अन्तर्निहित - 23 Vrajesh Shashikant Dave द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अन्तर्निहित - 23

[23]

“शैल जी, मृतदेह के विषय में कुछ ज्ञात हुआ क्या?”

“क्या ज्ञात करना चाहती हो?”

“यही कि वह व्यक्ति कौन थी? किस देश परदेश की थी? क्या आयु होगी? आदि।”

“आयु का भी अनुमान नहीं लगा सका पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट।”

“कैसा है यह पोस्ट मॉर्टम करनेवाले डॉक्टरों का दल?”

“क्यों?”

“मृत्यु का कारण, समय आदि नहीं बात सके यह तो मान लिया किन्तु आयु भी नहीं जान सके।”

“इतना तो बता ही दिया है कि वह एक स्त्री थी।”

“यह जानने के लिए पोस्ट मॉर्टम करना पड़ता है क्या?” 

“क्या आपको डॉक्टरों की कुशलता पर संदेह है?”

“हाँ।”

“स्मरण रहे कि यह भारतीय डॉक्टर्स हैं, बड़े कुशल हैं।”

“तो आयु का ज्ञान कैसे नहीं हो सका? और भी कोई जानकारी नहीं मिल रही है।”

“आपका प्रश्न उचित ही किन्तु किसी की भी क्षमता पर संशय नहीं करना चाहिए।”

“ठीक है। अब आगे क्या कर सकते हैं हम? हमें क्या करना चाहिए?”

“फोरेंसिक जांच की अनुमति प्राप्त हो गई है। उस पर कार्य आरंभ हो चुका है।”

“उपरांत इसके क्या करना चाहिए?”

शैल विचारने लगा, ‘क्या कर सकते हैं? कुछ तो करना होगा। किन्तु क्या? इस मंजूषा ने तो उलझा दिया है।’

“शैल, एक प्रस्ताव रखूं?” सारा ने ने पूछा। 

शैल की विचार यात्रा भंग हुई। “जी, क्या?” 

“मेरे पास एक प्रस्ताव है।”

“कहो।”

“क्या हम मृतदेह का DNA परीक्षण करवा सकते हैं?”

“डीएनए? ओह, हाँ। करवा सकते हैं। किन्तु इससे क्या होगा?”

“यह ज्ञात हो सकेगा कि वह कौन थी? किस देश प्रदेश की थी? किस अनुवंश से थी?”

“यह अच्छा विचार है।” 

“तो यही करते हैं।”

“करना तो यही होगा किन्तु ...।”

“इसमें भी किन्तु?”

“डीएनए परीक्षण के लिए पुन: अनुमति मंगनी पड़ेगी।”

“अनुमति देने में उन्हें कोई आपती थोड़ी न होगी?”

“चलो, आप भी साथ चलो। स्वयं देख लो।”

“कहाँ?”

“अनुमति मांगने के लिए।”

“मेरा चलना आवश्यक है क्या?”

“नहीं, सर्वथा नहीं। किन्तु वहाँ क्या क्या नखरे होंगे यह देखना हो तो चलो मेरे साथ।”

“अरे, नहीं, नहीं। मैं नहीं चल रही हूँ।” सारा एक कुर्सी पर बैठ गई। शैल चल गया। 

   # # # # **** 

“तो श्रीमान शैल, अब आप उस मृतदेह का डीएनए परीक्षण चाहते हैं?”

“जी महोदय।”

“क्यों?”

“इससे ज्ञात होगा कि यह व्यक्ति किस देश की है।”

“तुम्हें क्या लगता है, कौन देश से होगी?” 

“इतना कह सकता हूँ कि वह भारतीय आनुवंशिकता से भिन्न है।”

“यह तो सब को ज्ञात है, इसमें नया क्या है?” अधिकारी क्रोधित हो गया। 

शैल ने मौन ही रहना उचित समझा। शैल के मौन से वह अधिक भड़क गया, “बोलते क्यों नहीं हो?”

“जी, जी।”

“क्या जी – जी कर रहे हो? जी जी से काम नहीं चलेगा। यह बताओ कि इन अठारह दिनों में आपने इस मंजूषा की कौन सी पहली को सुलझाया?” 

“प्रयास कर रहे हैं। और इसी के लिए ही यह अनुमति चाहिए थी।”

“प्रथम पोस्ट मॉर्टम किया, पश्चात फोरेंसिक जांच। क्या इतना पर्याप्त नहीं था?”

“पोस्ट मॉर्टम प्रत्येक बात पर मौन है। मृत्यु का समय, स्थान कारण जैसी किसी भी बात का संकेत नहीं दे रहा है। फोरेंसिक जांच होने में कई सप्ताह लगते हैं।”

“अर्थात अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है। क्या कर रहा है तुम्हारा अन्वेषण दल? और वह पाकिस्तानी इंस्पेक्टर? कोई काम के नहीं हो तुम सारे। एक हत्या का रहस्य अठारह दिनों के बाद भी जान नहीं सकते हो।” अधिकारी ने अपना रोष उलट दिया, क्षण भर रुका। शैल ने अपना धैर्य बनाये रखा। 

एक घूंट पानी पीकर अधिकारी पुन: बोल, “तुम जानते हो ना यह घटना अब अंतर्राष्ट्रीय हो गई है। हम पर कितना दबाव है उसका तुम्हें कोई अनुमान भी है? प्रश्नों के उत्तर देते देते हम थक जाते हैं। तुम समझ रहे हो न हमारी, अपनी स्थिति को?”

“जी, इसीलिए डीएनए परीक्षण करवाना आवश्यक है।”

“इससे क्या होगा? मान लो वह युवती यूरोप से या अमेरिका से या अफ्रीका से है तो क्या? इससे मंजूषा सुलझ जाएगी?”

“हमें कुछ दिनों का समय मिल जाएगा। तब तक आप भी जवाब देने से बच जाएंगे।”

“क्या?” 

शैल ने संकेतों से सहमति प्रकट की। 

“तब तो यह अनुमति अवश्य देनी पड़ेगी। पहले क्यूँ नहीं बताया?” अधिकारी ने अनुमति पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। 

“धन्यवाद, महोदय।” शैल जाने लगा। 

जाते हुए शैल को अधिकारी ने कहा, “इसके उपरांत भी कोई अन्य परीक्षण करवाना चाहो तो अनुमति मांग लेना, उसे देने के लिए मैं तत्पर रहूँगा।” अधिकारी के होंठों पर कुटिल स्मित था। उस स्मित और उन शब्दों का अर्थ शैल पूर्ण रूप से जान चुका था। वह मौन रहा, स्मित देते हुए कक्ष से बाहर चल गया।