मन की गूंज - भाग 1 Rajani Technical Lead द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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मन की गूंज - भाग 1

हर सुबह की किरण में, अब हमें एक डर सा लगता है,
नन्हीं आँखों में सवालों का अंधेरा सा झलकता है।
हर हंसी में एक क़ीमत है, हर ग़म में एक ग़मगीन पल,
लेकिन कभी किसी ने सोचा है, ये नन्हीं जानें क्यों रोती हैं पल-पल?

हवाओं में, चाँद की रौशनी में, अब छुपा है दर्द,
जिन्हें हम समझते थे मासूम, उनका बचपन हो गया मर्द।
क्या हो गया है हमें, जो हम अपनी ही जड़ों से कट गए,
नन्हें चेहरों को देख कर अब हम बस चुप हो गए।

कभी बचपन में जो बातें हम करते थे बड़े प्यार से,
वही बातें अब हमारे दिल को क्यों करती हैं इतना खार से?
कहाँ से आई यह अंधेरी रातें, ये बेरहम तूफ़ान?
जो मासूमों को न छोड़ता है, और हर दिन बढ़ता जा रहा है पापों का मान।

क्या तुमने कभी महसूस किया, उस नन्हीं लड़की का दर्द?
जिसे उसके मासूम सवालों के बदले मिला घिनौना शब्द।
जिसकी हँसी अब नहीं गूंजती, क्योंकि उसका दिल टूट चुका है,
वो अब खुद से डरती है, उसे अब खुद से भी डर लगता है।

अभी तक सोचा था हमने, कि समाज में बदलाव आएगा,
पर ये तो साबित हो गया है, बुराई का शिकंजा बढ़ेगा।
कितने ही क़ानून बने, कितनी ही आवाज़ें उठीं,
फिर भी क्या बदला? समाज के दिल में फिर भी वही घृणा पिघली।

जब एक लड़की रौंदी जाती है, तो क्या वह सिर्फ शरीर ही होती है?
या एक पूरा जीवन, उसकी मासूमियत, उसकी भावनाएँ, उसकी इच्छा?
क्यों हर कदम पर उसे अपनी सुरक्षा के बारे में सोचना पड़ता है?
क्यों उसे हमेशा डर रहता है, क्या उसे घर लौटने की छूट मिलती है?

क्या हम नहीं समझ पाएंगे, उसकी नींद में बसी हुई चुप्प,
जब उस मासूम की हँसी, अब शोर में खो जाती है।
क्या होगा जब यह बच्चे पूछेंगे, क्या इंसानियत मर चुकी है?
क्या तब हम उन्हें क्या जवाब देंगे, जब हमें खुद अपनी धड़कन भी डरी सी लगेगी?

कहाँ से आ गया यह बर्बरता, यह दरिंदगी का अंधकार?
कहाँ गया वह समाज, जहाँ था हर किसी का सम्मान और प्यार?
क्या हमारी सभ्यता सिर्फ शब्दों में ही बसी थी?
या उसे भूल गए हम, और अब हम जहर के सागर में फंसे थे?

अब वक्त आ गया है, हमें कदम उठाने की आवश्यकता है,
नन्हीं आँखों की हसरतों को हमें समझने की आवश्यकता है।
समाज की जड़ों को फिर से मजबूत करने की आवश्यकता है,
ताकि हमारे बच्चे कभी डर के साये में न जीने की आवश्यकता न समझे।

हम सभी को एकजुट होना होगा, आवाज़ उठानी होगी,
हर बच्ची, हर महिला की सुरक्षा के लिए हमें लड़ाई करनी होगी।
सिर्फ शब्द नहीं, हमें अपने कार्यों से भी दिखाना होगा,
कि इस समाज में कोई भी बुरा काम करने से पहले उसे डर महसूस होना होगा।

हर माँ की आँखों में उम्मीदें हैं, हर बेटी की आँखों में सवाल,
कहाँ गई हमारी इंसानियत? क्या हम फिर से बदलेंगे, या फिर से होंगे हम गलती के हाल?
समाज को यह समझना होगा, कि यह लड़ाई सिर्फ उनके लिए नहीं है,
यह तो हमारे भविष्य के लिए है, हर एक बच्ची के लिए, जो कभी न छोड़ सकेगी अपने सपने!