बहादुर बेटी
(5)
बाल-सदन का निर्णय.
आनन्द विश्वास
निश्चित समय से पहले ही अनेक लोकों के बाल-प्रतिनिधि और बाल-मित्र आरती के घर पर पहुँच चुके थे। बड़ा ही सुन्दर और मनुहारी वातावरण था आरती के घर का। भिन्न-भिन्न लोकों के तरह-तरह के रंग-बिरंगे परिधानों में सुसज्ज दिव्य-बालकों की सुन्दर छटा देखते ही बनती थी।
कोई कंचन-काया पर श्वेत-परिधान को धारण करे बिलकुल बाल-परी और देवदूत-सा अपनी दिव्य-दैवीय आभा के दर्शन करा रहा था तो कोई श्यामल-काया पर पीत-वस्त्रों से सुशोभित होकर साक्षात् गोकुल नन्दन कृष्ण कन्हैया-सा, मथुरा-वृन्दावन की मन-भावन रमणीय कुंज-गलियों की स्मृतियों को ताजा करा रहा था।
अनेक लोकों के सुन्दर दिव्य-बालक और बालिकाऐं अपने-अपने लोकों की परम्परागत वेष-भूषा में बड़े ही सुन्दर और आकर्षक लग रहे थे। ऐसा आभास हो रहा था जैसे कि यह पृथ्वी-लोक पर आरती का घर नहीं हो बल्कि स्वर्ग-लोक में ही स्थित परी-लोक का कोई कक्ष हो।
और घोष बाबू के आते ही सभी उत्साहित बाल-मित्रों के बीच प्रसन्नता की एक लहर सी दौड़ गई। अब तो उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था कि अब वे अपने कार्य में और अपने मिशन में अवश्य ही सफलता प्राप्त कर सकेंगे। क्योंकि अब उनकी सशक्त बाल-शक्ति को सही मार्ग-दर्शन और कुशल अनुभवी नेतृत्व मिल सकेगा।
घोष बाबू से मिलकर रॉनली को बहुत ही अच्छा लगा और उससे भी अधिक प्रसन्नता तो घोष बाबू जी को इस बात को लेकर हुई कि अब उनके बाल-कल्याण और नारी-उत्थान के कार्यों को नये पंख जो मिल गए थे। समाज में व्याप्त नारी-जगत की और गरीब बालकों की दयनीय दशा को देखकर तो घोष बाबू का भावुक-मन पहले से ही काफी चिन्तित, व्यथित और आहत था और वे इस दिशा में कदम उठाने का मन पहले से ही बना चुके थे।
घोष बाबू से सादर अनुमति लेकर रॉनली ने सबसे पहले तो सभी बाल-मित्रों और बाल-प्रतिनिधियों का एक-दूसरे से परिचय करवाया और फिर अपने बाल-मित्रों को बताया कि आज हम सभी बाल-मित्र और बाल-प्रतिनिधि यहाँ पर एक अत्यन्त गम्भीर समस्या के विषय में चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। हमें आप सभी से आपके सहयोग और सुझाव की अपेक्षा है।
और फिर इसी संदर्भ में बोलते हुए रॉनली ने कहा-“पहली बात तो ये है कि छोटे-छोटे बच्चों को बदबूदार सड़े-गले कचरे में से प्लास्टिक की खाली बोतलें, थैलियाँ और छोटे-मोटे सामान को बीनते हुए आप सभी ने देखा ही होगा। कुछ दिन पहले मैंने भी देखा था। उनसे पूछने पर पता चला कि वे लोग प्लास्टिक का वह सामान बेचकर थोड़े-बहुत पैसे प्राप्त कर लेते हैं और उन्हीं पैसों से उनके घर की दाल-रोटी और परिवार का गुजारा चल पाता है। गरीबी के कारण न तो उनका सही ढंग से लालन-पालन ही हो पाता है और ना ही वे पढ़-लिख पाते हैं।”
“और इतना ही नहीं, स्लम-एरिया में रहने वाले हजारों छोटे-छोटे बच्चे अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए फैक्ट्री, मील, कारखानों और चाय आदि की छोटी-मोटी दुकानों पर काम करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। हम चाहते हैं कि वे सभी बच्चे भी पढ़-लिखकर अपना भविष्य बना सकें। इसके लिए हम क्या कुछ कर सकते हैं।” रॉनली ने जानना चाहा।
