बहादुर बेटी
(12)
आरती का धर्म-संकट.
आनन्द विश्वास
आज आरती के सामने दो ज्वलन्त समस्याऐं मुँहबाँऐं खड़ीं थीं और उनका हल खोजने के लिए उसके अन्तःमन में अविरल धर्म-युद्ध चल रहा था। इस धर्म-संकट में एक ओर तो था, उसका आका हिज़बुल रब्बानी को दिया हुआ वचन और दूसरी ओर था विशाल गणतंत्र का न्यायतंत्र और न्यायपालिका।
वह चाहती थी कि उसकी इस जटिल और ज्वलन्त समस्या का कोई सुखद समाधान निकाला जा सके। अतः उसने अपनी इस ज्वलन्त समस्या से घोष बाबू, रॉनली, मानसी और अपने अन्य सभी बाल-मित्रों को अवगत कराया।
यूँ तो घाटी में हुए आका हिज़बुल रब्बानी के आत्म-समर्पण की घटना और अनेक आतंकवादियों के साथ आतंकी अड्डे के तहस-नहस होने की घटना के समाचारों से दुनियाँ भर के समाचारपत्र ही अटे पड़े थे और मीडिया ने भी इन सभी ख़बरों का भरपूर कवरेज किया था।
आका की इस अप्रत्याशित आत्म-समर्पण की घटना का केन्द्र-बिन्दु भी तो आरती ही थी। आरती की दूर-दर्शिता और सूझ-बूझ के परिणामस्वरूप ही तो घाटी में से आतंकवादियों के विश्व भर में फैले हुए नैट-वर्क का मुख्य केन्द्र और आतंकवाद के अड्डे को समाप्त किया जा सका था।
फिर भी आरती ने अपने सभी मित्रों और घोष बाबू को वहाँ पर होने वाली हर घटना को विस्तार के साथ बताया। साथ ही उसने अपने मिशन की सफलता में आका हिज़बुल रब्बानी के द्वारा दिए गए उनके महत्व-पूर्ण योगदान और सहयोग के विषय में भी बताया।
उसने घाटी में पर्दा-प्रथा को समाप्त कर लड़कियों के हाथों तक कलम और किताब पहुँचाने के लिए आका हिज़बुल रब्बानी के भागीरथ-प्रयास की सराहना भी की। घाटी में हुए अकल्पनीय और अप्रत्याशित परिवर्तन से वह प्रभावित भी थी और प्रसन्न भी थी। क्योंकि इतने बड़े परिवर्तन की उसे कल्पना भी नहीं थी। और शायद इसीलिए उसके मन में आका हिज़बुल रब्बानी के प्रति आदर-सम्मान की भावना भी थी और सहानुभूति भी थी।
और अब वह यह जानना चाहती है कि क्या कोई ऐसा रास्ता हो सकता है जिससे कि वह न्याय और कानून की सीमाओं में रहते हुए आका हिज़बुल रब्बानी के बेटे शौकत अली रब्बानी को जेल से मुक्त करा सके और आका हिज़बुल रब्बानी को दिए हुए अपने वचन का निर्वहन कर सके।
घोष बाबू ने बताया कि उनके बचपन के मित्र मनसुख भाई पटेल का लड़का भास्कर पटेल आजकल सुप्रिम कोर्ट में एडवोकेट है और यदि इस विषय में उसकी राय ली जाय तो शायद समस्या का कोई सुखद परिणाम निकाला जा सके। तुरन्त ही घोष बाबू ने एडवोकेट भास्कर पटेल से सम्पर्क किया और दूसरे ही दिन शाम को कोर्ट से अपना सब काम-काज पूरा करने के बाद एडवोकेट भास्कर पटेल सीधा बचपन-फॉउन्डेशन के ऑफिस में पहुँच चुका था और अब उसके साथ में थे घोष बाबू, रॉनली और आरती।
सभी कुछ जानकारी लेने के बाद एडवोकेट भास्कर पटेल ने इस केस को हैन्डिल करने का मन बना लिया। हाँलाकि इस तरह के केसों को हैन्डिल करने से अक्सर वकील लोग बचा ही करते हैं पर अंकल घोष बाबू का आदेश था अतः एडवोकेट भास्कर पटेल के ना करने का तो प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता था।
दूसरे ही दिन एडवोकेट भास्कर पटेल ने आतंकवादी शौकत अली रब्बानी के केस की पैरवी करने के लिए अपने पेपर्स कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत कर दिए और कोर्ट से आरोपी शौकत अली रब्बानी से मिलने की अनुमति भी माँगी। जिसे माननीय कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और एडवोकेट भास्कर पटेल को आतंकी शौकत अली रब्बानी से मिलने की अनुमति दे दी।
चूँकि यह केस आतंकवादी गतिविधियों और बम्ब-ब्लास्ट की घटना से जुड़ा हुआ था, अतः इस केस की सुनवाई सुप्रिम-कोर्ट के दो जजों वाली स्पेशल बैंच की फास्ट-ट्रैक कोर्ट में हो रही थी और जिसकी सुनवाई की तारीख भी लगभग हर रोज़ ही पड़ रही थी।
एडवोकेट भास्कर पटेल और आरती को कोर्ट के लोगों से पता चला कि उनके इस ‘लाल-चौक बम्ब-ब्लास्ट’ वाले केस में पाँच आतंकवादी शामिल थे। जिनमें से दो आतंकवादी तो उसी समय पुलिस और सुरक्षाबल की गोलियों से मारे जा चुके थे, दो भागने में सफल हो गए थे और जिसे पुलिस पकड़ने में सफल हो सकी, वही है उनका मुवक्किल आतंकवादी शौकत अली रब्बानी।
लोगों ने बताया कि यह आतंकवादी यदि भागना चाहता तो समय रहते ही आसानी से भाग भी सकता था। क्योंकि उस समय तक न तो पुलिस ही घटना स्थल पर पहुँच सकी थी और ना ही अधिक लोगों का जमावड़ा ही वहाँ पर मौजूद था। इसके दूसरे दोनों साथी तो आसानी से भाग भी गए थे। पर इसने घटना-स्थल से भागने के बजाय बम्ब-ब्लास्ट में बुरी तरह से घायल और लोहू-लुहान महिला को अपने हाथों से उठाकर खुद ही ऐम्बुलेन्स तक पहुँचाया भी था और उस घायल महिला के कहने पर, उसके पर्स में से उसका मोबाइल फोन निकालकर उसके घर पर इस घटना की और उसकी नाजुक स्थिति के विषय में सूचना भी दी थी।
