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आइना सच नहीं बोलता

आइना सच नहीं बोलता

कथायात्रा

नीलिमा शर्मा निविया

फरवरी २०१६ एक कहानी मन में उमड़-घुमड़ रही थी. मैं उस पर लिखना चाह रही थी इसी बीच एक दिन निवारोज़िन से चर्चा हुई और हिंदी में कथाकड़ी लिखने का विचार बना | उन्होंने गुजराती कथाकड़ी में ५० से ज्यादा रचनाकारों को जोड़कर ऐसा ही प्रयोग किया है . मेरे मन में कथानक स्पष्ट था -- शुरू से लेकर अंत क्या होगा, रूपरेखा एक दम साफ़ थी। कथा को उचित विस्तार देना था। अब बारी थी टीम का चुनाव करने की ....

सबसे पहले नाम था मेरे मन में उपासना सिआग का जो अच्छी कहानीकार के साथ मेरी मित्र हैं उनके कहानी कौशल से मैं परिचित थी. फिर नाम आया श्रद्धा थवाइत का , मुट्ठी भर अक्षर पुस्तक के संपादन के समय उनकी लघुकथा भी पढ़ी थी और उनकी कुछ कहानियाँ भी सो जानती थी कि वो किसी भी विषय को भली भांति आत्मसात कर लेती हैं , . फिर नाम आया कविता वर्मा जी का जो अनुभवी कहानीकार हैं उनकी कई कहानियाँ पढ़ी हैं उनका दृष्टिकोण बहुत ही साफ़ और उदारवादी रहा हैं ,. अंजू शर्मा की कई कहानिया पढ़ी हैं विषय को गहनता से देखने की उनकी क्षमता से परिचित थी , अपर्णा की कविताएं उनके नाजुक संवेदनशील मन की परिचायक रही हैं उनकी एकमात्र कहानी भी पढ़ी थी मैंने सो उनका नाम सोचा , संजना तिवारी की कहानियाँ प्रतिलिपि पर धूम मचा चुकी हैं उनके शब्द कौशल का जवाब नही , शोभा रस्तोगी अनुभवी लघुकथाकार हैं सामाजिक परिवेश का अच्छा प्रयोग करती हैं अपनी कथाओं में , प्रोमिला क़ाज़ी की कहानी कविता ग़ज़ल कौशल से सब परिचित हैं शब्दों से रोमांस करना वो बाखूबी जानती हैं रश्मितारिका की लघुकथाए अक्सर पढ़ी मैंने ,सुमन तनेजा की लेखन से परिचित थी मैं मुट्ठी भर अक्षर के समय से ......यह सब अनुभवी रचनाकार रहे हैं अब मैं चाहती थी कुछ ऐसे मित्रो को भी लेती हूँ जो शब्द कौशल तो रखते है लेकिन उन्होंने सिर्फ कविताएं या गीत लिखे या लघुकथा ही सो आशा पाण्डेय और प्रियंका पाण्डेय के साथ संध्या तिवारी को प्यार से मनाया बहलाया कि आप कोशिश तो करे आप कथा की एक कड़ी लिख सकती हैं और सच मानिये तीनो ने निराश नही किया

कुछ अन्य मित्रो को भी शामिल किया था लेकिन कुछ की व्यक्तिगत समस्या थी तो कुछ की लेखन/प्रकाशन संबंधी तो वो आगे तक साथ न आ सके।

खैर कथाकड़ी लिखनी शुरू की हम सब ने . इसका शीर्षक "आइना सच नहीं बोलता " पहले ही एपिसोड से अपने नाम को चरितार्थ करता हुआ लगे यह भरसक प्रयास किया गया .पहली कड़ी की अंतिम कड़ी से भी तारतम्यता स्थापित रहे ...

यह प्रयास भी करना था . पहली कड़ी मैंने लिखी .उसके बाद लेखन का अनवरत सिलसिला चल निकला .दस कड़ियाँ लिखने के बाद हमने मातृभारती पर कथाकड़ी की कड़ियाँ अपलोड की |

सितम्बर २०१६ के पहले सप्ताह से इनका प्रकाशन प्रारंभ हुआ ... पाठको ने पहले ही एपिसोड से इसको हाथोहाथ लिया हम सबका उत्साह वर्धन हुआ ...

हर कड़ी की पहले रफ़ लिखा जाता फिर टीम के सामने रखा जाता सब अपने हिसाब से सुझाव देते जिसके अनुसार परिवर्तन किए जाते। फिर से उसको लिखा जाता इस तरह कई बार एक कड़ी कई चरणों में पूरी होती |

टीम में प्यार सामंजस्य सहयोग बना रहा \ कथाकड़ी की नंदिनी सबके मध्य एक संवाद सूत्र बन गयी उसके बहाने से सबके आत्मीय रिश्ते बने| जिसको जितना समय जैसे जैसे मिलता रहा उतनी कड़ियाँ सबके हिस्से आई .|

पुस्तक मेले में इस कथाकड़ी को एक पहचान मिली जब इसका लोकार्पण आदरणीय तेजेंदर शर्मा जी (सुप्रतिष्ठित कहानीकार ) के द्वारा किया गया | अनेक समाचारपत्रों पत्रिकाओ और लोकसभा टीवी के साहित्यिकी कार्यक्रम में इसको स्थान मिला , कई इ पत्रिकाओ ने इस पर आलेख लिखे . दैनिक जागरण अखबार में योगिता यादव ने इसको नए समय की नयी सोच करार दिया | कई लेखिका मित्रो ने आगे आकर इस कथाकड़ी से जुड़ने की इच्छा प्रकट की |

