ख्वाबो की कीमत - 4 Khushi Saifi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

ख्वाबो की कीमत - 4

ख़्वाबों की क़ीमत

पार्ट 4

कुछ देर बाते और आराम के बाद अवनि रीता के घर गयी और उसके पापा से मिली जिन्हें अपने आने का वक़्त वो पहले ही बता चुकी थी तो घर पर अपने इंतज़ार में ही पाया।

“नमस्ते अंकल”

“नमस्ते बेटा, कैसी हो”

“जी अच्छी हूँ”

“उस केस के original papers लायी हो साथ”

“जी, ये रहे” अवनि ने पेपर्स Mr. बंसल को दे दिए।

“हम्म.. ज़्यादा मुश्किल नही आयेगी, तुम घर तो वापिस अपने पापा के नाम नही कर सकती but कुछ changes ज़रूर कर सकती हो क्योंकि प्रॉपर्टी की ओनर तुम खुद हो..

अगर तुमने अपने पापा के नाम किया तो उसके लिए सौरभ के सिग्नेचर की ज़रूरत होगी जो मुश्किल काम है” Mr. बंसल ने समझते हुए कहा।

“क्या ऐसा कुछ हो सकता है कि अगर मुझे कुछ हो जाये तो प्रॉपर्टी सौरभ या उसके घर वालों के पास नही जाये”

“हाँ.. ऐसा हो सकता है.. लेकिन ऐसा जब हो सकता है जब प्रॉपर्टी ओनर की मृत्यु हो जाये या मृत घोषित हो जाये”

“मैं चाहती हूँ कि अगर कभी सौरभ के मन में लालच जग जाये या वो मुझ पर जानलेवा हमला करे और उसमें कामियाब हो जाये तो ये प्रॉपर्टी किसी अनाथ आश्रम या किसी ऐसी ही जगह चली जाये.. बस उन लालचियों के हाथ न आये” अवनि ने कहा।

“ठीक है, ऐसा ही होगा.. पेपर्स बनने में कुछ दिन लग जायेगें और कुछ जगह तुम्हारे सिग्नेचर चाहिए.. उम्मीद करता हूँ कुछ दिन इंडिया में ही होंगी तुम” Mr. बंसल ने कहा।

“जी, कुछ दिन यहीं हूँ बस आप जल्द से जल्द ये काम करा दें क्यों कि कुछ दिनों बाद सौरभ भी इंडिया आ रहे हैं”

“मैं अपनी पूरी कोशिश करूँगा”

“thank you अंकल, अपने मुश्किल वक़्त में मेरा साथ दिया”

अवनि Mr. बंसल से बात कर के घर आ गयी और अपने माँ पापा को कुछ नही बताया ये ही बात Mr. बंसल से भी कही

“अंकल ये बात सिर्फ आपके और मेरे बीच रहनी चाहिए, मैं नही चाहती कि माँ पापा और परेशान हो”

“मैं समझता हूँ, तुम बेफिक्र रहो बेटा” Mr. बंसल में भरोसा दिलाया।

कुछ दिन की भाग दौड़ और सिग्नेचर के बाद पेपर्स अवनि की मर्ज़ी के मुताबिक हो गए अब किसी भी सूरत प्रॉपर्टी सौरभ या उसके घर वालों के हाथ नही लग सकती थी। अब अवनि पूरी तरह रिलेक्स थी।

०००००

“surprise” सौरभ अंदर कमरे में बैठी अवनि के सर पर आ कर चिल्लाया।

“सौरभ, आप कब आये” अवनि ने ख़ुशी से पूछा। कुछ भी हो सौरभ उसका पति था वो पति जिससे उसने दिल से सच्ची मोहब्बत की थी।

“कल रात मेरी फ्लाइट लेंड हुई, और देखो आज सुबह होते ही अपनी ससुराल में अपनी बीवी के पास आ गया”

