IIT Roorkee (अजब प्रेम की गज़ब कहानी) - 3 Akshay Tiwari द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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IIT Roorkee (अजब प्रेम की गज़ब कहानी) - 3

"अलविदा मेरी रूह”

(श्रिशय और श्रिनिका की प्रेम कहानी का अंतिम अध्याय)

“कुछ कहानियाँ मुकम्मल हो जाती हैं,
लेकिन कुछ… टूटे दिल के साथ सदा के लिए दिल में बस जाती हैं।”

उस दिन जब उसने अपना हाथ मेरी हथेली में रखकर कहा था – 
"अब कभी मत जाना…", तो लगा था ज़िंदगी ने मुझे वो सब दे दिया है जिसकी चाह हर प्रेमी को होती है।
IIT रुड़की की गलियों से शुरू हुई हमारी कहानी अब ज़िंदगी की 
राहों पर साथ चलने लगी थी।
दोनों ने करियर में स्थिरता पाई, और फिर दो साल की मेहनत के बाद, दोनों परिवारों को मना भी लिया।

हमने साथ में घर के सपने देखे…. एक छोटा सा कोना जहाँ 
उसकी पायल की छनक, मेरी किताबों के पन्नों से मिलकर 
एक नई दुनिया रचती।
हमने अपनी शादी की तारीख भी सोच ली थी – उसी महीने में, 
जब हम पहली बार मिले थे, बारिश के मौसम में।

पर शायद किस्मत को कुछ और मंज़ूर था।

“उस दिन की वो खामोशी….”
एक शाम वो ऑफिस से लौटी। बहुत थकी हुई लग रही थी, 
लेकिन मुस्कान फिर भी चेहरे पर थी – जैसे हर दर्द को छुपा कर 
मुझे सुकून देना चाहती हो।

मैंने उससे कहा, “चलो कुछ स्पेशल बनाते हैं आज.… 
तुम्हारा फेवरेट पास्ता।”

वो बस मुस्कुराई.… और बोली,
“थोड़ी देर आराम कर लूँ.… फिर साथ में बनाएंगे।”

मैं किचन में गया.… और कुछ मिनटों बाद पीछे से गिरने की तेज 
आवाज़ आई।

मैं दौड़कर पहुँचा…. वो फर्श पर बेसुध पड़ी थी।
उसकी साँस धीमी थी, होंठ नीले…. और चेहरा एकदम सफ़ेद।

“वो दृश्य.… जो मेरी रूह चीर गया”
अस्पताल में भर्ती कराया गया।
सारे टेस्ट हुए…. डॉक्टर ने मुझे बाहर बुलाया।

“आपको मजबूत रहना होगा.…”
“उन्हें लिवर कैंसर है, स्टेज 4…. और सिर्फ 3 महीने हैं।”

सिर्फ तीन महीने….?

मेरी ज़िंदगी वहीं रुक गई। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था 
मैं एक जिंदा लाश की तरह खड़ा रह गया।
वो लड़की.… जिसके साथ मैं हर जन्म जीना चाहता था,
अब गिनती के दिनों की मेहमान बन चुकी थी।

मगर मैने हिम्मत दिखाई कि वो परेशान न हों मै हर पल उसके 
साथ रहने लगा उसे रात को दवाई खिलाके सुला देता फिर उसे देखता रहता, मेरी आंखों से आशू थमने का नाम नहीं लेते, कब सुबह हो जाती मुझे पता ही नहीं चलता मेरी रूह अंदर से रो रही थी।

“अधूरे सपनों की साँझ.…”
वो मुझसे रोज़ कहती —
“देखो, मुझे डर नहीं है मरने से.…
मुझे बस अफ़सोस है कि हमने अभी जीना शुरू ही किया था।” 
हमारे सपनो का क्या होगा, मैने तुम्हारा साथ बीच में ही छोड़ दिया। 
वो कहती मै तुम्हे बहुत प्यार करती हूं।
मैं अपने आशू छुपाने के लिए उसे कसके गले लगा लेता।

