पुर्णिमा - भाग 5 Soni shakya द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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पुर्णिमा - भाग 5

विचारों के भंवर में डूबी शशि कमरे में बैठी थीं। ये  अमावस्या का कैसा साया है जो शशि के जीवन में अंधकार फैल रहा था।

कभी सोचा ना था उसने की जिंदगी में ऐसा भी मोड आएगा जहां वह अपराधी ना होते हुए भी अपराधी की तरह कटघरे में खड़ी रहेगी।

अपने मुकदमे की पेरवी  भी उसे खुद ही करनी होगी।

दूसरों को न्याय देने वाली जज आज अपने लिए न्याय नहीं कर पा रही थी ।
उसने सोचा न था की पढ़े लिखे लोगों की सोच भी ऐसी होती है।
रीति रिवाज और परंपरा के नाम पर किसी अजन्मे की बाली चढ़ने वाली थी।
आज उसे अपना पढ़ा लिखा होना व्यर्थ लग रहा था ।
क्या  करूं  ? 
कैसे करूं  ?
कैसे सुधारू सब कुछ  ?
किससे कहूं  ?
काश ! तुम यहां होती मां..

मां का ख्याल आते ही शशि उठ  खड़ी हुई और सीधे मां के पास चली गई।

(पूर्णिमा __परिवार का खयाल रखने में वह इतनी व्यस्त रहती थी कि उसने कभी अपना ख्याल  ही नहीं रखा। उसे पता ही नहीं चला कि लो बीपी की बीमारी कब उसके अंदर प्रवेश कर गई। 
और फिर एक दिन,,बीपी इतना कम हो गया कि फिर नहीं संभला।
और पूर्णिमा एक तस्वीर बनकर रह गई..!)

 पुर्णिमा की तस्वीर के सामने खड़ी शशि,मां की तस्वीर में अपना अक्स निहारते हुए बोली __
कितना मुश्किल है एक मां बनना 
और उससे भी मुश्किल है उसे अपने अंदर संजोय रखना और उसे जन्म देना ।
उन्हें अपनी मर्जी से जीने की आजादी देना।
अपनी इच्छा अपने सपनों को पूरा करने की आजादी देना।
ऊंची उड़ान के लिए हौसलों के पंख देना।

कैसे किया था तुमने ,मां ..यह सब  ?
कहां से लाई थी इतनी  हिम्मत तुमने  ?

शायद तुमने  सिर्फ एक ""मां ""बन कर सोचा होगा।

हां.... यही सच होगा।

अब ...मैं भी सिर्फ ‌एक मां बन कर निर्णय लुंगी।
मां ...तुम मेरे साथ रहना बस  ! तुम्हारे हसलों से
 मुझे हौसला मिलता है मां ...

अरे ,,तुम अभी तक तैयार नहीं हुई  डॉक्टर के पास नहीं जाना है क्या  ?
राकेश (शशि का पति) कमरे में प्रवेश करते ही बोला।

अब शशि अकेली शशि नहीं थी उसके अंदर मातृत्व  जाग गया था ।

नहीं ..... मुझे नहीं जाना है डॉक्टर के पास !

पर ..क्यों नहीं जाना है ?
यह हम दोनों का फैसला था ।

हां ...पर अब मुझे अबार्सन नहीं करवाना है।

पर तुम्हें एक ही बच्चा चाहिए, और मां को बेटा 
और तुम्हारी कोख में  तो बेटी है।

मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता मैं नहीं जाऊंगी बस ..! और आप आज के युग में ऐसी बातें करते हो, मैं माजी को नहीं समझ पा रही पर आप तो समझ सकते हो।?
मैं अपनी इन्दु (अजन्मी बच्ची का नाम) इस दुनिया में जरूर लाऊंगी।

दोनों की बहस सुनकर (प्रभा देवी) शशि की सास कमरे में आती है और कहती है क्यों घर सर पर उठा रखा है। जितना कहा गया है उतना करो। 
चुपचाप जाकर अबॉर्शन करवाओ। 

कैसी बातें कर रही हो मांजी आप एक औरत होकर औरत की दुश्मन बन रही है।

वैसे भी हम एक पुरुष प्रधान देश में रहते हैं उस पर अगर एक औरत ,औरत का साथ ना दे तो  औरतो का तो अस्तित्व ही ख़तरे में आ जाएगा।
और फिर बेटा और बेटी में क्या फर्क है माजी दोनों ही हमारे अंश होते हैं।

