My Contract Wife - 3 Raju kumar Chaudhary द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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My Contract Wife - 3

📝 My Contract Wife


✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में


"जिस प्यार की शुरुआत कागज़ से होती है, उसका अंजाम दिल तक पहुँच ही जाता है..."



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प्रस्तावना


अर्जुन एक सफल बिजनेस मैन है — शांत, गंभीर और भावनाओं से दूर। उसका जीवन एकदम अनुशासित है, लेकिन भीतर एक वीरानगी है जिसे कोई समझ नहीं पाता। दूसरी ओर है अनन्या — चुलबुली, तेज़-तर्रार और ज़िंदगी को अपने अंदाज़ में जीने वाली लड़की। दोनों की दुनिया एक-दूसरे से बिल्कुल अलग। पर ज़िंदगी को किसे कब कहाँ ले जाए, ये किसी को नहीं पता।



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कहानी शुरू होती है…


अर्जुन की माँ कैंसर की अंतिम स्टेज में थी। उनका एक ही सपना था – बेटे की शादी देखना। लेकिन अर्जुन शादी जैसे रिश्ते को वक़्त की बर्बादी मानता था। “माँ के लिए कर लूंगा, पर प्यार-व्यार मेरे बस का नहीं…” – यही सोच थी उसकी।


अनन्या की ज़िंदगी में तूफ़ान आया था। पिता का बिजनेस डूब चुका था, और ऊपर से कर्ज़दारों का दबाव। उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी।


एक कॉमन जान-पहचान के जरिए अर्जुन और अनन्या की मुलाकात होती है। अर्जुन ने सीधे प्रस्ताव रखा —


> “मुझसे एक साल के लिए शादी करोगी? सिर्फ नाम की शादी। माँ की वजह से। बदले में तुम्हें हर महीने 2 लाख रुपए मिलेंगे।”




अनन्या पहले तो चौंकी। फिर सोचा – “इससे बेहतर सौदा क्या होगा?”

शर्तें साफ थीं:


एक साल का कांट्रैक्ट


कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं


मीडिया, रिश्तेदारों से दूरी


माँ के सामने अच्छे पति-पत्नी का नाटक



अनन्या मान गई।



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शादी… और उसका नाटक


शादी हुई। माँ की आँखों में खुशी के आँसू थे। अर्जुन और अनन्या ने ‘मियाँ-बीवी’ का रोल बड़ी सच्चाई से निभाया।


लेकिन रोज़मर्रा की जिंदगी ने अजीब मोड़ ले लिया।


अनन्या धीरे-धीरे अर्जुन की आदत बन गई — उसकी चाय का अंदाज़, उसकी बातें, उसके ताने… सब कुछ।

उधर अनन्या को भी एहसास हुआ कि अर्जुन उतना बेरुखा नहीं है जितना दिखता है।


वो अक्सर आधी रात को उठकर उसकी माँ की दवा देता।

पैसों के पीछे भागने वाला इंसान माँ के लिए पूजा करता दिखता।

अनन्या का दिल धड़क उठा।



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कांट्रैक्ट के परे की दुनिया


एक दिन, माँ ने अर्जुन से कहा —


> “बेटा, ये लड़की हमारे घर की लक्ष्मी है। तूने इसे दिल से अपनाया या सिर्फ कांट्रैक्ट से?”




अर्जुन चुप रहा। पर मन में हलचल थी।

कांट्रैक्ट के 8 महीने बीत चुके थे। अब दिल और दिमाग के बीच की लड़ाई तेज़ हो चुकी थी।


एक रात अर्जुन ने पूछा —


> “अगर ये कांट्रैक्ट न होता… तब भी तुम मुझसे शादी करती?”




