Imperfectly Fits You 7 rakhi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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Imperfectly Fits You 7

//मन से मन की बात//

सखी (मन मे) - आप मेरे हो सत्या और मैं आपकी हु। में आपकी ही रहूंगी । में आपकी हंसिनी हु जो अकेली रह सकती है मर सकती है पर कही ओर नहीं जा सकती । दुनिया की रिवाजों जरूरत मुझे नहीं है सत्या में आपकी हो चुकी हूं। मेरी आत्मा ने आपको स्वीकार किया है। भले ही आप मुझसे न कहे पर आप भी मुझे याद कर रहे हो ।

सत्या ( मन में)- मैं तुमसे बाहर निकल ही नहीं पा रहा हूं। काश, काश मेरे ये हालात न होते तब तुम पक्का मेरी बाहों में होती मेरी संगिनी बन कर । मां परिवार के बंधन में ऐसा बंधा हु के ना रहा जा रहा है ना ही कही भाग सकती हूं। तुम क्यों मुझे गालियां देकर दुत्कारती नहीं हो।

सखी - तुम सोचते होगे इतना प्रेम दिखा कर में तुम्हे बांधने या वापस अपनी ओर लाने की कोशिश कर रही हु । पर सच मानो मेरी बेचैनी और हताशा को तुम्हारा प्रेम ही सही कर पाता है और मेरे पास क्या है करने को या देने को । एक प्रेम ही तो है जो अब दे सकती हु।

सत्या - तुम मुझे गद्दार मानती होगी । मान भी लो कम तो ऐसा ही किया है मैने । पर सच काहू कोई भी रास्ता नहीं था जिससे मैं तुम्हे पा सकू। घर की स्थिति भी ठीक नहीं है.. रिश्तेदारों की नजर अलग और साथ में बहनों की फिकर... माँ की कमजोर बनने की आदत कैसे कुछ कर पाता मैं। अब तो इत्ता भी नहीं ...के तुम्हारे साथ अलग रह कर ध्यान रख पाऊं। काश मैं सब बोल पाता तुमसे....

सखी- काश कुछ हो जाता के हम साथ रह पाते । में घर से भाग पाती सब भूल कर या जिद करके आ पाती। काश भगवान कुछ ऐसी कृपा कर देते आप

सत्या - काश ये रिश्ता शादी का नाटक यही खत्म हो जाए । मैं वचन से आजाद हो जाऊ। फिर भले दूर से तुम्हे देख कर जिंदगी काट लूंगा।  बस तुम्हारा हु सखी । काश तुम्हे दिल का हाल दिखा पता ।

सखी - पता नहीं कैसे हो आप । मुझे याद करते होगे........ क्या पता । तुम तो लोगो से घिरे होगे अभी फुर्सत कहा होगी कुछ याद कर सको । 

सत्या - अगर तुम्हारी जिंदगी में भी कोई आया तो कैसे देख पाऊंगा मैं। तुम मेरी हो तुम्हे खुद से जुदा किसी के पास सोच भी नहीं सकता । ये कैसा इंसान हु मैं अपने बारे में ही सोच रहा हु । तुम मेरे लिए इतना त्याग कर दी हमारे सारे सपने यूं ही जाने दी । फिर मैं ऐसा क्यों नहीं कर पाता हु। 

सखी - आप मुझसे अपना देखने का क्यों कहते हो में आपके नाम से जी सकती हु पर कही का सोच भी नि सकती । आपसे अलग खुद को महसूस नहीं कर सकती मैं।

( आपस में कितनी भी दूरियां हो पर दिल पर इसका कोई असर नहीं  होता। रिश्ते खून या रिवाजों नहीं दिल से बनते है और दिल से ही चलते है । पर फिर भी दुनिया इससे जान कर भी अंजान बनती हैं)