मुफासा द लायन किंग फिल्म रिव्यू Mahendra Sharma द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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मुफासा द लायन किंग फिल्म रिव्यू

मुफासा देखने से पहले लायन किंग देख लें, फिर मुफासा नहीं देखेंगे तो भी चलेगा। हां सच में, अच्छी खासी फिल्म का निकम्मा प्रिक्वल बनाकर लोगों से पैसे हैंठने का धंधा किया गया है। लायन किंग मेरे और मेरे बच्चों की यादों में हमेशा रहेगी और मुफासा कभी यादें बना नहीं पाएगी।

मुफासा आपको इसलिए देखने का मन करेगा क्योंकि लायन किंग इतनी अच्छी फिल्म बनी थी जिसकी मिसाल कई सारे तकनीकी मुद्दों पर दी जाती है। जैसे कि डायलॉग राइटिंग, इतने बढ़िया तरीके से हिंदी में संवाद लिखे गए थे कि बहुत बार सिर्फ संवाद सुनने के लिए फिल्म देखने की इच्छा हो जाती है। मुफासा और सिंबा का संवाद, टीमोंन और पुमभा का संवाद और पूरी फिल्म की जुड़ती कड़ियां जैसे एक ताल मेल बना रहीं हों। लायन किंग में हिंदी गाने आज तक लोग गुनगुनाते हैं। "हकुनामताता हरपल मस्ती धमाल, तो चल बे फिकर, रहने का बिंदास्त।" यह गाना चार्टबस्टर हिट रहा। कहानी में जैसे जीवन का संदेश छुपा हो। मेरा बेटा और मैं कई बार मुफासा और 
सिंबा के केरेक्टर में आकर बात करते हैं।

मुफासा फिल्म में बहुत सारी बातें ठीक नहीं। बर्फीले इलाके में शेर नहीं रहते। कल्पना लगानी है तो वहां किरदार असली जैसे नहीं रख सकते, शेर हमेशा से मैदानी इलाकों में दिखते हैं, यहां तो पूरी फिल्म जैसे हिमालय या साइबेरिया में दिखाई गई है जो दर्शकों को गले नहीं उतर रही। टाका नाम के शेर का बार बार बदलता किरदार, पल में हीरो पल में विलन। सफेद शेरों का झुंड जो मुफासा का पीछा करता हुआ बहुत दूर आता है, ऐसा सामान्य नहीं होता, शेर दूसरे शेरों को अपने इलाके से खदेड़ कर अपने ही इलाके का पहरा देते हैं। दूसरे शेरों के पीछे दूर नहीं जाते। 

मुफासा के गाने बिल्कुल भी दिलचस्प नहीं हैं। आज दो दिन के पश्चात मुझे एक भी गाना याद नहीं है। न ही आवाज़ों में कोई दम था, शाहरुख की आवाज पहचानी हुई है, अन्य आवाज़ों में टीमोंन और पुम्बा की आवाज संजय मिश्रा और श्रेया तलपडे की है पर उनकी इन फिल्म में अधिक भूमिका नहीं है। वे दोनों भी कहानी में प्रेक्षक ही हैं।

संवादों को अच्छा बनाने की अच्छी कोशिश की गई है जैसे एक दृश्य है जहां टाका को होने वाला बादशाह बताया जाता है तब मुफासा थोड़ा खुश है थोड़ा दुखी और वो कहता है कि अच्छा है वह राजा नहीं बनेगा, उसके ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं, कोई अपेक्षा नहीं। वह आवारा है इसलिए कोई उससे अधिक उम्मीद नहीं रखेगा। पर इन सब के बावजूद फिल्म दिलो दिमाग पर अपनी पहचान नहीं बना पा रही। ज़ाज़ु नाम का हॉर्नबिल जिसे शाही सलाहकार बनाया गया है और वह शेरनी सराभी को रक्षा प्रदान करता है, उसकी आवाज़ इसरानी ने दी है, मुफासा में उसके किरदार पर भी काम नहीं किया गया। लायन किंग फिल्म में ज़ाज़ू बहुत ही मजाकिया किरदार था। 

रफीकी नाम का बबून बंदर एक अच्छा किरदार है जो पिछले संस्करण में सिंबा की पहचान जंगल से करवाता है और बाद में सिंबा को वापस घर लाने में भी अहम भूमिका निभाता है, यहां मुफासा को इसकी मंजिल तक पहुंचने में भी रफीकी का अच्छा काम दिखाया गया है। 

इस फिल्म के माध्यम से एक साकारात्मक बात सामने आती है कि अपने सपनों पर भरोसा रखो और आगे बढ़ते चलो, जो सपने हमें दिखाए गए हैं उनमें कहीं न कहीं सच्चाई होती है और अगर उन्हें सच करना है तो उनके पीछे भागना पड़ेगा।

कुल मिलकर मुफासा एक बहुत ही सामान्य कक्षा की फिल्म है किसेसिनेमैटोग्राफी की मदद से बहुत ही बड़ा दिखने की नाकाम कोशिश की गई है, पहले बार वॉयस ओवर वाले किरदार पोस्टर में दिखाकर उन कलाकारों की मदद से फिल्म को और बड़ा बनाया गया है।। पर दर्शक एक अच्छी और दिल को छू जाने वाली कहानी से वंचित रह गए हैं। 

आपको फ़िल कैसी लगी, और यह रिव्यू कैसा लगा बताएं।

– महेंद्र शर्मा