दूल्हा दुल्हन Shashi Devli द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दूल्हा दुल्हन

Shashi Devli

shashidevli1977@gmail.com

शादी के लिये समझदारी और सामंजस्य बेहद जरूरी है।ये गुण वैवाहिक जीवन को पूरी जिन्दगी सुखी बनाते हैं,रिश्तों में गहरी मजबूती लाते हैं ।अरेंज मैरिज वह है जिसमें दो परिवारों की पूर्ण सहमति के आधार पर लड़का और लड़की को सम्पूर्ण रीति रिवाजों के आधार पर परिणय बंधन में बांध दिया जाता है।रिश्ते की प्रगाढता के सम्बन्ध में यह शादी अधिक सुदृढ़ एवं लंबे समय तक चलने वाली मानी जाती है।अरेंज मैरिज में लड़के और लड़की के परिवार परस्पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।जिसके तहत दोनों परिवारों के मेल-मिलाप के दौरान वैवाहिक कार्यक्रम की रूपरेखा तय की जाती है।दोनों परिवार परस्पर समान जाति एवं रहन-सहन और आर्थिकी के आधार पर एक -दूसरे के अनुरूप ही होते हैं ।माना जाता है कि समान धर्म और जाति के रिश्तों में समझने एवं समझाने की कुशलता सरल होती है।विचारों में समानता होने से लड़का और लड़की के साथ -साथ दो परिवारों में भी अच्छे सम्बन्ध बन जाते हैं ।इस विवाह में परिवार के सदस्यों की सहमति ही महत्वपूर्ण मानी जाती है फिर चाहे विवाह करने वालों ने एक -दूसरे को कभी देखा भी न होगा।

हिन्दू विवाह प्रथा में लड़के और लड़की की जन्म कुण्डली को वैदिक युग से ही महत्वपूर्ण माना गया है।कुण्डली में नव ग्रहों के मेल मिलाप से ही रिश्ते को अग्रिम रूप दिया जाता है।तत्पश्चात लड़का और लड़की एक दूसरे से मिलकर अपने अपने विचारों का आदान प्रदान कर सकते हैं और फिर अपनी सहमति अपने परिवार जनों के सम्मुख जाहिर कर सकते हैं तभी रिवाजों के अनुसार सगाई यानी अँगूठी बदलने की रश्म पूरी कर दी जाती है।इस रश्म के बाद होने वाले दूल्हा-दुल्हन आपसी मेल-जोल और बातचीत को आगे बढ़ा सकते हैं जिसमें परिवार वालों को कोई आपत्ति भी नहीं होती है।परिवार की सहभागिता से दोनों अपने भविष्य के बारे में भी पूर्व से ही परिचित होते हैं ।परिवार के साथ जुड़े रहने पर वे जीवन में आने वाली परेशानियों के संकट से भी उबरने की हिम्मत रख पाते हैं ।सच मानो तो वैवाहिक रिश्ते में प्यार को और अधिक गहरा बनाने में परिवार के सदस्यों की अहम भागीदारी होती है।एक दूसरे के सुख दुख स्वयं अकेले के नहीं होते बल्कि पूरा परिवार जीवन भर साथ खड़ा होता है ।शादी दो लोगों की होती है पर जिम्मेदारी परिवारों की हो जाती है।हर रिश्ते को खुशी खुशी अपनाया भी जाता है और इन तमाम रिश्तों के बीच दूल्हा दुल्हन को एक दूसरे को समझना और जानना और भी आसान हो जाता है।हर रिश्ते की अहमियत दिल की गहराइयों से आँकी जाती है।मान-मर्यादाओं की नींव में जब रिश्ता बनता है तो वह निश्चित ही सुखमय जीवन का सूचक माना जाता है।

यहाँ सँस्कारों को मुख्य रूप से सर्वोपरि समझा जाता है।ऐसे रिश्ते आने वाली पीढ़ी को भी अत्यधिक संस्कारवान एवं गुणवान होने का संकेत समझा जाता है ।हर उम्र के रिश्ते आपसी सम्बन्ध को समय एवं उम्र के साथ और भी सुगढ़ एवं मजबूत बनाने में सहयोगी होते हैं ।अपने सुख दुख के साथ परिवार के सुख दुख को भी उतना ही महत्व दिया जाता है।त्योहारों में साथ मिलकर हर्षोल्लास का माहौल प्यार प्रेम को सर्वदा एक सूत्र के साथ बाँध कर रखता है।