बहुत से पाठक दिल से इस कथाकड़ी के साथ जुड़ गये उनका इनबॉक्स सन्देश भावुक कर देने वाला होता | हर कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार होता |

महेन्दर शर्मा जी ने हर संभव सहायता की पाठको की app को इनस्टॉल करने से लेकर लेखको को प्रोत्साहित करने तक | जयेश ने भी हमेशा कवर बनाने से लेकर उसे प्रकाशित समय तक सब जगह साथ दिया

कथानक के विकास में कविता वर्मा और अंजू शर्मा ने हमेशा आगे बढ़कर सहायता की | कुछ कारणों से प्रियंका पाण्डेय अपनी कथाकड़ी पूरी करने में सक्षम नही थी तो कविता जी ने आगे बढ़कर उनकी लिखी कथाकड़ी को सम्पूर्ण किया | उपासना सिआग ने जब समर जी की मृत्यु वाले एपिसोड लिखे कई दिन तक मन ग़मगीन रहा | एक शब्द चित्र की तरह पूरी कड़ी सामने आती रही सभी के लफ्ज़ आपस में ऐसे गूंथ जाते रहे कि अगर नाम ना बताया जाए तो कोई जान नही पायेगा कौन सी कड़ी किसने लिखी हैं या भिन्न भिन्न लेखिकाओ ने इस उपन्यास को लिखा हैं इसके लिए सभी लेखिकाए बधाई की पात्र हैं

आज मेरी हालत घर के उस मुखिया सी हैं जिसने अपनी बेटी को तो उसकी मंजिल तक पहुंचा दिया हैं लेकिन वो नही चाहती उसके सब साथी अब उसको अकेला करके कहीं जाए ....लेकिन हर सफ़र की एक मंजिल होती हैं और हमने तो शुरू करने के साथ ही नंदिनी की मंजिल क्या होगी यह तय कर लिया था |

नयी मंजिले होगी नए निशाँ होंगे लेकिन कदम जब एक दूसरे को आवाज़ लगायेंगे तो हम सब एक दूसरे के साथ इसी तरह ही खड़े होंगे |

अभी तक हम प्रिंट पुस्तकों को ऑनलाइन पढ़ते आये थे संभवत: यह हिंदी साहित्य का पहला डिजिटल साँझा धारावाहिक उपन्यास हैं जिसे डिजिटल वर्ल्ड के लिए ही लिखा गया हैं .मैं नही जानती हूँ कि इसका प्रिंट संस्करण आयेगा या नही लेकिन हम सब पाठको के संदेशो से बहुत उत्साहित हैं |

१४ संस्कृतियों की लेखिकायें जब एकत्र हुयी तो नंदिनी के किरदार को एक मूर्त रूप दिया गया ..... नंदिनी के जीवन संघर्ष के लिय किसी एक को दोषी ना ठहराकर हम सबने उस सामाजिक व्यवस्था को ठहराया जो बच्चो के सपनो की उड़ान जाने बिना ही उनको विवाह ही सपनो का आधार हैं कहकर ब्याह देती हैं .... विरासत जायदाद वारिस समाज की इज्ज़त की दुहाई देकर अक्सर ऐसे विवाह करा दिए जाते हैं जो अक्सर या तो अधूरे रह जाते हैं या उम्र भर दोनों पक्ष एक दूसरे को कोसते रह जाते हैं . ,

हमारे उपन्यास की महिला पात्र इस मिथ को भी तोडती हैं कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती हैं ... अगर जीवटता और ज़ज्बा हो तो स्त्रियाँ ही इस दुनिया में अपनी जीत का परचम लहरा सकती हैं

मैं आप सबकी तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ आइये आपको सभी सह्लेखिकाओ की इस कथाकड़ी यात्रा से जुड़े सफ़र से रूबरू कराती हूँ

नीलिमा शर्मा निविया ( लेखिका एवं सूत्रधार )

दिल्ली / देहरादून

9411547430

कविता वर्मा

जिंदगी के कुछ रास्ते इतने अप्रत्याशित होते हैं कि जिनपर चलना है रुकना है थमना है जैसी बातों का विवेचन किया ही नहीं जा सकता। बस एक असमंजस में उन रास्तों पर चल पड़ते हैं और जब कुछ पड़ाव पर ठहर कर पीछे देखते हैं तो अचरज होता है और जैसे जैसे मंजिल करीब आती है हम अभिभूत होकर अपने निर्णय की हौसलों की पीठ थपथपाने लगते हैं। जब नीलिमा जी द्वारा आइना सच नहीं बोलता का विचार सामने आया तब दिमाग में कोई विचार नहीं थे लेकिन फिर भी चल पड़े उस रास्ते पर लोग जुड़ते गए विचार बुनते गए और कारवाँ बनता गया। स्त्री जीवन के उसकी भावनात्मक उलझनों के इतने आयाम हैं कि उन्हें जैसा चाहे बुना जा सकता है और जब तेरह लेखिकाएँ उन्हें बुनती हैं तो नई नई गांठें बनती भी हैं खुलती और सुलझती भी हैं।