यह जानकर तो एडवोकेट भास्कर पटेल और आरती के मन में आका हिज़बुल रब्बानी के बेटे, शौकत अली रब्बानी से मिलने की जिज्ञासा और भी अधिक प्रबल हो गई। किसी आतंकवादी के द्वारा अपनी जान को जोखिम में डालकर इस प्रकार से किसी घायल व्यक्ति की सहायता करने की ऐसी घटना उन्होंने अपनी जिन्दगी में, शायद पहली बार ही सुनी थी। और इसीलिए उससे मिलने के लिए उनके मन में कौतुहल भी था और जिज्ञासा भी।
ऐसे सेवा-भावी आतंकवादी शौकत अली रब्बानी से मिलने के लिए जब एडवोकेट भास्कर पटेल और आरती जेल में पहुँचे तो आरती अपने मन की जिज्ञासा को और अधिक देर तक न रोक सकी और शौकत अली रब्बानी से पूछ ही बैठी-“आप आतंकवादी संगठन की टोली में शामिल क्यों हुए, अपनी स्वयं की इच्छा से या फिर किसी विवशता के कारण।”
किसी अपरिचित बालिका का जेल में किसी अंजान आतंकी से इस प्रकार का प्रश्न पूछा जाना कुछ अजीव-सा तो था। फिर भी आतंकी शौकत अली रब्बानी ने सहज भाव से आरती को उत्तर देते हुए कहा-“यह फैसला मेरे अब्बाज़ान का था और उनके आदेश का पालन करना मेरा कर्तव्य था। जिसे मैने पूरा किया है और मुझे अपने पकड़े जाने का कोई भी अफसोस नहीं है।”
“यह जानते हुए भी कि आपके अब्बाज़ान आपको गलत रास्ते पर जाने का आदेश दे रहे हैं, आपने उनके आदेश का पालन किया और उनका कोई विरोध भी नहीं किया।” आरती ने अपना तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा।
“हाँ, यह सच है, मैंने बिलकुल भी विरोध नहीं किया और वैसे भी उनके आदेश का विरोध करने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता था। अपने माता-पिता की खुशी में ही खुश रहना और उनके आदेश का पालन करना हर सन्तान का पावन कर्तव्य होता है।” शौकत अली रब्बानी ने आरती से कहा।
“फिर चाहे माता-पिता गलत आदेश ही क्यों न दें, तब भी।” आरती ने आश्चर्य भरे लहज़े में पुनः अपना तर्क प्रस्तुत किया।
बालिका आरती के कुतर्क को बाल-हठ मानकर शौकत अली रब्बानी ने आरती को समझाते हुए बड़ी ही शालीनता के साथ कहा-“मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी ने भी तो बिना कुछ सोचे समझे ही अपनी माता कैकई और अपने पिता राजा दशरथ के आदेश का पालन करते हुए, वनवास के लिए जाना उचित समझा था। तब क्या उन्होंने उनके आदेश का पालन करते समय, क्या कोई तर्क-वितर्क किया था या कोई विरोध किया था। और फिर वैसे भी अपने पवित्र-ग्रंथ रामचरित मानस में भी तो तुलसीदास ने कहा ही है-
अनुचित उचित विचार तजि, जे पालहिं पितु बैन।
ते भाजन सुख, सुजस के, बसहिं रमापति ऐन।
रामचरित मानस की चौपाई और उसके संदर्भ को सुनकर तो आरती और एडवोकेट भास्कर पटेल हक्का-वक्का ही रह गए। यह सब कुछ तो उनकी कल्पना के परे था। ऐसा तो उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। उनका मन श्रद्धा से नत-मस्तक हो गया और आँखें भीग गईं।
वातावरण की गम्भीरता को तोड़कर हँसते हुए शौकत अली रब्बानी ने आरती से पुनः कहा-“मैं भी एक पढ़ा-लिखा समझदार इन्सान हूँ और मैंने भी सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में मास्टर्स की डिग्री ली हुई है। मेरी बनाई हुई सॉफ्टवेयर डिवाइस को तो गूगल और माइक्रोसोफ्ट कम्पनी ने भी स्वीकारा था और जिसके लिए मुझे एक बहुत बड़ा ऑफर भी दिया गया था। मेरा तो विदेश में बहुत ही अच्छा-खासा जॉब था। पर अब्बाज़ान की जिद और उनकी खुशी के कारण ही मैंने जेहाद और आतंकी टोली में शामिल होने का निर्णय लिया। मेरे अब्बाज़ान से किसी मौलवी ने कह दिया था कि जेहादी बनने से और दूसरों को जेहादी बनाने से सीधे जन्नत मिल जाती है और खुदा का नूर बरसता है। इसीलिए वे जिद कर बैठे और मुझे जेहादी टोली में शामिल होने का आदेश दे दिया। मुझे तो इन सब बातों में बिलकुल भी यकीन नहीं है और ना ही कभी यकीन था। मैं अपनी इच्छा से जेहादी नहीं बना हूँ। अपने अब्बाज़ान का आदेश मानकर ही मैं जेहादी टोली में शामिल हुआ हूँ पर मैंने ऐसा कोई भी काम नहीं किया है जिसके लिए मुझे शर्मिन्दा होना पड़े या फिर सर झुकाना पड़े।”
“क्या तुम्हें मालूम हैं कि तुम्हारे ऊपर कौन-कौन से आरोप और धाराऐं लगी हैं।” भास्कर पटेल ने शौकत अली से पूछा।
“पुलिस ने मुझ पर आतंकवादी गतिविधि में शामिल होने का और बम्ब-ब्लास्ट कर कत्लेआम करने का आरोप लगाया है। पर मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया है और पुलिस किसी शाजिश के तहत, जान-बूझकर झूँठा केस बनाकर मुझे फँसा रही है।” आतंकी शौकत अली रब्बानी ने भास्कर पटेल को बताया।
