मम्मटियाया
By
धर्मेन्द्र राजमंगल
गुजरते दिनों की एक आहट और हुई. करीबन एक हफ्ते बाद शोभराज शहर से दानपुर गाँव आया. पहले आदिराज के घर गया और फिर कमला के घर आया. कमला तो उसके आने का इन्तजार कर रही थी. उसे जानना था कि उसकी बेटी की शादी का क्या हुआ?
शोभराज ने आते ही कमला के हाथ में शादी का एक कार्ड थमा दिया और बोला, “कमला ये तुम्हारी लडकी की शादी का कार्ड है. इस महीने की दस तारीख को उसकी शादी है और आठ तारीख को सगाई. तुम चाहो तो एकाध दिन पहले ही आ जाना. बच्चों को भी साथ ले आना लेकिन तुम सब लोग कपड़े ठीक ठाक से पहन कर आना. बच्चो को भी अच्छी तरह नहला धुला कर लाना. क्या है कि वहां बाहर के लोग आयेंगे न तो थोडा देखना पड़ता है.”
कमला ने उदास हो हां में सर हिला दिया. कैसा दिन था आज कमला के लिए. खुद के बेटी की शादी का कार्ड उसे मिल रहा था. जबकि ठीक इसका उल्टा होना था कि वो खुद शोभराज को ये कार्ड देने जाती. बेटी की शादी अपने हाथों से करने के सारे अरमान अब खत्म हो चुके थे.
अब तो उसे बेटी की शादी के समय जाकर ही उससे मिलना था. शोभराज ने कमला का ध्यान भंग किया, “अच्छा कमला मैं चलता हूँ. शहर पहुंचने के लिए देर हो जाएगी.” कमला ने घूँघट में से ही अपना सर हाँ में हिला दिया.
शोभराज के जाने के बाद कमला फिर ख्यालों में खो गयी. चार पांच सालों से कमला ने कोई साड़ी नही खरीदी थी. भाइयों को राखी बांधने और दूज करने पर उसे कभी कभार साड़ी मिल जाती थी. बस उन्ही साड़ियों को तब से पहनती आ रही थी.
लडको के स्कूल की ड्रेस भी बड़ी मुश्किल से बनी थी तो उन्हें अच्छे कपड़े कहाँ से लाकर दे देती? बड़े लडके को कोई न कोई अपने पुराने कपड़े दे देता था. फिर उन्ही कपड़ों को छोटे बच्चे पहन लेते थे. सालों से कोई ऐसा काम न पड़ा था कि नये कपड़े बनबाने पड़ें.
अब तो कमला को दिशा की शादी की भी चिंता थी. उसकी शादी ने कुछ देने को भी होना चाहिए था. आखिर खुद की बेटी थी. लोग तो दूसरे की बेटी की शादी में भी कुछ न कुछ देते हैं लेकिन क्या दे इस बात की बहुत चिंता हो रही थी.
लडकों के लिए कपड़े बनबाने के लिए भी पैसों की जरूरत पडनी थी. कम से कम एक एक जोड़ी ठीक ठाक से कपड़े तो होने ही चाहिए और शोभराज तो कहकर गया था कि ठीक ठाक से कपड़े ही पहन कर आना.
आज दो तारीख थी लेकिन कमला को पैसों का कोई प्रबंध न दिखता था. बड़े लडके जीतू को पडोस के गाँव की एसटीडी बूथ पर भेज अपने मायके फोन कराया लेकिन वहां भी पैसों का कोई जुगाड़ नही था. आदिराज से मांगने का तो सवाल ही नही उठता था.
शाम के समय कमला चौके में बैठी थी. आटा गुंथा हुआ सामने रखा था. चूल्हे में आग सुलग रही थी. जलते चूल्हे पर रखा काले रंग का तवा गर्म होकर लाल हो रहा था लेकिन कमला की हिम्मत रोटी बनाने की नही होती थी. क्योंकि बच्चों को भूख तो लग रही थी लेकिन खाना खाने का मन किसी का नही था. खुद कमला भी खाना बनाने की हिम्मत न कर पा रही थी.