अनन्या ने पलटकर जवाब दिया —


> “अगर तुम्हारा दिल न होता, तो कांट्रैक्ट भी न होता…”





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टूटता समझौता, जुड़ते दिल


एक दिन माँ का निधन हो गया। अंतिम संस्कार में पूरे गाँव ने देखा — अर्जुन ने पहली बार किसी के सामने रोया। अनन्या ने उसे बाँहों में भर लिया।


अब शादी का कारण जा चुका था।

कांट्रैक्ट पूरा हो चुका था।

एक साल बाद, अनन्या ने सूटकेस उठाया।


> “मैं जा रही हूँ… तुम्हारा कांट्रैक्ट पूरा हुआ…”




पर अर्जुन ने रास्ता रोक लिया।


> “अब मैं एक और कॉन्ट्रैक्ट चाहता हूँ…

इस बार बिना तारीख के, बिना शर्त के…

शादी नहीं — प्यार वाला रिश्ता… हमेशा का…”




अनन्या की आँखों से आँसू झरने लगे। वो मुस्कुराई।


> “अब तो पैसे भी नहीं लोगे?”




> “अब तो दिल दाँव पर है… क्या तुम लोगी?”




अनन्या ने उसका हाथ थाम लिया।



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एपिलॉग


अब अर्जुन और अनन्या एक-दूसरे के लिए जीते हैं। बिजनेस पार्टनर, लाइफ पार्टनर, और दिल के साथी बन चुके हैं।


"कभी-कभी सबसे गहरे रिश्ते वहीं से शुरू 

💍 My Contract Wife


✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में – एक रोमांटिक-ड्रामा


प्रस्तावना:


प्यार वो एहसास है जो अक्सर बिना बुलाए चला आता है।

पर जब वही प्यार एक काग़ज़ी समझौते से शुरू हो… तो क्या वो सच्चा प्यार बन सकता है?



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कहानी की शुरुआत


अर्जुन मेहरा, 30 साल का एक सफल बिजनेसमैन, दिल्ली की बड़ी कंपनी का सीईओ। उसकी ज़िंदगी में सब कुछ था — पैसा, पावर, प्रतिष्ठा… बस एक चीज़ की कमी थी – प्यार।

प्यार शब्द से उसे चिढ़ थी। उसे लगता था प्यार सिर्फ एक इमोशनल जाल है, जिसमें फँसकर लोग अपने करियर और पहचान को बर्बाद कर देते हैं।


पर उसकी माँ, सुनीता मेहरा — जो कैंसर से जूझ रही थीं — बस एक ही ख्वाहिश लेकर जी रही थीं:

“मेरे बेटे की शादी हो जाए… बस फिर मैं चैन से मर सकूंगी।”


माँ के आँसू देखकर पत्थर दिल अर्जुन भी पिघल गया। लेकिन वो दिल से शादी नहीं करना चाहता था। तभी उसने फैसला लिया —


> "अगर एक कांट्रैक्ट मैरिज हो जाए… एक साल के लिए… ताकि माँ को लग जाए कि मैं खुश हूँ…"





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दूसरी ओर


अनन्या सिंह — 24 साल की एक होनहार लड़की, जिसने मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की थी। पर किस्मत ने धोखा दिया। उसके पिता का बिजनेस डूब गया। घर बिक गया। लोन और कर्ज़दारों की धमकी उसके दिन-रात खराब कर रहे थे।


उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी। और तभी उसकी मुलाकात हुई अर्जुन से — एक जान-पहचान वाले वकील के ज़रिए।


जब अर्जुन ने कांट्रैक्ट का प्रस्ताव दिया —


> "मुझसे शादी करो, एक साल के लिए। बदले में हर महीने 2 लाख मिलेंगे। माँ को लगेगा कि मेरी शादी हो गई है। एक साल बाद हम डाइवोर्स ले लेंगे।"