“पर यहाँ के कानून के अनुसार तो यह बहुत गम्भीर आरोप होता है और इस आरोप के सिद्ध होने पर तो आजीवन कारावास या फिर फाँसी की सजा भी हो सकती है।” भास्कर पटेल ने कानून की बारीकियों को समझाते हुए बताया।
“हाँ, मैं आतंकवादियों के साथ में तो अवश्य था पर पुलिस के पास ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं है जिससे यह सिद्ध हो सके कि मैंने किसी भी आतंकवादी घटना को अंजाम दिया है या घटना में सहयोग दिया है। मैंने तो बम्ब-ब्लास्ट में घायल और लोहू-लुहान लोगों की सहायता ही की थी। और शायद इसीलिए पुलिस की गिरफ्त में आ गया, वरना तो मैं भी अपने साथियों की तरह भागकर जा सकता था।” शौकत अली रब्बानी ने बताया।
आतंकी शौकत अली रब्बानी की स्पष्टवादिता और उसके निखालिस व्यक्तित्व से आरती और एडवोकेट भास्कर पटेल दोनों पहली मुलाकात में ही काफी प्रभावित हुए। साथ ही एडवोकेट भास्कर पटेल ने शौकत अली को केस की पैरवी करने और न्याय दिलाने का पूरा भरोसा देते हुए कहा-“मैं आपको हर प्रकार की कानूनी सहायता और सहयोग देने के लिए तैयार हूँ। साथ ही आपको उचित न्याय मिले, ऐसा मेरा सदैव प्रयास रहेगा।”
आतंकी शौकत अली रब्बानी ने भी एडवोकेट भास्कर पटेल और आरती को अपना पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया।
एडवोकेट भास्कर पटेल ने माननीय न्यायालय से आतंकवादी शौकत अली रब्बानी पर लगाए गए आरोपों की सर्टीफाइड कॉपी प्राप्त करने के लिए आवेदन किया और केस का अध्ययन करने के लिए कोर्ट से दो दिन का समय माँगा। जिसे माननीय कोर्ट ने स्वीकार कर दो दिन बाद की केस की सुनवाई की तारीख दे दी।
केस की सुनवाई की पहली तारीख से पहले ही उस महिला, जिसको कि आतंकवादी शौकत अली रब्बानी ने घायल अवस्था में ऐम्बुलेन्स तक पहुँचाया था और उसके घर पर मोबाइल फोन से सूचित भी किया था, ने एडवोकेट भास्कर पटेल से सम्पर्क किया और उसने कोर्ट में अपनी गवाही और निवेदन करने की इच्छा व्यक्त की। महिला का यह निवेदन और गवाही शौकत अली को निर्दोष सिद्ध करने के पक्ष में काफी महत्वपूर्ण था।
और सच पूछो तो महिला के निवेदन और कोर्ट में दी गई उसकी गवाही ने तो केस की दशा और दिशा दोनों ही बदलकर रख दी। महिला ने बताया कि पुलिस ने शौकत अली रब्बानी को उस समय गिरफ्तार किया था जब कि वह मुझे घायल अवस्था में उठाकर ऐम्बुलेन्स में लेकर आया हुआ था और मेरे कहने पर, मेरे घर पर मोबाइल फोन से सम्पर्क कर रहा था। इतना ही नहीं घटना-स्थल पर तो समय रहते पुलिस पहुँची ही नहीं थी।
महिला के द्वारा कोर्ट में दिए गए बयान का महत्व इसलिए और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया था क्योंकि वह भद्र महिला पास ही के एक डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर थी और साथ ही इस सम्पूर्ण घटना की प्रत्यक्ष-दर्शी भी थी। शायद इस प्रकार की यह पहली घटना थी जबकि किसी बम्ब-ब्लास्ट में घायल किसी भद्र महिला ने एक आतंकवादी व्यक्ति के पक्ष में अपना निवेदन कोर्ट में प्रस्तुत किया हो।
इधर पुलिस के पास भी ऐसा कोई प्रमाण नहीं था, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि शौकत अली को कत्लेआम करते हुए पाया गया हो या फिर बम्ब ब्लास्ट करते हुए देखा गया हो। सीसीटीवी फुटेज़ में भी वह कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा था। हाँ, आतंकवादियों के साथ होने के प्रमाण तो पुलिस के पास थे।
इतना ही नहीं, शौकत अली रब्बानी को उसके साथ के सभी आतंकवादी साथियों के नाम और ठिकानों का भी पता था, जिसे उसने पुलिस के पूछने पर स्वेच्छा से ही बता भी दिए थे। आतंकी शौकत अली रब्बानी के सभी साथियों के आतंकवादी होने की पुष्टि तो नेशनल इन्वैस्टीगेटिंग ऐजेन्सी (एन.आई.ए.) की टीम ने भी कर दी थी। क्योंकि उनकी हिट-लिस्ट में और उनके रिकॉर्डस् में उन सभी आतंकवादियों के नाम थे। पर उस लिस्ट में शौकत अली रब्बानी का नाम कहीं पर भी नहीं था।
वादी और प्रतिवादी पक्ष के विद्वान वकीलों की जिरह और दलीलों, ढ़ेर सारे गवाहों के बयानों, मौका-ए-वारदात से मिले अनेकों सबूत, ढ़ेर सारी कानून की मोटी-मोटी किताबों के पन्नों के संदर्भ और कानून की भिन्न-भिन्न धाराऐं न्यायालय के समक्ष यह सिद्ध करने में तो सफल हो सके कि शौकत अली रब्बानी, आतंकवादियों के साथ में था।
और वैसे भी देश की नागरिकता को प्रमाणित करने वाले किसी भी प्रमाणपत्र का न होना और साथ ही पासपोर्ट, वीज़ा का न होना, उसे आतंकवादी सिद्ध करने के लिए पर्याप्त थे। और वैसे भी यह बात तो शौकत अली रब्बानी ने स्वयं ही स्वीकार कर भी ली थी।
