श्रापित एक प्रेम कहानी - 15 CHIRANJIT TEWARY द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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श्रापित एक प्रेम कहानी - 15

वृंदा अंजान बनाते हैं पूछती हैं---


वृदां :- अच्छा संपूर्णा आज पार्टी किस खुशी में दी जा रही है। 


संपूर्णा कहती है----


संपूर्णा :-- हां हां.. अब ज्यादा बनो मत चल मुझे पता है तुम सब क्यूं पुंछ रही है। 



वृंदा पुछती है--


वृदां :- क्या पता है तुझे? 


संपूर्णा कहती है---


संपूर्णा: - यही जो तू सुनना चाहती है के भाई वापस आ गया है।


 वृंदा कहती है ----

वृदां :- तुझे कैसे पता के मैं यही पूछने वाली हूँ ।


संपूर्णा कहती है----


सपूर्णा :- तेरी आँखों की चमक बता रही है पगली। इसिलिए तो तुझे वहा दौ दिन और रखने का परमिशन भी ले लिया है। ताकी तू और भाई कुछ समय साथ बिता सको। 



इतना सुनकर वृंदा खुशी से उछल पड़ती है और कहती है---


वृदां:- थेक्ंस यार..! तू सच में मेरी सबसे अच्छी दोस्त है। 


संपूर्णा कहती है--- 


संपूर्णा :- र्बेशरम लड़की जल्दी कर। जा तैयार हो जल्दी से। 


तभी वहां चट्टान सिंह और सोनाली आ जाती है। चट्टान सिंह वृंदा से पुछता है---


चट्टान :- तैयार हो गई बेटा।? 


वृंदा कहती है----


वृदां :- हां पापा बस अभी हो ही रही हूं। 


चट्टान सिंह कहता है----


चट्टान :- इंद्रजीत का फोन आया था मुझे उसने तुझे दौ दिन रखने और अभी ले जानी की जिद करने लगे तो मैने मना नही किया । अब तू तैयार हो जा। हम लोग शाम को आएंगे ठीक है बेटा। 


वृंदा हां में सर हिला कर कहती है---


वृदां :- ठिक है पापा। 


चट्टान सिंह कहता है----


चट्टान :- वहां अपना ख्याल रखना.


 इतना बोलकर दोनो वहा से बाहर चला जाता है. वृंदा भी तैयार हो कर भानपुर चली जाती है।




 इधर चाय की दुकान में नीलू आ जाता है। औल आलोक को देख कर कहता है----


नीलु :- आलोक बाबा आपको मालिन ने अभी हवेली बुलाया है। 



आलोक कहता है---


आलोक :- क्या निलु काका आप हमेशा मेरे पिछे ही क्यों लगे रहते हैं। उमर हो गई है आपकी, कभी आराम भी कर लिया करो ना । 


निलु चुप रहता है। 

तो आलोक कहता है----


आलोक :- ठीक है आप चलो मैं आता हूं। 



निलु वहां से चला जाता है। 


"आलोक सोचने लगता है के ये अचानक बड़े पापा हवेली क्यों बुला रहे हैं। कहीं उन्हे जंगल की बात का पता तो नहीं चल गई। नहीं नहीं उन्हे कैसे पता चलेगा "


इतना बोलकर आलोक उठता है और एकांश से कहता है---


आलोक :- ठीक है यार में अभी चलता हूँ शाम को सब मिलते हैं फिर। 



एकांश कहता है----


एकांश :- ठीक है.! चलो हम लोग भी अब निकलते है 

तभी एकांश को वही लड़की दिखती है पर उसका चेहरा नही दिखता । जैसे ही एकांश की नजर उस पर पड़ती है वो लड़की वहां से चली जाती है । 


एकांश को ये सब कुछ अजीब लग रहा था पर वो अभी उसे Ignore करके वहां से चला जाता है ।



इधर संपूर्णा वृंदा को लेकर भानपुर पहुँच जाती है। वृंदा को देख कर सब बहुत खुश होता है। वृंदा सबके पैर छुकर प्रणाम करता है---

 वृंदा की नजर ईधर उधर एकांश को ढुंढ रही थी। जिसे संपूर्णा नोटिस कर लेती हैं और वृंदा के कान में कहती है----


संपूर्णा :- जरा सबर रख पगली। भाई भी आ जाएगा , फिर दैख लेना जितना दैखना है ।


संपूर्णा की बात सुनकर वृंदा सरमा जाती है। तभी मीरा वृंदा से कहती है---


मीरा :- जाओ बेटा जाके फ्रेश हो जाओ।


 संपूर्णा वृंदा को लेकर चली जाती है। मीरा मिना से कहती है---



मीरा: - दीदी कितनी सुंदर है न वृंदा। हमारे एकांश के लिए कैसा होगा? 



मीना खुश होती है कहती हैं----


मीना :- तुमने तो मेरी मुह की बात छीन ली मीरा। 


इतना बोलकर दोनो हँसने लगती है। मीना कहती है---


मीना :- चलो चलो अभी बहुत काम है ।


उधार राजनगर मे आलोक हवेली पहुँच जाता है। जहां निलु और दक्षराज हवेली में हैठे थे। आलोक दक्षराज के पास जा कर कहता है----



आलोक :- आपने बुलाया था बड़े पापा ?


