प्रत्येक बच्चा अनूठा है,खास है... Vipul Solanki द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

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प्रत्येक बच्चा अनूठा है,खास है...

प्रत्येक बच्चा अनूठा है खास है ....

एक बार की बात है , मुल्लाह नसरुद्दीन अपनी बाल्कनी मे बैठा था तभी एक सुंदर पक्षी आकर वहा बैठा। मुल्लाह को तो अनुभव सिर्फ कबूतरो का था वह सोचने लगा की ऐसा कबूतर पहेली बार देखा,क्यो की इस पक्षी की चोंच लंबी थी,पंख भी कबूतर के पंख से बड़े थे,रंग भी भिन्न था, सिर पर कलगी थी। तो मुल्लाह ने उस सुंदर पक्षी को पकड़ लिया ओर कहा – “ मालूम होता है की किसिने तुम्हारी कदर नहीं की” , “मालूम होता है किसी ने तुम्हारा ख़याल नहीं रखा” पर अब तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारा ख़याल राखूगा।

मुल्लाह अपने कमरे के भीतर गया ओर केंची लेकर आया और उस सुंदर पक्षी की चोंच काटकर कबूतर की तरह कर दी , फिर उसके पंखो को काटकर छोटा कर दिया अन्त मे कलगी भी काटकर उसे कबूतर जैसा बना दिया।

दोस्तो, हर एक बच्चा विशिष्ट पैदा होता है, प्रत्येक बच्चा अनूठा होता है खास होता है.... पर इन्सानो को सिर्फ अपने जैसे “कबूतरों” का ही अनुभव होता है। वो अपने बच्चो को बड़े होते होते काटकूट कर कबूतर जैसा बनाकर छोड़ते है।

भाग्य से कुछ बच्चे अपने आपको बचाने मे कामयाब हो जाते है। संसार की सबसे बड़ी दुर्दशा ही यही है की ज़्यादातर बच्चे भी अपनी विशिष्टता को भूलकर कबूतर बन ने मे लग जाते है। जिस व्यक्ति को जिस चीज़ का अनुभव है,जिस चीज़ से वो परिचित है वो नई पीढ़ी को भी उसी अनुसार तैयार करने मे लग जाता है।

अगर किसी व्यक्ति ने अपमे इर्द-गिर्द सरकारी नौकरी करने वाले कबूतरों को देखा है तो वह भी अपने बच्चो को नौकरी करने वाला कबूतर बनाने मे लग जाता है। उस बच्चे की ख्वाहिशों का, उसके अनूठेपन का उसकी विशिष्टता का ओर उसमे छिपी सारी संभावनाओ का क़तल कर दिया जाता है

क्या आप भी अपने बच्चो को “कबूतर” बनाने मे नहीं लगे है???

प्रत्येक बच्चा अनूठा है, खास है .... 2

कुछ दीनो पहेले की बात है, सोशियल मीडिया पर पर एक फोटो देखा जिस को देखकर मुजे फिर से इसी विषय पर लिखने की प्रेरणा मिली।

कहानी कुछ इस प्रकार से है, जंगल मे हाथी का छोटा सा नया जन्मा हुआ बच्चा था जिसकी दोस्ती नये जन्मे हुये चिड़िया के बच्चे से हो जाती है दोनों साथ साथ मे बड़े हो रहे होते है बच्चो के माता-पिता भी अपने बच्चो के नये मित्र से परिचित थे देखते देखते 1 साल बीत जाता है ओर अभी दोनों बच्चो की उम्र 1 साल की हो चुकी है ओर एक दिन उस हाथी की माँ उसे कहेती है “देख तेरे दोस्त को वो भी तेरी तरह 1 साल का हो गया है ओर आसमान मे उड़ना सीख गया है ओर तू??? तू कुछ कम का नहीं है”