पर किसी भी आतंकवादी गतिविधि को करते हुए सिद्ध करने में पुलिस सफल न हो सकी। साथ ही घटना-स्थल की प्रत्यक्ष-दर्शी भद्र महिला के निवेदन और उसके साथ के अन्य प्रत्यक्ष-दर्शी लोगों की गवाही ने पुलिस के इस पक्ष को बेहद कमजोर बना दिया था। साथ ही उनके इस निवेदन को कि घटना के समय तो पुलिस घटना-स्थल पर मौजूद ही नहीं थी, को न्यायालय ने बड़ी ही गम्भीरता के साथ संज्ञान में लिया। एडवोकेट भास्कर पटेल की दलीलों और अकाट्य तर्कों के सामने पुलिस के पास कोई भी साक्ष्य या तर्क नहीं था।
एडवोकेट भास्कर पटेल ने न्यायालय के समक्ष शौकत अली रब्बानी के मानवीय पक्ष को रखते हुए बताया कि तथाकथित आरोपी आतंकी शौकत अली रब्बानी एक पढ़ा-लिखा, आज्ञाकारी और संस्कारी नौजवान है, जो अपने माता-पिता के आदेश को मानकर आतंकी टोली में शामिल हुआ था। और आतंकी टोली में शामिल होते हुए भी, उसने अपने पकड़े जाने की चिन्ता न करते हुए, खून से लथपथ घायल भद्र महिला को, खुद ही अपने हाथों से उठाकर ऐम्बुलेन्स-वान तक पहुँचाया। साथ ही उस महिला के घर पर इस घटना की सूचना देने का परोपकारी और सेवा-भावी काम भी किया है। किसी आतंकवादी के द्वारा ऐसा सेवा-भावी कार्य करने का उदाहरण तो इतिहास में शायद ही मिले। अतः ऐसे सेवा-भावी व्यक्ति को आतंकवादी तो नहीं ही कहा जा सकता है।
अपने निवेदन में एडवोकेट भास्कर पटेल ने हाल ही में हुई घाटी की घटनाओं का उल्लेख करते हुए न्यायालय को बताया कि शौकत अली रब्बानी के पिता आतंकी आका हिज़बुल रब्बानी भी अब आतंकवाद के घिनौने रास्ते को छोड़कर, अमन और शान्ति के रास्ते को अपना चुके है और अब तो उन्होंने घाटी की काया ही पलटकर रख दी है। आज उनकी ही बदौलत घाटी विकास के पथ पर अग्रसर हो सकी है। साथ ही उनका बेटा शौकत अली रब्बानी भी अब आतंकवाद के घिनौने रास्ते को छोड़कर, अमन और शान्ति के नेक रास्ते पर चलने के लिए वचनवद्ध है।
दोनों पक्ष के वकीलों की जिरह, दलीलों और अनेक गवाहों के बयानों, मौका-ए-वारदात से मिले अनेक सबूतों और शौकत अली की वचनवद्धता को संज्ञान में लेते हुए न्यायालय ने शौकत अली रब्बानी को आतंकवादी टोली में शामिल होने का दोषी मानते हुए एक साल की सजा और उसके अन्य साथियों को आजीवन कारावास की सजा सुना दी।
चूँकि यह केस काफी समय से कोर्ट में लम्बित था और इसके एक साल का समय पूरा होने में केवल चार-पाँच दिन का ही समय बाकी रह गया था। और केस की सुनवाई के दौरान शौकत अली रब्बानी को जेल में ही रखा गया था। अतः यह मानकर कि चार-पाँच दिन के बाद न्यायालय के आदेश के अनुसार शौकत अली को अपने आप ही रिहा कर दिया जाएगा, एडवोकेट भास्कर पटेल ने इसी स्थान पर केस को समाप्त करने का मन बना लिया और सुप्रिम-कोर्ट में न जाने का निर्णय कर लिया।
और इधर इसी बीच चैरिटी-शो के ऑर्गेनाइज़र डायरेक्टर विक्रम शिकारी ने घोष बाबू, रॉनली, मानसी और शाल्विया की देख-रेख में सभी बाल-मित्र और बाल-कलाकारों ने मिल-जुलकर दो-तीन चैरिटी-शो के आयोजन भी बड़ी सफलता-पूर्वक कर लिए थे। शहर के बड़े-बड़े मिल-ऑनर्स और कई उद्योगपतियों से भी प्रचुर मात्रा में डोनेशन मिल चुका था। सेवा-भावी संस्थाओं के सहयोग को भी नकारा नहीं जा सकता था।
जिससे जितना बन पड़ा उसने अपनी उस शक्ति से अधिक ही सहयोग देने का प्रयास किया। *बचपन-फॉउन्डेशन* के लिए, पैसा अब कोई समस्या नहीं रह गया था। इतना ही नहीं, सरकार की ओर से भी सब्सिडी की काफी रकम संस्थान को मिल चुकी थी। सरकार की ओर से भी संस्था के काम को सन्तोषजनक माना जा रहा था।
स्कूल की बिल्डिंग भी लगभग बनकर तैयार हो चुकी थी और अब तो उसमें बस रंग-रोगन और फर्नीचर का थोड़ा-बहुत काम ही बाकी था और वह काम भी बड़े जोर-शोर से युद्ध-स्तर पर रात-दिन काम करके पूरा किया जा रहा था। समय के अन्दर ही सभी काम पूरा होने से सभी को अपार खुशी की अनुभूति हो रही थी और मन में सन्तोष इस बात का था कि अब नए सत्र से सभी विद्यार्थियों को प्रवेश मिल सकेगा और उनकी पढ़ाई की अच्छी व्यवस्था हो सकेगी।
शिक्षा-विभाग और सरकार की निति-नियम के अनुसार घोष बाबू, रॉनली और आरती के द्वारा सभी टीचिंग एण्ड नोन-टीचिंग स्टाफ के अपोन्टमैन्टस् भी सरकारी प्रतिनिधियों की उपस्थिति में कर दिए गए थे। साथ ही रॉनली ने सभी प्रतिनिधियों से परामर्श कर दिव्य-लोक के दो ऑनरेरी विज़िटिंग प्रोफेसर्स को अपोइन्ट करने का निर्णय ले लिया, ताकि स्कूल के सभी विद्यार्थी दिव्य-लोक के आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान और विज्ञान से भी लाभान्वित हो सकें। इतना ही नहीं अन्य लोकों के विद्वान शिक्षक और प्रोफेसर्स के लिए विज़िटिंग प्रोफेसर्स का भी प्रावधान रखा।