जिस घर की लडकी की शादी हो और उस घर में इतने भी रूपये न हों कि वो ठीक से कपड़े भी खरीद कर पहन सकें. उस घर की ऐसी हालत होना स्वभाविक थी. उसी समय कमला के घर का दरवाजा किसी ने बजा दिया.
जीतू जाकर दरवाजा खोल आया. मोहाल्ले की एक औरत कमला से कुछ बात करने आई थी. इस औरत को लोग उसके शहर के नाम से पुकारते थे. वो आगरा शहर की थी तो लोग उसे आगरेवाली कहकर बुलाते थे. आगरेवाली आकर कमला के चौका के पास आ बैठ गयी.
आई तो अपने किसी काम से थी लेकिन कमला और बच्चों को उदास देख पूंछ बैठी, “अरे कमला तुम आज उदास सी कैसे लग रही हो और अभी तक खाना भी नही बनाया? क्या बात है?” कमला आगरेवाली को बताना तो न चाहती थी लेकिन दुःख बाँटने से कम होता है और लोग दूसरे को अपना दुःख बताने से मन में हल्कापन भी महसूस करते हैं.
कमला बोल पड़ी, “क्या बताऊ बहन तुमको. अब दिशा की शादी है. शादी तो दद्दा ही कर रहे हैं लेकिन मुझे भी तो कुछ देना पड़ेगा. दूसरा दद्दा कह गये हैं कि साफ सुथरे और अच्छे कपड़े पहन कर आना लेकिन घर में एक पैसा भी ऐसा नही जिससे बच्चों को कपड़े पहना सकूँ या लडकी की शादी में ही कुछ दे सकूँ. बस इसी चिंता में बैठी हुई थी. न तो मैं ही चैन में हूँ और न ही बच्चे चैन में हैं लेकिन तुम किस काम के लिए आयीं थी वो बताओ.”
आगरेवाली सोचते हुए बोली, “कमला में पूंछने आई थी कि तुम्हारे बाहर वाले द्वार पर अपना अनाज सुखा लें. अगर तुम कहो तो आज ही अनाज डाल दें.” कमला ने थोडा सोचा और बोली, “हां डाल दो बहन लेकिन थोडा रास्ता छोड़ देना.” आगरेवाली कमला के हाँ कहने से खुश हो गयी. उसे कमला पर दया आ गयी. बोली, “कमला तुम कहो तो मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकती हूँ?”
कमला का मन उल्लासित हो उठा. बोली, “बहन तुम क्या मदद करोगी मेरी?” आगरेवाली जल्दी से बोली, “जैसे तुम कहो तो जीतू के लिए नये कपड़ों का इंतजाम कर दूँ. मेरे छोटे लडके की लम्बाई जीतू के बराबर ही है. अगर तुम कहो तो जीतू के लिए उसके नये कपड़े लाकर दे जाऊ. साथ ही में कुछ रुपयों का भी प्रबंध करवा सकती हूँ जिन्हें तुम आराम से लौटा देना. छोटे बच्चों को नये कपड़े पैसों से दिलवा देना.”
कमला का मन सचमुच में बहुत हल्का हो गया. उसे इस बात का अंदेशा भी नही था कि ये मुश्किल इतनी आसानी से हल हो जाएगी. कमला ने थोडा संकोचित हो कहा, “बहन ऐसा हो पायेगा क्या?” आगरेवाली विश्वास के साथ बोली, “क्यों नही. मैं अभी जाकर अपने लडकों से बात करतीं हूँ.”
इतना कह आगरेवाली वहां से उठकर अपने घर चली गयी. कमला का मन आगरेवाली की बात से खुश भी था और डरा हुआ भी. खुश इसलिए था कि उसकी समस्या हल हुई जा रही थी और डर इसलिए लग रहा था कि कुछ साल पहले कमला आगरेवाली का एक कपड़े रखने का बैग ले अपने मायके चली गयी थी. जब लौट कर गाँव आई तो बैग की चैन खराब निकली.
इस बात पर आगरेवाली ने उसे घंटा भर जली कटी सुनायीं थीं. उससे भी पहले एक बार आगरेवाली से अचार डालने का डब्बा लिया था. उस डब्बे का ढक्कन स्लिप हो गया. इस बात पर भी आगरेवाली ने कमला को खूब सुनाया था और आज फिर से कमला उसकी मदद लेने जा रही थी.