दुर्दशा तो यह है की यह कहानी सारे परिवार की कहानी है,प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चो की तुलना उनके दोस्तो से करते है अगर अपने बच्चे से उसका दोस्त किसी 1 चीज़ मे भी आगे है तो उसकी भावनाओ के साथ गंदे तरीके से खिलवाड़ किया जाता है उसकी विशिष्ट क्षमता को दबा दिया जाता है हो सकता है उनके बच्चे मे भी कोई विशिष्ट गुण हो पर फिर भी उसे नीचा दिखाया जाता है, मुजे लगता है है बच्चो की शिक्षा के साथ साथ माता-पिता की शिक्षा की भी जरूरत है की अपने बच्चो से केसा व्यवहार किया जाए केसे उनको निखारा जाए जिस से बेहतर समाज का निर्माण हो सके। मैंने तो यहा तक देखा है पैदा होते ही बच्चे पर सारी चिजे थोपी जाती है पहेले धर्म फिर नात-जात फिर बच्चो की पसंद नापसंद भी वाकई मे उनके माता पिता की ही पसंद या नापसंद होती है अगर पीतश्री या माताश्री कुछ नहीं बन पाये तो अब ये बच्चो का कर्तव्य हो जाता है की वो अपनी रूहानी ख्वाहिशों को मारकर अपने माता-पिता के मारे हुये सपनों को जिंदा करने मे अपनी जिंदगी गवा दे।

दोस्तो, प्रत्येक बच्चा अनूठा है खास है उसे खास ही रहेने दे प्रत्येक बच्चा कली है जिसे खिलकर फूल बनकर महक ने दे।फूल बन ने से पहेले ही उसका गला ना घोट दे।

क्या आप भी अपने बच्चो की तुलना तुलनात्मक रूप से जानवरो की तरह तो नहीं करते है???

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कहानी कुछ इस प्रकार है, रॉबर्ट रीझनर केलिफोर्निया की पालो आल्टो स्कूल के सुपरीटेंडन्ट थे तब स्कूल के ट्रस्टी बोर्ड के प्रमुख ने उन्हे पत्र लिखा जो बाद मे अखबार मे प्रसिद्ध हुआ। प्रमुख पोली टेनर का बेटा जिम, जो स्कूल मे पढ़ रहा था उसकी समस्या थी की वह पढ़ने लिखने मे कमजोर था उसके माता-पिता ओर शिक्षक भी उसे सीखाते सीखाते थक चुके थे। जिम बहोत ही प्यारा मीठा और आनंदी लड़का था वो जहा कही पर भी जाता पूरे वातावरण को आनंद और खुशियो से भर देता था। उसके माता पिता चाहते थे की उसके भीतर छिपी क्षमता बाहर आये, भले ही वो कम पढ़ पाये पर उसकी ज़िंदगी सुकून से जी पाये। पर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था जिम की हाईस्कूल पूरी होने के बाद एक हादसे मे उसकी मौत हो गयी उसके मरने के बाद उसकी माँ ने यह पत्र लिखा जो अखबार मे प्रसिद्ध हुआ जो आपके दिल को छु जाएगा।

“आज हमने हमारे बेटे ही दफ़नविधी पूरी की। उसकी मौत एक बाइक हादसे मे हुई, उसको जब मे आखरी बार मिली तब अगर मुझे पता होता की अब हम कभी नहीं मिल पायेगे तो मे उसे बार बार कहती, “जिम आइ लव यू” मुझे तुझ पर नाज़ हैं”

“उसके आने से हमारी और हमारे आसपास के लोगो मे कितनी खुशियाँ आई उसके बारेमे मे सोचती उसके मधुर स्मित को उसकी लोथपोथ हसी को उसके प्रेम को मैं जीती”

“पर उसके बदले मैंने उसे उसकी जोरों से गाना बजने की, बालो को लंबा रखने की और गंदे कपड़ो को पलंग के नीचे छुपाने की आदत के लिए उसे डांटा करती जबकि उसकी अच्छी छीजो के बारे मे मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया”

“अब उसके साथ बात करने का मौका मुझे नही मिलेगा कितना कुछ कहना चाहती थी पर अब नहीं कह पाऊँगी।”

“पर मैं दुनिया के सारे माँ-बाप से कहना चाहती हूँ की आपके पास मौका है आपके बच्चो को आप जो भी कहना चाहते हो वो उन्हे उस तरीके से कह दो जैसे यह आपकी आखरी मुलाक़ात हो।मेरा जिम जब मुझे आखरी बार मिलने आया तब कह रहा था, “हाय मोम मैं आपको कहने आया हूँ की मे बाहर जा रहा हु आई लव यू बाय” उसके यह आखरी शब्द मेरे लिये खजाना बन गये हैं।”

दोस्तों,वक़्त कभी किसी का इंतजार नहीं करता आप अपने बच्चो को जो भी कहना चाहते हो कह दो आज ही प्रेम के प्रवाह को बहने दो...

