1.17 किताबें लिखने का जुनून, जिसमें intricate और आध्यात्मिक भगवद गीता जैसी रचना भी शामिल है, आपके भीतर कैसे जागा?
1.जी बहुत सुंदर सवाल, सन २००० में मेरा भयानक एक्सीडेंट हो गया, करीब ९ महीने बिस्तर पर रहा, ९ महीने बाद मैंने दुबारा से नौकरी जाना शुरू कर दिया,२००३ में अवसाद हो गया, नौकरी चली गई. उसी दौरान मेरे एक मित्र ने मुझे श्रीमद्भगवद्गीता दी पढ़ने के लिए, मैंने प्रसाद समझ कर ग्रहण की, उसी समय मैंने पहला श्लोक पढ़ लिया फिर मैंने १८ अध्याय,७०० श्लोकों को पढ़ा लिखा हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में जैसे ही पूरा हुआ मेरे अवसाद भी खत्म हो गया और मेरी नौकरी भी लग गई. सच बताऊँ भगवद्गीता ने मेरी पूरी जिंदगी बदल दी, १७ नहीं १८ लिख दी ईश्वर के आशीर्वाद से.
2.आपने सुई का उपयोग करके हस्तलिखित पुस्तक तैयार करने का निर्णय क्यों लिया? इसके पीछे की प्रेरणा क्या थी?
2.जी जैसे ही श्रीमद्भगवद्गीता पूरी की मेरी नौकरी सोनीपत लग गई, साईं बाबा के मंदिर जाना शुरू कर दिया, मंदिर के ट्रस्टी एक अखबार निकालते थे, उन्होंने मेरे काम दर्पण छवि में लिखी दुनिया की पहली हस्तलिखित श्रीमद्भगवद्गीता के बारे में प्रकाशित किया, इस लेख के बाद रोहतक दैनिक जागरण से मेरे पास फ़ोन आया, दर्पण छवि में हस्तलिखित भगवद्गीता के बारे में क़रीब ४५ मिनट बात हुई और अगले ही दिन अख़बार में पढ़ा मन प्रसन्न हो गया, इसके बाद लोगों का प्यार सम्मानित किया, पूछना और छापना शुरू कर दिया, एक दिन कृष्णा संग्रहालय,कुरुक्षेत्र से फ़ोन आया मैं हस्तलिखित श्रीमद्भगवद्गीता को लेकर गया, वहाँ किसी ने पूछ लिया, लोग सीधी नहीं पढ़ते आपने उल्टी लिख दी, मैंने उस सज्जन को ये जवाब दिया, दोस्त, वाल्मीकि जी ने मरा मरा बोला था और राम राम निकला था और संस्कृत भाषा में रामायण लिख दी, दोस्त सीधी नहीं तो उल्टी पढ़ लो मेरी जिंदगी बदली हैं तो आपकी भी बदलनी चाहिए. यही से एक विचार आया कुछ ऐसा किया जाये जिसको पढ़ने के लिए शीशे की जरूरत ना पड़े. सुई से लिखने का विचार आया और कामयाब हो गया, मेरे दर्पण छवि में लिखने का शौक भी पूरा हो गया और पढ़ने के लिए शीशे की जरूरत नहीं पड़ेगी, और दुनिया की पहली सुई से लिखी पुस्तक अस्तित्व में आ गई.
3.आज की डिजिटल दुनिया में पारंपरिक हस्तलेखन कला को अपनाने का आपका निर्णय क्यों और कैसे लिया गया?
3.पहली बात मैं बताता चलू हस्तलेखन बहुत कम देखने में आया हैं, दूसरी बात जब मैंने लिखना शुरू किया था १९८७ में और २००३ में तब इतना डिजिटल नहीं था, अगर बात करूँ डिजिटल की मैं ज़्यादातर देखता हूँ, कॉपी पेस्ट का जमाना आ गया हैं जो साहित्य के लिए अच्छा नहीं हैं, हस्तलिखित में कॉपी हो सकता हैं पर पेस्ट नहीं हो सकता हैं.
4."सोचना तो पड़ेगा ही" में आपने 110 प्रेरणादायक विचार साझा किए हैं। क्या ये विचार आपके अपने जीवन के अनुभवों से प्रेरित हैं, और ये आपके व्यक्तिगत सफर को किस प्रकार दर्शाते हैं?
