"सुर"
CHAPTER-02
"राका का फ़ोन"
JHANVI CHOPDA
Disclaimer
ALL CHARECTERS AND EVENT DEPICTED IN THIS STORY IS FICTITIOUS.
ANY SIMILARITY ANY PERSON LIVING OR DEAD IS MEARLY COINCIDENCE.
इस वार्ता के सभी पात्र काल्पनिक है,और इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति के साथ कोई संबध नहीं है | हमारा मुख्य उदेश्य हमारे वांचकमित्रों का मनोंरजन करना है |
आगे आपने देखा....
परवेज़ की बातों से दादू बेहद परेशान था। जुबेर ने उसे तसल्ली देकर समजाने की कोशिश कि, की आज भी सब कुछ वैसा ही है जैसे पहले था, कविता लिखने का एक शोख़ परवेज़ को नहीं बदल सकता। लेकिन दादू उन बीतें 3 सालों में जो कुछ हुवा था उससे परेशान था। वो फिरसे एक खतरनाक गैंगस्टर को पैदा होते हुए नहीं देखना चाहता था।
***
अब आगे.....
‘वख्त बदला, पहेचान बदली, रुतबे बदले! लेकिन तुम्हारीं सोच आज भी वैसी की वैसी है, परवेज़ !’_जुबेर ने कहाँ।
‘हम भी वही होते है, रिश्ते और रास्ते भी वही होते है ! बदलता है तो बस, वक्त... एहसास और नज़रिया !’
‘कुछ नहीं बदला यार, कुछ भी नहीं ! वही अंदाज, वही दिल को चिर देने वाली बातें ! दादू की चिंता बेवजह नहीं है, मंजिल भूलते जा रहे हो तुम..!’
‘कभी कभी सफ़र मंजिल से ज्यादा खुबसूरत होता है, जुबेर !’
‘लेकिन, तुम्हारे उन तिन सालों का सफ़र सिर्फ काँटों की सेज था, भूल गए !??’
‘लगता है, उन काँटों की सेज पर फुल बिछाने कोई आने वाला है, दोस्त !’
‘तुम ही कहेते हो ना, की दिल नहीं है तुम्हारे पास ! फिर ये “सुर”.....ये “कविता” है क्या ये सब कुछ ?? और है कौन ये मोहतरमा, जिसे देखकर आपके सारे के सारे “सुर” हिल गए !?’
‘मैं नहीं जानता जुबेर ! कौन थी वो, नाम क्या था उसका ! बल्कें मैंने तो उसका चहेरा तक नहीं देखा, कितनी भाग-दौड़ मच गई थी उस दिन, ठीक से देख ही नहीं पाया कुछ ! अगर कुछ याद है मुझे तो, वो“सुर”....वो “आवाज़”, जो सीधे आके मेरे कानों में गिरी !’
‘ऐसा तो क्या बोली थी वो ?’
‘भाई ! जल्दी कीजिए, दादू बुला रहे है आप दोनों को, बड़े गुस्से में लग रहे थे | “राका” का फ़ोन आया है, जल्दी कीजिए...|'_ पीछे से अमोल आया और बिना साँस लिए एक ही बार में इतना बोल के, दौड़ के चला गया |’
‘क्या ? राका का फोन ??’ _परवेज और जुबेर दोनों एक-दुसरे के सामने देखकर बोल पड़े | दोनों दौड़ के दादू के पास गए |
( राका- मतलब दादू के सभी गुनाहों का एक अकेला गवाह...। राका एक समय में दादू का सबसे अच्छा दोस्त हुवा करता था | दादू और राका ने मिलकर ही काले धंधो को शुरू किया था | कुछ साल बाद राका की नियत बिगड़ी, उसने सब कुछ हडपने के लिए दादू से ग़द्दारी की, और फिर दोनों की दोस्ती बदल गई दुश्मनी में !)
दादू के हाथ में चद्दर थी। परवेज ने फोन स्पीकर पे रखा, ताकि सब सुन सके |
राका: ‘दादू, कैसा लगा मेरा तोहफ़ा ? तेरे लिए हरी चद्दर भिजवाई है, कल जा के मजाल पे चढ़ा आना !’