आरती, रॉनली और घोष बाबू का विचार था कि प्रधानमंत्री, उस समय तो उनके चैरिटी-शो में, विदेशी दौरे की व्यस्तता के कारण नहीं आ सके थे। पर अब, इस बार तो उन्हें अपने स्कूल के उद्घाटन-समारोह में अवश्य ही बुलाना है। और इसके लिए भले ही अपन को उद्घाटन-समारोह की तारीख में कुछ फेर-बदल भी करना पड़े तो कर लेंगे, पर उद्घाटन-समारोह में पीएम श्री को तो अवश्य ही बुलाना है और उन्हीं के हाथों से रिबिन कटवाना है।
और इसके लिए आरती ने प्रधानमंत्री से सम्पर्क करके उन्हीं से निवेदन किया कि हमारी ओर से तो स्कूल के उद्घाटन-समारोह की तैयारी पूरी हो चुकी है, अब हम चाहते हैं कि आप अपनी सुविधा और अनुकूलता के अनुसार ही उद्घाटन-समारोह का दिन, तारीख और समय निश्चित करके बता दें, ताकि हम अपनी शेष व्यवस्थाऐं भी उसी समय के अनुसार पूरी कर सकें।
पीएम ने अपने पीए मानस कुलकर्णी से परामर्श करके अपने शिड्यूल के अनुसार आरती को निश्चित तारीख और समय बता दिया। साथ ही पीएम ने आरती को उद्घाटन-समारोह में निश्चित रूप से उपस्थित होने का आश्वासन भी दिया।
इसके साथ-साथ पीएम ने आरती से इसी शहर में सरकार की ओर से निर्माण कराए गए रैज़ीडेंशियल स्कूल के उद्घाटन-समारोह में भी उपस्थित रहने का आग्रह किया। पीएम की इच्छा थी कि सरकार की ओर से निर्मित इसी शहर के रैज़ीडेंशियल स्कूल का उद्घाटन आरती के हाथों से ही कराया जाय। जिससे जनता में एक सकारात्मक सन्देश पहुँचे और लोग शिक्षा के प्रचार-प्रसार में और अधिक सहभागी बन सकें। साथ ही सरकार के द्वारा चलाए जा रहे ‘बेटी हम पढ़ाऐंगे, आगे देश बढ़ाऐंगे’ और ‘बेटी हम बचाऐंगे, आगे देश बढ़ाऐंगे’ के अभियान को गति मिल सके।
आरती के लिए पीएम का यह प्रस्ताव गर्व का विषय था और पीएम के लिए आत्म-सन्तोष और प्रसन्नता का विषय था। आरती ने यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया। वह इस अकल्पनीय सम्मान से गद्-गद् और प्रसन्न थी। उसने तो कभी सपने में भी ऐसी कल्पना नहीं की थी कि इतना बड़ा सम्मान उसे देश के पीएम के द्वारा दिया जाऐगा। पीएम और एज्यूकेशन मिनिस्टर की उपस्थिति में वह सरकार के द्वारा बनाए गए रैज़ीडेंशियल स्कूल का उद्घाटन करेगी। मन ही मन प्रफुल्लित और रोमांचित हो उठी थी आरती।
पीएम ने दोनों स्कूलों के उद्घाटन-समारोहों के कार्यक्रमों को एक ही दिन रखना उचित समझा। गुरु-पूर्णिमा के दिन प्रातः दस बजे का समय आरती के स्कूल के उद्घाटन-समारोह का कार्यक्रम रखा गया और उसी दिन दोपहर के दो बजे का समय सरकार की ओर से निर्माण कराए गए रैज़ीडेंशियल स्कूल के उद्घाटन-समारोह का कार्यक्रम रखा गया। आरती, रॉनली और घोष बाबू को भी यह समय और दिन बहुत ही उत्तम लगा। वैसे भी गुरु-पूर्णिमा का पावन-पर्व और गुरुवार का दिन, दोनों ही विद्या-दान और विद्या से सम्बन्धित कार्यों के लिए विशेष शुभ और महत्वपूर्ण होते हैं।
उद्घाटन-समारोह का दिन, तारीख और समय निश्चित होते ही आरती, रॉनली, मानसी, शाल्विया, घोष बाबू और सभी बाल-मित्र समारोह की तैयारी में लग गए। घोष बाबू की देख-रेख और उनके कुशल मार्ग-दर्शन में सभी बच्चों ने मिलकर सभी व्यवस्था को पूरा कर लिया।
आरती, रॉनली और घोष बाबू ने स्कूल के उद्घाटन-समारोह में सभी स्थान के बाल-मित्र और बाल-कलाकारों के अलावा आका हिज़बुल रब्बानी, बुर्केवाली अम्मीज़ान, उनकी बेटी अमीना और घाटी के कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों और बच्चों को भी बुलाने का निर्णय लिया। और इसका कारण भी स्पष्ट था।
आरती चाहती थी कि इसी तरह के स्कूल, मदरसे और कॉलेज अधिक से अधिक स्थानों पर खोले जा सकें ताकि नारी-शिक्षा का प्रचार-प्रसार जितना अधिक हो उतना ही अच्छा है।
दूसरा आरती यह भी चाहती थी कि आका हिज़बुल रब्बानी उसके स्कूल के उद्घाटन-समारोह में शामिल होने के लिए जब आऐं तब वापस जाते समय उनका बेटा शौकत अली रब्बानी भी जेल से रिहा होकर उनके साथ में ही जाए। ताकि वह आका हिज़बुल रब्बानी को दिए हुए अपने वचन का निर्वहन कर सके।
आरती को पूरा विश्वास हो गया था कि अब उसके स्कूल के उद्घाटन-समारोह से पहले ही शौकत अली रब्बानी निश्चित रूप से जेल से रिहा हो जाएगा।
और ऐसा हुआ भी, एडवोकेट भास्कर पटेल के प्रयास से और कोर्ट के आदेश के अनुसार शौकत अली रब्बानी को गुरु-पूर्णिमा से एक दिन पहले ही रिहा कर दिया गया था। यूँ तो जेल से रिहा होने के बाद शौकत अली रब्बानी उसी दिन अपने घर वापस जाना चाहता था, लेकिन जब उसे बताया गया कि अगले ही दिन गुरु-पूर्णिमा को *बचपन-फॉउन्डेशन* द्वारा संचालित आरती के रैज़ीडेंशियल स्कूल का उद्घाटन-समारोह होने वाला है और उस समारोह में उसके अब्बाज़ान भी शिरकत करने वाले हैं, तब उसने एक दिन के लिए रुकने का मन बना लिया।
