मम्मटिया - 3 Dharm द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मम्मटिया - 3

मम्मटिया

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धर्मेन्द्र राजमंगल

एम्बुलेंस रणवीर सहित इन सब लोगों को गाँव में उतार चली गयी. गाँव की महिलाओं की चीख पुकार से सारा गाँव दहल उठा. लोगों ने रणवीर के अंतिम संस्कार की पूरी तैयारी कर उन्हें चिता के हवाले कर दिया.

महिलाओं ने कमला के हाथों की चूड़ियाँ तुड़वा दीं. मांग का सिन्दूर तो कब का कमला पोंछ चुकी थी. अब उसे पहले की तरह रहने की इजाजत नही थी. पति की मौत और चार पांच बच्चों का भरण पोषण भी अब कमला को ही करना था.

कमला के घर मातम पसरा था और आदिराज और शोभराज के घर खुशियों की लहर दौड़ रही थी. दोनों भाई मिलकर वही खाते में तरह तरह के खर्चे लिखे जा रहे थे जो हुए ही नही थे लेकिन उन्हें पता था कि कमला इन बातों को कभी नही जान पायेगी. रणवीर की मौत के बाद कमला का एक भाई उसके पास कुछ दिनों के लिए ठहर गया था. जिसे घर के काम से लेकर खेती तक का काम देखना था.

रणवीर के बीमार होने से लेकर मरने तक कमला पर कई लोगों का कर्जा हो चुका था लेकिन कमला के घर में एक फूटी कोडी भी ऐसी नही थी जिसे वो किसी को देकर उसका कर्जा चुका सके. दिन गुजरने के साथ कर्जदारों के तकादे भी बढ़ते जा रहे थे. कमला को कर्जा निकालने का कोई रास्ता न दिखा तो उसने जमीन बेचने की सोच डाली. उसी दिन कमला ने आदिराज को अपनी जमीन बेचने की खबर भिजवा दी.

जिस खबर का इन्तजार आदिराज और शोभराज को पल पल रहता था वो आज खुद कमला की तरफ से सुनने को मिल गयी थी. आदिराज के कदम तो जमीन पर नही पड़ते थे लेकिन कमला के घर पहुंच झूठे दिखावे से बोला, “कमला तुम मेरे पैसों की वजह से जमीन मत बेचना. तुम मेरे पैसे जब चाहो तब देना देना. मुझे कोई जल्दी नही.”

कमला में आदिराज की इस बात से कोई भाव नही जागा. बोली, “दद्दा आपके साथ साथ और लोगों के भी पैसे मुझपर बाकी हैं. इसलिए मेरे लिए अभी यही करना ठीक रहेगा. आप मेरी जमीन खरीद लीजिये. नही तो किसी और को विकबा दीजिये.”

आदिराज ने जल्दी से कहा, “देखो कमला अगर तुमने जमीन बेचने का फैसला कर ही लिया है तो मैं तुमसे मना भी नही कर सकता लेकिन अपने खानदान की जमीन अपने खानदान में ही रहे इससे अच्छी कोई बात नही हो सकती. तुम्हारी जमीन का मूल्य जो बाहर का आदमी देगा वही में देने को तैयार हूँ.” कमला ने जमीन के बारे में किसी से कोई बात नही की थी. बोली, “दद्दा मैं ये सब क्या जानूँ? आप अपने हिसाब से देख लीजिये. आप कुछ बुरा थोड़े ही करेंगे मेरे साथ.”

आदिराज का दिल कमला की इस बात से काँप गया था. सामने एक विधवा औरत बैठी हुई उस पर इतना भरोसा कर रही थी और वो था कि चाल पर चाल खेले जा रहा था. जबकि कमला के पति का आधा हत्यारा भी वो खुद था.

लेकिन दुष्ट अपनी दुष्टता इतनी आसानी से नही छोड़ता. आदिराज ने अपना दिल कडा किया और दिखावे से बोला, “ठीक है बहू. मैं तुम्हें जायज कीमत ही दे दूंगा लेकिन ये जमीन तुझे कब बेचनी है?”