एक सम्पूर्ण जीवन को कुछ किश्तों में समेटना आसान नहीं है और जब वह आपके दिलो दिमाग पर छा जाये तो उसे किसी और के हाथ में देना भी आसान नहीं है। आइना की कई कड़ियाँ लिखी और कई कड़ियाँ पढ़ते यह ख्याल भी आया कि इसे ऐसा नहीं ऐसा लिखा जाता। एक टीम वर्क आपको खुद को नियंत्रित करना दूसरों के नज़रिये का सम्मान करना और स्वीकार करना बेहतर तरीके से समझाता है। आभासी दुनिया के माध्यम से जुड़े और एक काल्पनिक पात्र को रचते हम सब एक दूसरे की व्यक्तिगत परेशानियों को भी साझा करने लगे और समय समय पर एक दूसरे का भावनात्मक सहारा भी बने।

सभी सखियों ने मातृभारती ने इसके प्रचार प्रसार में जो उत्साह दिखाया महेंद्र शर्मा जी का सहयोग रहा और पाठकों का जो प्यार इसे मिला इससे अभिभूत हूँ। अब जब यह उपन्यास समाप्त हो रहा है और जब नंदिनी के जीवन को गति मिल गई है एक ठहराव सा महसूस हो रहा है। अब ना अगली कड़ी का इंतज़ार है ना उसके बारे में चर्चा विमर्श ना टीका टिप्पणी लेकिन अब यह हमारे आपके दिलों में है। इससे जुड़ने की तसल्ली है आइना सच नहीं बोलता लेकिन इसके लिखने वाले हम सभी और पढ़ने वाले आप सभी सच में इससे जुड़ गए हैं और यह बंधन अटूट है।

कविता वर्मा इंदौर

सुमन मलिक तनेजा

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नीलिमा शर्मा जी ने एक स्वप्न देखा और १४ जोड़ी आँखों में भरने लगे उनके रंग !

क़लम की ताक़त से सब ने नंदिनी के साथ जिया महसूसा जीवन के उतार चढ़ावों को ! हर कड़ी मौसम के फूलों की तरह लेखिका के व्यक्तित्व उसके लहजे़ सोच से महकती हुई ! बहारें भी आयीं पतझड और फागुन भी ! साँझे प्रयासों और सूत्रधार नीलिमा जी के स्वप्नों में उड़ान भरते हम सब की लेखनी के भिन्न भिन्न ज़ायक़ों का स्वाद चख पाएँगे आप सब !

आसान नहीं एक साथ एक रफ़्तार में चलना इतनी अलग अलग कलमों का ! कसौटियां सबकी अपनी, मानक साँझे !

जुड़ते चले गए सब ! जीने लगे नंदिनी की जीवनी ! हर एक की नायिका, नहीं गोद ली बच्ची हो जैसे ! कथा के साथ आपस में भी संयोजन बैठाती ,अपरिचित लेखिकाएँ मित्र बन गयीं और चोपाल बन गया आइना झूठ नहीं बोलता का what's आप ग्रूप ! कभी तल्ख़ हुए कभी नर्म गरम! मगर हम हो गए साथ साथ ! और अब जब कथा कड़ियों का सफ़र अपनी अंतिम पड़ाव पर है हमारे उत्साह और स्नेह का सफ़र प्रारम्भ हुआ है ! आप देखेंगे नंदिनी में प्रतिबिंबित होते हम सब को अपनी अपनी कड़ियों में !! स्नेह के रंग में रंगे हुए हम सब झाँकते हुए दिखेंगे पृष्ठों की खिड़कियों से ! आप सब भी छींटे अनुभव करिए,अलग अलग स्थानों में बसी अपने अपने परिवेश और परिस्थितियों में अनुभवों को कहानी बना ,जादू की छड़ी से उपन्यास बनता देखती हम सब लेखिकाओं को ! आभारी हूँ नीलिमा जी की जिन्होंने हम पर विश्वास बनाये रखा और हमें इस नवीन प्रयोग का हिस्सा बनाया ! मात्रभारती ने इस उड़ान को पंख दिए इसका भी शुकरना करना आवश्यक है ! भविष्य में नयी मंज़िलें होंगी पर साथी यही बने रहें इसी उम्मीद के साथ !

सु मन ????(दिल्ली)

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अपर्णा अनेकवर्णा

यदि एक लेखिका, 'स्त्री' पर कविता, कहानी, उपन्यास लिखती है तो ये सहज और आम बात है। यदि १४ लेखिकाएं मिलकर इसी विषय पर एक ही उपन्यास लिखें और वो कड़ियों में नेट पर धारावाहिक रूप में आए तो बात बहुत ख़ास हो जाती है। और ये हम १४ रचनाकारों का सच है। इस विचार की सूत्रधार नीलिमा शर्मा ही हम सबके बीच की कड़ी रहीं और उन्होंने ही अपनी आत्मियता से, संवाद से टीम आईना को बनाया और जोड़े रखा।

एक ही कहानी लिखी थी मैंने पर उन्होंने इस अनुभवी स्थापित टीम से जोड़ा इसकी आभारी हूँ। आभारी हूँ सभी सह-लेखिकाओं की जिनके साथ कड़ी दर कड़ी का ये सफ़र हमारी नायिका नंदिनी को रचने, गढ़ने में कब बीत गया पता भी नहीं चला। विमर्श, चर्चा, बहस के साथ एक नमकीन-मीठी-खट्टी यात्रा रही ये। मैंने चार कड़ियाँ लिखीं।