“अपने मुझे बताया क्यों नही, मैं एयरपोर्ट आती आपको पिक करने”

“फिर तुम्हारे चेहरे की ये ख़ुशी कैसे देखता” सौरभ ने प्यार से कहा।

“अच्छा चलो अब सामान पैक करो अपना और घर चलो.. मम्मी भी बहुत miss कर रही हैं अपनी लाडली बहु को”

“ओके, मैं सामान पैक कर लेती हूँ लेकिन हम खाना खा कर जायँगे”

“जैसा हुकुम मेरी मेडम का” सौरभ और अवनि दोनों मुस्कुरा दिए।

खाना खा कर अवनि सौरभ के साथ अपनी ससुराल आ गयी। 15 दिन वहां रह कर वापिस अमेरिका चले गए क्योंकि सौरभ की छुट्टियां पूरी हो चुकी थी। अवनि में अमेरिका आ कर वो file वेसे ही रख दी जैसे रखी थी। सौरभ को कुछ पता नही लगने दिया पर सौरभ का प्यार कभी कभी उसे एक ढोंग लगता जैसे उस प्रॉपर्टी की वजह से सौरभ उसको प्यार जताता है। अवनि के मन में भी एक गांठ पड गयी थी जो शायद कभी नही खुल सकती थी पर सब होने के बावजूद भी उसने सोचा रिश्ता निभाना ही था तो दिल से क्यों नही और फिर से उन दोनों की एक नार्मल लाइफ शुरू हो गयी।

***

“Happy Anniversary Dear” सौरभ के कानों में हल्के से किसी ने गुनगुनाया, नींद में हल्की हल्की आँखे खोल कर देखा, अवनि छोटा सा केक हाथ में लिए बैठी थी, सौरभ गायब दिमागी से फिर आँखे मूंद कर लेट गया।

“सौरभ” अवनि ने फिर हलकी सी आवाज़ दे कर उठाने की कोशिश की।

“हम्म, क्या हुआ यार, सो जाओ” सौरभ ने आँखे बंद किये कहा।

“सौरभ आज हमारी 1st Marriage Anniversary है, देखो मैंने ये केक बनाया है” अवनि ने याद दिलाया।

“रात को 12 बजे कौन केक खाता है” अब सौरभ उठ कर बैठ गया।

“सौरभ और अवनि खाते हैं, चलो अब जल्दी से आ कर केक काटों मेरे साथ” अवनि के हक़ जाता कर कहा।

“अच्छा बाबा आता हूँ” दोनों ने मिल कर केक काटा और अवनि ने इन खूबसूरत पालो को सेल्फी में कैद कर लिया।

“अच्छा बताओ मुझे क्या गिफ्ट दे रहे हो आज” अवनि ने पूछा।

“जो तुम कहो वो.. बताओ क्या चाहिए तुमको” सौरभ ने अवनि का हाथ अपने हाथ में लेते हुए पूछा।

“मुझे छोटा सा सौरभ चाहिये, हमारी शादी को एक साल हो गया अब हमें हमारी फैमिली शुरू करनी चाहिए” अवनि ने कहा।

“अवनि, इतनी जल्दी नही.. अभी मुझे इन सब झंझटों में नही पड़ना” सौरभ ने अवनि के हाथ से अपना हाथ खींच लिया।

“मैं सारा दिन घर में अकेली रहती हूँ” अवनि ने बेबसी से कहा।

“तो बाहर घूम आया करो, शॉपिंग कर लिया करो” कुछ बेरुखी से सौरभ बोला।

“लेकिन.....” सौरभ की बेरुखी अवनि के दिल में एक ठीस बन कर चुभी।

“बस, मुझे इस टॉपिक पर कोई बात नही करनी” सौरभ नाराज़ हो कर सोने लेट गया, अवनि भी चुप चाप लेट गयी पर नींद आँखों से कोसो दूर थी, जागी आँखों से ख्यालों में गुम पता ही नही चला कब घडी की सुईं घूम कर नए दिन का पता देने लगी और सूरज की किरणों ने बाहर पड़ी बर्फ को पिघलना शुरू कर दिया।