आलोक को दैखकर ं दक्षराज कहता है----


आलोक :- ये तुम क्या कर रहे हो आलोक। मैंने सुना के आज तुम सुंदरवन के अंदर गए थे।



इतना सुनकर आलोक घबरा जाता है। आलोक को कुछ समझ में नहीं आता के क्या बोले । तभी दक्षराज फिर से कहता है---


दक्षराज :- मैंने कुछ पुछा तुमसे आलोक। 


आलोक चुप हो कर खड़ा रहता है। तभी दक्षराज गुस्से से कहता है---


दक्षराज :- क्या तुम्हें पता नहीं के उस जंगल में कितना खतरा है। तुम्हें कुछ हो जाता तो। क्या तुम भूल गए उन इंसानों के कटे सरको जो जंगल बाहर पेड़ के पास मिला करते थे। ये सब जानते हुए भी तुम वहां जाने के बारे में सोच भी कैसे सकते हो। 



आलोक कहता है---

आलोक :- मुझे माफ़ कर दिजिये बड़े पापा। आगे से ऐसी गलती नहीं करुंगा। 
  

आलोक बात को बड़ाना नही चाहता था इसिलिए वो माफी मांग लेता है । 


दक्षराज कहता है---


दक्षराज :- तुम अब बच्चे नहीं हो जो मुझे तुम्हें समझानी पड़ेगी । .अब जाओ जा कर तैयार जाओ। इंद्रजीत का कॉल आया था। आज शाम को पार्टी रखी है उसने सबको बुलाया है तुम तैयार हो जाओ। 


आलोक कहता है----


आलोक :- आप नहीं चलेंगे बड़े पापा। 


दक्षराज कहता है--

दक्षराज:- नहीं बेटा मुझे थोड़ा काम है। तुम चले जाना। 



आलोक निलु की और गुस्से से देखता है और आलोक सोचता है----



आलोक :- हो ना.. हो.. ये इस नीलू का ही काम है उसी ने बड़े पापा को सब बताया होगा। 



नीलू आलोक से अपनी नजरें चुराने लगता है।


आलोक :- ठीक है बड़े पापा। 



आलोक तैयार होने चला जाता है। उधर हवेली में मीरा समोसा के लिए आटा गुंथ रही थी। वृंदा मीरा से पुछती है----


वृदां :- इससे आप क्या बनाएंगी आंटी? 



मीरा कहती है----


मीरा :- इससे में एकांश के लिए समोसा बनाउंगी उसे समोसा बहुत पसंद है वो अभी आता ही होगा और आ कर ही खाना मांगेगा। 



वृंदा मिरा से कहती है---


वृदां :- आंटी लाईए मैं आंटा लगा देती हूँ ।



इतना बोलकर वृंदा मीरा से थाली को ले लेती है। मीरा आटें की थाली दे कर चली जाती है। वृंदा समोसा बनाने लग जाती है। पर बार बार उसकी नजर गेट पर ही टिकी रहती है । वृंदा मन ही मन सोचती है-----


 वृदां :- ये एकांश आज कहा रह गया मैं इतनी दैर से सज धज के उसका इंतजार कर रही हूं और वो महाशय का कुछ अता पता ही नहीं कहां है।






तभी संपूर्णा वहां आ जाती है। संपूर्णा वृंदा की टांग खिचते हुए कहती है --


संपूर्णा :! अरे वाह वृंदा रानी तू तो अभी से भाई की पसंद का खयाल रखने लगी। 


इतना कहकर संपूर्णा वृंदा को कोनी मरती है। वृंदा सरमाते हुए कहती है---


वृदां :- अब उनके लिए नहीं तो क्या तुम्हारे लिए बनाउंगी। 

वृंदा की बात सुनकर संपूर्णा अकड़ कर कहती है ---

संपूर्णा :- बड़े बेसरम होते जा रहे हो और अच्छा बेटा...! मुझसे ही चालकी..! एक में ही हूं जो तुझे इस घर में लाने का प्लान बना रही हूं और तू मुझे ही आंख दिखा रही है।


 वृंदा कहती है----


वृदां :- अच्छ बाबा सॉरी , तू तो मेरी प्यारी ननद है ना..! इसिलिए मजाक कर रही थी। 

इतना बोलकर दोनो हंसने लगती है। तभी एकांश के मोटर साइकिल की आवाज सुनाई है। मोटर साइकिल की आवाज सुनकर संपूर्णा वृंदा को कोंनी मारकर कहती है----


संपूर्णा :- ले आ गया तेरा हीरो। अब संभाल जा के।


 वृंदा सरमाते हुए कहती हैं--


वृदां :- धत्त...! तू भी ना कुछ भी बोलती रहती है।


तभी एकांश अंदर आकर अपने जूते उतारने लगता है तो मीरा आकर पुछती है----


मीरा :- बड़ी देर कर दी बेटा आने में, अब कुछ ही दैर में सभी आने वाले है तू जा कर जल्दी तैयार हो जा। मैं तेरे लिए समोसा भिजवाती हूं। 



एकांश कहता है----


एकांश :- वाह समोसा...! मेरी प्यारी छोटी मां । 



एकांश मीरा को गले लगाते हूए कहता है ।


मीरा :- अब ज्यादा मसका मत लगा और जा जल्दी तैयार हो जा ।


एकांश :- ठीक है छोटी मां।


 इतना बोलकर एकांश अपने रूम में चला जाता है। एकांश अपने रूम मे टावल पहवकर शीशे के पास खड़ा था। के तभी वहां वृंदा समोसा लेकर आती। वृंदा को एकांश की पीठ दिखता है जिसे दैख कर वो सरमा जाती है। 



एकांश को लगता है के कमरे में संपूर्णा आई है।

 एकांश कहता है-----


एकांश :- अरे वाह शेम्पु समोसा लेकर आ गई वहां टेबल में रख दो ।


To be continue.....181