ओ मेरे हमसफर - 8 NEELOMA द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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ओ मेरे हमसफर - 8

(रिया स्टोररूम में पुराने अखबारों के बीच प्रिया द्वारा काटी गई कुणाल राठौड़ की खबरें पाकर चौंक जाती है। तभी आदित्य और उसकी मां ललिता राठौड़ डोगरा हाउस में रिश्ता लेकर आते हैं। माहौल तनावपूर्ण हो जाता है, जब ललिता, रिया की वैधता पर सवाल उठाती है और प्रिया के लिए कुणाल का रिश्ता सामने रखती है। वैभव और कुमुद अपमानित महसूस करते हैं, पर रिया सब सुनकर अचानक आदित्य से शादी के लिए हां कह देती है। यह सबको हिला देता है—विशेषकर कुमुद को, जो समझ जाती है कि अब रिया उसकी बेटी नहीं, बस एक पराई निर्णयकर्ता बन चुकी है। अब आगे)

रिया का त्याग

रात का सन्नाटा।

घर की सारी बत्तियाँ बुझ चुकी हैं। बस वैभव और कुमुद के कमरे में नीली, हल्की रौशनी टिमटिमा रही है। कुमुद खिड़की के पास बैठी है, और वैभव कुर्सी पर। कमरे में सन्नाटा है — ठहरा हुआ, बोझिल।

कुमुद (धीरे से, बिना वैभव की ओर देखे):

"कभी-कभी सोचती हूँ... हमें क्या हक़ है, उनके लिए फैसले लेने का... जिनके जीवन का हर सच हमने जाना ही नहीं?"

वैभव (धीमे स्वर में):"पर हमने उन्हें अपने से अलग कब माना है, कुमुद? जो रिश्ता खून से नहीं, पर परवरिश से जुड़ा हो... वो कमजोर नहीं होता।"

कुमुद (थकी मुस्कान के साथ):"रिया मेरी गोद में पली-बढ़ी है... लेकिन आज जब उसने आदित्य के लिए 'हाँ' कहा... तो लगा जैसे कोई दीवार थी, जो अब तक थी ही नहीं — और अचानक सामने आ खड़ी हुई।"

वैभव (सिर झुकाते हुए):"शायद वो हमें किसी तकलीफ़ से बचाना चाहती थी। प्रिया के लिए कुछ करना चाहती थी... जिसे हम समझ नहीं पाए।"

कुमुद:"तो क्या अब हम इतने पराए हो गए कि वो अपने फैसले खुद ले, बिना हमें बताए? क्या हमारा प्यार इतना अधूरा रह गया?"

(एक लंबी चुप्पी। वैभव धीरे से उठता है, खिड़की के पास आता है और कुमुद का हाथ पकड़ लेता है।)

वैभव (धीरे):"प्यार अधूरा नहीं था... भरोसा डगमगाया है। और अब उस डगमगाए भरोसे को संभालना हम दोनों की ज़िम्मेदारी है।"

कुमुद:

"मैं डरती हूँ, वैभव... कहीं ये रिश्तों की गिरहें इतनी उलझ न जाएँ कि सुलझाते-सुलझाते सब कुछ टूट जाए।"

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उधर रिया — अकेले में, अपने कमरे में।

खिड़की के पास बैठी है। चेहरा आँसुओं से भीगा है। पर उसकी आँखों में एक स्थिरता है — जैसे उसने अपने भीतर कुछ ठान लिया हो।

रिया (आहिस्ता, खुद से):

"सबको उसका प्यार नहीं मिलता... पर प्रिया को मिल सकता है। उसे मिलना चाहिए।"

उसने शीशे में खुद को देखा। एक थकी हुई मुस्कान उसके चेहरे पर उभरी।

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दृश्य – अगले दिन सुबह।

प्रिया मृणालिनी के घर से लौट रही है। गाड़ी में बैठी, मन हल्का और दिल उम्मीदों से भरा। सिग्नल पर कार रुकी।

सामने एक और गाड़ी खड़ी थी — वही मॉडल, वही रंग।

प्रिया ने चौंककर देखा।

वही था… कुणाल राठौड़।

स्टीयरिंग पकड़े, संगीत में खोया हुआ। गंभीर चेहरा, खोए हुए से भाव।

प्रिया (मन ही मन, हल्के से मुस्कुराते हुए):

"आज का दिन तो बड़ा रोमांटिक लग रहा है..."

