुनने का अधिकार रहता है/मिलता है? समान तरह की आजादी, समान तरह का माहौल नारी को कब ...और पढ़े
आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ५
----- अध्याय ५. मैं पराई जो हूं ----- शादी पर लड़की की रजामंदी न लेना क्या हैं? शादी लड़की की पसंद का न करना क्या सही है? लड़के शादी के नाम पर कई-कई लड़कियों को देखते रहते हैं क्या यह सही है? लड़की को आज भी अपनी पसंद का लड़का चुनने की आजादी क्यों नहीं हैं? लड़की प्रेम कर ले तो, घर की इज्जत दांव पर लग जाती है ऐसा क्यों परिवार वाले, घर वाले ,समाज वाले मानते हैं और लड़का कर ले तो यार अब लड़के ने कर लिया तो क्या करें ऐसे विचार, ऐसी सोच क्यों है? ----- ...और पढ़े
आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ६
-----अध्याय ६."मेरा भी वजूद है |"----- पुरुष जाति, नारी जाति को कमजोर क्यों समझता है? पुरुष जाति गलतफहमी में क्यों है, कि नारियां कमजोर होती है? क्या जन्म से ही पुरुष पहलवान होता है? क्या जन्म से ही नारी कमजोर होती है? जन्म के समय चाहे वह लड़का हो या लड़की हो समान होते हैं तो फिर आखिर पुरुष अपने आप को पहलवान /ताकतवर कैसे मानने लगता है ,कैसे हो जाता है? ------ क्या एक आम नागरिक /एक आम पुरुष जो दम भरता रहता है, जो पहलवान बनता रहता है, जो मर्द बनता रहता है वो क्या मैरीकॉम ...और पढ़े
आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ७
----अध्याय ७. अंश पर ही अधिकार नहीं ----- बच्चे कितने पैदा करना है, यह भी पुरुष ही निर्णय लेता हैं क्यों? या घर वाले निर्णय लेते हैं क्यों? क्या नारी(माँ) की सहमति की जरुरत नहीं है? और आज भी अधिकतर ये चुनना आपसी सहमति से नहीं होता हैं क्यों? ----- जहां नारी-जाति का आदर-सम्मान होता है, वहां ऐसा नहीं हो सकता है जहां नारी-जाति का आदर-सम्मान नहीं होता है, वहां ऐसा ही होता है ----- जबकि दर्द नारी(माँ) को होता है, शरीर नारी का होता है, सहना नारी को पड़ता है, शरीर कमजोर नारी का होता है ...और पढ़े
आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ८
आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा)-अध्याय ८. पति का सर दर्द ,पैर दर्द ,शरीर दर्द हो तो पत्नी दबाये कुछ की इतनी आदत पड़ जाती है कि बिना दर्द के भी पत्नियों से रोज पैर दबवाते हैं क्यों की उन्हें इसमें मजा आता/आराम मिलता हैं और वही पत्नी भयंकर बीमार हो अथाह दर्द में हो तो भी, उसकी सोच के चलते/रूढ़िवादिता के चलते उसका सर भी नहीं दबाते, यह रूढ़िवादिता अहंकार, मैं ही मालिक हूँ,सोच के चलते है| ----- क्या पुरुष का दर्द दर्द होता है? क्या पत्नी का दर्द पर दर्द नहीं होता है? पुरुष चाहता हैं की उसकी ...और पढ़े
आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ९.
----अध्याय ९."जरा सी गलती माफ नहीं |"----- जरा सी बात पर पत्नी पर हाथ उठाना, गाली देना, करना कहां तक जायज है? सब्जी में मिर्च ज्यादा हो गया या नमक ज्यादा हो गया है, इस बात के लिए न जाने कितनी महिलाएं रोज पिटती है/ डांट खाती हैं? वहीँ पति के क्रोध की ज्वाला तब बढ़ जाती है, यदि पत्नी किसी रिश्तेदार से ज्यादा हंसकर बोलकर बात कर ले/या थोड़ा सा ज्यादा भी फ्रेंडली होकर बात कर ले |इसके लिए भी न जाने कितनी पत्नियां अपने पति के क्रोध को और मार-पीट को सहती हैं? ----- पीटने का ...और पढ़े
आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय १०.