कुछ औपचारिक पूर्व परिचय और कुछ अपरिचय अब एक आत्मिय समूह है जहाँ हम अपना सुख दुख बांटते हैं। मातृभारती वेब पोर्टल द्वारा

ई उपन्यास का कौंसेप्ट अनूठा रहा। इस माध्यम को समुचित पहचान इस वर्ष के विश्व पुस्तक मेले में मिली। लोकसभा टीवी और अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रिपोर्ट प्रसारित-प्रकाशित हुई। हमारे वहमो गुमान से आगे निकल गई नंदिनी की गाथा

आज की अंतिम कड़ी ने एक सार्थक प्रयोग को विराम तो दिया है वहीं एक नए माध्यम को आगे आने का एक शानदार अवसर भी दिया है। भावुक हो रही हूँ।

टीम आईना और इस प्रोजेक्ट से जुड़े सभी जनों को शुभकामनाएं! अब प्रिंट वर्ज़न की प्रतीक्षा है।

अपर्णा अनेकवर्णा (दिल्ली)

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अंजू शर्मा

तब कोई नाम नहीं था, शक्ल भी धुंधली सी थी जब नीलिमा जी ने मुझे जुड़ने को कहा था। मुझे सिर्फ यही मालूम था कि एक कड़ी लिखनी है। कुछ नाम जाने पहचाने थे तो बस सोचा करके देखा जाए। मेरे लिए बिल्कुल नया था यह प्रयोग। चौदह लेखिकाएं अलग अलग राज्यों, शहरों और संस्कृतियों से और सब मिलकर एक उपन्यास रचेंगी। कैसे होगा यह सब, मैं असमंजस में थी पर जुड़ने का फैसला किया। नॉवेल के प्लॉट को जाना और नीलिमा जी की लिखी पहली कड़ी से आग़ाज़ हुआ। नंदिनी से परिचय हुआ और उसी के साथ बाकी साथिनों से भी। शीर्षक तय होने के साथ ही अनजाने ही हम एक टीम में बदल गए - हमारी आइना टीम। कड़ी दर कड़ी हम आगे बढ़े। खूब डिस्कशन होते। अटकते, बढ़ते, रूठते, मनाते पर पता ही नहीं चला कि इन तमाम कड़ियों के दौरान कब नंदिनी की कहानी हमारी कहानी बन गई। हम सब नंदिनी थे और हम सबमें उसका अंश था। उसकी ख़ुशी में हम बेतरह खुश हुए, दुःख में किरचा किरचा टूटे, कभी मुस्कुराए तो कभी भावुक हुए पर उसके संघर्ष के हर मोड़ पर बस यही याद आया कि एक दिन नंदिनी को जीतना है। नंदिनी की जीत में अब हमारी भी जीत शामिल थी और सच तो ये था कि इस आइने को झुठलाते हुए वह अकेली नहीं थी बल्कि हम चौदह सहेलियों का भी अक्स उभरता था। आज जब नंदिनी ने अपनी मंज़िल पा ली है हम सब उस माँ सी भावुक हैं, एक आँख से खुश और दूसरी से उदास हैं, जिसकी बेटी विदा हो रही हो। नंदिनी हमारी ही औरस पुत्री है जिसके लिए हम सबने मिलकर लिखा,मिलकर सपने देखे। उससे यूँ बिछुड़ना बेशक़ खल रहा है पर हमने उस स्वप्न को साकार कर दिखाया जिसे नीलिमा जी की पहल पर हमारी आँखोंने संजोया था। मैं नीलिमा जी, मातृभारती, महेंद्र शर्मा जी और अपनी सभी साथिनों की हृदय से आभारी हूँ। आप सभी के कारण यह संभव हुआ। बधाई हम सबको।

---अंजू शर्मा ( दिल्ली )

ईमेल : anjuvsharma2011@gmail.com

शोभा रस्तोगी

चला तो था मैं अकेला ही / साथी मिलते गए / कारवां बनता गया |

ये बात सटीक बैठती है - आइना सच नहीं बोलता - नामक वेब उपन्यास पर |

सूत्रधार नीलिमा शर्मा की पहली कड़ी के उम्दा लेखन ने थाम ली 13 लेखिकाओं की कलम | उपन्यास की नायिका नंदिनी के जीवन के आरोह - अवरोह, व्यथा-पीड़ा, संघर्ष, हार - जीत, अहसास- मनोभाव, कर्तव्य-अधिकार को कथा की माला में पिरोकर बेहद खूबसूरती से उपन्यास का आकार दिया | इस लेखन में विभिन्न परिवेश, संस्कृति की 14 स्त्रियों को अपने तथा दूसरों के भावों को राइट लेफ्ट करना बड़ा रुचिकर लगा | काफी कुछ एडिट, डिलीट, रिराइट हुआ | सभी एक दुसरे से राय लेकर चलते चले गए | यथार्थ और कल्पना का मोहक मंज़र बना - आइना सच नहीं बोलता |

नंदिनी की कथा कमोबेश हर स्त्री की कथा है | हम सब निज दर्द में नंदिनी को और नंदिनी की पीड़ा में स्वयं को भिगोते रहे | औरत दूसरों पर आश्रित होते हुए मज़बूर होती है | जिस पल वह अपनी अंतहीन शक्ति से साक्षात्कार कर लेती है, मार्ग की बड़ी से बड़ी बाधा को भी परे सरका देती है | ऎसी ही सशक्त, समर्थ, संघर्षशील, जुझारू स्त्री की कहानी है -आइना सच नहीं बोलता, जो कहती है - रुको नहीं कभी, चलते रहो | संघर्ष जीत का आगाज़ है |

