जादुई आईना - पार्ट 1 Manshi K द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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जादुई आईना - पार्ट 1




डिस्क्लेमर : यह मेरी रचना पूर्ण रूप से काल्पनिक है । इसमें सभी किरदार भी काल्पनिक है । इसका सम्बन्ध किसी व्यक्ति , स्थान , जाती , धर्म से संबंधित नहीं है 

अगर आपको लगता है की संबंध है तो ये सिर्फ एक संयोग

होगा मात्र । 





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राजकुमारी को एक कमरे में बचपन से ही बंद रखा गया था, 

जिसका सबसे प्यारा दोस्त एक आईना था जिससे वो अपनी सारी बातें कहती थी । राजकुमारी का जन्म एक रहस्य था जो माया नगरी के प्रजा को नही पता था , राजा विक्रमादित्य अपनी पुत्री राजकुमारी ऐश्वर्या को पूरे प्रजा और दुनियां से छुपा कर रखा था।

एक अजीब सा आइना था जो सपनों की दुनिया को हकीकत में बदल सकता था। एक अद्भुत राजकुमारी, जिसे रात्रि में जादुई आइने के साथ बातचीत करने का शौक था, ने उसे देखा। आइना ने राजकुमारी को उसकी सपनों की दुनिया में ले जाने का आत्मिक सफर प्रदान किया, जहां उन्होंने अपनी आत्मा की सच्ची घटना और उच्चता का अनुभव किया। इस अनोखी प्रेम कहानी में, राजकुमारी और जादुई आइना ने सपनों की दुनिया में एक-दूसरे के साथ नए और रहस्यमय सफर में निकलने का साहस दिखाया।


आइना राजकुमारी का दोस्त कैसे बना ? बंद कमरे में क्यों रखा गया ? ऐसे ढेर सारे सवालों को लेकर आ रही है यह कहानी " जादुई आइना " ।

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माया नगरी का अपना कानून व्यवस्था था , यहां शासन राजा के द्वारा चलाया जाता था । आधुनिक काल से परिचित था लेकिन राजा विक्रमादित्य का राजपाट उनके पूर्वजों से ही वंशानुगत चला आ रहा था । 


बात उन दिनों की है जब माया नगरी के राजा विक्रमादित्य

अपनी दूसरी शादी कर के अपने महल लौट रहे थे ।

उनके राज में चारों तरफ ये बात कोई विषाणु जनित रोग की तरह फैल चुकी थी ।

राजा की दूसरी शादी वो भी तब जब पहली रानी इस दुनियां में जिंदा है । हालांकि राज परिवारों में दूसरी शादी आम बात थी लेकिन फिर भी माया नगरी में ये बात चर्चा का विषय बना था।

राजा विक्रमादित्य अपनी पहली पत्नी रानी कौशला से प्रेम विवाह किया था और उनसे बहुत प्रेम भी करते थे ।

राजा विक्रमादित्य के पास ऐसी क्या परिस्थिति आई जिससे उन्हें दूसरी शादी करनी पड़ी ।


दुसरी रानी राजनंदनी जो माया नगरी के पड़ोसी राज की राजकुमारी थी । आज महल फूलों से श्रृंगार किया था ।

मधुर गुंजन संगीत का भी हो रहा था ।

स्वागत के लिए रानी कौशला अपनी राज के कुछ सेविकाओं के साथ मुस्कुराते हुए खड़ी थी ।



राजा विक्रमादित्य रानी कौशला के सामने आते हैं " अब तो आप खुश हैं न रानी कौसला, ले आया इस महल में आपकी प्रिय सहेली को व्याह कर  । "

अब मैं आपसे उम्मीद कर सकता हूं कि आपके चेहरे पर मुस्कुराहट बनी रहेगी ।

रानी कौसला : मुस्कुराते हुए हामी भर देती है ।

मन ही मन सोच रही थी, अब बहुत जल्द ही माया नगरी को एक राज कुमार या राजकुमारी मिलने वाला है।

राजनंदनी माया नगरी को यह सौभाग्य प्राप्त जरूर करवाएगी।


फिर दूसरे पल उदास भी हो जाती है यह सोच कर कि पहाड़ी वाले तपस्वी ऋषि मुनि ने ऐसा भविष्यवाणी किया था , माया नगरी को राजनंदनी से राजकुमार और राजकुमारी दोनो प्राप्त होंगे लेकिन राजकुमारी जो जन्म लेगी वो आम प्रजा की तरह जिंदगी जीने वाली होगी ।

उसे राज पाट में ऐसा कुछ विश्वास नहीं होगा और न मानेगी , आधुनिक सोच रखने वाली होगी। अर्थात माया नगरी के विनाश का एक न एक दिन कारण बनेगी ।

मुझे तपस्वी ऋषि मुनि से इस समस्या का उपाय ढूंढना होगा वरना राजनंदनी इस माया नगरी को राजकुमार और राजकुमारी दोनो में से कुछ नहीं दे पायेगी।


राजनंदनी : आप किस सोच में डूबी हुई है रानी कौसला, देखिए आपकी सहेली आपके आंखों के सामने खड़ी है और आप हैं कि कही खोई हुई है।

मुझे गले भी नहीं लगाया अभी तक।


कौसला: मुस्कराते हुए राजनंदनी को गले लगा लेती है, फिर कुछ नहीं ..... अब आप रानी राजनंदनी थोड़ा विश्राम कीजिए । कुछ देर बाद महल में पूजा की विधि आरंभ हो जाएगी तब आपको आपके कमरे से बुला लिया जायेगा ।

आपको याद हैं न मुझे आपने कौन सा वचन दिया था शादी से पहले।


राजनंदनी : मुझे सब याद है आप चिंता मत कीजिए रानी कौसला, मैं अपना वचन जरूर निभाऊंगी।

राजनंदनी महल के कुछ दासियों के साथ अपने कमरे के तरफ बढ़ रही थी , तभी पीछे से आवाज आया 

" माया नगरी की नई रानी आई और बिना राजमाता के आशिर्वाद के ही अपने कक्ष में चली । "


रानी कौसला:  राजमाता रानी राजनंदनी को मैने ही उनको 

विश्राम करने का आदेश दिया है , कुछ ही समय पश्चात पूजा आरंभ हो जाएगी । पूजा पाठ में कितना समय लगेगा ये तो आपको भी पता है रानी कौसला अपना सिर झुकाए राज माता के सामने अपनी बात रख रही थी।


राज माता ( रानी अंबिका ) : मैने तुम से अपना पक्ष रखने के लिए कहा , नही न तो तुम अपना मुंह बंद रखो ।

मैं बात माया नगरी की नई रानी राज नंदनी से बात कर रही हूं ।

राज नंदनी समझ जाती है राजमाता का स्वभाव कैसा है , बिना देर किए आकर राजमाता के पैरों पर गिर जाती है।

" क्षमा चाहूंगी राजमाता , मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई.... मुझे अपना आशिर्वाद दीजिए । " 


राजमाता : आगे से ध्यान रहे रानी राजनंदनी ऐसी कोई भूल न हो तुम से , मैं जानती हूं तुम आधुनिक काल से परिचित हो । इसका मतलब यह नहीं है की तुम महल या राजमाता के खिलाफ जाने की कोशिश करोगी ।

अब तुम माया नगरी की रानी हो

, महल के तौर तरीके के अनुसार खुद को ढालने की कोशिश करोगी ।