ड्राइवर (चौंकते हुए):

"क्या कहा, बिटिया?"

प्रिया (झेंपते हुए):

"कुछ नहीं... राशिफल पढ़ रही थी।"

लेकिन उसकी आँखें अब भी उसी कार पर टिकी थीं — और उसका दिल, कुणाल की ओर एक और कदम बढ़ा चुका था।

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दृश्य – डोगरा हाउस।

दरवाज़े की घंटी बजती है। दरवाज़ा खुलते ही सामने रिया खड़ी मिलती है।

प्रिया दौड़ती है, रिया को गले से लगाती है — जैसे कुछ अनमोल खोकर फिर मिल गया हो।

रिया (हल्की-सी मुस्कान के साथ):

"कैसा रहा सब?"

प्रिया (चिढ़ाते हुए):

"बहुत रोमांटिक… मैं फ्रेश होकर आती हूँ।"

वह हँसते हुए कमरे में चली जाती है।

कुमुद रिया की ओर देखती भी नहीं। सीधे प्रिया के सामने एक तस्वीर रख देती है।

कुमुद:

"इसका नाम कुणाल राठौड़ है। इसकी माँ तुम्हारे लिए रिश्ता लाई हैं। तुम्हारा क्या विचार है?"

प्रिया (हक्का-बक्का):

"क्या...? कुणाल राठौड़?"

उसकी आँखें तस्वीर पर टिक जाती हैं। वही चेहरा... वही गहराई… वही ख्वाब।

प्रिया (धीरे से माँ से लिपटते हुए):

"मुझे पसंद है, माँ।"

कुमुद की आँखों में आँसू हैं। वह उठती है, धीरे से कहती है:

कुमुद (भीगे स्वर में):

"ठीक है... मैं बात करती हूँ।"

वह अपने कमरे की ओर बढ़ जाती है। रिया यह सब चुपचाप देख रही है। उसकी आँखें बहुत कुछ कहती हैं… लेकिन उसके होठ अब भी खामोश हैं।

---

प्रिया — अपने कमरे में।

अलमारी से कुणाल की तस्वीर निकालती है। निहारती है — जैसे वर्षों की तमन्ना पूरी हुई हो। तभी दरवाज़ा खटकता है। वैभव अंदर आता है।

वैभव (स्नेह से):

"माँ बता रही थीं, तुम्हें कुणाल पसंद है?"

प्रिया (झेंपकर, मुस्कुराते हुए):

"कुछ नहीं, पापा…"

वैभव (हँसते हुए):

"कहने की ज़रूरत नहीं… जब तुम दोनों बहनों को ये रिश्ता मंज़ूर है, तो…"

प्रिया (रुककर):

"दोनों बहनें?"

वैभव (धीरे):

"हाँ… मिसेज राठौड़ अपने बड़े बेटे आदित्य के लिए रिया और छोटे बेटे कुणाल के लिए तुम्हारा रिश्ता लाई हैं।"

प्रिया का चेहरा फीका पड़ जाता है।

प्रिया (घबरा कर):

"पर दीदी तो… वो तो IAS बनना चाहती हैं! ये शादी… ऐसे?"

वैभव (हँसकर):

"शायद उसे आदित्य पसंद हो… तुम दोनों बहनें बड़ी छुपी रुस्तम निकलीं!"

वह मुस्कुराते हुए बाहर चला जाता है।

प्रिया — अब मुस्कुरा नहीं रही।

उसकी आँखों में दीदी की वो आवाज़ गूंजती है —

"IAS बनना सपना है मेरा..."

प्रिया तेज़ कदमों से रिया के कमरे की ओर बढ़ती है — उसकी आँखों में बेचैनी है। एक तूफ़ान उठा है — और उसका जवाब बस रिया के पास है।

...

1. क्या रिया का त्याग वास्तव में प्रिया की ख़ुशी के लिए था... या उसके भीतर कोई ऐसा राज़ है, जो अब तक अनकहा है?

2. जब प्रिया सच जान जाएगी कि रिया ने अपने प्यार को चुपचाप कुर्बान कर दिया — क्या वो अपनी बहन की जगह खुद को रख पाएगी?

3. दो बहनों के बीच पनपते रिश्तों के इस उलझे धागे में... क्या प्यार बचेगा या भरोसा टूटेगा?

जानने के लिए पढ़ते रहिए "ओ मेरे हमसफ़र"।