कमला विना रुके बोली, “मैं तो तैयार हूँ. बस अब जो भी देरी है वो आपकी तरफ से होगी. आप चाहें तो कल ही में जमीन लिखने को तैयार हूँ.” आदिराज भी इस काम में देर नही चाहता था. बोला, “ठीक है बहू. तू कल तहसील चलने के लिए तैयार रहना. मैं कल ही तुझे पूरा पैसा दे दूंगा और जमीन भी कल ही लिख जाएगी. आज कल जमीन की कीमत तुम्हारे खेत के पास आठ हजार रूपये बीघे की है तो मैं तुम्हें यही कीमत दे सकूंगा लेकिन तुम्हें कितनी जमीन बेचनी है?”

कमला ने थोडा सोचा और बोली, “दद्दा मैं अभी सिर्फ पांच बीघे ही बेचूंगी. बाकी थोड़ी सी जमीन मेरे बच्चों के लिए भी रहनी चाहिए. मैं तो दुःख के दिन काट जाउंगी लेकिन बच्चे कहाँ भटके फिरेंगे?” आदिराज वैसे तो सारी जमीन लिखवाना चाहता था जो कुल मिलाकर सोलह बीघे होती थी.

लेकिन कमला के बच्चो की तरफ देख आदिराज का निर्दयी दिल भी ये सब कहने की हिम्मत न कर सका. परन्तु पांच बीघे भी आदिराज की उम्मीद से बहुत ज्यादा थी. शायद रणवीर की मौत न होती तो ये पांच बीघे जमीन भी नही मिलनी थी.

आदिराज का दिल ख़ुशी से भरा हुआ था लेकिन इस ख़ुशी को छुपा बोला, “ठीक है बहू. कल तुम्हें पांच बीघे के पैसे मिल जायेंगे.” इतना कह आदिराज कमला के घर से चला गया. कमला वही बैठी बैठी सिसक पड़ी.

कमला का वश चलता तो जिन्दगी भर अपनी जमीन को बेचने की सोचती भी नही. जिस जमीन में किसान की आत्मा बसी होती होती है उसको बेचने का दुःख भी वही जानता है. जिस जमीन में अपने सगे लोगों की चिताएं दफन होती है उसे किसी के लिए भी बेचना इतना आसन नही होता है.

कमला एक किसान की बेटी थी और जिस घर में आई वो भी किसान का ही घर था. जमीन किसान के प्राण होते हैं. जमीन को बेचना प्राणों को बेचने जैसा होता है लेकिन उस किसान की अपनी मजबूरियां भी होती हैं. वरना यूँ ही कोई अपने प्राणों का सौदा नही कर डालता.

***

दूसरे दिन कमला आदिराज के साथ तहसील पर जा उसके नाम अपनी पांच बीघे जमीन लिख आई. आदिराज ने पन्द्रह हजार रूपये काट बाकी के रूपये कमला को दे दिए. आदिराज ने कमला को बताया कि ये पन्द्रह हजार रूपये रणवीर को दिल्ली ले जाने वाले दिन खर्च हो गये थे.

कमला इस बात से बहुत हैरान हुई कि महीनों में रणवीर के इलाज में पन्द्रह बीस हजार रूपये खर्च हुए और इक दिन में पन्द्रह हजार का खर्चा हो गया. इलाज भी तो कोई खास नही हुआ था. कुछ घंटों में तो रणवीर की मौत ही हो गयी थी.

कमला को आज अपने पति की कही बात याद आ गयी. रणवीर ने आखिरी दिन भी आदिराज और शोभराज से मदद लेने से इनकार किया था. लेकिन कमला को अपने पति की जिन्दगी के लिए सब कुछ खोने में भी हर्ज नही था. परन्तु आज न तो पति ही उसके पास था और न ही जमीन ही बच पायी थी.

कमला चाहकर भी आदिराज से कुछ न कह सकती थी. चार लोग कमला को ही गलत बताते. कहते एक तो मदद की ऊपर से बेईमानी का आरोप भी लगाती है. शायद आगे की मुश्किलों में दानपुर गाँव में कमला की मदद करने को भी कोई तैयार न होता. कमला चुप हो बैठ गयी.

