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देह के दायरे - 13

देह के दायरे

भाग - तेरह

विवाह की पहली रात | पूजा कमरे में फूलों से सजी सेज पर सिमटी हुई बैठी थी | घर में देव बाबू की एक रिश्ते की ताई के सिवाय और कोई न था | दोनों ओर के ही सम्बन्धी इस विजातीय विवाह से प्रसन्न नहीं थे | देव बाबू का तो अपना कहने को कोई सगा था ही नहीं, पूजा के रिश्तेदारों ने भी इस विवाह का बहिष्कार कर दिया था |

छत पर लगा नया पंखा घूम रहा था | ट्यूब लाइट का तेज प्रकाश कमरे में फैल रहा था | देव बाबू की ताई दिनभर के काम से थककर ऊपर छत पर लेटी आराम कर रही थी | पूजा के कान दरवाजे पर कदमों की आहट पर लगे थे |

हल्के से दरवाजा खुलने की आवाज से पूजा ने दृष्टि उठाकर उधर देखा | आगन्तुक ने कमरे में प्रवेश किया तो पूजा की दृष्टि वहाँ से हटकर फिर पलंग पर झुक गयी | वह तो देव बाबू को अच्छी तरह से देख भी नहीं पायी थी | यधपि देव बाबू उसके लिए अनजान नहीं थे परन्तु फिर भी उसका ह्रदय खुशी के साथ-साथ भय से तनिक घबरा भी रहा था |

धीरे-धीरे आगे बढ़ते देव बाबू पलंग के पास आकर खड़े हो गए | पूजा यंत्रवत् उठकर उनके पाँवों में झुक गयी | देब बाबू ने उसे उठाकर अपने वक्ष से लगा लिया | पूजा उनके ह्रदय से लगी धड़कनें सुन रही थी | दोनों ही मौन थे | कोई कुछ नहीं कह पा रहा था | हाँ, हृदय की धड़कनों की भाषा अवश्य ही दोनों समझ रहे थे |

देव बाबू ने उसे अपने हाथों का सहारा देकर पलंग पर बिठा दिया | ट्यूब-लाइट के तीव्र प्रकाश को बटन दबाकर उन्होंने हल्की गुलाबी मनोरम रोशनी में परिवर्तित कर दिया | बन्द दरवाजे पर लगा पर्दा पंखे की तेज हवा से इधर-उधर उड़ रहा था |

“पूजा, मेरा सपना साकार हो गया |”

“मैंने भी यही सपना देखा था देव |”

उसे रात देव बाबू का प्यार पाकर पूजा ने सोचा था कि उसे जीवन में प्यार का अभाव कभी नहीं होगा | बहुत सराहा था उस रात उसने अपने भाग्य को |

समय बहुत तेजी से व्यतीत होता जा रहा था | पूजा का दिन देव बाबू के लौटने की प्रतीक्षा और घर के कामों में कटता, शाम दूर-दूर तक घूमने में और रात्रि तो न जाने कब व्यतीत हो जाती |

दो सप्ताह का स्कूल से अवकाश लेकर मसूरी भ्रमण का कार्यक्रम बनाया गया | वहाँ दिन-भर घूमने-फिरने और मौज-मस्ती के और कोई काम ही नहीं था | हाथों में हाथ डाले वे ऊँची-नीची पहाड़ियों में दूर तक घुमने निकल जाते और जब लौटते तो थककर एक-दुसरे में खो जाते |

दिनों को जैसे पंख लग गए थे | पलक झपकते ही जैसे दो सप्ताह का समय व्यतीत हो गया | वे वापस लौटे तो फिर अपने मकान में अकेले थे | देव बाबू की ताई तो उनके मसूरी जाने से पहले ही गाँव चली गयी थी |

जिस दिन वे मसूरी से लौटे उस रात मौसम-परिवर्तन के कारण पूजा के सिर में असहनीय दर्द हो गया | पूजा देव बाबू को अपने दर्द के विषय में कुछ बताने में संकोच कर रही थी मगर मुख पर उभरे भावों से वे सब कुछ समझ गए थे |

पास आकर देव बाबू ने पूजा के माथे पर अपना हाथ रख दिया |

“तुम्हारा माथा तो जल रहा है पूजा | लगता है बुखार है और तुमने मुझे कुछ बताया भी नहीं |”

“कोई विशेष नहीं है देव! कुछ देर में ठीक हो जाएगा!”