ज़्यादातर भारतीय माँ-बाप अपने बच्चो से यह कहने मे संकोच रखते हैं की वो उनसे कितना प्यार करते है। यह हमारी दुर्दशा है की माँ-बाप बच्चो को शर्मिंदा करने मे या उन्हे नीचा दिखने मे जरा सा भी संकोच नहीं करेगे पर प्यार को जताने मे “ओकवर्ड” फील करते है।

काश की पश्चिमी संस्कृति से हम प्यार का इज़हार करना सीख पाते!!!प्यार की कमी नहीं है पर हमारी संस्कृति के नाम पर अब हम मानसिक तोर पर विकलांग हो चुके हैं काश की माँ-बाप खुद भी अपने प्यार को अभिव्यक्त करते और अपने बच्चो को भी सीखाते पर नहीं हमारी संस्कृति हमे सिखाती है घर से निकलते वक़्त भगवान का नाम लो उस भगवान का जिसका प्रत्यक्ष कोई अनुभव ना बच्चो को है नहीं उनके माँ-बाप को है।पर हम यह कभी नहीं कह सकते हम अपने बच्चो से कितना प्यार करते है या बच्चे अपने माँ-बाप से कितना प्यार करते है उस प्यार को हम बयान नहीं कर सकते जो पैदा होते ही हम अनुभव करते है।

संस्कृति के नाम पर बच्चो पर विकृति थोपने से बहेतर यह होगा की हम उसे सीखा पाये की जब वह अपने प्रियजनों के लिये प्यार से भर जाता है तो वह अपनी भावनाओ को बिना संकोच के अपने प्रियजनों को ऊष्मापूर्ण आलिंगन देकर व्यक्त कर सके।

बच्चे सीखते है उनसे जिनके साथ वह सबसे ज्यादा वक़्त बिताते है ओर वो लोग है उसके परिवार वाले उसके माँ-बाप पर शर्मनाक चीज तो यह है की उसने कभी अपने आ-बाप को भी अपने प्यार की अभिव्यक्ति करते नहीं देखा।

प्रत्येक बच्चा जिस चीज़ का सबसे पहले अनुभव करता है वह है प्यार और ऊष्मा। हम सब प्यार के धागे से ही जुड़े हुये है। कोई माँ-बाप चाहे कितने ही गरीब क्यो ना हो पर उनके पास भी प्यार की दौलत बेशुमार होती है और अगर प्यार का रस न जिस मे वो चाहे कितना ही हो अमीर वो गरीब है।

“हो सकता है आज आखरी मौका हो आज ही अपने बच्चो से कहे की वो आपके लिये कितने खास है,और आप उनसे कितना प्यार करते है।

प्रत्येक बच्चा अनूठा है खास है ....4

स्टीफन ग्लेन नामक संशोधक वैज्ञानिक के बारे मे मैंने पढ़ा। एक अखबार के पत्रकार ने उनसे पूछा की वो एक सामान्य व्यक्ति मे से इतने बड़े संशोधक कैसे बने? ऐसा कोन सा तत्व था जिनकी वजह से वो दूसरों से भिन्न बने?तब उन्होने कहा की इन सारी चीजों का मूल मेरे बचपन मे छिपा है।

“जब मैं दो साल का था तब फ्रीज़ मे से दूध की बोतल निकालते वक़्त मेरे हाथ से गिर गयी ओर सारा रसोईघर दूध से भर गया जब मेरी माँ ने यह देखा तब वह ज़ोर से चिल्लाने की जगह,बड़े बड़े भाषण देने की जगह या फिर मुझे सजा देने की जगह उन्होने मुझे प्यार से कहा “रोबर्ट,ऐसा दूध का तालाब मैंने पहली बार देखा” जो हुआ सो हुआ इसको हम साफ कर ही लेंगे , पर तुजे थोड़ी देर दूध मे खेलना हो तो खेल ले”

रोबर्ट को मजा आई। उसने दूध मे खेलना चालू किया। थोड़ी देर के बाद माँ ने कहा “रोबर्ट ऐसे जब फर्श गंदी हो जाए उसके बाद उसे साफ भी करना होता है ओर बिखरी हुयी चीजों को सही जगह पर रख देना होता हैं। चलो अब हम सफाई करते है तुझे मे क्या दु जाड़ू, पोचा या फिर स्पंज?रोबर्ट ने स्पंज मांगा ओर माँ बेटे ने रसोईघर साफ किया”