“पढ़ना तो सभी लोग चाहते हैं। पर पैसे की कमी के कारण वे लोग पढ़ नहीं पाते हैं। यदि हम उनके परिवार के लिए आर्थिक सहायता और उनके लिए फ्री-एज्यूकेशन की व्यवस्था कर सकें तो यह समस्या हल हो सकेगी।” भास्कर ने अपना सुझाव दिया।
“तब तो हमें एक बहुत बड़ी धन-राशि की आवश्यकता होगी। और इतनी बड़ी धन-राशि को हम कहाँ से और कैसे जुटा सकेंगे।” रॉनली ने गम्भीर होकर सभी मित्रों से जानना चाहा।
इस समस्या के विषय में सुझाव देते हुए स्वर्ण-लोक से आई हुई बाल-मित्र हैप्टी हेनम् ने कहा-“हमारे स्वर्ण-लोक में सोने का विपुल भण्डार है और यहाँ पर सोना बहुत ऊँची कीमतों पर बेचा जाता है। मैं वहाँ से सोना भिजवाने की व्यवस्था कर सकती हूँ। उस सोने को बेचकर जो धन प्राप्त होगा उसका उपयोग उन लोगों की पैसे की समस्या को हल करने में किया ही जा सकता है।”
“थोड़ा-बहुत पैसा या आर्थिक सहायता देकर उनकी समस्या का तात्कालिक समाधान, केवल कुछ समय के लिए तो हो सकता है पर यह समाधान कोई स्थायी समाधान तो नहीं ही हो सकता है। आखिरकार इस प्रकार से हम उन लोगों को आर्थिक सहायता कितनी और कब तक देते रहेंगे। और ऐसा करने से वे आत्म-निर्भर तो नहीं ही हो सकेंगे।” भास्कर ने अपना तर्क दिया।
“रॉनली, हम सभी बच्चों के अन्दर कोई न कोई स्पेशल टैलेंन्ट तो होता ही है और हमारे साथ में अनेक लोकों से आए हुए अनेक बाल-मित्र भी हैं। यदि हम सब मिलकर एक शानदार कल्चलर-प्रोग्राम का आयोजन करें, जिसमें गीत-संगीत, डान्स, फोक-डान्स, कब्बाली, कविताऐं, नाटक और भिन्न-भिन्न लोकों के परम्परागत लोक-नृत्य और लोक-संगीत आदि के कार्यक्रमों का एक स्टेज-शो करें तो कैसा रहेगा।” आरती ने अपने मन की बात कही।
“हाँ, यह सुझाव निश्चय ही विचार करने के योग्य है और इस प्रकार के चैरिटी-शो में हम दूसरे ग्रहों के अनेक बाल-कलाकारों को भी जोड़ सकते हैं और एक बहुत ही शानदार चैरिटी स्टेज-शो पब्लिक के सामने प्रस्तुत कर सकते हैं।” रॉनली ने सुझाव दिया।
“हाँ रॉनली, और इस चैरिटी-शो से आने वाली धन-राशि का उपयोग हम बाल-उत्थान के कार्यक्रमों में कर सकेंगे।” आरती ने अपना परामर्श दिया।
“हाँ आरती, ऐसा करना बिलकुल सही रहेगा। और हमें अब इस दिशा में कदम उठा लेना चाहिए। मैं अभी ही सभी लोकों के बाल-कलाकारों को सूचना भी दे देता हँ ताकि वे अभी से अपनी-अपनी तैयारियाँ करना शुरू कर दें, ताकि शो का आयोजन शीघ्र हो सके।” रॉनली ने आरती की बात को उचित बताते हुए कहा।
“चैरिटी-शो से सम्बन्धित पूरी जबावदारी हम अपनी परचित संस्था *शिकारी शो-ऑर्गेनाइज़र्स* को सौंप देंगे। यह संस्था इसी तरह के चैरिटी-शो का आयोजन बड़ी ही निष्ठा और ईमानदारी के साथ करती है। *शिकारी शो-ऑर्गेनाइज़र्स* संस्था हॉल-बुकिंग से लेकर टिकट, पास, कोरियोग्राफी, ड्रेस, लाइट एण्ड साउंड सिस्टम आदि की पूरी व्यवस्था सम्हाल लेगी और जिसकी देख-रेख का काम मैं स्वयं ही करता रहूँगा।” घोष बाबू ने सुझाव दिया।
“हाँ, यह ठीक रहेगा। और यदि यह आयोजन सफल हो जाता है तब हम इसी तरह के प्रोग्राम प्रत्येक माह के प्रथम शनिवार को रख सकेंगे। ऐसा करने से लोगों का मनोरंजन भी होता रहेगा और हमें अपने मिशन के लिए आर्थिक सहायता भी मिलती रहेगी।” रॉनली ने सन्तोष व्यक्त करते हुए कहा।