आरती ने शौकत अली रब्बानी के ठहरने की व्यवस्था अपने घर पर ही रखी। हाँलाकि शौकत अली रब्बानी किसी होटल या लॉज में ठहरना चाहता था। पर आरती ने जब हठ पूर्वक शौकत अली रब्बानी से कहा-“आपके अब्बाज़ान आका हिज़बुल रब्बानी जी मुझे अपनी बेटी मानते हैं, तब तो आप मेरे बड़े भाईज़ान हुए। और इसी शहर में एक बहन का घर होते हुए, अगर आप किसी होटल या लॉज में ठहरें, तब तो यह सर्वथा अनुचित ही रहेगा।”
आरती के आग्रह को शौकत अली रब्बानी न टाल सका। और इतना ही नहीं आरती ने शौकत अली को जब उसे यह बताया कि मेरी बुर्केवाली अम्मीज़ान, उनकी छोटी बेटी अमीना और आपके अब्बाज़ान आका हिज़बुल रब्बानी के ठहरने की व्यवस्था भी उसी के घर पर रहेगी। तब तो उसे बहुत ही अच्छा लगा। आरती की आत्मीयता और आतिथ्य ने शौकत अली रब्बानी के मन-मस्तिष्क को सराबोर कर दिया और उसकी आँखों से गंगाजल बह निकला।
*बचपन-फॉउन्डेशन* के द्वारा चलाए जा रहे अभियान और उसके कार्यक्रमों के विषय में जब शौकत अली रब्बानी को पता चला तो वह बहुत अधिक प्रभावित हुआ।
विशेषतः तो ‘बेटी-बचाओ’, ‘बेटी-पढ़ाओ’ आन्दोलन, हर घर पहुँचे कलम-किताब और स्लम एरिया में रहने वाले गरीब बच्चों के लिए फ्री-रैज़ीडेंशियल स्कूलस् का निर्माण और उनके संचालन का कार्य, उसे बेहद पसन्द आया।
यह सब कुछ देखकर उसने *बचपन-फॉउन्डेशन* और आरती के साथ जुड़कर इन सभी कार्यक्रमों में अपना सहयोग देने का मन बना लिया। इतना ही नहीं, उसने आरती, रॉनली, घोष बाबू और सभी बाल-मित्रों के साथ मिल-जुलकर स्कूल के उद्घाटन-समारोह की तैयारियों में अपना सहयोग भी दिया और अनेक महत्वपूर्ण परामर्श भी दिए।
साथ ही उसने यह निर्णय भी किया कि अब वह अपनी बनाई हुई सॉफ्टवेयर डिवाइस को गूगल या माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी, जो भी उसके डिवाइस की अधिक कीमत देगी, उसी कम्पनी को बेच देगा। जिससे कि लगभग दो मिलियन डॉलर्स की रकम प्राप्त हो सकेगी और उस रकम को वह आरती के *बचपन-फॉउन्डेशन* के द्वारा चलाए जा रहे सेवा-कार्यों में लगा देगा।
गुरू पूर्णिमा का दिन आरती के जीवन का अविस्मरणीय दिन था। शायद इस दिन को आरती अपने जीवन में कभी भी न भुला सकेगी। अकल्पनीय मान-सम्मान का दिन, बचपन में देखे अपने सपने को साकार कर पाने का दिन और आका हिज़बुल रब्बानी को दिए हुए अपने वचन के निर्वहन करने का दिन। सभी कुछ तो पा लिया था आरती ने, उसके मन की हर मुराद पूरी हो गई थी इस दिन।
उद्घाटन-समारोह के दिन प्रातः सात बजे ही आका हिज़बुल रब्बानी के प्लेन के आने का समय था अतः आरती, रॉनली और घोष बाबू खुद ही आका हिज़बुल रब्बानी, बुर्केवाली अम्मीज़ान और अमीना को एयरपोर्ट से रिसीव करके घर पर ले आए।
आका हिज़बुल रब्बानी तो हक्का-वक्का ही रह गए जब उन्होंने अपने बेटे शौकत अली रब्बानी को आरती के घर पर देखा। अपने आज्ञाकारी बेटे को अपने सामने पाकर, उनकी प्रसन्नता की सीमा ही न रही। ऐसा तो उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। क्योंकि वे जानते थे कि किसी आतंकवादी को जेल से रिहा करा पाना कोई आसान काम तो होता नहीं है। बेटे को पाकर उनकी मरुस्थली आँखों से अनगिन सागर बह निकले।
“बेटा, हो सके तो तुम, मुझे माँफ कर देना। तुम्हें आतंकवादी संगठन की टोली में शामिल होने का आदेश देकर मैंने अपने जीवन की एक बहुत बड़ी भूल की थी। जिसके लिए मैं अपने आप को कभी भी माँफ नहीं कर सकूँगा, शायद कभी भी नहीं।” और ऐसा कहते-कहते आतंकवादी संगठन के बे-ताज बादशाह, आका हिज़बुल रब्बानी फफक-फफक कर रोने लगे।
“अब्बाज़ान, कैसी बात कह रहे हैं आप। आतंकवादी संगठन की टोली में शामिल होने का आदेश देकर आपने कोई भी भूल या गलती नहीं की। ये सब कुछ भी तो उस ऊपर वाले परवरदिगार अल्लाहताला का ही तो हुकुम था और वह जो कुछ भी करता है, हम सबके अच्छे के लिए ही करता है। मुझे आदेश देकर तो आपने परवरदिगार अल्लाहताला के हुकुम को मेरे पास तक पहुँचाया था।” अपने अब्बाज़ान आका हिज़बुल रब्बानी को ढ़ाँढस बधाते हुए शौकत अली रब्बानी ने कहा।
“वह कैसे, मैं कुछ समझा नहीं बेटा।” अब्बाज़ान ने अपने बेटे शौकत अली से पूछ ही लिया।
“अब्बाज़ान, अगर आपने मुझे आतंकवादी संगठन की टोली में शामिल होने का आदेश न दिया होता तो आज घाटी का विकास नहीं हो सका होता।” बेटे शौकत अली ने अपना तर्क दिया।
शौकत अली रब्बानी की बात को आरती भी न समझ सकी और वह पूछ ही बैठी-“वो कैसे भाईज़ान, घाटी के विकास से आपके आतंकी टोली में शामिल होने से क्या लेना-देना।”
