अनकही दास्तां (शानवी अनंत) - 3 Akshay Tiwari द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अनकही दास्तां (शानवी अनंत) - 3


"जब पहली बार एहसास चेहरे से टकराते हैं...."



दिल की धड़कनें तेज़ थीं।
दिल्ली की ठंडी शाम, लेकिन मेरी हथेलियां पसीने से भीगी हुई थीं।
आज का दिन बहुत खास था।
मैंने फैसला किया था ..
शानवी से मिलने का।

हम महीनों से एक दूसरे से जुड़ते आ रहे थे.… शब्दों के ज़रिए, खामोशियों के ज़रिए।
लेकिन आज मैं पहली बार
उसकी आंखों में देखना चाहता था,
जिन्हें देखकर मैंने प्यार किया था।


मैंने एक कॉफी कैफ़े चुना, दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास —
न ज्यादा भीड़, न ज्यादा सन्नाटा।
बस उतनी जगह जहां मैं उसके सामने बैठकर
वो कविता पढ़ सकूं जो मैंने सिर्फ उसके लिए लिखी थी।
जो बाते मै उसे बोल नहीं पा रहा था वो सब उस एक कविता में लिखा था।

वो कविता मेरे दिल का आईना थी ..

"तुम शब्द नहीं, एक मौन हो
जो हर रात मेरे ख्वाबों में बोलती है।
तुम मिलो या न मिलो,
पर मेरी हर रचना में तुम्हारा होना,
मेरी सबसे प्यारी कविता है…."


शाम 4:30 बजे का समय तय हुआ था।
मैं 3:00 पर ही पहुंच गया।
बैठा रहा…. एक किताब हाथ में लेकर, लेकिन नजरें हर बार दरवाज़े पर टिक जाती थीं, उसकी एक झलक के लिए,
मन में लाखों सवाल एक साथ उथल पुथल मचा रहे थे।

फिर वो आई….
हल्का नीला सूट, खुले बाल, और आंखों में वही शालीन सी मासूमियत।

मैंने पहली बार उसे असल में देखा था।
वो तस्वीरों से कहीं ज्यादा खूबसूरत थी ..
क्योंकि उसमें अब एहसास था, वो भी मेरा।

वो थोड़ी हिचकिचाई, बैठते वक्त आंखें झुकाए रखी,
मैंने मुस्कुराते हुए कहा ..
“तुम वैसी ही हो, जैसी मैंने कल्पना की थी.…”

उसने हल्की मुस्कान दी ..
वही मासूम सी, जिसने मुझे पहली बार उसकी तरफ खींचा था।


हमने कुछ देर इधर उधर की बातें की, किताबों पर, कविताओं पर….
लेकिन मेरे दिल में तो तूफ़ान था।

मैंने उसे देखा.… फिर उस कागज़ को निकाला
जिसमें मैंने वो कविता लिख रखी थी।

“शानवी एक कविता सुनाउ तुम्हें?”
मैंने पूछा।

मुझे महसूस हो रहा था कि उसके दिल में भी हलचल मची हुई हैं उसने पहली बार मुझे देखा था।

वो मुस्कुराई और बोली .... “मुझे हमेशा सुनना अच्छा लगता है….”

मैंने आंखें बंद कीं.… गहरी सांस ली…. और कविता पढ़ने लगा .. जो मैने उसके लिए लिखी थी।

कुछ इस तरह उस कविता की शुरुआत होती हैं....


"मेरी रूह का सहारा बनोगी क्या..
मेरे साथ ज़िंदगी भर कदम से कदम मिलाकर
चलोगी क्या..

मेरे इस मासूम दिल की धड़कन बनोगी क्या..
मेरी सांसों पे राज करोगी क्या..

मैं सिर्फ तुम्हे अपनी आख़िरी सांस तक प्यार करूंगा..
तुम भी मुझसे प्यार करोगी क्या..
मेरे साथ ज़िंदगी भर चलोगी क्या"

और अंत में कुछ लाइनें और भी पढ़ी जो मैंने उस पन्ने में नहीं लिखी थी, वो सिर्फ लाइनें नहीं थीं मेरे दिल के अहसास थे जो सिर्फ उसके लिए थे।

"तुम जब चुप होती हो,
मेरी धड़कनें तुम्हें सुनती हैं।
तुम जब मुस्कुराती हो,
तो लगता है ये ज़िंदगी पूर्ण है।
मैंने कभी तुमसे कुछ नहीं माँगा,
बस तुम्हारा साथ.. वो भी खामोशियों में।
शानवी....
तुम मेरे लफ़्ज़ों की वो कविता हो,
जो अधूरी होकर भी पूरी लगती है।"


मैंने देखा....
उसकी आंखों में आंसू थे।

वो कुछ बोल नहीं पाई.. लेकिन उसकी आंखें बोल रही थीं।

मैंने धीरे से पूछा ..
“क्या तुम जानती हो,
किसी का तुम्हें इस तरह चाहना,
बिना शर्त.... बिना मांग.... क्या होता है?”

उसने सिर्फ सर झुकाकर कहा ....
“हाँ… अब जानती हूं।”


वो पल....
वो लम्हा....
मेरे लिए पूरी दुनिया था।

हम दोनों चुप थे,
लेकिन उस खामोशी में,
प्यार ने अपनी जगह बना ली थी।


दोस्तों, उस दिन हम दोनों बदले नहीं,
बस थोड़े और करीब हो गए।

वो मुझे अब भी “अनंत जी” कहकर बुलाती है,
लेकिन अब उसके “जी” में
मुझे अपना नाम सुनाई देता है।

हम अभी भी रोज़ नहीं मिलते,
हर बात खुलकर नहीं होती,
लेकिन हर बात में एहसास होता है।


क्या ये रिश्ता अब इज़हार से आगे बढ़ेगा?

Next part coming soon 🔜