हम दोनों हर दिन को आख़िरी दिन समझकर जीने लगे।
उसकी आँखों में अब भी वही चमक थी.… लेकिन शरीर धीरे-धीरे 
जवाब दे रहा था।

हम हर शाम छत पर बैठते, वो मुझे गले लगाकर कहती –
“श्रिशय, अगर मैं ना रहूँ…. तो तुम मुस्कुराते रहना।”

मैं कुछ नहीं कह पाता।
बस उसकी गोदी में सिर रखकर सिसकियाँ भरता।

उसकी ये हालत मुझसे देखी नहीं जा रही थीं 
मगर मै कमजोर नहीं पड़ा, हम दोनों इकलौती संताने थे 
मै उसके मां पापा को अपने घर ले आया हम साथ रहने लगे, 
उसने एक दिन कहा श्रीशय मेरे मां पापा का ध्यान रखना उनका 
मेरे सिवा कोई नहीं है। 

“वो आख़िरी सुबह….”
3 महीने बीत गए।
एक सुबह जब मैं उठा.… तो वो मेरी बाहों में सिर रखे सो रही थी।
लेकिन…. इस बार उसकी साँसें थम चुकी थीं।

उसकी आँखें आधी खुली थीं.… जैसे मुझे आखिरी बार देखना चाहती हों।
उसके होठों पर हल्की सी मुस्कान थी — जैसे कह रही हो,
 “मैं अब भी तुम्हारे साथ हूँ।”

“उसकी आख़िरी ख़्वाहिश.…”
अंतिम संस्कार से पहले उसने एक चिट्ठी मेरे तकिये के नीचे रखी थी!

"श्रिशय,
अगर तुम टूट गए या रोए, तो मेरी आत्मा भी चैन से नहीं जाएगी।
मैंने तुझसे सच्चा प्यार किया.… और तुम्हे अब मुस्कुराते देखना चाहती हूँ। तुमने मेरा साथ निभाया।
ज़िंदगी तुमसे कुछ छीन सकती है.… पर जीना तुम्हे खुद के लिए नहीं, हमारे प्यार की यादों के लिए है।
हमारे परिवार के लिए है।

हाँ, मैं चली जाऊँगी.… पर तुम जिंदा रहना…. 
मेरे हिस्से की खुशियाँ भी जी लेना।"
सारे सपने पूरे करना, दोनों मां पापा खा ख्याल रखना।

“अब भी साँस लेता हूँ.… पर जीता नहीं हूँ”
दोनों परिवारों ने मुझे टूटने नहीं दिया।
वो मेरे साथ खड़े रहे।
मै रातों को रोता रहता, अपनों की हसी की खातिर ये दर्द भी 
चुप चाप सह गया।

मैं जिंदा हूँ…. पर वो हँसी कहीं खो गई है।

अब जब भी बारिश होती है.… मैं छत पर बैठ जाता हूँ।
उसके झुमकों की खनक, उसकी हँसी…. सब कानों में गूंजती हैं।

हर साल उसकी बरसी पर मैं उसी IIT रुड़की कैंपस के उस मोड़ 
पर जाता हूँ.…
जहाँ हमने पहली बार एक-दूजे को देखा था।

“वो चली गई, लेकिन उसकी रूह आज भी मेरे हर कदम के साथ 
चलती है।
और मैं…. उसी वादे को निभाने की कोशिश करता हूँ —
कि मैं खुश रहूँगा…. उसके लिए…. हमारे लिए।”

"कुछ प्यार मुकम्मल नहीं होते,
पर वो अधूरे रहकर भी, ज़िंदगी का सबसे मुकम्मल हिस्सा बन जाते हैं।"

 दोस्तों ये थी श्रीशय और श्रीनिका की प्रेम कहानी,,
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