सफाई पूरी होने के बाद माँ ने कहा “रोबर्ट ,दो छोटे हाथ मे दूध की बड़ी बोतल को पकड़ने का यह निष्फल प्रयोग था। अब तू एक काम कर एक खाली बोतल को लेकर बेकयार्ड मे जा ओर उसे पानी से भर कर उसे उठाने की कोशिश कर ओर फिर उसे गिराए बिना केसे रखा जाए वो तुझे आ जाएगा” कुछ निष्फल प्रयत्नो के बाद रोबर्ट ने यह सीख लिया की केसे बोतल को बिना गिराए रखा जाए”

रोबर्ट ने कहा की “इस बात मे जो सबसे बड़ी बात मे सीखा वो यह थी की गलती हो जाए तो उससे डरना नहीं होता उससे सीखना होता है ओर वैज्ञानिक संशोधन के पीछे भी यही सिद्धांत है कही बार संशोधन निष्फल जाते है पर वो कुछ सीखाकर जाते है जो आगे चलकर काम मे लगता है

काश सारे माँ बाप यह बात याद रखते तो कितना अच्छा होता!!!!!!

क्या आप अपने बच्चो को गल्ती करने पर कुछ नया सीखाते है या फिर डराते धमकाते है?

ज़्यादातर माँ बाप यह भूल जाते है की वो भी कभी बच्चे थे ओर उन्होने सीखने की शुरुआत गल्तियो से ही की थी , अगर बच्चा गल्ती करता है तो उस से यह प्रमाण मिलता है की वो सीखने की आगे बढ्ने की प्रक्रिया मे है।

अगर किसी माँ बाप को यह लगता हो की डराकर या धमकाकर बच्चो के लिए सहायक हो रहे है तो यह उनकी सबसे बड़ी मूर्खता है बच्चो को समझ ने के लिए हमे भी बच्चो के तल पर रहकर सोचने की ज़रूरत है।

अगर आपका बच्चा सफल होता है तो उसमे सबसे बड़ा योगदान आपका ओर आपके नज़रिये का ही होगा ओर अगर निष्फल होता है तो भी।

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मेरे पड़ोसी डेविड को दो बच्चे थे। एक पाँच साल का ओर एक सात साल का। एक बार वो अपने सात साल के लड़के केली को यार्ड मे निकली खरपतवार को मोवर से कैसे साफ करना वो सीखा रहा था। यार्ड के कोने पर आने के बाद उसे कैसे मोड़ना वह उसे वो सीखा रहा था तब किसी काम की वजह से उसे अपनी पत्नी ने आवाज़ लगाई ओर डेविड जब अपनी पत्नी जे को जवाब दे रहा था तब केलिने मशीन को ऐसे मोड़ा की दो फूट के अंतर मे उगे हुये सारे फूलो के पौधे भी कट गए !!!!!

डेविड ने बड़ी मेहनत से इनको उगाया था ओर बड़े जतन से उसे बड़ा किया था ओर उसके लिए उसको बड़ा अभिमान भी था जैसे ही उसने यह देखा की उसका दिमाग गया ओर उसकी आवाज बड़ी हो गयी ओर वो केली को डांटने लगा तब उसकी पत्नी जे दौड़कर आई और कहा की – “ डेविड डेविड, याद रख की हम बच्चो की परवरिश कर रहे है पौधो की नहीं”

इस द्रश्य को देखकर मुझे लगा की- माँ बाप के तौर पर हमे हमारा अग्रता क्रम चुन लेना चाहिए। बच्चे कही बार जानते या अनजाने मे कोई तोडफोड करे या कोई नुकसान करते है तो उसमे से कुछ भी हमारे बच्चो के आत्मगौरव से बढ़कर कुछ भी नहीं है वो चीज़ हमे उस वक़्त याद नहीं आती है। खिड़की का काँच लेंप या काँच की प्लेट तो उस वक़्त टूट चुकी होती है पर अब बच्चो के आत्मविश्वास को तोड़ने की या उसकी जीवंतता का गला घोटने की हमे गलती नहीं करनी चाहिए।

हमे यह कभी नहीं भूलना चाहिए की अपने बच्चो के आत्मविश्वास से बढ़कर दूसरी कोई मूल्यवान चीज़ नहीं है।

अगर मनोवैज्ञानिक तौर पर देखे तो जब आप अपने बच्चो के आत्मविश्वास का हनन करते है या उन्हे न कहने के शब्द कहते है तो वो मानसिक रूप से उनके दिमाग मे अंकित हो जाते है ओर वो अपने लिए नकारात्मक ओर हारने वाली प्रणाली को तैयार कर लेते है