लेखिकाओं की परस्पर आत्मीयता इस सफर में महत्वपूर्ण रही | हम सब एक दूसरे के मनोभावों से जुड़ते गए | यह रहगुज़र विमर्श, बहस, खट्टी मीठी नोंक झोंक और अंतत ;

प्यारी सी स्माइली के साथ सदा हमें बांधे रही | मैंने तीन कड़ियाँ लिखीं |

विश्व पुस्तक मेला 2017 में यह ई धारावाहिक उपन्यास अपनी तरह की अलहदा खुशबू बिखेर गया | नाना पत्र - पत्रिकाओं, लोकसभा टी वी पर इसकी चर्चा सरेआम रही |

हर शुरुआत का अंत निश्चित है | यह आखिरी किश्त भी आपके समक्ष है | इस - आखिरी - में आगे की अन्य राहें भी निकलेंगी | नंदिनी और साथी लेखिकाओं का इस प्रोजेक्ट से साथ छूट रहा है जो ह्रदय को द्रवित कर रहा है |

इसकी सुदूर सफलता के लिए टीम आइना, मातृभारती वेबसाइट, महेन्द्र शर्मा जी , नेवा जी, नीलिमा शर्मा सभी बधाई के पात्र हैं |

09650267277

संजना तिवारी

निर्जन स्थान में अकेले नन्हे पौधे को बढ़ने के लिये थोड़ी से जगह , एक टुकड़ा धूप और अंजुरी भर जल चाहिए , मेरे लिए हिंदी साहित्य वही जल धूप और जगह बना । आंध्र प्रदेश में रहते हुए हिंदीभाषी लोगो और संस्कृति से कटकर मैंने हिंदी साहित्य की छांव ली और उसी प्रक्रम में मैं नीलिमा जी से जुड़ी ।

आईना सच नही बोलता" उपन्यास 14 लिखिकाओं द्वारा लिखे जाने के सुझाव ने मुझे बहुत उत्साहित किया । हम सभी ने भारत के अलग - अलग हिस्सों में रहते हुए नायिका नंदिनी को अपने भीतर जिया और कागज़ पर उड़ेल दिया ।

ये कहना अतिश्योक्ति नही होगा कि हम 14 स्त्रियों ने इस दौरान एक साथ 15 स्त्रियों को जिया , हाँ .... 15 , नंदनी को मिलाकर हम 14 स्त्रियां 15 हुईं और हर एक के भीतर लिखने के क्रम में दूसरी स्त्रियां घर करती गईं । हमने उपन्यास के साथ एक दूसरे के जीवन , दुःख - सुख , ठिठोली , और स्वस्थ बहस का भी आनन्द लिया ।

एक दूसरे का हाथ थामें कब हम किनारे पर आ गए अनुमान भी नही लगा और अब बिछुड़ने का एक हल्का दुःख हम सबके भीतर फिर एक साथ कोना बनाए हुए है । मुझे लगता है कि उपन्यास के साथ ही हम सब भी एक दूसरे से हमेशा के लिये जुड़ गए हैं ।

मैं उपन्यास की क़ामयाबी के साथ - साथ अपनी सभी सखियों की कामयाबी की भी कामना करती हूं और सभी का धन्यवाद कहती हूँ । नीलिमा जी को थोड़ा ज्यादा वाला धन्यवाद क्योंकि उन्होंने इस सूत्र को कभी टूटने नही दिया और माला बनाकर ही दम लिया ।

संजना तिवारी ( बलिया उत्तर प्रदेश )

Sanjanaabhishektiwari@gmail.com

8985088566

प्रियंका पाण्डेय

अपने मन के भावों को पन्नो पर उतार हम क्या महसूस करते हैं क्या कहना चाहते हैं पंक्तिबद्ध या काव्यबद्ध करना बहुत आसान होता है।परंतु किसी एक पात्र को सोचकर एक कहानी को 14 लोगो के द्वारा लिखना एक नया और रोमांचकारी प्रयोग रहा।

शुरू में जब नीलिमा जी ने मुझसे इसकी अवधारणा बताई तो एक उत्सुकता जगी कैसे होगा सबकुछ इतने लोगो में हर अगली कड़ी की तारतम्यता बैठेगी या नहीं प्रवाह आयेगा या नही हर कड़ी पिछली से अलग तो नही हो जायेगी तमाम बातें मन में उमड़ घुमड़ रही थी परन्तु हमारी सारी सखियों ने मिल कर नंदिनी के पात्र को जीवंत कर दिया।हम सभी के लिये धीरे धीरे नंदिनी हमारी अपनी एक सदस्य की तरह लगने लगी।उसकी ख़ुशी अल्हड़ मन के कोरे सपने,उसके दुःख, उसका संघर्ष,उसकी सफलता हम सब ने साझा रूप से महसूस की।उसका मौन हम सभी ने समझा उसकी दुःख में दुखी हुए तो उसकी खुशियों में मुस्कुराए भी।

आज जब उंगलियां यह अंतिम कड़ी लिख रही हैं तो कहीं न कहीं नंदिनी से बिछड़ने की एक अनजानी सी कसक भी मन में है।

इस कथा कड़ी के दौरान हम सभी 14 सखियाँ भी एक दूसरे के काफी करीब आ गए हमने अपनी तमाम व्यस्तताओं में से समय चुरा कर आइना सच नही बोलता के जरिये नंदिनी के जीवन में रंग भरे है।

