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देह के दायरे - 23

देह के दायरे

भाग - तेईस

प्रातः के दस बज रहे थे | रात-भर वर्षा होती रही थी और अब भी उसके बन्द होने के आसार दिखायी नहीं दे रहे थे | देव बाबू घर से निकलने के लिए वर्षा रुकने की प्रतीक्षा कर रहे थे | इस मध्य वर्षा कुछ हल्की हुई तो वे घर से निकल पड़े |

देव बाबू के घर से जाने के बाद पूजा ऊपर पंकज के कमरे की तरफ चल पड़ी | पंकज आज अभी तक सोकर नहीं उठा था | आज सुबह उसने उनके साथ चाय भी नहीं पी थी | पूजा चाय देने के बहाने ऊपर जाकर वर्षा की झरती बूँदों का आनन्द लेना चाहती थी |

चाय लेकर पूजा ऊपर कमरे में पहुँची तो पंकज अभी तक चादर ताने सो रहा था | पूजा के पुकारने से उसकी नींद टूटी |

“आज सोते रहोगे क्या?” पूजा ने चाय का प्याला उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा |

पंकज ने आँखें मलते हुए हाथ आगे बढ़ाकर उससे चाय का प्याला ले लिया | पूजा वहीँ पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गयी |

देव बाबू स्कूल का एक आवश्यक रजिस्टर घर पर भूल गए थे | उसके लिए उन्हें राह से लौटना पड़ा | पूजा को नीचे न पाकर वे उसे ऊपर पंकज के कमरे में देखने के लिए चल दिए | उसका अनुमान ठीक था | पूजा वहाँ बैठी पंकज से बातें कर रही थी | देव बाबू एक पल को वहीँ रुक गए और उन्होंने सामने खिड़की में से अपनी दृष्टि कमरे में जमा दी | वे उनकी बातों को सुनकर यह अनुमान लगाना चाहते थे कि अपने उद्देश्य में वे अब तक कितने सफल हुए हैं |

घूँट भरकर चाय के प्याले को मेज पर रखते हुए पंकज पूजा से कह रहा था, “पूजा, रात को देव बाबू के जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज आ रही थी | क्या फिर कोई झगड़ा हुआ था?”

“झगड़ा किस दिन नहीं होता पंकज!”

“लेकिन बात क्या थी |”

कुछ पल तो पूजा मौन रही परन्तु फिर सब कुछ छिपाने में स्वयं को असमर्थ पाकर उसने सच बोल दिया,

“रात बादलों की तेज गर्जना, बिजली की चमक और तूफान से डरकर मैं उसके बिस्तर पर चली गयी थी | बस, यही अपराध था मेरा, जिसके कारण मुझे उनके क्रोध और अपमान का सामना करना पड़ा | तुम बताओ पंकज! मेरा अपराध क्या है?” कहते हुए वह स्वयं पर से नियन्त्रण खोकर सुबक उठी |

“पूजा कब तक सहोगी यह सब? कब तक मारोगी स्वयं को | मुझसे यह सब कुछ नहीं देखा जाता | मुझे यहाँ से जाने दो पूजा |” पंकज कह उठा |

“नहीं पंकज, तुम्हारे चले जाने से क्या स्थिति सुधर जाएगी?”

“कम से कम मैं तुम्हारी यह स्थिति देखकर दुखी तो नहीं हूँगा |”

“पंकज, अब कम से कम मैं तुम्हारा साथ तो अनुभव करती हूँ | तुम्हारे जाने के बाद तो वे मुझे प्रताड़ित करने को पूरी तरह स्वतन्त्र हो जाएँगे |”

“तो मुझे अपने मन की करने दो पूजा | मैं तुम्हें इस दलदल से बाहर निकल लेना चाहता हूँ |”

“मुझे कुछ समय दो | मैं स्वयं भी किसी निर्णय पर पहुँचना चाहती हूँ |”

“मैं तुम्हारे निर्णय की प्रतीक्षा में हूँ | अग्नि जब ताप देने के स्थान पर जलाने लगे तो उससे दूर हो जाना चाहिए |”