“हाँ आरती, अल्लाहताला किसी भी काम को खुद नहीं करता है बल्कि वह तो किसी न किसी को प्रत्येक कार्य के लिए निमित्त बना देता है। घाटी का विकास होना था इसीलिए तो मुझे आतंकी टोली में शामिल होने का आदेश मिला। आतंकी टोली में केवल मैं ही पकड़ा गया और मुझे ही छुड़ाने के लिए पहले प्रधानमंत्री और उच्च-स्तरीय प्रतिनिधि मण्डल को ड्रीमलाइनर विमान के साथ किडनैपिंग करने का असफल प्रयास, फिर तुम्हारा किडनैपिंग होना और फिर तुम्हें विश्व के मुख्य आतंकवादी संगठन के अड्डे तक पहुँचाना। इसके बाद विश्व के प्रमुख नामचीन आतंकवादियों की गोला-बारूद के जखीरे के साथ, आतंकी अड्डे के तहस-नहस होने की घटना, तुमसे मिलने के बाद अब्बाज़ान का हृदय परिवर्तन होना और फिर उसके बाद घाटी के विकास की यात्रा का प्रारम्भ होना। क्या ये सब कुछ उस ऊपर वाले अल्लाहताला की लीला नहीं है तो और क्या है, आरती।”
“हमने तो कभी ऐसा सोचा ही नहीं था, भाईज़ान।” आरती ने जब सभी घटनाओं को एक दूसरे के साथ जोड़कर देखा तो उसने भाईज़ान का कथन शत-प्रतिशत सही पाया।
इतना ही नहीं, शौकत अली रब्बानी ने आरती से फिर कहा-“आरती, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी भी तो अपनी माता कैकई का आदेश मानकर ही वन गए थे। माता कैकई तो निमित्त-मात्र थीं। वन में अनेक आतातायी राक्षसों का अन्त होना था, रावण का अन्त होना था, लंका का दहन होना था, वाली का अन्त होना था, हनुमान का मिलन होना था, विभीषण का मिलन होना था। यह सब कुछ तो पूर्व-निर्धारित था, इसमें कैकई का या किसी और का कोई भी दोष नहीं था। यदि राम वन में न गए होते तो यह सब कुछ कैसे हो पाता। क्या ये सब कुछ भी कभी सोचा है तुमने, आरती।”
“हाँ भाईज़ान, आपका कथन शत-प्रतिशत सही है। उस ऊपर वाले की इच्छा के बगैर तो एक पत्ता भी नहीं हिल सकता और फिर सर्व-शक्तिमान ईश्वर के सामने मनुष्य की तो बिसात ही क्या है।” आरती ने उस ऊपर वाले परवरदिगार अल्लाहताला के प्रति अपनी पूर्ण आस्था व्यक्त करते हुए कहा।
समय का अभाव तो था ही और स्कूल के उद्घाटन-समारोह में भी सभी को समय पर ही पहुँचना था, अतः सभी लोगों ने तैयार होकर पहले तो नाश्ता किया और फिर स्कूल के लिए रवाना हो गए। स्कूल में भी उद्घाटन-समारोह की सभी तैयारियाँ लगभग पूर्ण हो चुकीं थी। अब तो सभी को इन्तजार था तो बस अतिथि-विशेष माननीय प्रधानमंत्री श्री के आगमन का।
ठीक दस बजे पीएम श्री स्कूल परिसर में पहुँच चुके थे। स्कूल ग्राउण्ड का विशाल पाण्डाल आज बहुत छोटा पड़ रहा था। आरती, रॉनली, घोष बाबू और स्कूल की प्राचार्या श्रीमती वर्तिका वत्स ने अतिथि-विशेष माननीय प्रधानमंत्री श्री और एज्यूकेशन मिनिस्टर श्रीमती गर्विता श्रीवास्तव का माल्यार्पण कर स्वागत किया और अन्य अनेक बाल-मित्रों ने पुष्प-पुंज भेंट किए। तालियों की जोरदार गड़गड़ाहट, मीडिया और प्रेस के कैमरों की फ्लैश-लाइटस् काफी देर तक इधर-उधर चमकतीं रहीं।
फीता काटकर अतिथि-विशेष माननीय पीएम श्री ने आरती के स्कूल का उद्घाटन किया। अपने संक्षिप्त अध्यक्षीय सम्बोधन में पीएम श्री ने कहा-“बचपन-फॉउन्डेशन के द्वारा संचालित देश की बहादुर बेटी आरती के इस रैज़ीडेंशियल स्कूल का उद्घाटन करते हुए आज मुझे अत्यन्त प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है। देश में अपने प्रकार का यह पहला स्कूल है जहाँ पर कि गरीब और स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों के लिए निःशुल्क रहने, खाने-पीने और पढ़ाई की व्यवस्था हो सकेगी। और इसी कॉन्सेप्ट से प्रभावित होकर मैंने भी सरकार की ओर से देश के सभी राज्यों में फिलहाल एक-एक रैज़ीडेंशियल स्कूल के खोलने का निर्णय लिया है। और यह संख्या कुछ ही समय में और भी बढ़ा दी जाएगी।
इसी शहर में, इसी प्रकार का एक और रैज़ीडेंशियल स्कूल सरकार की ओर से खोला गया है और मेरे लिए यह अत्यन्त गौरव और प्रसन्नता का विषय है कि उस रैज़ीडेंशियल स्कूल का उद्घाटन, आज ही दिन के दो बजे, देश की बहादुर बेटी आरती के द्वारा किया जाना है। इस प्रकार के रैज़ीडेंशियल स्कूलस् खोलने की प्रेरणा भी मुझे देश की बहादुर बेटी आरती से ही मिली थी। इसके लिए मैं आरती बेटी को धन्यवाद भी देना चाहता हूँ।
देश की बहादुर बेटी आरती का यह भागीरथ-प्रयास निश्चय ही हम सभी देशवासियों के लिए प्रेरणादायी और अनुकरणीय है। गरीब और स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों के लिए कहीं कुछ कर दिखाने के बुलन्द हौसले और जज्बे को मैं सलाम करता हूँ।
यूँ तो मैं खुद भी स्लम एरिया में रहने वाला एक गरीब बच्चा ही हूँ। मैं भी कभी लैम्प-पोस्ट के खम्बे के नीचे टाट के बोरे पर बैठकर गणित के सवाल हल किया करता था। गरीबी की सौनी-गंध आज भी मेरे मन-मस्तिष्क पर अटी पड़ी है। गरीबी के संघर्ष को तो आज भी मैं भुला नहीं पाया हूँ। गरीब बच्चों के लिए किया गया देश की बहादुर बेटी आरती का यह भागीरथ-प्रयास देश के हर नागरिक को प्रेरणा देता रहेगा।”