कमला बैठी सोच ही रही थी कि आगरेवाली अपने दोनों लडकों के साथ उसके घर आ पहुंची. थोड़ी ही देर में सब काम बन गय. आगरेवाली का छोटा लड़का उम्र में जीतू से दोगुना था. साथ ही मोटा भी खूब था लेकिन उसकी लम्बाई जीतू के बराबर ही थी.
जीतू ने उसके दो जोड़ी कपड़ों में से एक जोड़ी पसंद कर लिए. आगरेवाली का लड़का खाया पिया था और जीतू भुखमरी का शिकार रह चुका था. जिसके शरीर पर मांस नाम की चीज बहुत कम थी लेकिन नये कपड़ों की ख़ुशी मे किसी को भी ये बात ध्यान न रही.
आगरेवाली के लडके ने कमला को दो ढाई हजार रुपया देने का वादा भी कर दिया. कमला ने देखा की सब काम निपट गया है तो आगरेवाली से बोली, “बहन अगर मुझसे फिर कोई गलती हुई तो पहले की तरह लडोगी तो नही मुझसे?”
आगरेवाली को पहले की हर बात ध्यान थी. वो थोडा झिझकते हुए बोली, “नही इस बार तुमसे लडूंगी नही. तुम आराम से अपनी बेटी की शादी में जाओ.” कमला के साथ साथ बाकी के लोग भी आगरेवाली की इस बात से मुस्कुरा पड़े.
***
आठ तारीख को सुबह ही कमला ने जीतू को तैयार कर दिया. पड़ोसी की मांगी हुई कमीज पेंट पहन जीतू पूरा जोकर सा लग रहा था लेकिन उसे तो नये कपड़े पहनने की ख़ुशी थी. फिर उसे क्या मतलब कि कपड़े उसके नाप से छोटे हैं या बड़े. दिशा की सगाई पर केवल जीतू ही जा रहा था.
कमला उसकी शादी में जानेवाली थी. जीतू पहली बार शहर जा रहा था. आज से पहले वो कभी शहर नही गया था. कमला ने जीतू को ठीक तरीके से समझा कर विदा कर दिया. कमला को सारे दिन और सारी रात जीतू की चिंता लगी रही. वो पहली बार घर से बाहर अकेला गया था.
जीतू जब शोभराज के घर पहुंचा तो शोभराज ने उसे देखते ही लताड़ दिया. बोला, “जीतू तू ये क्या पहन कर चला आया. मैं तेरी माँ से पहले ही कहकर आया था कि बच्चों को अच्छे कपड़े पहना कर भेजना. इतने के बावजूद भी तुझे ये जोकरों वाले कपड़े पहना दिए. अब बता इतने बड़े मेहमानों से में तेरा परिचय कैसे करूँगा. अब मुझसे तेरी माँ ये न कहे कि मेरे लडके से कोई रस्म न कराई. ठीक है.”
इतना कह शोभराज जीतू के पास से चला गया. जीतू हतप्रभ खड़ा उसे देखता रहा. नन्हे लडके के दिमाग में ये बात अच्छी तरह से आ रही थी कि इन्सान से ज्यादा अच्छे कपड़ो और पैसे की महत्ता ज्यादा है. तभी तो ताऊ किसी से उसका परिचय नही करा सकते. उसके बाद दिशा की सगाई हुई. जिस लडके से दिशा की शादी हो रही थी उसे देख जीतू को रोना आ गया.
कॉलोनी के लोगों में शोभराज का रुतवा बहुत बड़े समाज सेवक के रूप में तब्दील हो गया था. जीतू के आसपास खड़े लोग कहते थे कि शोभराज कितना नेक आदमी है जिसने नौकरानी की शादी भी अपने खर्चे से कर दी.
यह सब देख जीतू को यहाँ से भागने का मन करता था. उसने अपनी आँखों से दिशा को भी रोते देखा था. बस इससे ज्यादा जीतू सह नही सकता था. अपनी सगी बहन की यह हालत देख दूसरे दिन सुबह में ही जीतू वहां से चल दिया.