“हाँ रॉनली, इस तरह से प्राप्त फंड से हम ऐसे रैज़ीडेंशियल स्कूल खोल सकेंगे। जहाँ पर कि विद्यार्थियों को रहने के लिए हॉस्टिलस् और खाने-पीने के साथ-साथ उनकी फ्री-एज्यूकेशन की व्यवस्था भी की जा सकेगी और स्कूल का पूरा खर्च हमारा ट्रस्ट उठाता रहेगा।” आरती ने अपना सुझाव देते हुए कहा।
रॉनली और आरती के सुझाव सभी बाल-मित्रों को सही लगे। सभी ने मिलकर यह निर्णय भी लिया कि अब हमें अविलम्ब एक संस्था का गठन कर लेना चाहिए और एक निश्चित स्थान भी बना लेना चाहिए जहाँ से कि सभी कार्यों का संचालन किया जा सके।
साथ ही रॉनली, आरती और घोष बाबू ने मिलकर यह निर्णय भी लिया कि यदि हमें और भी दूसरी समाज-सेवी संस्थाओं का सहयोग मिलता है तो हम दूसरे शहरों में भी इसी प्रकार के स्कूलों को स्थापित कर सकेंगे और गरीब बच्चों के शैक्षणिक एवं आर्थिक उत्थान में सहभागी हो सकेंगे।
“इस संस्था का संचालन तो मेरे बंगले से ही किया जा सकता है। बँगले के नीचे के रोड-साइड के दोंनो कमरों में यह व्यवस्था आसानी से की जा सकती है।” घोष बाबू ने अपना सुझाव दिया।
सर्व-सम्मति से संस्था का नाम भी *बचपन-फॉउन्डेशन* रखा गया। रॉनली, आरती और सभी बाल-प्रतिनिधियों की इच्छा थी कि घोष बाबू ही इस संस्था के संचालन और व्यवस्था का दायित्व सम्हालें और जिन्हें भी वे अपने सहयोग के लिए अपने साथ में रखना उचित समझें, उसे रख लें। जिसे बाल-आग्रह मानकर घोष बाबू ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
साथ ही घोष बाबू ने कल्चलर-प्रोग्राम और चैरिटी-शो से सम्बन्धित सभी कार्यों में अपने सहयोग के लिए मानसी, मानसी, शाल्विया और भास्कर को अपने साथ में रखना उचित समझा।
इधर रॉनली की फ्यूचर प्रिडिक्टिंग डिवाइस के नेट-वर्क से बार-बार यही संकेत मिल रहे थे कि आरती और उसके अन्य बाल-मित्रों का जीवन संकट में है। उन्हें किसी आतंकवादी संगठन के विरोध का सामना भी करना पड़ सकता है और इतना ही नहीं उनके ऊपर प्राणघातक हमला भी हो सकता है।
डिवाइस के प्रिडिक्शन को ध्यान में रखते हुए रॉनली ने आरती और अपने सभी बाल-मित्रों को यह भी बताया कि अब से मेरी, अदृश्य होने वाली चमत्कारिक दैवीय शक्ति और किसी को भी अदृश्य कर देने वाली चमत्कारिक दैवीय-शक्ति सदैव तुम्हारे पास में ही रहेगी।
जब कभी भी तुम्हें अपने ऊपर किसी खतरे का आभास हो या थोड़ी बहुत ही शंका हो, तो तुरन्त ही अदृश्य होकर अपने बाल-यान की सहायता से किसी भी सुरक्षित स्थान पर पहुँच जाना। और हाँ, इस चमत्कारिक दैवीय शक्ति का उपयोग केवल विशेष परिस्थिति में ही होना चाहिए।
और इसका कारण भी है, यदि हमने इन चमत्कारिक शक्तियों का उपयोग परोपकार के लिए नहीं किया तो ये सभी चमत्कारिक शक्तियों हमसे सदा-सदा के लिए दूर हो जाऐंगी।
और वैसे भी मैंने सभी बाल-मित्रों और बाल-प्रतिनिधियों की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था की हुई है अतः सभी बाल-मित्र निर्भय होकर अपने-अपने मिशन पर काम करना चाहिए।
सभी बाल-मित्र और बाल-प्रतिनिधि के चेहरे पर नव-उत्साह और बुलन्द हौसला स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा था। समाज में नव-चेतना जाग्रत कर परिवर्तन के दृढ़-संकल्प को लेकर सभी लोकों के बाल-मित्रों और बाल-प्रतिनिधियों ने अपने-अपने लोकों के लिए प्रस्थान किया।
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