वो जो मेरा था - 3 Neetu Suthar द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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वो जो मेरा था - 3

"वो जो मेरा था..."
📖 Episode 3 – अनलिखे पन्नों का पहला शब्द



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कुछ कहानियाँ लिखी नहीं जातीं, बस जी ली जाती हैं...
और फिर एक दिन, जब वक्त उन्हें पढ़ता है, तो हर लम्हा एक नए किरदार की तरह सामने आता है।

काव्या की ज़िंदगी अब एक नए मोड़ पर थी — एक अजनबी की अधूरी मोहब्बत, एक पुराना खत, और एक नई नौकरी जिसने उसे आरव मल्होत्रा से बाँध दिया था।


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🌞 अगली सुबह – ब्लू बेल पब्लिकेशन

“Unwritten Letters” प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो चुका था। और उस प्रोजेक्ट का पहला लेखक और संपादक — काव्या।

काव्या ने ऑफिस की खिड़की से बाहर देखा। बारिश अब भी रुक-रुक कर हो रही थी, जैसे मौसम भी आरव और रिया की कहानी में डूब गया हो।

उसने अपने लैपटॉप पर एक खाली डॉक्युमेंट खोला — और पहली पंक्ति टाइप की:

> "वो नहीं जानती थी कि जो पन्ना वो पढ़ रही है,
उसमें किसी का अधूरा अतीत लिखा है…"




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🧩 काव्या और आरव – एक नई शुरुआत

लंच ब्रेक में, आरव अचानक उसकी टेबल के पास आया।

आरव: “काव्या, एक कॉफी पी सकते हैं?”

काव्या (हैरानी में): “सर, आपके जैसे लोगों को अकेले कॉफी पीते देखा है, किसी के साथ नहीं।”

आरव (हल्की मुस्कराहट के साथ): “आज शायद एक अपवाद बनाना चाहता हूँ।”

दोनों कैफे की बालकनी में बैठ गए। बारिश अब थोड़ी शांत थी, और उनके बीच की चुप्पी में ढेरों अनकहे जज़्बात तैर रहे थे।

आरव ने अचानक पूछा:
“अगर तुम रिया होती… और तुम्हें पता चलता कि कोई तुम्हारे लिए सालों से कुछ लिख रहा है… तो क्या तुम लौटती?”

काव्या (कुछ देर सोचकर):
“शायद नहीं… पर मैं चाहती कि वो लिखना बंद न करे। क्योंकि कभी-कभी सिर्फ लिखते रहना ही किसी को ज़िंदा रखता है।”


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🕯️ रात – काव्या का कमरा

काव्या ने डायरी उठाई, और लिखा:

> “मैं शायद उसकी रिया नहीं हूँ…
लेकिन मैं उसकी चुप्पी को शब्द देना चाहती हूँ।”



> “कभी-कभी, किसी की कहानी पूरी करने के लिए
हमें अपना अंत भी बदलना पड़ता है।”




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📚 अगले दिन – "Unwritten Letters" का पहला चैप्टर

काव्या ने आरव को मेल किया:

> "Chapter 1: रिया की आँखें"



> “रिया की आँखें किसी कविता से कम नहीं थीं।
उनमें बारिश की सी नमी और शाम की सी तन्हाई थी।
वो हर चीज़ को छूकर महसूस करती,
और हर दर्द को गले लगाकर मुस्कराती थी।”



> “वो कहती थी, ‘कभी अगर मैं चली जाऊँ, तो मुझे शब्दों में सहेज लेना…’
और शायद मैं वही कर रहा हूँ।”




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आरव ने वो चैप्टर पढ़ा — और पहली बार उसकी आँखें नम हो गईं।
उसने फोन उठाया और बस एक लाइन टाइप की:

> “तुम्हारे शब्द… मुझे मेरी रिया से मिला रहे हैं।”




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🕰️ एक शाम – लाइब्रेरी में मुलाकात

ब्लू बेल ऑफिस के नीचे एक पुरानी लाइब्रेरी थी, जहाँ कम ही लोग जाते थे।

काव्या वहाँ बैठी, कुछ पुरानी किताबों के बीच, एक पन्ना लिख रही थी — तभी आरव आया।

आरव: “तुम्हारे शब्दों में जादू है, पर दर्द भी।”

काव्या: “शब्द वही होते हैं जो ज़ख्मों से निकलते हैं।”

दोनों के बीच एक लंबा सन्नाटा पसरा… फिर आरव ने धीरे से पूछा:

“तुम अपने बारे में कुछ नहीं बतातीं…”

काव्या मुस्कराई… फिर बोली:

“क्योंकि मैं अभी खुद को भी नहीं जानती… बस इतना जानती हूँ कि अब जो लिख रही हूँ, वो सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं… मेरे लिए भी है।”


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📦 एक पुराना संदूक – रिया की आखिरी डायरी

ब्लू बेल ऑफिस के एक स्टोररूम में, पुरानी किताबों के साथ एक लकड़ी का संदूक मिला।
उसमें एक डायरी थी — रिया की आखिरी डायरी।

पन्नों पर इंक धुंधली थी… पर एक पन्ना पूरी तरह साफ था:

> “अगर मुझे फिर से जीने का मौका मिले…
तो मैं उस इंसान के लिए जीना चाहूँगी,
जो मेरी चुप्पी से प्यार करता था।”



काव्या ने धीरे से वो पन्ना आरव के सामने रख दिया।

आरव देर तक उसे देखता रहा — जैसे उसमें अपना अतीत, अपनी मोहब्बत और खुद को खोज रहा हो।


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🌌 देर रात – आरव और काव्या की बातचीत

आरव: “तुम्हें नहीं लगता कि ये सब इत्तेफाक है?”

काव्या: “नहीं… मुझे लगता है ये कहानी मुझे बुला रही थी।”

आरव: “क्या तुम कभी किसी से टूटी हो?”

काव्या (धीरे से):
“हाँ… और तब से ही मैं दूसरों की टूटी कहानियाँ जोड़ने लगी।”


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🌙 एपिसोड के अंत पर – एक नई जिम्मेदारी

काव्या अब सिर्फ एक लेखक नहीं रही थी — वो रिया की आवाज़ बन रही थी।
वो हर उस अधूरे जज़्बात को लिख रही थी, जो कभी आरव ने सिर्फ दिल में रखा था।

और अब, “Unwritten Letters” का नाम बदलकर "Woh Jo Mera Tha..." रखा गया।


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📖 To Be Continued...

अगला एपिसोड (Episode 4):
"जब पन्नों के पीछे छुपा एक सच सामने आया…"
(कल फिर मिलते हैं एक नए मोड़ के साथ)


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