दिन में दोपहर से पहले जीतू घर आ पहुंचा. कमला की साँस में साँस लौट आई लेकिन जीतू बहुत निराश हो लौटा था. कमला ने जीतू का लटका हुआ चेहरा देख बड़ी उत्सुकता से पूंछा, “क्या बात है बेटा तू इतना उदास क्यों है? कोई बात हो गयी क्या?”
जीतू हताशा भरे स्वर में बोला, “माँ हमारे साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है. दिशा बहन की सगाई जिस लडके से हो रही है वो दिशा बहन के हिसाब से बहुत काला और बदसूरत सा है. माँ दिशा बहन बहुत रो रही थी. शायद उसका मन उस लडके से शादी करने के लिए नही करता था.
माँ तुम यकीन नही करोगी लेकिन खुद मेरा भी मन उस लडके को देख खिन्न हो गया था. माँ अपनी दिशा बहन जितनी सुंदर है वो लड़का उतना ही बदसूरत. मुझे उस समय ताऊ पर बहुत गुस्सा आया. अगर मेरा बस चलता तो में ये शादी न होने देता.”
कमला जिस बात को पहले से सोच डर रही थी वो आखिर हो ही गयी. दिशा जब आई थी तब उसने भी यही कह अपना डर जताया था लेकिन कमला के दिल ने ये बात न मानी. आखिर शोभराज ने उस मासूम लडकी से किस जन्म की दुश्मनी निकाली थी.
कमला मन ही मन रोने लगी लेकिन जीतू को समझाते हुए बोली, “कोई बात नही बेटा. इस धरती पर काले और गोरे दो ही रंग होते हैं. आदमी सुन्दरता से नही उसके गुण से जाना जाता है. लड़का ठीक नही तो क्या हुआ उसका घरवार सपन्न तो है न. अच्छा दिशा से तेरी कोई बात हुई थी क्या? तुझसे कुछ बोला उसने?”
जीतू ने गर्दन ‘ना’ में हिलाते हुए जबाब दिया, “नही माँ. मेरी हिम्मत नही हुई कि उससे कुछ बात कर पाता. उसे रोते हुए जरुर मैंने देखा था और माँ ताऊ की कॉलोनी में तो सबको ये पता है कि अपनी दिशा बहन उनकी नौकरानी है. लोग ताऊ की बहुत तारीफ़ कर रहे थे. कहते थे देखो शोभराज का दिल कितना बड़ा है जो नौकरानी की शादी अपने खर्चे पर कर दी.
माँ मुझे ये बात सुनकर भी बहुत गुस्सा आया था. ताऊ ने सब लोगों को बताया है कि अपनी दिशा बहन उनकी नौकरानी है. माँ ताऊ कितने गिरे हुए निकले. तुम तो उन्हें देवता और भगवान बतातीं थीं लेकिन वो तो दुष्ट से भी बदतर निकले.”
कमला जीतू की इस बात का क्या जबाब देती? वो तो खुस इस सवाल का जबाब खोजने की कोशिश कर रही थी. कमला सबसे बड़ी गलती अपनी मान रही थी. न वो अपनी बेटी को वहां भेजती और न ये सब होता. चाहे वो किसी गरीब घर में दिशा की शादी करती लेकिन खुद तो देखभार कर शादी कर सकती थी.
कमला के मन में शोभराज के प्रति जो भी विश्वास था आज वो सब खत्म हो गया था. गुस्सा भी बहुत आ रहा था लेकिन कमला कुछ कर भी तो नही सकती थी. शायद शोभराज ने उसके वेसहारा होने का फायदा उठा लिया था.
कमला को अपनी दिशा को देखने की हूँक उठ रही थी. सोचती थी पता नही लडकी कितनी दुखी हो रही होगी. कमला के पैर नही पड़ते थे कि दिशा की शादी में जाए लेकिन वो उसकी खुद की बेटी थी. नौ महीने अपनी कोख में रख उस बेटी को जन्म दिया था.
उसके लिए कमला ने प्रसव का दर्द सहा था. वो उसने मृतक पति की निशानी थी. वो लडकी कमला का खून थी. जिसे कमला कभी दिल से लगा कर सुला न सकी थी. जिसे बड़ा होते भी कमला देख न सकी थी. ये वही दिशा थी. कमला ने दस तारीख को शोभराज के घर जाने का फैसला कर लिया.