बाकी लोगों का कर्जा अदा कर कमला के पास सिर्फ पांच हजार रूपये बचे. घर में राशन की किल्लत थी. बच्चों को दाल रोटी भी ठीक से नही मिल रही थी. कमला ने थोड़े से रुपयों से राशन खरीद लिया और थोड़े से रूपये बचा कर रख दिए. क्योंकि एक महीने बाद ही उसे एक बच्चे को जन्म देना था.

जिसे मोहल्ले के जानकार लोग अशुभ भी मन रहे थे. कहते थे कि जब से ये बच्चा पेट में आया है तब से घर में परेशानियों की झड़ी लग गयी है लेकिन कमला उस बच्चे को अपनी कोख में रखे हुई थी. उसका दिल नही मानता था कि ऐसा कुछ हो भी सकता है.

एक महीने बाद कमला के बच्चा हुआ. ये लड़का था. नाम रखा गया श्याम. लेकिन लोग उसे पट्ट पैर का कहते थे. पट्ट पैर से मतलब अशुभ पैर वाला लड़का. अब कमला तीन लडकों और तीन लडकियों का बोझ अपने कन्धों पर लिए हुई थी.

घर में कमाने वाला कोई नही था. खेत घर से दो किलोमीटर दूर था जिसे खुद सम्हालना कमला के बस की बात नही थी. कमला ने बची हुई खेती को पट्टे पर उठा दिया. जिससे कुछ पैसों का भी जुगाड़ हो गया.

खेती को पट्टे पर उठाने से साल में सिर्फ एक बार ही पैसा मिलता था लेकिन मिलता तो था बस यही काफी था. अतिरिक्त आमदनी के लिए कमला ने लोगों के गेंहूँ और मटर में से कंकड़ी और खराब दाना बीनने का काम शुरू कर दिया.

लोग कमला के घर आ सामान दे जाते और कमला उसको छान फटक कर उन्हें बापस दे देती. इस बात के लिए कमला को गेंहूँ या मटर को बीनने का एक रूपये किलों मजदूरी भत्ता मिलता था. दिन में पांच से दस किलों अनाज साफ हो ही जाता था. जिससे कमला के घर का शाक सब्जी का खर्चा चलने लगा.

कमला के इस तरह मेहनत करने की चर्चा पूरे गाँव में फैल रही थी. लोग कमला की तारीफें करते न थकते थे. किसी ने कमला की जुबान से किसी दूसरे के लिए कभी भी कडवे शब्द न सुने थे. कमला का आंगन और लोगों से काफी बड़ा था. मोहल्ले की औरतें सर्दियों के दिनों में कमला के आंगन में आ बैठ जाती. कमला का मीठा स्वभाव देख मोहल्ले के लोग कमला की मदद भी करते थे.

शोभराज और आदिराज का पेट अभी भरा नही था. कमला के मेहनत करने की चर्चा उन लोगों के कानों में पहुंची तो तिलमिला कर रह गये. ये लोग नही चाहते थे कि कमला किसी भी तरह आबाद हो जाए. उनका मन तो कमला को बर्बाद कर उसकी बाकी की जमीन हडपना था.

इन दोनों भाइयों ने रणवीर की मौत का भी खूब मखौल बनाना शुरू कर दिया था. जहाँ भी बैठते वहां यही कहते कि रणवीर की मौत अधिक अमरूद खाने से हुई है. लोग उनकी बातों पर यकीन भी कर लेते थे क्योंकि ये दोनों भाई रणवीर की मौत के समय उसको कमला के साथ दिल्ली के अस्पताल लेकर गए थे.

आदिराज के मुताबिक रणवीर की पहली बीबी से पैदा दूसरी लडकी सीमा की उम्र शादी लायक होने को आ गयी थी. एक दिन आदिराज ने कमला के घर आ उसे फटकारते हुए कहा, “कमला तुझे ये भी दिखाई नही देता कि घर में एक लड़की शादी लायक हो गयी है और तू है कि उसकी शादी के बारे में जरा भी नही सोचती.

क्या वो लडकी सौतेली है इस लिए ये व्यवहार कर रही है. अगर ऐसा है तो गाँव में पंचायत बैठ जाएगी और अगर रुपयों पैसों की किल्लत है तो मुझे बता. जितने पैसे चाहिए उतने ले ले और इस लड़की की शादी कर दे. जवान लडकी घर में बैठी रहे ये भी अच्छा नही होता.”