4.जी,”सोचना तो पड़ेगा ही” जो ११० विचार हैं वो मेरे अपने जीवन अनुभव से प्रेरित हैं जो इस प्रकार हैं शायद आपने पहले कभी सुने हों. - फल की इच्छा रखने वाले फूल नहीं तोड़ा करते हैं. - दोस्त, जिंदगी को अगर जीना हैं जीने तो चढ़ने पड़ेंगे. - लालसा कम,लगन पक्की, लक्ष्य एक. - आलोचना मेरे लिए (चना)चबाने जैसा हैं.
5.मधुशाला, जो पहली हस्तलिखित सुई पुस्तक है, इसे तैयार करने की प्रक्रिया कैसी रही, और इस पर पाठकों की क्या प्रतिक्रिया मिली?
5.बड़ी कठिन रही, अपने विचारो से आसान बनाया, सबसे पहले अपने आप से कमिटमेंट किया, अपनी सोच का दायरा बढ़ाया, विल पॉवर मजबूत की( बस करना हैं १०० प्रतिशत) और परिवार का सहयोग और अंत में जो बहुत जरूरी हैं ईश्वर का आशीर्वाद. वैसे मैं इन चार चीजों पर भी काम करता हम(ऑब्जरवेशन,इमेजिनेशन,क्रिएशन एंड इनोवेशन) ये वो चीज़े हैं जिसने भी कर ली सफल हो गया.
6.आपकी लेखनी को मिले दर्शकों के मान्यता और प्रशंसा ने आपके व्यक्तित्व, दृष्टिकोण और आत्म-विकास में क्या बदलाव लाए?
6.जी,२००३ से शुरू किए लिखने के काम आज २० साल से ज़्यादा हो गया हैं १८ लिखी हैं जो पेड़ २००३ में लगाया था २०२५ में उसके मीठे फल खा भी रहा हूँ खिला भी रहा हूँ, छाया ले भी रहा हूँ और छाया दे भी रहा हूँ. लोगों का बहुत प्यार मिलता हैं, आँखे नम हो जाती हैं, ऊपर वाले को धन्यवाद देता हूँ, अब तो सब कुछ अपना सा लगता हैं, बस अब तो एक ही इच्छा हैं जो पुस्तकें ईश्वर के आशीर्वाद से लिखी गई हैं, भारत सरकार को देना चाहता हूँ संग्रहालय में रखी जाये. वैसे मेरी कुछ हस्तलिखित पुस्तकें “ वृंदावन शोध संस्थान” वृंदावन में रखी गई हैं.
7.इस किताब को लिखने के दौरान आपको सबसे बड़े चुनौतियों का सामना किस प्रकार करना पड़ा?
7.१८ हस्तलिखित पुस्तकों को लिखने में बहुत चुनौतियाँ आई,सभी जानते हैं हाथ से लिखना और प्रकाशित होना बिल्कुल एक दम से विपरीत हैं ३००-३०० पेजों की पुस्तकें अगर आसान होता तो आप मेरा इंटरव्यू ना लेती. सबसे पहले ये सोचना किस पर लिखना हैं हर बार एक नया इंस्ट्रूमेंट, समय प्रबंधन आदि बचपन में एक कहानी पढ़ी थी और सबने पढ़ी, कौए ने एक एक कंकड़ डाल कर पानी पी लिया था अगर पक्षी कर सकता हैं फिर पीयूष गोयल पुस्तक क्यों नहीं लिख सकता या आप कुछ नया क्यों नहीं कर सकते.
8.आप चाहते हैं कि आपका कार्य आने वाली पीढ़ियों पर किस प्रकार का प्रभाव डाले?
8.बस मैं ये कहना चाहता हूँ,सब संभव हैं क्यूंकि (इम्पॉसिबल सेज़ आई म पॉसिबल), बस अपने आप से कमिटमेंट कर लेना, और बड़े गर्व के साथ कहना चाहता हूँ और हर भारतीय को गर्व करना चाहिए एक भारतीय ने वो काम किया हैं जो अभी तक पूरी दुनिया में अभी हुआ हैं.
9.क्या आप भविष्य में भी हाथ से लिखने की परंपरा को जारी रखने का विचार रखते हैं, या लेखन के नए तरीकों का अन्वेषण कर रहे हैं?
9.जी,अभी १९ वीं लिख रहा हूँ,२० लिखने का इरादा हैं, और बताता चलूँ एक ही तरह से लिखने का कोई फायदा नहीं हैं. नए अन्वेषण जारी हैं ऊपर वाले का आशीर्वाद हैं तो शीघ्र ही कोई नई चीज़ ज़रूर अस्तित्व में आएगी.