एग्जाम ड्यूटी - 3 pinki द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

एग्जाम ड्यूटी - 3

दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्व

परीक्षा ड्यूटी का दूसरा दिन था। ठंडी सुबह हल्की धूप में कॉलेज के गलियारों में चहल-पहल थी। हिंदी कथा का पेपर था, और मुझे उम्मीद थी कि बच्चे इस विषय में रुचि दिखाएंगे। मैंने सोचा, शायद आज के पेपर में बच्चे पूरा समय देकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे। लेकिन जैसे ही परीक्षा शुरू हुई, कल जैसा ही माहौल देखने को मिला।

कुछ छात्र अपनी मर्जी से सीटें चुन रहे थे। कुछ देर से आए और हंसते हुए बैठ गए। ऐसा लग रहा था जैसे यह परीक्षा उनके लिए कोई गंभीर अवसर नहीं, बल्कि केवल औपचारिकता मात्र थी। पेपर बांटने के बाद मैंने सभी से शांत होकर लिखने के लिए कहा। थोड़ी देर तक हॉल में शांति बनी रही, लेकिन यह स्थिरता ज्यादा देर नहीं टिक सकी।

जल्द ही कुछ छात्रों ने उत्तर पुस्तिकाएं जमा करनी शुरू कर दीं। मैंने उन्हें रोका और समझाया, "सभी प्रश्नों के उत्तर लिखो। इससे तुम्हें अधिक अंक मिल सकते हैं। एग्जामिनर को भी लगेगा कि तुमने मेहनत की है।" लेकिन मेरी बातों का उन पर कोई असर नहीं हुआ। उनमें से एक ने हंसते हुए कहा, "मैम, इतना क्या लिखना! वैसे भी नंबर जैसे-तैसे ही मिलते हैं।"

उसकी यह बात सुनकर मुझे गहरी निराशा हुई। शायद वह यह नहीं समझ पा रहा था कि यह परीक्षा केवल अंक प्राप्त करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह उनके सोचने और लिखने की क्षमता को परखने का अवसर है। लेकिन सभी बच्चे ऐसे नहीं थे।

कुछ छात्र पूरे मनोयोग से अपने उत्तर लिखने में मगन थे। उनका ध्यान केवल अपने प्रश्नपत्र पर था। उनमें से एक छात्र ने मेरा विशेष ध्यान खींचा। वह अपने पेपर में इतना डूबा हुआ था कि आसपास की हलचल का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था। उसके चेहरे पर एक अलग-सी दृढ़ता थी, और उसकी लेखनी तेज़ी से चल रही थी।

इसी बीच, परीक्षा शुरू होने के आधे घंटे बाद एक और छात्र आया। उसकी सांसें फूल रही थीं, और चेहरे पर थकान साफ झलक रही थी। मैंने उसे रोका और पूछा, "तुम इतनी देर से क्यों आए हो?" उसने गंभीरता से कहा, "मैम, मुझे देर इसलिए हुई क्योंकि मेरे पिता का कल रात अचानक निधन हो गया। पूरे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। आज सुबह उनकी अंतिम क्रियाएं पूरी करने के बाद भी मैंने सोचा कि यह परीक्षा देना मेरे भविष्य के लिए बेहद जरूरी है। इसी कारण मैं समय पर नहीं पहुंच सका।"

उसकी आवाज कांप रही थी, और चेहरे पर गहरे दुख के निशान थे। आंखों में आंसू होने के बावजूद उनमें एक अटूट दृढ़ता और जिम्मेदारी का भाव झलक रहा था। उसने अपनी सीट संभाली और बिना किसी शिकायत के प्रश्नपत्र पर ध्यान केंद्रित कर लिया। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह अपने पिता की स्मृति को सम्मान देने के लिए अपनी परीक्षा को पूरी ईमानदारी से देना चाहता हो।

उसकी स्थिति ने मुझे गहराई से झकझोर दिया। यह देखकर महसूस हुआ कि जीवन में ऐसी विपरीत परिस्थितियां भी आती हैं, जहां व्यक्ति को अपने कर्तव्यों और व्यक्तिगत भावनाओं के बीच संतुलन बनाना पड़ता है। वह छात्र अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए एक मिसाल बन गया। उसकी लगन और समर्पण ने मुझे गहरी प्रेरणा दी और यह सिखाया कि सच्ची मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाती।

परीक्षा समाप्त होने के बाद, जब सभी बच्चों ने अपनी उत्तर पुस्तिकाएं जमा कीं, तो मैंने देखा कि जो छात्र गंभीर थे, उन्होंने अपने पेपर में हर प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश की थी। वहीं, बाकी बच्चे जल्दबाजी में बाहर जाने की होड़ में थे।

परीक्षा हॉल खाली होने के बाद मैं वहीं बैठकर सोचने लगी। यह केवल एक परीक्षा नहीं थी, बल्कि यह बच्चों के दृष्टिकोण का आईना थी। एक तरफ कुछ बच्चे अपनी जिम्मेदारी को समझ रहे थे और मेहनत कर रहे थे, तो दूसरी तरफ कुछ इसे हल्के में ले रहे थे।

इस परीक्षा ड्यूटी ने मुझे बच्चों के दो अलग-अलग पहलुओं को करीब से देखने का मौका दिया—जिम्मेदारी और लापरवाही। और यह अनुभव मुझे हमेशा याद रहेगा। इसने मुझे यह भी सिखाया कि शिक्षक और इनविजिलेटर का काम केवल परीक्षा का संचालन करना नहीं है, बल्कि बच्चों को यह समझाना भी है कि मेहनत और ईमानदारी से ही जीवन को नई ऊंचाइयों तक ले जाया जा सकता है।