सीमा की उम्र अभी सोलह सत्रह साल के आसपास भी नही थी लेकिन आदिराज कमला को बर्बाद करने के लिए यह सब करवाना चाहता था. उसे पता था कि कमला के पास इस वक्त पैसा नही है और अगर कमला इस वक्त सीमा की शादी करती है तो उसे पैसों की जरूरत पड़ेगी.

अगर कमला ने फिर से पैसा लिया तो बाकी की जमीन भी आदिराज की हो जानी थी. कमला मन ही मन में आदिराज की बात का बुरा मान गयी थी लेकिन बड़े अदब से बोली, “दद्दा आप मेरी हालत तो देख ही रहे हो. ऊपर से सीमा के लायक कोई लड़का भी अभी मुझे नही पता. फिर एकदम इस तरह शादी कैसे हो जाएगी?”

आदिराज अपने दिमाग में पूरी योजना पहले से तैयार करके आया था. बोला, “तू लडके की चिंता मत कर. लड़का मैने देख रखा है. बस शादी की तैयारी कर. यहीं पास के ही गाँव का लड़का है. वो भी सीमा की तरह एक पैर से विकलांग है. वो लोग शादी के लिए तैयार भी हैं.

मैं लडके के नाम से आज ही शादी की तारीख पंडित से निकलवा देता हूँ. जो भी तारीख निकलेगी वो मैं बता दूंगा. बाकी की शादी की तैयारी सब तुझे ही देखनी होगी और मुझसे जिस तरह की भी मदद की जरूरत हो वो बता देना. उसके लिए मैं तैयार हूँ.”

इतना कह आदिराज वहां से चला गया. कमला घूंघट में बैठी हुई आश्चर्य चकित हो उसे देखती रह गयी. वो जितना सोच रही थी आदिराज उससे कहीं आगे निकला. कमला को मजबूरी में सीमा की शादी करनी ही थी. एक तो वो उसकी सौतेली बेटी थी और सौतेली माँ को लेकर लोग तरह तरह की बातें करते थे.

कमला नही चाहती थी कि उसके बारे में भी लोग इस तरह की बातें करें लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल ये आ खड़ी हुई कि सीमा की शादी के लिए पैसों का इंतजाम कैसे हो? चार पांच बच्चों की परवरिश और फिर ऊपर से एक लडकी की शादी.

कमाने वाला भी घर में कोई नही था. जो खेती का पट्टा आता था वो घर खर्च के लिए भी नाकाफी होता था. अगर आदिराज से कर्जा ले भी ले तो बर्बादी होनी तय थी. कमला को कोई रास्ता न सूझता था. जितना सोचती उतना उलझती जाती थी.

अभी कमला सोच ही रही थी कि मोहल्ले की एक औरत धन्नो कमला के घर आ पहुंची. उदास बैठी कमला को देख धन्नो ने पूंछ लिया, “कमला इतनी परेशान सी कैसे दिख रही हो? क्या कोई परेशानी है क्या?”

कमला बताना तो नही चाहती थी लेकिन छुपाना भी तो ठीक नही था. बोली, “क्या बताउं बहन. अभी हमारे खानदानी जेठ आये थे. कह रहे थे सीमा की शादी कर दूँ. उन्होंने तो लड़का भी देख भर लिया लेकिन शादी में खर्चा तो मुझे ही करना है जबकि घर में जहर खाने को भी पैसा नही है. तुम तो सब जानती ही हो बहन. अब इसी चिंता में बैठी हुई हूँ.”

धन्नो वैसे तो बड़ी लडांका थी लेकिन दिल अंदर से थोडा नर्म था. उसने कमला को दुःख सहते बड़े करीब से देखा था. वो खुद विधवापन का दर्द झेल रही थी. उसे पता था कि घर में अगर कोई आदमी कमाने वाला न हो तो कितनी मुश्किलें आती हैं.