“मैं डॉक्टर को बुलाता हूँ |”

“तुम किसी डॉक्टर से कम हो क्या! कुछ देर पास बैठोगे तो बुखार चुटकी में उतर जाएगा |” हँसते हुए पूजा ने कहा |

“मजाक न करो पूजा | मैं अभी आता हूँ |” कहकर देव बाबू उठकर जाने लगे तो पूजा ने उनका कमीज पकड़कर उन्हें रोक लिया |

“थोड़ी-सी थकान है देव, आराम करने से ठीक हो जाएगी | तुम तो व्यर्थ ही मेरी इतनी चिन्ता करते हो |” पूजा ने कहा |

देव बाबू पूजा के सिरहाने बैठ गए | कुछ पल उनकी उँगलियाँ उसके बालों में खेलती रहीं और फिर वे उसका माथा दबाने लगे |

“क्या कर रहे हो!” पूजा ने उनका हाथ पकड़ लिया |

“तुम्हारे सिर में दर्द है पूजा?”

“अब ठीक हो गया है |” पूजा ने झूठ कहा |

“नहीं...नहीं...बिलकुल ठीक होने दो |” पूजा से हाथ छुड़ाकर वे पुनः उसका माथा दबाने लगे |

“क्यों मुझे पाप की भागी बना रहे हो देव!”

“मुझे अच्छा लगता है |”

“नरक में, वाह भई! खूब कही तुमने भी | तुमने कृष्ण-लीला की वह कहानी पढ़ी है?”

“कौन-सी?”

“लौ, मैं तुम्हें वह कहानी सुनाता हूँ |” कहते हुए उन्होंने बातों में उलझा लिया पूजा को और उसे यह कहानी सुनाने लगे |

“एक बार कृष्ण की गोपियों में यह विवाद छिड़ गया कि कौन कृष्ण को सबसे अधिक प्यार करती है |”

“फिर...|” पूजा ने कहा |

“कृष्ण महाराज ने उस सबकी परीक्षा लेने का निश्चय किया |”

“कैसे?”

“अचानक उनके पेट में बहुत जोर से दर्द हुआ | मारे दर्द के वे छटपटाने लगे | वैध-हकीम बुलाए गए लेकिन कोई अराम नहीं हुआ | सभी रानियाँ, गोपियाँ और दासियाँ चिन्तित-सी वहाँ खड़ी थीं | तभी कृष्ण महाराज के एक सखा ने बताया कि यदि कृष्ण का कोई चाहने वाला अपने पाँव धोकर वह पानी उन्हें पिलाए तो उन्हें आराम आ सकता है |”

“फिर...|” पूजा ने उत्सुकता से पूछा |

“फिर सभी एक-दुसरे का मुख ताकने लगीं | सभी कृष्ण को प्यार करती थीं परन्तु उन्हें अपने पाँव का पानी पिलाकर नरक का भागी कौन बनती | सभी ने मना कर दिया | बात राधा तक पहुँची | दौड़ती हुई वह महल में आयी और सब कुछ सुनकर बेझिझक अपने पाँव का पानी उन्हें पिलाने के लिए तैयार हो गयी |”

“ओह...|” पूजा के मुख से निकला |

“एक गोपी ने राधा से कहा कि क्यों वह ऐसा करने अपना जीवन बिगाड़ रही है; उसे सीधा नरक में जाना पड़ेगा | यह सुनकर भी राधा विचलित नहीं हुई और कहने लगी कि क्या हुआ जो उसे नरक जाना पड़ेगा, उसके प्राणेश्वर तो ठीक हो जाएँगे | उस समय सभी के मुँह लटक गए जब कृष्ण महाराज ने कहा कि वे तो परीक्षा ले रहे थे कि कौन उन्हें सबसे अधिक चाहती है और राधा उस परीक्षा में विजयी रही |” कहकर एक पल को वे मौन हो गए |

“तुमसे बातों में तो मैं नहीं जित सकती देव |” पूजा ने कहा |

“हमारे मध्य हार-जीत का प्रश्न ही कहाँ है पूजा |”

“मुझसे इतना प्यार क्यों करते हो देव?”

“कहाँ कर पाता हूँ पूजा | जी तो चाहता है तुम्हारी प्रत्येक इच्छा को पूरी कर दूँ | चाँदनी रात में आकाशगंगा के पथ पर तुम्हें साथ लेकर आगे बढ़ता रहूँ | सारे संसार की खुशियाँ मैं तुम्हारी झोली में डाल देना चाहता हूँ |”

“कुछ भी तो शेष नहीं बचा देव, जो तुमने मुझे न दिया हो | अब सो जाओ, रात आधी से अधिक बीत चुकी है |”

“सिर का दर्द कैसा है?”

“मालूम ही नहीं कि मुझे सिरदर्द भी था |”

प्यार से कुछ देर पूजा के माथे पर हाथ फिराते रहे देव बाबू और पूजा की आँखें स्वतः ही बन्द होती चली गयीं |

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