सूरज के जीवन में बदलाव की कहानी हर उस इंसान के लिए है जो कभी अपने दिल की बात खुद से भी छुपा लेता है। अनामिका की किताबें सूरज के लिए एक दर्पण बन गई थीं, जिसमें वो अपना असली चेहरा देख सकता था। आज, दो महीने हो चुके थे, जब उसने पहली बार अनामिका की किताब उठाई थी। इन दो महीनों ने सूरज को भीतर तक बदल दिया था।
उसकी आँखों में अब एक नई चमक थी। वो जो पहले अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालने की हिम्मत नहीं कर पाता था, अब अपनी माँ और बहन के सामने कविताएँ सुनाने लगा था। ये कविताएँ उसके दिल के करीब थीं, और कहीं न कहीं उनमें अनामिका के शब्दों की गूंज थी।
अनामिका की किताबें और कविताएँ जैसे उसके दिल और दिमाग पर हावी हो चुकी थीं। हर शब्द, हर पंक्ति उसे अपने भीतर की गहराइयों से जोड़ देती। अनामिका की किताबें सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं थीं; वो ऐसा एहसास थीं, जो सूरज के दिल के कोने-कोने को झिंझोड़ देतीं।
जहाँ सूरज पहले अपनी भावनाओं को चुपचाप सीने में दबा लेता था, अब वही सूरज अपनी माँ के लिए कविताएँ लिखने लगा था।
रात के सन्नाटे में वो जब अपनी माँ के पास बैठकर कहता,
"माँ, ये सुनीं? ये मेरे लिए नहीं, तेरे लिए लिखी है..."
तो माँ की आँखें भर आतीं।
"तेरी मुस्कान में बसा है मेरा जहां,
तेरी दुआओं से रोशन मेरा गगन।
तेरी ममता के साए में सुकून पाता हूँ,
तेरे बिना, माँ, मैं कुछ भी नहीं!
सूरज की बहन तारा उसे चिढ़ाती थी।
"भइया, अब तुम्हारे दिल की ये अनकही कहानी अनामिका तक कब पहुँचेगी? या फिर मैं ही जाऊं उनसे मिलने?"
सूरज मुस्कुरा देता, लेकिन भीतर से वो बेचैन हो उठता था। अनामिका से मिलने की चाह हर दिन उसे और मजबूत बनाती जा रही थी। तभी, तारा ने एक दिन खुशखबरी दी।
"भइया! मुझे पता चला है कि अनामिका की किताबें जिस प्रकाशन केंद्र से आती हैं, वो यहीं शहर में है। तुम्हें वहाँ जाना चाहिए। शायद यही तुम्हारा पहला कदम हो।"
सूरज के दिल में एक नई उम्मीद जाग उठी। उसने बिना देर किए उस पते पर जाने का फैसला किया।
अगले ही दिन सूरज उस पते पर पहुंच गया। वहां पहुंचकर उसने एक कर्मचारी से अनामिका के बारे में पूछा।
सूरज: "क्या आप मुझे अनामिका जी से मिलवा सकते हैं?"
कर्मचारी: "सॉरी सर, हम अनामिका जी को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते। उनकी किताबें हमारे पास उनके एजेंट के जरिए आती हैं। अगर आपका कोई संदेश है, तो आप हमें दे सकते हैं। हम कोशिश करेंगे कि वो उनके पास पहुंच जाए।"
सूरज के चेहरे पर निराशा की परछाईं आई, लेकिन साथ ही उसके दिल में एक उम्मीद की किरण भी चमकी। उसने सोचा, "अगर मैं अपना संदेश यहाँ छोड़ दूँ, तो शायद वो अनामिका तक पहुँच सके।"
उस शाम सूरज अपने कमरे में बैठा था। मेज पर एक कोरा कागज़ रखा था, और उसके हाथ में पेन था। लेकिन उसके दिमाग में विचारों का तूफान चल रहा था।
"क्या लिखूं? क्या सीधे अपने दिल की बात कह दूं?
नहीं... शायद ऐसा करना ठीक नहीं होगा।
लेकिन अगर मैंने नहीं कहा, तो वो कैसे समझेंगी कि उनकी कविताएँ मेरे लिए क्या मायने रखती हैं?"
वो कभी कुर्सी पर बैठता, कभी कमरे में टहलने लगता। उसकी धड़कनें तेज थीं। ये सिर्फ एक खत नहीं था, ये उसके दिल की गहराइयों की आवाज थी। वो अनामिका तक पहुँचना चाहता था, लेकिन क्या वो सही शब्द ढूंढ पाएगा?
सूरज ने खिड़की से बाहर झांका। चांदनी रात में हवा के हल्के झोंके उसे सुकून दे रहे थे। उसने गहरी सांस ली और कागज पर पेन रखा।
उसने पहली पंक्ति लिखी, फिर रुक गया।
"नहीं, ये शुरुआत सही नहीं लग रही," उसने खुद से कहा।
फिर उसने दूसरी कोशिश की। इस बार शब्द थोड़े बहने लगे। लेकिन उसे अभी भी वो शुरुआत नहीं मिली, जो उसके दिल की बात कह सके।
"अनामिका... मैं आपको कैसे बताऊँ कि आपकी कविताएँ मेरी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं?
क्या ये सही है? क्या ये बहुत सीधा है?
नहीं, शायद मुझे थोड़ा और सोचना होगा।"
"सूरज के मन में ख्यालों का समंदर उमड़ रहा था, लेकिन उसके शब्द अब भी कागज पर उतरने से कतरा रहे थे। हर बार जब वो पेन उठाता, दिल की धड़कनें तेज हो जातीं। क्या वो अपनी भावनाओं को सही ढंग से बयान कर पाएगा? क्या उसकी बात अनामिका तक पहुँच पाएगी?
उसने कागज को फिर से पलटा।
तभी, उसकी माँ दरवाजे पर आई।
"सूरज, क्या कर रहा है? इतनी देर से कमरे में बंद है। सब ठीक तो है?"
"हाँ माँ, बस कुछ लिखने की कोशिश कर रहा हूँ।"
माँ मुस्कुराई और पास आकर उसके सिर पर हाथ फेरा।
"दिल की बात लिखनी हो, तो ज्यादा मत सोच। जो महसूस हो, वही लिख। सबसे सच्चे शब्द वही होते हैं, जो सीधे दिल से आते हैं।"
माँ के ये शब्द सुनकर सूरज को थोड़ी हिम्मत मिली।
उस रात सूरज सो नहीं सका। उसने करवटें बदलते हुए अनामिका का चेहरा अपनी कल्पना में उकेरा। उसकी सोच में एक ऐसी लड़की थी, जिसके लंबे बाल चेहरे पर बिखरे हुए थे, और जिसकी आँखों में एक गहराई थी, जो किसी रहस्य को छुपाए हुए थीं।
सूरज ने ख्वाब में देखा कि अनामिका उसकी कविताएँ सुन रही है। वो मुस्कुरा रही थी, लेकिन उसकी मुस्कान में एक हल्की उदासी भी छुपी थी।
सपने से जागने के बाद सूरज ने ठान लिया कि अगली सुबह वो अपनी भावनाओं को कागज पर उतार ही देगा।
क्या सूरज अपने जज्बातों को सही शब्दों में ढाल पाएगा? और क्या उसका ये खत अनामिका तक पहुँच पाएगा? जानिए अगले एपिसोड में।