धन्नो थोडा सोचते हुए बोली, “अच्छा कमला तुम्हें सीमा की शादी में पैसों की जरूरत सामान के लिए ही तो है न. अगर हम सब मोहल्ले के लोग मिलकर तुम्हें सामान दे दें तो तुम्हें बहुत सहारा मिल जायेगा और एकाध दो लोग तुम्हें कुछ समय के लिए पैसा भी दे सकते हैं.”

कमला सामने बैठी धन्नो का मुंह आश्चर्य से ताकते रह गयी. अभी वो कुछ कह पाती उससे पहले धन्नो वहां से उठकर चली गयी. कमला को धन्नो की बात समझ तो आई लेकिन उतने ठीक से नही जितनी आनी चाहिए थी.

बात बात पर लड़ने वाली धन्नो का दिल इतना बड़ा भी हो सकता है ये बात कम से कम ये बात कमला को अब तक पता न थी. कमला के दिमाग में धन्नो का विचार ठीक लगा था. अगर सच में मोहल्ले के लोग थोड़ी थोड़ी मदद कर देते हैं तो कमला को आदिराज की मदद की जरूरत नही पडनी थी.

शाम होने को जा रही थी. कमला अपने काम में लगी पड़ी थी कि मोहल्ले के लोग उसके घर में घुसने शुरू हो गये. सब के हाथों में कुछ न कुछ था. लोगों के हाथ में गेंहूँ से लेकर शादी में काम आने वाले अन्य सामान भी थे. देखते ही देखते कई बारे गेंहूँ कमला के घर में आ पहुंचा.

धन्नो भी अपने घर से गेंहूँ लेकर आयी थी. बोली, “देखो कमला अभी इतना सामान दिए जाते हैं. बाकी का दूध दही और मट्ठा शादी के समय पर आ जायेगा. कुछ लोग रुपयों पैसो से भी तुम्हारी मदद करने के लिए तैयार है. जिन्हें तुम आराम से लौटा देना और भी किसी चीज की जरूरत हो तो बेहिचक कह देना.”

कमला के मुंह से एक भी शब्द न निकल पा रहा था. धन्नो का धन्यबाद भी तो न कर पा रही थी बेचारी कमला. लेकिन धन्नो भी कब चाहती थी कि कमला से धन्यबाद सुने. आखिर एक अबला दूसरी अबला का साथ दे दे तो इसमें धन्यबाद और शुक्रिया की आवश्यकता ही कहाँ रहती है.

शायद एक औरत का जन्म ही दूसरे के दुखों को अपने सर लेने के लिए हुया है. शायद औरत किसी को दुखी होते नही देखना चाहती. चाहे वो कितनी ही संगदिल क्यों न हो? आखिर है तो वो एक औरत ही.

कमला की आँखें गीली होने को थीं. भावुक तो वो पहले ही हो चुकी थी. धन्नो का हाथ अपने हाथों ले बोली, “बहन मैं तुम्हारा ये एहसान जिन्दगी भर न भूलूंगी. तुमने आज जो किया है वो मेरे लिए...”

कमला की बात पूरी होने से पहले ही धन्नो उसे चुप करते हुए बोल पड़ी, “देखो कमला बहन. आज के बाद इस तरह के एहसान वाली बातें न करना. भला मैंने ऐसा क्या कर दिया तुम्हारे लिए. मैं तुमसे वादा करती हूँ कि आज के बाद मैं अपने आप से भी ये न कहूँगी कि मैंने तुम्हारे लिए कुछ किया है. तुम सारी चिंताएं भूल अपनी लडकी की शादी करो.”

इतना कह धन्नो अपने घर को चली गयी. कमला की आँखों से आंसू निकल उसके चेहरे पर बिखर गये. कमला को मोहल्ले की धन्नो में साक्षात् माँ दुर्गा नजर आई थी. जो उसकी मुश्किल में मदद कर गयी. आदिराज को इस बात की कानोकान खबर नही थी.

वो तो अपने दिमाग में अपनी ही योजना बनाये जा रहा था. जिसमे कमला की जमीन हडपने की चालाकी शामिल थी. लेकिन बुद्दू को एक स्त्री की ताकत का अंदाज़ा नही था. शायद ये उसका अपना घमंड था जो उसे खुद में बड़ा बनाये जा रहा था.

***