पथरीले कंटीले रास्ते - 26 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पथरीले कंटीले रास्ते - 26

 

25

 

अब तक आपने पढा कि सीधे सादे रविंद्र से शैंकी नाम के लङके का मर्डर हो जाता है । वह थाने जाकर आत्मसमर्पण कर देता है । तीन दिन पुलिस रिमांड में रखने के बाद उसे जेल भेज दिया जाता है । जेल के सभी कैदियों का व्यवहार रविंद्र के साथ बहुत अच्छा है । वकील के प्रयास से बग्गा सिंह को जेल में बेटे को मिलने की इजाजत मिली । वह बहुत सारा खाने का सामान लेकर रविंद्र से मिलने जाता है । जेल के सिपाहियों को आधी पिन्नियाँ और सारी जलेबी खिलाने के बाद रविंद्र से उसकी मुलाकात होती है । बाप बेटा दिल खोल कर बातें करते हैं ।

अब आगे ....

 

बग्गा सिंह बस से उतर कर पैदल ही घर को चल दिया । रास्ते में उसे तांगे भी मिले और रिक्शा भी । एक दो रिक्शावालों ने उसे टोका भी – भाई जी कहाँ जाना है । हम ले चलें ।

नहीं भाई । यहाँ पास ही जाना है ।

रास्ते में जो भी परिचित मिले , उसने आगे होकर उनका हालचाल पूछा । सबसे मिलता जुलता करीब पचास मिनट बाद जब वह घर पहुँचा , उसका मन शांत हो चुका था ।

रानी और बच्चे उसके लौटने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे । उसे देखते ही पिंकी ने लिफाफे उसके हाथ से ले लिए और चौंके में जाकर रख आया । राना उसके लिए लोटे में पानी ले आया । बग्गा सिंह ने हाथ मुँह धोकर पानी पिया ।

रानी उसी के चेहरे की ओर देख रही थी ।

भागवान मिल आया मैं तेरे बेटे को । तुझे पूछ रहा था ।

कैसा है हमारा बेटा ।

बिल्कुल ठीक है । धीरे धीरे जेल के वातावरण में खुद को सैट करने की कोशिश में लगा है ।

देखने में कैसा दिख रहा था

तंदरुस्त है । थोङा कुम्हला तो जरूर गया है । वैसे ठीक है । बता रहा था कि वहाँ सब को सुबह पांच बजे उठा देते हैं । योग होता है । फिर सब कसरत करते हैं । ध्यान लगाते हैं । फिर सह नहाने धोने जाते हैं । शाम को भी सब एक डेढ घंटा अपना मनपसंद खेल खेलते हैं ।

और खाना पीना उसका क्या

सुबह नाश्ते में दलिया , खिचङी या ब्रैड जैम मिलता है । त्योहार पर या इतवार को पूरी छोले । दोपहर में एक दाल एक सब्जी चावल और रोटी और रात को दाल दही और रोटी ।

बाकी कैंटीन तो है ही वहाँ से खाने पीने के सामान के साथ साबन तेल जैसा जरूरत का सारा सामान मिलता है । हर कैदी के खाते में दो हजार रूपये जमा करवाने पङते हैं जिसके बदले उसे कूपन मिलते हैं । उन कूपन से सामान खरीद सकते हैं । मैं लेकर गया था साबुनें , तेल पेस्ट जैसी कई चीजें पर उन्होंने वापस मोङ दी कि ये चीजें बाहर से नहीं जाएगी । भीतर से कैंटीन से लेनी होंगी । मैं दो हजार रुपये जमा करवा आया हूँ । आपे आप जो उसे   चाहिए होगा , कैंटीन से जाकर ले लेगा ।

और

बता रहा था कि जेल में उसकी सब इज्जत करते हैं । कोई काम नहीं करने देते । मैंने धोने के लिए कपङे मांगे थे , बोला लङकों ने सारे धो सुखा कर तह करके कोठरी में रख दिये हैं । कमरा बी वहीं साफ कर जाते हैं ।