और अन्त में समारोह में उपस्थित सभी आगन्तुक व्यक्तियों का आभार व्यक्त करते हुए आरती ने कहा-“अतिथि-विशेष पीएम श्री और सभी सम्माननीय व्यक्तियों का मैं बचपन-फॉउन्डेशन की ओर से आभार व्यक्त करती हूँ। आपका सहयोग और आशीर्वाद हम सभी को मिलता रहे, ऐसी हमें आपसे अपेक्षा है।
एक बात जो मैं कहना चाहूँगी कि जब से मैंने होश सम्हाला है तभी से पीएम श्री मेरे आदर्श रहे हैं। पीएम श्री का, बचपन से पीएम की कुर्सी तक पहुँचने का संघर्ष, उनका बुलन्द हौसला, सदैव ही मुझे प्रेरणा देता रहा है। गरीबी से जूझते हुए बाल-पीएम ने ही मुझे इस प्रकार के फ्री-रैज़ीडेंशियल स्कूल खोलने की प्रेरणा दी। बचपन में मैंने एक सपना देखा था कि क्या कोई ऐसा स्कूल हो सकेगा जिसमें हर कोई बिना किसी भेद-भाव के विद्या प्राप्त कर सकेगा। माँ, सरस्वती के पावन मन्दिर तक पहुँचने के लिए क्या माँ लक्ष्मी जी की कृपा पर निर्भर रहना पड़ेगा।
और अब इस स्कूल में प्रवेश लेने के बाद किसी भी विद्यार्थी को पैसे की आवश्यकता नहीं होगी। माँ सरस्वती की साधना में पैसा अब रुकावट नहीं बनेगा। और आप सभी के सहयोग से मेरा बचपन का यह सपना आज साकार हो सका है। इस सबके लिए मैं आप सभी की हृदय से बहुत-बहुत आभारी हूँ।”
दर्शक-दीर्घा, मंच पर विराजमान अतिथि-गण और माननीय अतिथि-विशेष पीएम श्री, सभी की आँखों में आँसू देखे गए और उनके मन में था, कुछ कर गुजरने का संकल्प।
दोपहर के दो बजे आरती और पीएम श्री की मुलाकात एक बार फिर से हुई। पर इस बार अतिथि-विशेष पीएम श्री नहीं, अतिथि-विशेष थी देश की बहादुर बेटी आरती।
हाँ, देश की बेटी आरती को ही तो काटना था, सरकार द्वारा निर्मित स्कूल के उद्घाटन का लाल फीता। ऐसा करने की पीएम श्री की ही इच्छा थी। और इच्छा हो भी तो क्यों न हो, दोनों ही तो थे एक दूसरे के प्रेरणा-स्रोत।
उद्घाटन-समारोहों में शिरकत करके आका हिज़बुल रब्बानी और बुर्केवाली अम्मीज़ान को बहुत ही प्रसन्नता हुई। अम्मीज़ान के आश्चर्य और प्रसन्नता की तो कोई सीमा ही न रही थी। वे कभी तो पीएम श्री की ओर देखतीं थीं तो कभी आरती की ओर।
उन्हें तो विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि घाटी की उन वियाबान सड़कों पर घूमने वाली एक अदना सी लड़की, जिसे वह बुर्का पहनकर बाहर निकलकर जाने की जिद कर रही थी, उसके रसूक और घर जैसे सम्बन्ध इतने बड़े-बड़े लोगों से होंगे। किसी देश के पीएम उसे देश की बेटी कहकर सम्बोधित करेंगे।
और आका हिज़बुल रब्बानी को इस बात की प्रसन्नता थी कि उनका बेटा शौकत अली, आज उनके पास है और आरती को इस बात की प्रसन्नता थी कि वह आका हिज़बुल रब्बानी को दिए गए वचन का समय रहते निर्वहन कर सकी।
घाटी के लिए जाने से पहले शौकत अली ने अपने मन की बात आरती, रॉनली और घोष बाबू के समक्ष रखी। उसकी इच्छा थी कि वह अपनी बनाई हुई सॉफ्टवेयर डिवाइस को को बेचकर, उससे प्राप्त रकम को बचपन-फॉउन्डेशन के द्वारा चलाए जा रहे सेवा-कार्यों में लगा दे।
पर आरती का यह मत था कि कितना अच्छा हो कि बचपन-फॉउन्डेशन की तरह ही घाटी में भी एक ऐसी संस्था खोली जाय जो कि गरीब और स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों के वैलफेयर के लिए फ्री-रैज़ीडेंशियल स्कूल खोल सके और उनके जीवन स्तर को सुधारने का कार्य कर सके।
आरती के विचार से शौकत अली, अम्मीज़ान और उनकी बेटी अमीना सभी सहमत थे। अतः सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि घाटी में भी बचपन-फॉउन्डेशन की एक दूसरी शाखा खोल दी जाय। और वह संस्था बचपन-फॉउन्डेशन के द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों को कार्यान्वित करे और जिसका संचालन शौकत अली रब्बानी की देख-रेख में होता रहे।
शाम को ही आका हिज़बुल रब्बानी और अम्मीज़ान का प्लेन एयरपोर्ट से घाटी के लिए टेकऑफ कर चुका था। आरती, रॉनली, घोष बाबू और अनेक बाल-मित्र, अपनी-अपनी यादों को, अपने-अपने मन के आँचल में समेंटे हुए घर वापस लौट रहे थे। किसी की आँखों में चमक थी तो किसी की आँखों में आँसू। यही तो दुनियाँ है, आँसू और मुस्कान का अनौखा संगम।
आरती, रॉनली और घोष बाबू की आँखें तलाश रहीं थी एक और नए स्कूल के शिलान्यास के लिए उपयुक्त स्थान। चैरिटी-शो के ऑर्गेनाइज़र डायरेक्टर विक्रम शिकारी को प्रतीक्षा थी, एक और चैरिटी-शो करने के आदेश की
और दूसरे ही दिन आरती को फिर से एक नए चैरिटी-शो के स्टेज पर यह कहते हुए देखा गया-
नानी वाली कथा-कहानी,
अब के जग में हुईं पुरानी।
बेटी-युग के नए दौर की,
आओ लिख लें, नई कहानी।
और आरती का चैरिटी-शो तो आज भी गतिशील है क्योंकि आरती के बेटी-युग की विचार-धारा तो आज भी गतिशील है...