“हाँ, दूर ही होना पड़ेगा | अब मुझसे भी और सहन नहीं होता |” कहकर पूजा खिड़की से दूर क्षितिज की ओर देखने लगी जहाँ पर धरती और आसमान के मिलने का भ्रम हो रहा था |

बाहर खड़े देव बाबू ने भी सब कुछ सुना | वे अपने उद्देश्य में सफल हो रहे थे | एक गहरी मुसकान उनके मुख पर उभरी और वे निश्चित से होकर वहाँ से निकल गए |

मकान से निकलकर देव बाबू सीधे स्कूल पहुँचे | वहाँ पहुँचकर उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया | प्रधानाचार्य ने उनके इस अचानक व्यवहार का कारण पूछ तो कुछ स्पष्ट न बताकर वे बात को टाल गए | इसके उपरान्त उन्होंने सहयोगी अध्यापकों से विदा ली और चल पड़े |

राह में बैंक से होते हुए वे करुणा के घर पहुँचे | वहाँ बैठकर उन्होंने पूजा और पंकज के नाम दो पत्र लिखे | उन्होंने करुणा को अपने वहाँ से जाने का संकेत तो दिया मगर कहा कुछ नहीं | करुणा उनके संकेत को समझ नहीं पायी | उसने देव बाबू की बात को गहराई से नहीं लिया था | उसने उनसे कुछ देर वहाँ रुकने को कहा मगर वे वहाँ से निकल गए |

उस रात को जब देव बाबू देर तक घर नहीं लौटे तो पूजा को स्वाभाविक चिन्ता हुई मगर वह जानती थी कि उनके आने का कोई समय निश्चित नहीं है | रात्रि को बारह बजे तक प्रतीक्षा करके वह सो गयी | उसने सोचा कि अपने स्वभाव के अनुसार वे कहीं रुक गए होंगे |

अगले पुरे दिन प्रतीक्षा करने के उपरान्त भी जब देव बाबू नहीं लौटे तो पूजा की चिन्ता बढ़ गयी | सन्ध्या के सात बज रहे थे | पंकज भी स्टूडियो से आ चुका था | वह दो बार ऊपर से आवाज लगाकर उनके विषय में पूछ चुका था | पूजा खाना बना चुकी थी मगर देव बाबू घर नहीं लौटे थे |

पूजा ने पंकज को आवाज लगाकर नीचे बुला लिया |

“क्या बात है पूजा?”

“वे कल से अभी तक घर नहीं लौटे पंकज |” चिन्ता की गहरी लकीरें पूजा के मुख पर खिंच आयी थीं |

“कहीं चले गए होंगे |” उपेक्षा से पंकज ने कहा |

पूजा को पंकज की यह उपेक्षा अच्छी न लगी और वह तेज वर्षा से बचने के लिए छाता उठाकर बाहर जाने लगी |

“इतनी तेज बारिश में कहाँ जा रही हो?”

“स्कूल से शायद कोई खबर मिल जाए |”

“तुम यहीं ठहरो | स्कूल तो बन्द हो चुका होगा | मैं प्रिंसिपल का घर जानता हूँ, वहीँ होकर आता हूँ |” पूजा के हाथ से छाता लेकर वह बाहर निकल गया |

एकाएक पूजा को करुणा की याद आ गयी | शायद वे वहीँ रुक गए हों, इस विचार के आते ही वह तेज वर्षा की ओर ध्यान दिए बिना ही घर को ताला लगाकर वहाँ से चल पड़ी |

“भाभी आप!” तेज वर्षा से भीगती खड़ी पूजा को करुणा ने देखा तो वह कह उठी |

“वे कल से अब तक घर नहीं लौटे | तुम्हारे पास आए थे क्या?” पूजा एक ही साँस में कह गयी |

कुछ देर तक करुणा खड़ी सोचती रही और फिर उसने कहा, “कल दोपहर को दो बजे के लगभग वे मेरे पास आए थे | उस समय वे बहुत ही उखड़ी-उखड़ी-सी बातें कर रहे थे | कह रहे थे कि वे एक लम्बी पर्वत-यात्रा पर जा रहे हैं | मैंने तो सोचा कि वे अपने स्वभाव के अनुसार परिहास कर रहे हैं |”

पूजा खड़ी उसकी बातों पर विचार कर रही थी |

“क्यों भाभी, कोई झगड़ा हो गया था क्या?”

