जो कहा नहीं गया - 6 W.Brajendra द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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जो कहा नहीं गया - 6

जो कहा नहीं गया – भाग 6

(प्रतिध्वनि की पुकार)


स्थान: प्रयाग

समय: कुछ दिन बाद


डायरी का अंतिम पेज पर  — सिर्फ़ एक शब्द लिखा था: “प्रयाग”।

बस यही संकेत था जो रिया को यहाँ खींच लाया था।


संगम नगरी में कदम रखते ही उसकी आत्मा जैसे किसी पुराने मित्र से मिल रही हो। गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन… किनारों पर लहरों का शोर, ऊपर उड़ते चील, और गलियों में गूंजते शंखनाद — सब मिलकर जैसे किसी अदृश्य धड़कन का आह्वान कर रहे थे। 

रिया को अजीब सी आहटें लग रहीं थी

मन को भावुक कर रही थी,ओर बहुत कुछ जानने की उत्सुकता में बेचैन हो रही थी

वह डायरी को कसकर पकड़े संगम के किनारे बैठ गई। नज़र सामने की धाराओं पर थी, लेकिन मन बार-बार काशी के तुलसी घाट पर सुनी उस अनसुनी धड़कन में लौट रहा था।


उसी समय एक वृद्धा आकर बगल में बैठी। उसका चेहरा झुर्रियों से भरा था, लेकिन आँखों में एक ऐसी चमक थी जो समय से अछूती लग रही थी।


“क्या तुम उसे खोज रही हो?” — उसकी आवाज़ में अजीब-सी निश्चितता थी।


रिया चौंक गई — “किसे?”


“विष्णु को।” वृद्धा ने हल्की मुस्कान दी।


रिया का गला सूख गया — “आप… उसे जानती हैं?”


वृद्धा ने गंगा की धार की ओर देखा, फिर बोली,

“उसने प्रेम किया था… बिना शब्दों के। उसने प्रतिज्ञा की थी कि अगर वो आत्मा फिर लौटे, तो यहीं संगम पर पहचान लेगा — उसकी धड़कन से।”


रिया की साँसें तेज हो गईं।

“लेकिन वो तो…” — उसकी आवाज़ टूट गई।


वृद्धा ने उसकी हथेली में एक छोटा-सा ताबीज़ रख दिया। ताबीज़ पुराना था, किनारे घिस चुके थे, लेकिन उस पर उकेरे अक्षर साफ थे —

“राध्या”।


रिया के भीतर जैसे किसी ने गहरी चोट कर दी। उँगलियाँ काँप उठीं।


“ये ताबीज़,” वृद्धा बोली, “उस कन्या के लिए बनवाया था… जिससे वह कह नहीं पाया — ‘मैं तुम्हें जानता हूँ, जन्मों से।’”


रिया की आँखें नम हो गईं। वह उठकर संगम की ओर बढ़ी। पानी में ताबीज़ को डुबोने ही वाली थी कि पीछे कदमों की आहट आई।


धीरे-धीरे मुड़ी — एक युवक खड़ा था।

वही आँखें, वही मौन, वही अज्ञात पहचान।


“तुम…?” रिया की आवाज़ फुसफुसाहट बन गई।


उसने कुछ नहीं कहा। बस अपनी जेब से एक ताबीज़ निकाला — बिल्कुल वैसा ही।

उस पर लिखा था —

“विष्णु”।


दोनों ने एक-दूसरे की आँखों में देखा।

कोई शब्द नहीं, सिर्फ़ सांसों का संगम।

रिया ने अपना ताबीज़ उसकी ओर बढ़ाया, और उसने अपना।

जैसे वर्षों से यही पल उनका इंतज़ार कर रहा हो।


उसी क्षण, हवा से डायरी का पन्ना पलटा।

उस पर एक नई पंक्ति चमक उठी —

“जहाँ दो मौन आत्माएँ एक ही साँस में जिएँ, वहीं पुनः मिलन होता है।”


रिया की आँखें भीग चुकी थीं, लेकिन होंठों पर हल्की मुस्कान थी। वह फिर उसकी ओर देखने लगी —

लेकिन वह युवक… वहाँ नहीं था।


संगम की लहरें अब तेज़ हो चुकी थीं।

रिया के हाथ से ताबीज़ फिसलकर पानी में डूब गया।


डायरी के पन्नों पर स्याही धुंधली होने लगी।

धीरे-धीरे एक अंतिम वाक्य उभरा —

“अब अगला संकेत… वह नहीं देगा। तुम्हें खुद खोजना होगा।”


और नीचे सिर्फ़ एक अंक था —

“7”।


रिया ने डायरी को सीने से लगा लिया।

अब यह सिर्फ़ यात्रा नहीं रही — यह उसकी आत्मा का अनंत खोज-मार्ग बन चुका था।