सबसे जादा पढा लिखा है न हमारा बेटा । कदर तो होनी ही हुई ।

जेल में उसे दफ्तर में पढने लिखने का ही काम दिया है जेलर ने । बाकी खेतों में क्यारियों मे काम करते हैं या वर्कशाप में । हमारे वाला पंखे के नीचे बैठता है । - बग्गा सिंह की छाती गर्व से तन गयी ।

अच्छा

तेरा हाल पूछ रहा था । कह रहा था कि मम्मी को कहना , अपना ध्यान रखे । रोटी टाईम से खा लिया करे । बीमार न पङ जाए । और रोना धोना तो बिल्कुल बंद ।  

ऐसा कहा उसने हाय मेरा शरीफ बच्चा ।  रानी दुपट्टे से अपने आँसू पोंछ रही थी ।

अब तू रोना बंद कर । भागवान चाय तो पिला । जबसे आया हूँ तब से बातें ही किये जा रही है , ये नहीं कि एक कप चाय ही पिला दे ।

ओह मैं तो बातों बातों में बिल्कुल भूल ही गयी । दो मिनट इंतजार कर । मैं अभी बनाकर लाती हूँ ।

रानी रसोई में चाय बनाने चली गयी तो वह चारपाई पर मुँह ढक कर लेट गया । उसने आँखें बंद कर ली पर मन तो बेकाबू है । बिना पंखों के ही इधर उधर उङता फिरता है । एक पल यहाँ तो दूसरे पल वहाँ । कोई पासपोर्ट नहीं न कोई वीजा की आवश्यकता होती है । बिना वाहन , सवारी के सारी दुनिया में सैर करती फिरता है । यहाँ लेटे लेटे वह मैहना बाजार में घूम आया जहाँ उसने दो टी शर्ट पसंद करके अगली बार खरीदने के रादे से छोङ दी थी । उस जलेबी वाली रेहङी पर पहुँच गया जहाँ उसने गरमागरम जलेबी बंधवाई थी । जैसे ही रविंद्र जेल से बाहर आया , वह उसके लिए गरमागरम कुरकुरी जलेबिया कम से कम सेर भर तो पक्का तुलवा लेगा । तीनों भाई जी भर कर जलेबी खाएंगे । जेल का ध्यान आते ही उसे जेल के वे सिपाही याद आये जो स्वाद देखते देखते आधी पिन्नियां और सारी जलेबियां खा गये थे ।

भुक्खङ किसी जहान के । रविंद्र के लिए एक भी जलेबी नहीं छोङी हरामियों ने ।

अगले ही पल वह करूणा से भर गया – तो क्या हुआ , खाने की चीज थी । किसी के मुंह में गयी , अच्छा ही हुआ । बाकी उन सब का विहार कितना अच्छा था । जिन्होंने पानी की पनी बोतल दे दी थी ,वे कितने भले थे । और ये रविंद्र इन दस दिनों में ही कितना सयाना हो गया है । नहीं सयाना तो वह पहले से ही था , मुझे ही पता नहीं चला । भगवान करे . जल्दी बाहर आ जाए । वकील कह तो रहा था ।

सुनो लेट बाद में लेना , पहले चाय पकङों । रानी चाय ले आई थी । बग्गा सिंह उठा और चाय पकङ ली । रानी कटोरी में दो पिन्नियाँ भी रख लाई थी – ले खाली चाय न पी । सीधे कालजे में लगेगी । साथ में यह पिन्नी ले ले ।

बग्गा सिंह ने पिन्नी भी पकङ ली । चाय खत्म करके उसने गिलास नीचे रखा और पैर में जूती फंसाने लगा ।

ये अब कहाँ चल पङा सुबह का गया थका हारा अब तो लौटा है और आते ही फिर से बाहर ...।

ज्यादा दूर नहीं जा रहा । बस यूं गया और यूं वापिस आया । तू दाल चढा तेरी दाल बनते बनते आ जाता हूँ ।  और बग्गा सिंह रानी को वहीं खङे चोङ कर दहलीज से पार हो गया ।

 

 

बाकी फिर ...