तो तुम्हारा मतलब है कि मैं झुठ बोल रही हु ,शास्त्र झूठ बोलते हैं  ।

मैंने ऐसा कब कहा माजी। 

अगर अंतर ना होता तो शास्त्रों में क्यों लिखा होता कि बेटे के हाथों तर्पण से मोक्ष  की प्राप्ति होती है ।सासु मां बोली __

लिखा है मांजी ,,पर ऐसा कहां लिखा है कि "सिर्फ" बेटे के हाथों से  ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पहले के जमाने में ऐसा होता था माजी की महिलाएं शमशान भूमि में नहीं जाती थी पर आजकल तो सब जाती है ‌।
जिनके बेटे नहीं होते आजकल तो  उनकी बेटियां अपने माता-पिता का अंतिम संस्कार तक करती है ।

और मोक्ष या मुक्ति तो अपने कर्मों से मिलती है  माजी 
न की बेटे या बेटी से। 
अगर मोक्ष बेटे से मिलता तो सभी बेटों के मां-बाप को मोक्ष  को प्राप्त हो जाते ।

इसलिए मैं अपनी बेटी को इस दुनिया में जरूर लाऊंगी।

हो गया तुम्हारा भाषण खत्म  ? प्रभादेवी बोली।

ये भाषण नहीं है माजी आप ही सोचो..
अगर नानी में ऐसा किया होता तो क्या आपका जन्म होता  ?
और अगर आपका जन्म नहीं होता तो राकेश जी का जन्म कैसे होता है ? 

और अगर मेरी नानी ने भी ऐसा किया होता तो मेरी मां का जन्म कैसे होता और अगर मेरी मां ने भी ऐसा किया होता तो मेरा जन्म कैसे  होता  ।

और अगर ऐसे ही बेटियों के जन्म पर रोक लगा दी गई तो आप अपने बेटो का विवाह कैसे करोगे  ?

ऐसे तो श्रृष्टि की व्यवस्था ही  बिगड़ जाएगी।

एक तरफ तो आप मोक्ष की बात करती हो मांजी और दूसरी और  मुझसे पाप करवा रही हो।

बस- बस ज्यादा ज्ञान मत बांटो ?

नहीं माजी में ज्ञान नही बांट रही में तो बस यह बता रही हु कि __
एक  निष्कलंक ,निष्पाप, अजन्मे  जीव की हत्या करना भी तो पाप ही है ।
      "और भ्रूण परीक्षण करवाना तो अपराध है "

फिर भी आपने मुझसे अबार्सन कराने की जबरदस्ती
की तो मैं आपके खिलाफ मुकदमा कर दुंगी।

राकेश और प्रभादेवी चुपचाप शशि की बात सुन रहे थे 

सहसा प्रभादेवी का हृदय परिवर्तन हो जाता है और वह शशि को गले लगाते हुए कहती है __मुझे माफ कर दो बेटा। मैं सचमुच बहुत बड़ा पाप करने जा रही थी, तुमने मेरी आंखें खोल दी। 

अब तो इस घर में शशि की परछाई इन्दु की पायल ही छनकेगी ...!!

राकेश के चेहरे पर संतोष की मुस्कान थी।वो कुछ ग़लत नहीं करना चाहता था मगर मां के आगे मजबुर था, बस ।


मां की तस्वीर में अपना अक्स निहारती शशि,जीत की मुस्कान थी उसके चेहरे पर,
मां से बोली___मा मैंने कर दिखाया।
आपके दिए हुए हौसलों ने मेरा हौसला बढ़ाया है।
आपकी शशि का यह जीत की ओर पहला कदम था। 
अब मैं आपकी बात समझ गई हूं मां कि _असंभव जैसा कुछ नहीं होता । करने से सब कुछ हो जाता है।

**अगर हौसले बुलंद हो तो हर कदम पर मंजिल अपना रास्ता बताती है**

                    थैंक यू मां...!!

अब इस शशि पर कभी भी कोई अमावस्या का साया नहीं छाऐगा ,ये मेरा वादा है आपसे और गिफ्ट भी।

          आपके और मेरे लिए...
               
        "" मातृत्व दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं मां ""
                    🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