पहली मुलाक़ात - भाग 4 vaghasiya द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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पहली मुलाक़ात - भाग 4


बारिश उस दिन ज़रा ज़्यादा ही तेज़ थी। बरेली की गलियाँ कीचड़ से भर चुकी थीं और आकाश जैसे किसी अधूरी पुकार का जवाब दे रहा था।

आरव अपने कमरे में बैठा बार-बार फोन की स्क्रीन देख रहा था — कोई मैसेज? कोई कॉल?

तीन दिन हो चुके थे। अंजली का कोई अता-पता नहीं था। कॉलेज से गायब, उसके घर के बाहर सन्नाटा और आरव के दिल में बेचैनी।
जिस चिट्ठी के साथ अंजली ने जाने का फैसला किया था, वह उसकी बहादुरी का प्रमाण था — पर आरव के लिए, यह एक परीक्षा बन चुकी थी।

और फिर… शाम करीब 7 बजे, गीले कपड़ों में, काँपते होंठ और भीगी पलकें लिए… अंजली उसके दरवाज़े पर खड़ी थी।

"अंजली!"
आरव ने दरवाज़ा खोला तो हैरान रह गया।

"मुझे कहीं और जगह नहीं मिली जाने की…"
उसकी आवाज़ में डर नहीं था, लेकिन थकावट थी।

आरव ने बिना एक शब्द कहे उसे अंदर बुलाया।
उसने उसे तौलिए दिए, गर्म चाय बनायी और बस चुपचाप बैठ गया।

कुछ देर बाद अंजली ने कहा,
"मैं नहीं जानती ये सही है या नहीं, लेकिन… मैं अब और पीछे नहीं जाना चाहती।"

आरव ने उसकी आँखों में देखा,
"तो आगे बढ़ते हैं, साथ में।"

ये शब्द जैसे किसी तूफान में छाता बन गए।

कुछ देर की चुप्पी के बाद अंजली बोली —
"आरव… मुझे डर लग रहा है। ना सिर्फ़ समाज से, बल्कि इस नए जीवन से। मैं हमेशा से जिद्दी रही हूँ, लेकिन अब… जब सब कुछ पीछे छोड़ आई हूँ, तो डर और ज़िम्मेदारी दोनों सीने पर बैठ गए हैं।"

आरव ने उसका हाथ थामा।

"अंजली… तुम्हारी बहादुरी से ज़्यादा पवित्र कुछ नहीं।
मैं जानता हूँ कि ये रास्ता काँटों से भरा है, लेकिन अगर तुम चाहो… तो मैं तुम्हारा साथी बन सकता हूँ — बिना किसी वादे के, बिना किसी बंधन के… सिर्फ़ तुम्हारे साथ चलने के लिए।"

अंजली की आँखों से आँसू बहने लगे।
"क्या ये प्यार है आरव?
या बस दो टूटे हुए इंसानों की ज़िद कि साथ जियें?"

आरव ने हल्की मुस्कान के साथ कहा —
"अगर ये ज़िद है, तो मैं इसे उम्रभर निभाना चाहता हूँ।"

और पहली बार, बिना किसी औपचारिक शब्दों के, बिना किसी ‘आई लव यू’ के…
दोनों ने अपना प्यार स्वीकार किया।

बारिश अब भी जारी थी।

आरव ने रेडियो चालू किया — और एक पुराना गीत बज उठा…

“कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना…”

दोनों एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे। अब वहाँ डर नहीं था… बल्कि एक उम्मीद थी।

अगले कुछ दिनों में अंजली ने हॉस्टल में रहने का निर्णय लिया। आरव ने उसके लिए जरूरी सामान का इंतज़ाम किया। दोनों ने कॉलेज फिर से शुरू किया, लेकिन अब नज़रों की धार और भी तेज़ थी।

कुछ लोग कहते — "लड़की तो घर से भागी है!"
कुछ कहते — "ये आज़ादी नहीं, नालायकी है।"

पर अंजली के चेहरे पर अब शांति थी।

एक दिन, कॉलेज में एक सेमिनार था — विषय था "समाज और आधुनिक युवतियाँ"
अंजली को मंच पर बुलाया गया।

उसने माइक पकड़ा, और कहा —

"मैं वो लड़की हूँ, जो एक दिन घर छोड़कर भाग गई।
लेकिन मैं अपने प्यार के साथ नहीं, अपनी पहचान के साथ भागी थी।
ये समाज हमें केवल इज़्ज़त और संस्कार का पिंजरा पहनाना चाहता है,
लेकिन मैं उड़ना चाहती थी… और आज, मैं उड़ रही हूँ।
और जो लोग कहते हैं कि मैंने गलती की है —
तो हाँ, मैंने की है… क्योंकि मैं इंसान हूँ, देवी नहीं।"

पूरा हॉल सन्न था। फिर कहीं से तालियाँ बजने लगीं — और वो ताली सिर्फ़ आवाज़ नहीं, सहमति थी।

बाहर निकलते ही आरव ने उसे देखा और कहा,
"आज तुमने मुझसे भी ज़्यादा हिम्मत दिखाई।"

अंजली मुस्कराई,
"कभी-कभी प्यार से ज़्यादा ज़रूरी होता है… खुद से प्यार करना।"

और उस दिन, पहली बार दोनों ने साथ में एक तस्वीर खिंचवाई —
ना छिपकर, ना डरकर… बल्कि गर्व के साथ।

-vaghasiya