जाने अनजाने मे आप अपने बच्चो की क्षमता का क़तल कर रहे है। ओर दुर्दशा तो यह है की शारीरिक तौर पर हुये क़तल की सजा तो हमारे यहा पर है पर जो क़तल हम अपने बच्चो का मानसिक रूप से करते है ओर प्रत्येक दिन करते उसकी सजा के लिए कोई प्रावधान नहीं है।

अगर विरासत मे जमीन जायदाद न दे सको को कोई हर्ज नहीं है पर अपने बच्चो को आत्मविश्वास रूपी दौलत विरासत मे ज़रूर देना।

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बहोत साल पुरानी बात है, एक गाँव था जिसका नियम था जब भी कोई नया परिवार उस गाँव मे रहने आता तो गाँव के सारे लोग उस नए परिवार से मिलने जाते ओर उनके लिए यथास्थिति भेटसौगते लेकर जाते। एकबार एक नया परिवार वहाँ रहने आया ओर सारे गाँव वाले बारी बारी से उन्हे मिलकर उन्हे भेट देने जा रहे थे तभी एक कुम्हार ने आकार उस परिवार को एक मिट्टी की कच्ची मूर्ति दी ओर कहा की आग मे डाल देना तो यह पक जाएगी ओर जैसे ही कुम्हार का परिवार गया एक सुथार का परिवार मिलने आया ओर उन्होने उस नए परिवार को लकड़े की मूर्ति दी ओर कहा की यह मूर्ति कच्ची है इसे रात भर पानी मे डुबोकर रख देना यह पक जाएगी। धीरे धीरे सारे गाँव वालों ने मिल लिया। रात हो चुकी थी ओर उस नए परिवार के मुख्या ने उन दो कच्ची मूर्तियो को देखा ओर सोचा की आज कुछ तूफानी करते है ओर उसने मिट्टी की कच्ची मूर्ति को पानी मे डाला और लकड़े की कच्ची मूर्ति को आग मे डाल दिया। नतीजा यह हुआ की जो दो सुंदर मूर्तिया पककर बेहतर कलाकृति बन शक्ति थी वो नष्ट हो गयी।

दोस्तो हमे इस कहानी से जो मूल्यवान सबक मिलता है वो यह है की हमारे बच्चे भी कच्ची मूर्ति की तरह है जिनके अंदर संभावनाये छिपी है वो बेहतरीन कलाकृति बन सके पर ज़्यादातर माँ बाप अपने बच्चो के साथ उस परिवार के मुख्या की तरह कुछ तूफानी करने की फिराक मे ही होते है ओर अपने बच्चो को बेहतर बनाने से पहेले ही नष्ट कर देते है

हो सकता है जो परिस्थिति दूसरे बच्चो के आत्मविकास के लिए सहायक हो वो आपके बच्चो के लिए विनाशकरी हो,सूरज की रोशनी अगर बर्फ पर गिरे तो वो पिगल जाता है ओर अगर वो ही रोशनी गीली मिट्टी पर पड़े तो वो सख्त हो जाती है।

ईश्वर ने प्रत्येक बच्चे को इतना अनूठा ओर भिन्न बनाया है की हो सकता है जिस नियम या परिस्थिति से दूसरा बच्चा मजबूत बनता हो वो आप के बच्चे को तोड़कर रख दे!!!!अगर आप मिट्टी की मूर्ति को बेहतर बनाने के लिए उसपर लकड़े की मूर्ति के नियम लागू करेगे तो परिणाम विनाशकारी ही होगा प्रत्येक बच्चे के पास अपना अनूठापन और खासियत है ज़रूरत है तो उस अनूठेपन ओर खासियत को समझने की ओर उसे निखारने की। आपकी योजना से बढ़कर ओर विशेष योजना उस परमसत्ता ने प्रत्येक बच्चे के लिए बनाकर रखी है। एक गुलाब के बीज मे सारी संभावना है की वो बेहतर गुलाब का फूल बन सके अगर उस गुलाब के बीज के लिए अगर आप उम्मीद करे की उसमे से कमल का फूल निकले ओर उस बीज को आप तालाब के कीचड़ मे डाल दे तो सारी संभावना खतम हो जाएगी।

क्या आप गुलाब के बीज को कमल का फूल बनाने की फिराक मे तो नहीं है?

  • विपुल सोलंकी