हिन्दू रीति रिवाजों में साथ फेरों को विशेष मान्यता दी गयी है।जिसमें अग्नि को साक्षी मानकर साथ फेरे लिये जाते हैं तत्पश्चात दूल्हा दुल्हन की माँग में सिन्दूर सजाता है और आजीवन उसका होकर रहने की कसम खाता है।यहीं से गहरी मान मर्यादा को अपनाकर प्रेम की गहराई आंकी जा सकती है।ऐसे विवाह में यदि कटुता भी आये तो सर्वप्रथम परिवार के सदस्य मिलकर भ्रम और गलतफहमी को दूर करने में एक-दूसरे की मदद करते हैं ।ऐसे विवाह में रिश्ते टूटने का भय नहीं अथवा कम ही रहता है क्योंकि पारस्परिक सूझबूझ एवं पारिवारिक सहयोग से कटुता को दूर करने की पूरी कोशिश की जाती है।यानी कि अपने किसी उलझन या परेशानी में भी आप अकेले नहीं होते ।

प्रत्येक व्यक्ति को जीने के लिए एक सुव्यवस्थित समाज की आवश्यकता होती है जो उसे परस्पर सही गलत रहन-सहन आदि से उत्प्रेरित करने का कार्य करता है।इसलिए सामाजिक मान्यता सम्मान और प्रतिष्ठा पाने के लिए अच्छे सोचविचार वाले व्यक्ति हमेशा अरेंज मैरिज को ही अपनाते हैं ।यह शादी उन्हें समाज में ऊँचा दर्जा दिलाने के लिए एक सर्टिफिकेट की तरह कार्य करती है।व्यक्ति के मान सम्मान का दर्जा सर्वदा ऊँचा बना रहता है और वह अन्य लोगों के लिये भी आदर्श होने की प्रेरणा देता है।लव मैरिज अपनी खुशियों को सर्वोपरि मानकर की जाती है जिसे समाज एवं परिवार शीघ्रता से स्वीकार नहीं करता या फिर करता भी है तो बतौर प्रतिष्ठित मामलों में उनकी सहभागिता की अवहेलना ही की जाती है।भारत विविधताओं का देश है मगर फिर भी धर्म, जाति ,संस्कृति और परंपरा हमेशा से ही इसकी पहचान रही है।ईश्वरीय शक्ति एवं मंत्रों का उच्चारण समस्त सृष्टि को डगमगा देने की अवधारणा स्पष्ट करता है ऐसे में विवाह बिना मंत्रोच्चारण के सम्पन्न हो यह आसानी से स्वीकार कर पाना बहुत ही मुश्किल है।

मेरा मानना है कि ऐसा जीवन जीने का क्या फायदा जिसमें सिर्फ अपनी खुशियों को तवज्जह दी जाये और मा-बाप,भाई -बहन की भावनाओं की कोई कद्र ही न हो।सम्पूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देने वाले माता-पिता पल में अन्जाने बना दिए जायेंगे और सिर्फ अपनी महत्वाकांक्षा को सर्वोपरि मानकर पारिवारिक रिश्तों का त्याग कर दिया जाए।बल्कि समाज एवं घर परिवार जन्म लेते ही हमारा एक दायरा बन जाते हैं ।हमारे आसपास या हमसे जुड़ा हर रिश्ता प्रेम की एक मजबूत डोर होता है जिसे आसानी से तोड़ पाना बहुत मुश्किल है।ऐसे में परिवार ही एक ऐसा माध्यम होता है जो जीवन भर रिश्तों की मजबूती को दर्शाता है।जिसके दायरे में रहकर हम अपनी मर्यादाओं से भलिभांति परिचित हो जाते हैं ।शादी की स्वीकृति विचारों के आदान -प्रदान से दो परिवारों के आपसी सम्बन्ध को और गहरा और मजबूत बनाती है।ऐसे में यही प्रगाढता समाज में सर्वोच्च आंकी जाती है ।नैतिक मूल्यों की दृष्टि से अधिक विश्वसनीय एवं लाभप्रद सम्बन्ध अरेंज मैरिज मे ही देखा गया है बजाय लव मैरिज के।वैचारिक प्रखरता समय के साथ -साथ मानसिक अवधारणाओं को बदलने के लिये हमेशा उत्प्रेरक का काम करते हैं जिसमें जीवन की गतिविधियों में कई प्रकार से उतार चढ़ाव की स्थिति पैदा होती है।व्यक्ति सही गलत का निर्णय लेने में कठिनाई का अनुभव करता है।ऐसे में पारिवारिक संवेदनाएँ अत्यधिक सहायक सिद्ध होती हैं जिसके फलस्वरूप नयी दिशा पाकर व्यक्ति निराशाओं से बच जाता है।अधिकतर विवाह सम्बन्ध के टूटने का कारण भी यही वैचारिक परिवर्तन ही होते हैं ।ऐसे में परिवार मूल रूप से अपनी भागीदारी निभाकर रिश्तों के बीच तनाव को पनपने नहीं देते ।

अतः अरेंज मैरिज को ही आजीवन सुफल ,सुदृढ़ एवं सुव्यवस्थित नजरिए की मान्यता मिलती है।

शशि देवली

गोपेश्वर

जिला चमोली