दादू: ‘किस ख़ुशी में ??’
राका: ‘सुना है की तेरा बच्चा कवि बनने वाला है, कविताए लिखने का शोख चढ़ा है आज-कल परवेज़ को ! भई, जरा पढ़ के सुनाओ, हम भी तो सुने, खून से रंगे हाथों ने लिखा क्या है !’
दादू: ‘जरुर सुनाएँगे, वो भी बहोत जल्द ! लेकिन कविता नहीं, गोलियां चलने की आवाज !’
राका: ‘दादू....! मेरे ऐक्स(x) दोस्त..! फ़िकर होती है मुझे तुम्हारी ! शांत रहा करो तुम, गुस्सा तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा नहीं है ! बहोत कुछ देखना बाकि है तुम्हें...| कितने सँजो सँजो के मोती पिरोये थे तुमने...अभी तो सिर्फ माला टूटी है...मोती कभी भी बिखर कर बहार आ सकते है !’
ये सुनकर परवेज़ से रहा ना गया | वो कुछ भी सह सकता था, लेकिन दादू की बेज्जती नहीं...इस लिए वो बोल पड़ा...
परवेज़: ‘राका...आ...आ..! अभी तो सिर्फ ट्रिगर चढ़ा है, गोलियां कभी भी बहार आ सकती है ...और तेरे जैसे नामर्द हमने पाल नहीं रखे जिसे पीठ पीछे छुरा भौकना आता हो...।’
राका: ‘परवेज़...! कितनी बार कहां है तुम्हें....जब बड़े बात कर रहे हो, छोटे बिच में नहीं बोला करते | और अब चाहे तुम कितने भी तेवर दिखाओ, बाजी तो मेरे हाथ में है ! पनवेल में पुलिस भिजवाई थी, तभी समज जाना चाहिए था तुम्हें, की अब तो तुम कलेक्टर की बेटी को पकड़ने से रहे | राका के रहेते हुए तुम किडनेपिंग की सदी पूरी नहीं कर सकते |’
परवेज़: ‘राका ! लगता है उम्र के साथ तुम्हारी याददाश भी कमजोर पड़ने लगी है | ये मेरा १०० वाँ शिकार था और परवेज़ अपना शिकार कभी नहीं चुक सकता ! सदी पूरी हो चुकी है....क्योंकि “तारा” अब हमारे कब्जे में है |’
.....इतना बोल के परवेज़ ने फ़ोन रख दिया। इस ओर दादू, जुबेर, अमोल... सब दंग थे की "ये कब हुवा!!!" अभी तक तो "तारा" का कोई ठिकाना नहिं था, और अचानक से कैसे किडनेप हो गई ...?
दादू अपना बायाँ पाँव दायें पाँव पर चढ़ाते हुए बोला_ 'कलेक्टर की बेटी कोई "हुर-परी" है क्या? जो ऊपर से टपकेगी ! जोश में होश नहीँ गवाना चाहिए...और लाओंगे कहाँ से तुम उसे इतनी जल्दी? हँन्नं !'
'वो कटेक्टर की बेटी "तारा" है....कोई आशमान का तारा नहीं, जिसे लाना नामुमकिन हो!' _ परवेज़ बोला।
'बातें जब कद से ज्यादा बढ़ने लगे ना! तो समज जाना चाहिए की सूरज डूबने को है...बेटा ! और राका कोई मामूली चीज़ नहीँ जिसे तुम मात दे सको...मैं ना दोस्त आसान बनाता हूँ ना दुश्मन ! लेकिन राका तो दोनों ही बन गया- दोस्त भी और दुश्मन भी! इसका मतलब की वो आसान नहीं है...!'
'वो आसान नहीँ है, तो मैं बहोत बड़ा कमीना हूँ...मैंने अगर कुछ बोला है तो जरूर उसके पीछे कोई वजह होगी! सब्र रखीये, शाम के पांच बजे तक, कलेक्टर की बेटी आपके सामने होंगी...!'
To be continue….
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