***

अवनि कमरे की खिड़की पर बैठी अपनी ही सोचो में गुम थी, शुरू दिसम्बर की ठण्ड उसके जिस्म में घुस रही थी पर उसे कुछ एहसास नही था.. बस बाहर खड़ी कार और सड़कों पर जमी बर्फ को एक टुक घूर रही थी, बर्फ के छोटे छोटे तिनके उसके जिस्म में लग कर गिर रहे थे, कुछ बर्फ खिड़की की चोखट पर जमा हो गयी थी। अपनी ही सोचों में गुम उसे किसी की हल्की आवाज़ आयी जैसे कोई बहुत दूर से उसे पुकार रहा है।

“अवनि... अवनि...”

“हाँ” अवनि ने चौक कर इधर उधर देखा।

“कितनी देर से आवाजें दे रहा हूँ, कहाँ खोयी हुई हो” सौरभ जो काफी देर से उसे पुकार रहा था पास आ कर बोला।

“कुछ नही” अवनि फिर खिड़की से बाहर देखने लगी।

“चलो आज कहीं बाहर चलते हैं, क्रिसमस की रौनक लगी हुई है सब जगह” सौरभ ने उसका दिल बहलाना चाहा, वो जनता था रात की बात पर नाराज़ है अवनि।

“मेरा मान नही है, फिर कभी चले जायँगे” अवनि ने बेदिली से जवाब दिया।

“अच्छा यहाँ से तो उठो ,ठण्ड लग जायगी” हाथ पकड़ कर उठाने की कोशिश की।

“कुछ नही होगा....... आं छः” अवनि को ज़ोर से छींक आयी।

“देखो बोला था ना, चलो उठो और बेड पर बेठो, मैं अभी 2 मग गरमागरम कॉफ़ी बना कर लाता हूँ” अवनि को बेड पर बैठा पर किचन में चला गया। सौरभ के फोन पर बेल बजी..

“हेल्लो”

“....”

“हाँ माँ मुझे याद है”

“....”

“जब मैं कह रहा हूँ तो परेशान क्यों हो रही हो”

“....”

“नही, अभी नही.. कुछ वक़्त और लगेगा”

“किस का फोन है सौरभ” वो फोन पर बात करने में बिजी था कि अवनि ने किचन के दरवाज़े पर खड़े पूछा।

अवनि की आवाज़ पर घबरा कर अचानक मुड़ा और फोन बंद कर दिया “हाँ, किसी का नही, एक दोस्त का था”..... “तुम कहो क्या हुआ” सौरभ खुद को सँभालते हुए बोला।

“वो.. मेरे लिए कॉफ़ी लाइट रखना” कह कर अवनि कुछ सोचती हुई वापिस रूम में आ गयी।

“ये सौरभ किससे बात कर रहा था मेरे जाते ही फोन बंद कर दिया, कहीं ये कुछ करने वाला तो नही, मुझे कुछ छुवा रहा ह सोद्भ, मुझे क्या करना चाहिए.. सौरभ से पूछूँ या नही, अभी चुप रहना ही ठीक है” अवनि के मन में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे जिन्हें उसने मन में दबा कर रखना ही सही समझा।

“लो भई, कॉफ़ी तैयार है” सौरभ कॉफ़ी के 2 मग ले कर आया, अब वो खुद को पूरी तरह नार्मल कर चूका था। दोनों ने साथ कॉफी पी और दूसरी बातों मे लग गए।

....To be continue in part 5

Dear readers, apko meri likhi kahani kysi lagi, plz feel free to comment & share.. ur comments are precious for me, i’ll take ur comments as feedback..

My next novel will be publish as paperback soon (InSha ALLAH) stay in touch with Matrubharti messages..

Thank you.. -Khushi Saifi