मैं शुक्रगुजार हूं सूत्रधार नीलिमा दी की जिन्होंने इतना बेहतरीन अवसर मुझे दिया।

आइना सच नही बोलता और नए प्रतिमानों को छुए इन्ही शुभ कामनाओं के साथ आप सभी का धन्यवाद और आभार।

प्रियंका पांडे ( गोरखपुर )

उपासना सिआग

'आईना सच नहीं बोलता' की कड़ियाँ लिखते-लिखते नन्दिनी से कब जुड़ गई , पता ही नहीं चला। नन्दिनी जैसा कोई किरदार मैंने अभी तक मेरे जीवन में नहीं देखा है। लेकिन वह मेरे मन में बसती है कहीं न कहीं। नंदिनी की कहानी, बेशक एक -डेढ़ दशक पुरानी है। फिर भी ,आज भी नन्दिनी जैसी स्त्रियों को न्याय नहीं मिला है। वैसे भी न्याय तो मांगने से ही मिलता हैउसके लिए खुद प्रयत्न करने होते हैं । स्त्रियां तो जाने कितने बंधनों से जकड़ा हुआ महसूस कर के , स्वयं ही हार मान लेती हैं। नन्दिनी की कहानी लिखते समय मेरे सामने उसके विवाह के शुरूआती जीवन की कड़ी लिखने का अवसर आया तो मैंने सोचा कि मैं यहाँ सास -बहू की पाम्परिक ईर्ष्या या सत्तापरक झगड़े की नींव नहीं डालूंगी। और यह भी नहीं कि बहू को बेटी ही माना जाये। बहू को अगर बहू ही मान कर सम्मान दिया जाये तो एक अच्छा रिश्ता पनप सकता है। मेरा मानना है कि अगर स्त्री , दूसरी स्त्री का सम्मान करे और उसके हितों की रक्षा करे तो उसे कोई हरा नहीं सकता है। और यही बात इस साँझा उपन्यास में जोर दे कर कही गई है। नीलिमा शर्मा जी ने सपना देखा और हम चौदह सखियों ने मिल कर पूरा किया।अपने हिस्से की अगली कड़ियाँ लिखते हुए कई बार आँखों में आंसू आये मन ग़मगीन रहा कई दिनों तलक | मृत्यु को लिखते समय अजीब मन स्तिथि से गुजरना पढ़ा | जैसे कथाकड़ी के पात्र मेरे कहीं आस पास हो | मैं शुक्रगुजार हूँ नीलिमा जी की और सभी सखियों के साथ पाठको की जिन्होंने हमारा मनोबल बढ़ाया और इस कथाकड़ी को सफल बनाया |

उपासना सिआग अबोहर पंजाब

(80542 38498)

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श्रद्धा थवाइत

जब एक साझा उपन्यास लिखने का एकदम नया विचार लेकर नीलिमा जी का कॉल आया तब बिहार के नरेन्द्रपुर गाँव में आयोजित ‘पात्र से मिलिए’ कथाशिविर में हम तीन पीढ़ी के कथाकार फ़रवरी की गुलाबी ठण्ड में धूप सेंकते बतरस का आनंद ले रहे थे. तब नीलिमा जी ने एक कड़ी लिखने की बात कही थी. साथी लेखिकाओं में से कुछ के नाम से फेसबुक के माध्यम से परिचित थी. एक बार तो सोचा कि ये कैसे संभव होगा... एक बंधन में बंध कर लिखना... हर लेखिका कि अपनी अलग शैली... फिर जाने जब लिखना हो तब समय हो या न हो. एक बार तो सोचा कि मुझसे नहीं हो सकेगा लेकिन फिर लगा कि यही तो चुनौती होगी और इसे चुनौती की तरह ही स्वीकार कर लिया.

ठीक वैसे ही जैसे हमारे इस साझा उपन्यास ‘आइना सच नहीं बोलता’ में नंदिनी ने अपनी जिंदगी की चुनौती को ना सिर्फ स्वीकार किया बल्कि इसकी कसौटी पर खरी भी उतरी. एक बार हां कहने के बाद तो फिर हम सब नंदिनी से जुड़ते हुए एक दूसरे से जुड़ गए. इसके लेखन के दौरान खूब विचार विमर्श हुआ. हर कड़ी के बाद उस पर चर्चा...अपने-अपने अभिमत. नंदिनी की खूबियाँ गढ़ते हुए एक दूसरों की खूबियों से परिचित होते गए. अपनी खुशियाँ, अपने दुःख सब कुछ साझा होता गया. नीलिमा जी ने बतौर सूत्रधार हमें एक सूत्र में जोड़े रखा.

आइना सच नहीं बोलता के इस सुखद सफ़र के लिए मैं अपनी साथी तेरह लेखिकाओं के साथ मातृभारती वेबसाइट, महेन्द्र शर्मा जी की आभारी हूँ. आइना सच नहीं बोलता कि अंतिम कड़ी के साथ नंदिनी ने अपनी जिंदगी में सफलता पा ली है लेकिन वह रुकी नहीं नहीं है अब भी बढ़ रही है लाखों स्त्रियों में... और बढ़ रहा है आइना सच नहीं बोलता’ हमारा साझा उपन्यास भी...