-----अध्याय १०."काहे की स्वतंत्रता/नाम मात्र की स्वतंत्रता|"----- पुरुष कहीं भी घूम सकता, कभी भी घूम सकता है, कभी भी परंतु नारी नहीं घूम सकती| वह भी पुरुषों के कारण ही तो नहीं घूम सकती, क्योंकि घूरते पुरुष है, छेड़छाड़ पुरुष करते हैं और रेप भी पुरुष ही करते हैं और स्वतंत्रता नारी की खोती है, इज्जत नारी की जाती है, बदनाम नारी होती है, दोष नारी पर मढ़ा जाता है और धिक्कारी नारी जाती है क्यों? जबकि पुरुष अपना मानसिक संतुलन ठीक रखें, नारी को काम की वस्तु न समझे, नारी की आजादी का सम्मान करें, नारी को ...और पढ़े
आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ११.
-----अध्याय ११."प्रेम कहाँ?"----- प्यार में प्राय: पुरुष ही नारी को धोखा देते हैं, क्यों? बहुत से पुरुष यह कहते हैं कि शादी वह घर वालों की मर्जी से ही करेंगे, अरे भाई आप तो यह जानते हैं तो फिर प्रेम क्यों किया? धोखा देने के लिए प्रेम किया क्या? आप तो पहले से ही जानते हैं/थे कि ऐसा होगा तो आपने पूरी प्लानिंग के साथ ऐसा किया है, अब आप यह नहीं कह सकते कि आपने धोखा नहीं दिया है? ----- पुरुष का ही मन भर जाता है/ ऊब जाता है या प्यार करने वाली से शादी नहीं ...और पढ़े
आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय १२. - १३
-----अध्याय १२."अब मन नहीं |"----- जितनी भी स्त्रियों की आत्महत्याएं होती हैं, वह अधिकतर पुरुषों के उकसाने कारण ही होती हैं या उनके सताने के कारण ही होती है, स्त्री को सताया जाता है, रुलाया जाता है और इतना तड़पाया जाता है कि उसे आत्महत्या के अलावा कोई और विकल्प नजर न आता है और मायके में भी उसे तोह नजर न आती है तो पति के यहां मौत से बुरी जिंदगी जी रही होती है तो ऐसे में वह कैसे जियेगी? रोज के तानों से, रोज के वाणों से तंग आकर आत्महत्या कर लेती है क्यों कि ...और पढ़े
आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय १४.
-----अध्याय १४."शिक्षा कहाँ?"---- शिक्षा का भेदभाव आज भी बड़े स्तर पर परिवार वालों के चलते ही होता लड़कियां पढ़ नहीं पाती, उनकी सोच है कि लड़की पढ़ जाएगी तो मनमानी करेगी, अरे भाई लड़का पढ़ जाता है तो क्या मनमानी करता है? क्या लड़का मे आपका इतना कंट्रोल/नियंत्रण है कि वह मनमानी नहीं करता या लड़का मनमानी करे तो चलेगा, लड़की कर ले तो समस्या, क्यों है? यह कहां का न्याय है? यह कहां की सोच है? ये कहां की राय है? यह कहां की चाह है? लड़के के पढ़ाई में खर्च होने पर माता-पिता को न खलता, ...और पढ़े
आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) -अध्याय-15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25
-----अध्याय १५."केवल नौकरानी नहीं |"----- शादी बाद आज भी अधिकतर नारी को नौकरानी ही बनना पड़ता है ------- हर स्त्री जो बीमार होते हुए बेटा या पति के रहते हुए काम करे, बेटा या पति बीमार होने पर भी उसकी हेल्प न करें और न हेल्प करना चाहे, ऐसी सभी स्त्रियां नौकरानी से ज्यादा दर्जा नहीं रखती है |जब बीमार होने पर, हताश होने पर कोई आपकी सहायता न करें (आपका खुद का बेटा या पति तो), आप नौकरानी से ज्यादा कुछ भी नहीं, जिस घर में मां का सम्मान न हो, जिस घर में बहन का मान ...और पढ़े