अनन्या पहले तो हैरान हुई, पर हालात ने उसे हाँ करने पर मजबूर कर दिया।



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शादी: एक नाटक की शुरुआत


शादी सादगी से हुई। सिर्फ माँ के सामने एक ‘खुशहाल कपल’ का नाटक करना था।

अर्जुन और अनन्या एक ही बंगले में रहने लगे, पर अलग-अलग कमरों में।

माँ की आँखों में खुशी लौट आई। लेकिन असली संघर्ष अब शुरू हुआ।


अनन्या की हँसी, अर्जुन को परेशान करने लगी… और फिर लुभाने भी।


अर्जुन की चुप्पी, अनन्या को खलने लगी… फिर उसे समझने का मन करने लगा।



धीरे-धीरे, अनन्या अर्जुन के दिल की दीवारों में सेंध लगाने लगी।

वो जान गई थी — अर्जुन जितना सख्त दिखता है, अंदर से उतना ही टूटा हुआ है।



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भावनाओं का बदलता मौसम


6 महीने बीते।

माँ अब पहले से बेहतर थीं।

अर्जुन ऑफिस के काम में कम और अनन्या की आदतों में ज़्यादा खो गया था।

वो जानता था कि ये सब अस्थाई है… पर दिल को कौन समझाए?


एक रात जब बिजली चली गई, तो दोनों बालकनी में बैठे चाँद की रोशनी में बातें करने लगे।

अनन्या ने कहा —


> “पता है अर्जुन, बचपन में मैं सोचा करती थी कि मेरी शादी किसी राजकुमार से होगी… मगर अब लगता है वो राजकुमार, सूट में बैठा, कानूनी कागज़ पर साइन करवा रहा है।”




अर्जुन मुस्कराया, पर दिल रो पड़ा।



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टूटता अनुबंध, जुड़ते दिल


जब 11वाँ महीना आया, अनन्या की आँखों में डर दिखने लगा।

वो नहीं चाहती थी कि ये रिश्ता खत्म हो।

पर शर्तें तो पहले से तय थीं।


एक दिन अनन्या ने देखा — अर्जुन चुपचाप अपने कमरे में रो रहा था।

वो पास आई और बोली —


> “क्या हुआ?”




अर्जुन ने पहली बार खुलकर कहा —


> “मैंने इस कांट्रैक्ट से खुद को बचाना चाहा था… पर तुमने मेरी दीवारें गिरा दीं।

अब अगर तुम चली गईं… तो मैं फिर वही बन जाऊंगा जो पहले था — एक खाली खोल।”





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कहानी का मोड़


अब एक नया डर दोनों के दिल में था —

क्या दूसरा भी वही महसूस करता है? या यह एकतरफा है?


फिर आया साल का आखिरी दिन।

डायवोर्स के पेपर तैयार थे। वकील बुलाया गया।


अनन्या ने काँपते हाथों से पेपर उठाए… साइन करने ही वाली थी, कि अर्जुन ने पेपर खींच लिए।


> “नहीं चाहिए ये साइन।

अब मैं तुम्हें कांट्रैक्ट वाइफ नहीं, मेरी ज़िंदगी की वाइफ बनाना चाहता हूँ।”




अनन्या की आँखें भर आईं।


> “तो फिर बोलो अर्जुन…

क्या अब ये रिश्ता बिना पैसे के भी चलेगा?”




> “अब ये रिश्ता सिर्फ दिल से चलेगा…

कागज़ों से नहीं।”





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एपिलॉग: एक नई शुरुआत


अर्जुन और अनन्या ने दोबारा शादी की —

इस बार बिना कांट्रैक्ट, बिना शर्त।


अब उनका रिश्ता एक मिसाल बन चुका था।

दो लोग जो एक सौदे के तहत मिले,

प्यार की सबसे खूबसूरत मिसाल बन गए।



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🌟 सीख:


रिश्ते अगर दिल से निभाए जाएँ, तो कागज़ों की कोई औकात नहीं होती।

होते हैं जहाँ दिल और दस्तखत दोनों मिलते हैं।"



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🌟 सीख:


रिश्ते जब दिल से निभाए जाएँ, तो कांट्रैक्ट भी इश्क़ बन जाता है।