- श्रध्दा

आशा पाण्डेय

पहली बार सुना जब कि 14 औरते एक साथ लगभग एक साल एक ही कहानी को अपने -अपने अंदाज़ में लिखेंगी तब यक़ीन कम रोमांच ज्यादा हुआ कि क्या ये सम्भव भी है!

नीलिमा शर्मा दी ने मुझे कहानीकार बना दिया और सूत्रधार बनी हम 13 अजनबियों के बीच और हमने मिल कर लिखा एक नया अध्याय ।हमने बारी बारी से लिखा इसे पिरोया नीलिमा दी ने धैर्य के साथ सब को साथ लेकर चलते हुए। कड़ी दर कड़ी नायिका हमारी उभरती गई और हर बार नये क़लम से लेकिन अपने रंग को बरकार रखते हुए।कब एक साल का वक्त बीता पता भी न चला ,कहीं न कहीं एक भावनात्मक लगाव नंदिनी के साथ और उसी के साथ बाकी की अनदेखी लेकिन अपनी सी सह लेखिकाओं के साथ भी ,कि कुछ अपना सा जैसे दूर जा रहा हो ।या शायद बढ़ते बच्चे सी नंदिनी हम सारी माँओं से ढेर सारा दुलार ले अपने मंजिल पे पहुँच गई हो मेरी लिखी हुई कड़ी सातवीं कड़ी है इस कथाकड़ी की जब हमारी नायिका नये शहर में नये रिश्तो के संग खुद को ढाल रही थी आप सब पाठकों ने हमसब का साथ दिया ,हमेशा हमें ये बताया कि हमसब कैसा लिख रहे है,क्या होना चाहिये ।हमारी पूरी टीम की ओर से आप सारे पाठकों का दिल से आभार

,शुक्रिया मातृभारती शुक्रिया नीलिमा दी ।

आशा पांडे( कोलकाता) (ashapandey1974@gmail.com )

प्रोमिला क़ाज़ी

अक्सर देखा गया है कि लेखक किसी चरित्र को लिखते समय इतना तल्लीन हो जाता है कि किसी बिंदु तक आकर वह अपने काल्पनिक चरित्र की काया में प्रवेश कर जाता है और वह सब लिख डालता है जिसकी उसने भी शायद कभी कल्पना नहीं की होती! कुछ ऐसा ही हम १४ लेखिकाओं के साथ हुआ! जब नीलिमा ने मुझ से आइना सच नहीं बोलता के बारे मे बात की तो मुझे आश्चर्य हुआ कि एक कहानी को १४ लोग मिल कर कैसे लिख सकते है? थोड़ा डर , थोड़ी झिझक और कुछ विश्वास, थोड़ी बहुत आशा के साथ मैंने सहमति तो दे दी लेकिन सोचती रही कि एक लड़की की कहानी को एक साथ १४ लोग लिख कर क्या न्याय कर पाएंगे? लेकिन जैसे जैसे कहानी की कड़िया लिखी जाने लगी तो यकीन जाने ऐसा लगा कि हम १४ लेखिकाओं ने नंदिनी की आत्मा में प्रवेश कर लिया हो, या वह स्वयं उतर कर हमरे अंतर में आ गयी हो! यह सामूहिक परकाया प्रवेश था इसीलिए सबसे अलग सबसे अदभुत था! हम सभी में से हमारा 'मै' कही लुप्त हो गया और बची रही तो नंदिनी ! उसके दुख, समस्यायें, भय, चिंताए, संघर्ष अब केवल उस अकेली के न रह कर हम सब के साझा हो गए! नंदनी क्या करेगी, कैसे करेगी, हमारा दिमाग और उससे भी तेज़ हमारी कलम चलने लगी, मानो हम सभी एक सड़क बना रहे थे, जिस पर नंदनी की यह यात्रा निर्विघ्न संपन्न हो सके!

नंदिनी के दुख में हम सभी रोई, साथ ऑंसू बहाये, उसकी ख़ुशी में ही हमारी आंखे भर आती, उसका दुल्हन बनना, फिर पत्नी और फिर माँ , मानो हम अपनी ही कोई अधूरी परिक्रमा दोबारा शुरू कर रहे हो! इस बार हम सब निश्चिन्त थे कि इस परिक्रमा में कोई अड़चन ना आये, इस बार हम सब अपने डर से आगे दिख रहे जश्न की प्रतीक्षा कर रही थी ,नंदनी में स्वयं को ढूंढते, जीते, लड़ते, जीतते अंतता हम सभी ने उसके जीवन पर्वत पर अपना परचम फहरा ही दिया ! यह हम सब की विजय गाथा थी, जीवन के उतार चढ़ाव में से नंदिनी रुपी नाव को किनारे लगा हम सब मानो भवसागर तर ली !

आभार नीलिमा, मुझे इस मुहिम से जोड़ने के लिए, एक बार फिर पूरी टीम को बधाई !

प्रोमिला क़ाज़ी ( फरीदाबाद ) ९८११६११८६९

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डॉ संध्या तिवारी

????????मैं यायावरी पर थी उन दिनों --

जब नीलिमा शर्मा दी ने मुझसे पूछा ;

" उपन्यास लिखना है कई लेखिकाओं को मिलकर ।क्या तुम आना चाहोगी इसमें ?