झगड़ा तो प्रतिदिन होता था |” एक आह भरकर पूजा ने कहा |

“क्या कर रही हो भाभी!” आश्चर्य से करुणा उसका मुँह ताकती रह गयी |

“चलकर देखती हूँ, शायद पंकज स्कूल से कोई समाचार लाया हो |”

“ठहरो भाभी, मैं भी साथ चलती हूँ |” कहते हुए करुणा ने अपना छाता उठा लिया |

“नहीं, नहीं, तुम क्यों कष्ट करती हो |”

“इसमें कष्ट की क्या बात है?” इतना कहकर करुणा ने कमरे को ताला लगाया और पूजा के साथ चल दी |

कमरे का द्वार अभी तक बन्द था | पंकज लौटा नहीं था | पूजा ने कमरे का ताला खोला तो दोनों अन्दर आ गयीं | पूजा ने बिजली जलायी और वे वहाँ बैठकर पंकज के लौटने की प्रतीक्षा करने लगीं |

“भाभी, यह सब हुआ कैसे?” करुणा स्थिति की गम्भीरता के विषय में सोचती हुई कह उठी |

“मैं कुछ नहीं जानती करुणा, मगर जब से तुम उन्हें मिली हो, वे एकदम बदल गए हैं | तभी से प्रतिदिन मुझे अपमान और प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है | मैं समझ नहीं पायी हूँ कि उन्हें हो क्या गया है |”

“भाभी, क्या इसमें मैं कहीं अपराधिनी हूँ?”

“जिस दिन तुम्हारे पास गयी थी, मैंने भी यही सोचा था | लेकिन तुमसे मिलने के बाद मुझे अपने मन की शंका निराधार लगी | सब मेरे भाग्य का दोष है...इसमें किसी का क्या वश चल सकता है |” पूजा की आँखों में आँसू छलक आए |

“दिल छोटा न करो भाभी, देव भइया अवश्य लौट आएँगे |” करुणा ने पूजा के आँसू पोंछ दिए |

“भगवान करे तुम्हारी बात सच हो मगर मेरा मन बुरी विचारों से घिर रहा है |”

सामने से छाता लिए, सिर झुकाए पंकज चला आ रहा था | उसे अकेला आता देख पूजा का मन बुझ गया |

“कुछ पता चला?” पास आकर दरवाजे पर ही पूजा ने पूछा |

“उन्होंने कल स्कूल से त्यागपत्र दे दिया है!” आश्चर्य और दुःख में डूबी पूजा खड़ी न रह सकी | वह गिरने को ही थी कि पंकज ने उसे थामकर कुर्सी में बैठा दिया |

कुर्सी में धँसी पूजा छत की ओर ताक रही थी | पंकज भी खामोश सिर झुकाए वहीँ बैठ गया | दरवाजे के सहारे लगे छाते से एक पानी की लकीर बहकर कमरे में फैल रही थी |

करुणा पूजा को दिलासा देती रही | पंकज भी ऊपर जाने का साहस न कर सका | कुर्सी में धँसा वह सिगरेट फूँकता रहा | सारी रात आपस में सोच-विचार होता रहा लेकिन कोई कुछ नहीं समझ पा रहा था |

सभी अलग-अलग कई बार यह सोच चुके थे कि शायद देव बाबू ने आत्महत्या कर ली हो मगर अपना यह विचार कोई भी दुसरे पर प्रकट करने का साहस नहीं कर पा रहा था | सभी रह-रहकर एक-दुसरे की आँखों में यह विचार पढ़ रहे थे मगर तीनों ही खामोश थे |

रह-रहकर तीनों के मध्य मौत का-सा सन्नाटा फैल जाता | एक आशा लिए तीनों की निगाहें किसी भी आहट पर दरवाजे की ओर उठ जातीं मगर जाने वाला नहीं लौटा |

बाहर वर्षा थम चुकी थी मगर तेज हवा अब भी भयावनी आवाज कर रही थी | तीनों ने ही वह रात वहाँ ख़ामोशी के बिच बैठकर काटी |

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