मैने कहा ; " अभी तो बाहर हूं ,आकर देखूंगी ।

उसके बाद दी ने अपनी लिखी एक किश्त मुझे वाट्सप की मुझे चाव लगा और मैं उसकी अगली किश्त की प्रतीक्षा में लग गयी अगली पढ़ी ।फिर उससे अगली की प्रतीक्षा में रत थी कि

दी ने कहा ; "अब तुम लिखो।"

मै अचानक मिले इस प्रस्ताव से अचकचा गयी , क्या लिखूं , कैसे लिखूं ,कहानी का कोई प्लाॅट नहीं था मेरे सामने बस नींव भरी थी आधी अधूरी अब मकान की दीवार खड़ी करनी है या अभी नींव में ही लगना है कुछ पता नहीं था। खैर

मैं लिखने बैठ गयी। जो मन में आया लिखती गयी , लेकिन हमारे पास मात्र एक मुख्य किरदार था नंदिनी

"घाट घाट पर पानी बदले ,

औ कोस कोस पर बानी ।"

बस ऐसा ही था हम सब भारत भर में फैली लेखिकाओं के बारे में ।

सब अपने अपने रीति-रिवाज भाषा परम्परा के अनुरूप लिखे जा रहीं थीं ।

छःह सात कड़ियों के बाद पता चला कि जैसे - पुराने कपड़ो से दरी चादर बुनने वाले लोग जब किसी घर से कपड़ा लेते है तो घर की महिला अपनी पुरानी ज़री की साड़ी से लेकर सूती धोती तक उठा कर दरी वाले को सौंप देती है और जब दरी बनकर आती है तो उसमें भांति भांति के और रंग बिरंगे कपड़े लगे होते है बस ऐसी ही कुछ बुनी थी ,

हमारी "उपन्यास दरी।"

इस प्रकार मूर्त रूप हुयी हमारी नंदिनी की परिकल्पना ।

परन्तु एक बात तो तय है कि स्त्री जो कुछ सुदूर पूर्व में भोग रही है वैसा ही सुदूर उत्तर में , दक्षिण में भी और पश्चिम में भी ।

कहन केवल इतना कि नंदनी हो या नंदिनी नाम भाषानुरूप हो सकता है सोच विसंगतियां ,विद्रूपतायें, विवशतायें सब लेखिकाओं की एक सी थी ।

चौदह लेखिकाओं के अनुभव का ढ़ांचा भले ही भिन्न हो परन्तु उस परमात्म तत्व के अंश के नाईं उपन्यास " आइना सच नहीं बोलता " में भाव का एक ही तत्व विद्यमान है और वह है सभी के भावों का इकसार स्पन्दन ।

आइना सच नहीं बोलता की टीम से जुड़ना मेरा सौभाग्य रहा

शुक्रिया मातृभारती जिसने इस टीम वर्क को मंच दिया

शुक्रिया नीलिमा दी जिन्होनै पर तौलने की क्षमता दी ।

एक सफर जिसमें हम सब साथ भी थे और नहीं भी ।नींद सबकी अपनी थी पर सपना सबका सांझा।

अन्ततोगत्वा सम्पूर्ण हो चुका यह उपन्यास आप सब के सम्मुख है परन्तु हम सबका मन तो यहीं कह रहा है यह मंजिल नहीं।

"लास्ट वट नाॅट द लीस्ट"

डाॅ सन्ध्या तिवारी 94104 64495

पीलीभीत

रश्मि तारिका

वो कहीं मुझमें थी या कहीं मैं उसमें जी रही थी ख़ुद को ..

सफ़र ए अंदाज़ कब ख़त्म हुआ खबर न रही मुझको ..!!

नंदिनी और मैं ..इसी तरह से सँग सँग चले ,कुछ बिखरे फिर सँवरे।जी हाँ ,बात कर रही हूँ हमारे साँझा उपन्यास "आइना सच नहीं बोलता "की नायिका "नंदिनी "जिसके स्वरुप की कल्पना की हमारी उपन्यास की सूत्रधार "नीलिमा शर्मा "ने और उस पात्र को जीवंतता प्रदान की उपन्यास की हम१४ लेखिकाओं ने। नन्दिनी केवल एक पात्र नहीं है बल्कि हम सब के भीतर संघर्ष करती नारी का ही अक़्स -ए -हिस्सा है जिसे हमने सुना ,समझा और लिखा और हम उससे इस कदर जुड़ गए कि अब उससे जुदा होना एक दर्द का एहसास से दे रहा है। यकीं नहीं होता कि इस उपन्यास के आगाज़ के साथ हम न केवल नंदिनी और बाकी पात्रों के साथ जुड़े बल्कि "आइना सच नहीं बोलता " की हम विभिन्न प्रान्तों और राज्यों की हम सह लेखिकाएँ भी अपनी कलम के तहत एक स्नेह बंधन में बंध गईं ।

इस सुखद एहसास से रूबरू करवाने हेतू मैं , हमारी सूत्रधार" नीलिमा शर्मा ","महेन्द्र शर्मा जी "और "आईना सच नही बोलता "की पूरी टीम का शुक्रिया करती हूँ और आने वाले समय में ऐसे और प्रयासों की उम्मीद करती हूँ।

शुभकामनाओं के साथ ...

रश्मि तारिका ,सूरत से।(97269 24095)

तो यह सब थी हमारी लेखिकाएं जिन्होंने नंदिनी के पात्र के साथ सभी चरित्रों को एक साल तक अपने भीतर जिया

शुक्रगुजार हैं हम सब आपके

आपके संदेशो का इ मेल का इंतज़ार रहेगा

नीलिमा शर्मा

धन्यवाद .........neavy41@gmail.com ..

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